श्री बगलामुखी की उपासना विधि
श्री बगलामुखी की उपासना विधि

श्री बगलामुखी की उपासना विधि  

व्यूस : 23930 | मार्च 2008
श्री बगलामुखी की उपासना विधि डा0 भगवान सहाय श्रीवास्तव दवी दुर्गा की दस महाविद्याओं में एक का नाम बगुला मुखी है। वेदों में इनका नाम बल्गामुखी है। इनकी आराधना मात्र से साधक के सारे संकट दूर हो जाते हैं, शत्रु परास्त होते हैं और श्री वृद्धि होती है। बगलामुखी का जप साधारण व्यक्ति भी कर सकता है, लेकिन इनकी तंत्र उपासना किसी योग्य व्यक्ति के सान्निध्य में ही करनी चाहिए। देवी के अर्गला स्तोत्र का पाठ करने मात्र से इनकी आराधना हो जाती है। साधक को पीले वस्त्र (बिना सिले) पहनकर पीले आसन पर बैठकर सरसों के तेल का दीपक जलाकर पीली सरसों से यज्ञ करना चाहिए। इससे उसके सारे मनोरथ पूर्ण होंगे और शत्रु परास्त होंगे। यह महारुद्र की शक्ति हैं। इस शक्ति की आराधना करने से साधक के शत्रुओं का शमन तथा कष्टों का निवारण होता है। यों तो बगलामुखी देवी की उपासना सभी कार्यों में सफलता प्रदान करती है, परंतु विशेष रूप से युद्ध, विवाद, शास्त्रार्थ, मुकदमे, और प्रतियोगिता में विजय प्राप्त करने, अधिकारी या मालिक को अनुकूल करने, अपने ऊपर हो रहे अकारण अत्याचार से बचने और किसी को सबक सिखाने के लिए बगलामुखी देवी का वैदिक अनुष्ठान सर्वश्रेष्ठ, प्रभावी एवं उपयुक्त होता है। असाध्य रोगों से छुटकारा पाने, बंधनमुक्त होने, संकट से उद्धार पाने और नवग्रहों के दोष से मुक्ति के लिए भी इस मंत्र की साधना की जा सकती है। कृत युग में पूरे संसार को नष्ट करने वाला तूफान उठा, उसे देख जगत रक्षक श्री हरि भगवान विष्णु चिंतातुर हुए और सौराष्ट्र में स्थित हरिद्रा सरोवर के समीप जाकर उन्होंने तपस्या की। उनकी तपस्या से महात्रिपुर संुदरी प्रसन्न होकर देवी बगला के रूप में प्रकट हुईं तथा तूफान को शांत किया। इन्हीं की शक्ति पर तीनों लोक टिके हुए हैं। विष्णु पत्नी सारे जगत की अधिष्ठान ब्रह्म स्वरूप हैं। तंत्र में शक्ति के इसी रूप को ‘‘श्री बगलामुखी’’ महाविद्या कहा गया है। वैदिक एवं पौराणिक शास्त्रों में श्री बगलामुखी महाविद्या का वर्णन अनेक स्थलों पर मिलता है। शत्रु के विनाश के लिए जो कृत्य विशेष को भूमि में गाड़ देते हैं, उनका नाश करने वाली महाशक्ति श्री बगलामुखी ही हैं। श्री बगला देवी को शक्ति भी कहा गया है। सत्य काली च श्री विद्या कमला भुवनेश्वरी। सिद्ध विद्या महेशनि त्रिशक्तिर्बगला शिवे।। मंत्र महार्णव के अनुसार इस मंत्र का एक लाख जप करने से पुरश्चरण होता है। अन्य तंत्र ग्रंथों के अनुसार पुरश्चरण के लिए सवा लाख जप का विधान है। भेरूतंत्र के अनुसार यह मंत्र दस हजार के जप से ही सिद्ध हो जाता है। इसका जप नित्य नियत संख्या में ही करना चाहिए। जप का दशांश हवन, तर्पण और मार्जन कर ब्राह्मण तथा कन्या भोजन कराना चाहिए। पुरश्चरण 21 दिनों में सरलतापूर्वक संपन्न हो सकता है। प्राणी के शरीर में एक अथर्वा नाम का प्राण सूत्र भी होता है। प्राणरूप होने से हम इसे स्थूल रूप से देखने में असमर्थ होते हैं। यह एक प्रकार की वायरलेस टेलीग्राफी है। हजारों योजन दूर रहने वाले आत्मीय के दुख से हमारा चिŸा जिस परोक्ष शक्ति के माध्यम से व्याकुल हो जाता है, उसी परोक्ष सूत्र का नाम अथर्वा है। इस शक्ति सूत्र के माध्यम से हजारांे किमी दूर स्थित व्यक्ति से संपर्क संभव है। दूसरे अथर्वागिरा में अभिचार प्रयोग होता है। इसका उसी अथर्वा सूत्र से संबंध है। अथर्वा सूत्र रूपी इसी महाशक्ति का नाम बल्गामुखी है। उपासना: बगलामुखी की साधना में साधना के नियमों को जानना तथा उनका पालन करना अत्यंत आवश्यक है। साधना किसी प्रवीण गुरु से दीक्षा लेकर ही करनी चाहिए। बगलामुखी साधना के लिए ‘’वीर राजी’’ विशेष सिद्धिप्रदा मानी गई है। यदि सूर्य मकर राशिस्थ हो, मंगलवार को चतुर्दशी हो तो उसे वीर राजी कहा जाता है। इसी राजी में अर्द्धरात्रि के समय देवी श्री बगलामुखी प्रकट हुई थीं। महाविद्या बगलामुखी का 36 अक्षरों का मंत्र इस प्रकार है। पीताम्बर धरी भूत्वा पूर्वाशामि मुखः स्थितिः। लक्ष्मेकं जयेन्मंत्रं हरिद्रा ग्रन्थि मालया।। ब्रह्मचर्यŸाो नित्यं प्रचरो ध्यान तत्परः। प्रियंगु कुसुमेनादि पीत पुस्पै होमयेत।। बगलामुखी देवी के जप में पीले रंग का विशेष महत्व है। अनुष्ठानकर्ता को पीले वस्त्र पहनने चाहिए। पीले कनेर के फूलों का विशेष विधान है। देवी की पूजा तथा होम में पीले पुष्पों का प्रयोग करना चाहिए और हल्दी की गांठ की माला से पूजा करनी चाहिए। उसे ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए तथा सदैव स्वच्छ तन और मन से भगवती का ध्यान करना चाहिए। जप आसन पर पूर्वाभिमुख बैठकर करना चाहिए। जप से पूर्व आसन शुद्धि, भूशुद्धि, भूतशुद्धि, अंग न्यास, करन्यास आदि करने चाहिए तथा प्रतिदिन जप के अंत मे दशांश होम पीले पुष्पों से अवश्य करना चाहिए। जप करने से पूर्व यह ध्यान करना आवश्यक है। साधना विधि: सुबह स्नानादि कर स्वच्छ पीले वस्त्र धारण करें। फिर देवी के चित्र को एक चैकी पर पीला वस्त्र बिछाकर उस पर पूर्व की ओर मुख करके स्थापित कर षोडशोपचार विधि से पूजन करें। साधना में वस्त्र, आसन, माला, गंध, अक्षत, पुष्प, फल आदि भी पीले रंग के होने चाहिए। साधना काल में बगला यंत्र की स्थापना भी अवश्य करनी चाहिए। यंत्र को शिव मंत्र ‘‘¬ नमः शिवायः’’ से अभिमंत्रित करना चाहिए। फिर उसे किसी पात्र में रखकर पंचामृत, दूध या शुद्ध जल और सुगंधित चंदन, कस्तूरी से स्थापित करें। इसके बाद निम्न गायत्री मंत्र का उच्चारण करते हुए यंत्र का स्पर्श कर कुशामन से अभिमंत्रित करें। मंत्र ‘‘यंत्र राजाय विद्महे महा यंत्राय धीमहि तन्नो यंत्रः प्रचोदयात्।’’ फिर देवी-देवता की भाव सिद्ध के लिए अष्टोŸार शतबार पढ़ें। अष्टोŸारशतं देवि-देवता भाव सिद्धेय।। आत्म शुद्धि ततः कृत्वा षडंगे देवता यजेत्। तत्रावाहं महादेवी जीवन्यासं च कारयेत।। फिर महादेव जी का आवाहन करके प्राणन्यास करें। संकल्प:- आचमन एवं प्राणायाम करने के बाद देशकाल संकीर्तन करके बगलामुखी मंत्र की सिद्धि के लिए जप संख्या के निर्देश और तत् दशांश क्रमशः हवन, तर्पण, मार्जन और ब्राह्मण भोजन रूप पुरश्चरण करने का संकल्प करें। विनियोग मंत्र: ¬ अस्य श्री बगलामुखीमंत्रस्य नारदऋषिः त्रिष्टुपछन्दः बगलामुखी देवता ींीं बीजं स्वाहा शक्तिः मम अखिलावाप्तये जपे विनियोगः। इससे उसमें प्राण शक्ति आ जाएगी। फिर अभीष्ट सिद्धि हेतु उपरोक्त मंत्र का जप करें। फिर देवी को यथा योग्य सामग्री अर्पित कर भक्ति भाव से प्रणाम करें। इस प्रकार से जो साधक साधना करता है, उसे सभी फल प्राप्त हो जाते हैं हृदयादि षडंगन्यास:- ¬ ींीं हृदयाय नमः। बगलामुखी शिरसे स्वाहा। सर्वदुष्टानां शिखायै वषट्। वाचं मुखं पदं स्तम्भय कवचाय हुम्। जिह्नां कीलय नेत्रत्रयाय वौषट् बुद्धिं विनाशय ींीं ¬ स्वाहा अस्त्राय फट्। अथ ध्यानम्: सुधा सागर के मध्य मणियों से जड़ित मंडप में रत्नों से बनी वेदी पर स्वर्ण सिंहासन पर देवी विराजमान हैं। सिंहासन, मंडप तथा आसपास का वातावरण सब पीतवर्ण के हैं। मां पीले रंग के ही वस्त्र, मुकुट, माला, पीतवर्ण के ही रत्नों से जड़े स्वर्णाभूषण पहने हुए हैं। उन्होंने बायें हाथ में शत्रु की जीभ और दाहिने में मुद्गर पकड़ रखा है। ऐसी दो भुजाओं वाली देवी भगवती बगलामुखी को नमस्कार है। ऐसा ध्यान करके मानसोपचारों से पूजा करके पीठ पूजा करनी चाहिए। पीठ आदि पर रचित सर्वतोभद्रमंडल में मंडूकादि परतत्वांत पीठ देवताओं को स्थापित करके ¬ मं मण्डूकादि परतत्वान्त पीठ देवताम्भ्यो नमः मंत्र से पूजा करके नव पीठशक्तियों की निम्नलिखित मंत्रों से पूजा करें। पूर्वाद्यष्टसु दिक्षु ¬ जयायै नमः (1) ¬ विजयायै नमः (2) ¬ अजितायै नमः (3) ¬ अपराजितायै नमः (4) ¬ नित्यायै नमः (5) ¬ विलासिन्यै नमः (6) ¬ दोग्ध्यै नमः (7) ¬ अघोरायै नमः (8) मध्ये ¬ मंगलायै नमः (9) इति पीठ शक्तीः पूजयेत। ततः स्वर्णादि निर्मितं यंत्रं ताम्रपात्रे निधाय धृतेनाभ्यज्य तदुपरि दुग्धधारां जलधारां च दत्वा स्वच्छ वस्त्रेण सम्प्रोक्ष्य तदुपरि चंदनागुरुकर्पूरेण पूजनार्थ यंत्र विलिरव्य। ¬ ींीं बगलामुखी योगपीठाय नमः इति मंत्रेण पुष्पाधासनं दत्वा पीठ मध्ये संस्थाप्य प्रतिष्ठां च कृत्वा पुनध्र्यात्वा मूलेन मूर्ति प्रकल्प्य पाद्यादि पुष्पान्तैरूपचारैः सम्पूज्य देव्याज्ञां ग्रहीत्वा आवरण पूजां कुर्यात। तद्यथाः। इसके बाद सोने से निर्मित यंत्र को ताम्रपत्र में रखकर उस पर घी का अभ्यंग करके उस पर दूध और जल की धारा दें। तदनंतर उसे स्वच्छ वस्त्र से पोंछकर उसके ऊपर चंदन, अगरबत्ती और कपूर से पूजा के लिए यंत्र लिखें। ‘‘¬ ींीं बगलामुखी योगपीठाय नमः’’ मंत्र से पुष्पाद्यासन देकर पीठ के बीच स्थापित करके उसकी प्राण प्रतिष्ठा करें। फिर ध्यान कर मूल से मूर्ति की प्रकल्पना करें और पाद्य आदि से पुष्पान्जलि दान पर्यन्त उक्त उपचारों से पूजा करके देवी से आज्ञा लेकर आवरण पूजा करें। इत्यावरणपूजां कृत्वां धूपादि नमस्कारान्तं सम्पूज्य जपं कुर्यात अस्य पुरश्चरणं लक्ष जपः चम्पक कुसुमैर्दशांशतो होमः तद्दशांशेन तर्पण मार्जन ब्राह्मण भोजनानि कुर्यात। एवं कृते मंत्रः सिद्धौ भवति एतस्मिन्सिद्धे मंत्रे मंत्र प्रयोगान साधयेत। इस प्रकार आवरण पूजा करके धूपदान से नमस्कार तक पूजा कर जप करें। चम्पा के फूलों से दशांश होम और तद्दशांश तर्पण और मार्जन कर ब्राह्मण भोजन कराएं। ऐसा करने से मंत्र सिद्ध होता है। इस प्रकार ध्यान करके एक लाख जप करें। तदनंतर चंपा के दस हजार फूलों से होम करके पूर्वोक्त पीठ में इस देवी की पूजा करें। इस प्रकार साधक मंत्र को सिद्ध करके देवतादि को स्तंभित करें। साधना पीले वस्त्र और पीली माला धारण कर तथा पीले आसन पर बैठ कर करें। होम पीले फूलों से और मंत्र का जप हल्दी की माला से करें। जप दस हजार करें। मधु, घी और शर्करा मिश्रित तिल से किया जाने वाला हवन (होम) मनुष्यों को वश में करने वाला माना गया है। यह हवन आकर्षण बढ़ाता है। तेल से सिक्त नीम के पत्तों से किया जाने वाला हवन विद्वेष दूर करता है। रात्रि में श्मशान की अग्नि में कोयले, घर के धूम, राई और माहिष गुग्गल के होम से शत्रु का शमन होता है। गिद्ध तथा कौए के पंख, कड़वे तेल, बहेड़े, घर के धूम और चिता की अग्नि से होम करने से साधक के शत्रुओं को उच्चाटन लग जाता है। दूब, गुरुच और लावा को मधु, घी और शक्कर के साथ मिलाकर होम करने पर साधक सभी रोगों को मात्र देखकर दूर कर देता है। कामनाओं की सिद्धि के लिए पर्वत पर, महावन में, नदी के तट पर या शिवालय में एक लाख जप करें। एक रंग की गाय के दूध में मधु और शक्कर मिलाकर उसे तीन सौ मंत्रांे से अभिमंत्रित करके पीने से सभी विषों की शक्ति समाप्त हो जाती है और साधक शत्रुओं की शक्ति तथा बुद्धि का स्तम्भन करने में सक्षम होता है। शत्रुओं पर विजय आदि के लिए बगलामुखी यंत्र की उपासना से बढ़कर और कोई उपासना नहीं है। इसका प्रयोग प्राचीनकाल से ही हो रहा है। श्री प्रजापति ने इनकी उपासना वैदिक रीति से की और वह सृष्टि की रचना करने में सफल हुए। उन्होंने इस विद्या का उपदेश सनकादिक मुनियों को दिया। फिर सनत्कुमार ने श्री नारद को और श्री नारद ने यह ज्ञान संख्यायन नामक परमहंस को दिया। संख्यायन ने बंगला तंत्र की रचना की जो 36 पटलों में उपनिबद्ध है। श्री परशुराम जी ने यह विद्या के ढ़ोग बताई। महर्षि च्यवन ने इसी विद्या के प्रभाव से इंद्र के वज्र को स्तंभित किया था। श्रमद्गोविन्द पाद की समाधि में विघ्न डालने वाली रेवा नदी का स्तंभन श्री शंकराचार्य ने इसी विद्या के बल पर किया था। तात्पर्य यह कि इस तंत्र के साधक का शत्रु चाहे कितना भी प्रबल क्यों न हो, वह साधक से पराजित अवश्य होता है। अतः किसी मुकदमे में विजय, षड्यंत्र से रक्षा तथा राजनीति में सफलता के लिए इसकी साधना अवश्य करनी चाहिए। परंतु ध्यान रहे, उपासना किसी योग्य और कुशल गुरु के मार्गदर्शन में ही करें।



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