पीतांबरा माता बगलामुखी
पीतांबरा माता बगलामुखी

पीतांबरा माता बगलामुखी  

व्यूस : 17902 | मार्च 2008
पीतांबरा माता बगलामुखी बसंत कुमार सोनी यदि किसी कारणवश खुले स्थान पर जप आदि करना पड़े तो ऊपर पीले कपड़े का चंदोवा ;चांदनीद्ध तान देना चाहिए। अनुष्ठानए पूजाए जपए स्तुति पाठ आदि टापू पर बैठकर नहीं करने चहिए। स्थान गंदाए अशुभ या गलियारे वाला नहीं हो। बगला साधना के लिए स्थान का चयन करते समय सदैव सावधानी रखनी चाहिए। साधना रात में करनी चाहिए। बगलामुखी की साधना शत्रु शमनए संकट के निवारणए समस्या के समाधानए वाद.विवाद मुकदमों में विजयए वाक्.सिद्धिए धन.ऐश्वर्य की प्राप्ति आदि के लिए की जाती है। किंतु साधना में निष्ठा परमावश्यक है। सद्गुरु या सुयोग्य बगला साधक अथवा किसी निष्कपट साधु या योग्यए विद्वानए अनुभवीए कर्मकांडीए निर्लोभी पंडित से साधना से संबद्ध पूर्ण जानकारी हासिल करने के उपरांत ही यह साधना शुरू करनी चाहिए। शास्त्रों में बगलामुखी ब्रह्मास्त्र विद्याए स्तंभनकारिणी और पीतांबरा माता के नाम से जानी जाती हैं। यह दस महाविद्याओं में अष्टम महाविद्या है। पीतांबरा बगलामुखी माता लगाम की भांति दुश्मनों को खींचकर उन्हें घोड़ांे की तरह स्तब्ध कर देती हैं। उनके शिव मृत्युंजय हैं। इसलिए बगला साधना के समय जप या बगला स्तोत्र के पाठ के पूर्व एवं पश्चात् एक माला मृत्यंुजय जप अवश्य करना चाहिए। फिर मृत्युंजय जप के बाद बगला कवच का पाठ करना चहिए। कवच के पश्चात् बगलामुखी देवी के मंत्र का जपए स्तोत्र पाठ आदि करने चाहिए। मां का 36 अक्षरों वाला मंत्र निम्नांकित है। ष्ष्¬ ींीं बगलामुखि सर्वदुष्टानां वाचं मुखं पदं स्तम्भय जिह्नां कीलय बुद्धिं विनाशय ींीं ¬ स्वाहाष्ष्। मंत्र जप आरंभ करते समय बगलामुखी का इस तरह ध्यान करना चाहिए। मैं स्वर्ण सिंहासन पर विराजमान त्रिनेत्राए पीेले वस्त्रों से सुशोभितए स्वर्ण जैसी अंग कांति वालीए चंद्रमा को मुकुट रूप में धारण करने वालीए चंपा पुष्पों की माला धारण करने वालीए अपने हाथों में मुद्गरए पाशए वज्र और जिह्ना धारण करने वालीए आभूषणों से अंगों को शोभायमान करने वाली एवं तीनों लोकों को स्तंभित करने वाली श्री बगलामुखी देवी का ध्यान करता हूं। जप.संख्या कार्य के अनुसार बगलामुखी देवी के जप की संख्या निर्धारित कर लेनी चाहिए। यदि कोई कार्य बड़ा या दुःसाध्य हो तो एक लाख जप अवश्य करना चाहिए। इसके विपरीत छोटे या सुसाध्य कार्य के लिए दस हजार जप करना ठीक रहता है। बगला साधना गुरु के सान्निध्य में करना जरूरी है। गुरु के परामर्शानुसार ही जप संख्या निर्धारित करनी चाहिए। हवन एवं हवन.फल जप के के बाद उसका दशांश हवन करने का विधान है। किस पदार्थ से हवन करने से कौन का फल मिलता है इसका संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है। वशीकरण के लिए सरसों से हवन करना चाहिए। स तिलों के दुग्ध मिश्रित चावलों के हवन से धन प्राप्ति होती है। स अशोक व कनेर के पुष्पों के हवन से पुत्र की प्राप्ति होती है। स सेंभल के फूलों के हवन से शत्रुओं पर विजय प्राप्त होती है। स राजवश्यता के लिए गुग्गुल और घृत के हवन का विधान है। स तिल मिश्रित गुग्गुल के हवन से बंदी की रिहाई होती है। अनुष्ठान का स्थान व समय साधना या अनुष्ठान का स्थान एकांतए निर्जन व शुद्ध हो। साधना घर अथवा पर्वतीय प्रदेशए बीहड़ जंगल या सिद्ध शैल गृह ;पाषाण का बना घरद्ध में अथवा पवित्र महानदियों के संगम के तट पर भी की जा सकती है। किंतु स्थान खुला नहीं होना चाहिए। यदि किसी कारणवश खुले स्थान पर जप आदि करना पड़े तो ऊपर पीले कपड़े का चंदोवा ;चांदनीद्ध तान देना चाहिए। अनुष्ठानए पूजाए जपए स्तुति पाठ आदि टापू पर बैठकर नहीं करने चहिए। स्थान गंदाए अशुभ या गलियारे वाला नहीं हो। बगला साधना के लिए स्थान का चयन करते समय सदैव सावधानी रखनी चाहिए। साधना रात में करनी चाहिए। पीतांबरा देवी बगलामुखी की जप की विधि पीतांबरा साधना में पदार्थों का पीला होना अनिवार्य है। साधक को पीले वस्त्र धारण कर नित्य पीले पुष्पों से बगलामुखी देवी का पूजन करना चाहिए। धोती के साथ दुपट्टा या साफी का प्रयोग करना चाहिएए केवल एक वस्त्र धारण कर साधना करना वर्जित है। जप के लिए हरिद्रा की माला का प्रयोग किया जाता है। जप पीले रंग के आसन पर बैठकर किया जाता है। साधक को सिर खुला रखना चाहिए। परंतु बालों की चोटी खुली नहीं होनी चाहिए। सर्वांग शरीर शुद्ध होना चाहिए। जप पैर पसारकर या उकडं़ू बैठकर कभी न करें। हाथ खुले रखें। जप करते समय किसी से बातचीत नहीं करनी चाहिए। बगला साधना में कुर्ताए कमीजए पायजामाए टोपीए पगड़ी आदि पहनना वर्जित है। जो साधक अज्ञानतावश जप के पूर्व बगला कवच का पाठ नहीं करता उसका रक्त योगिनी पी जाती हैए ऐसा शास्त्रों का मत है. ष्ष्कवचम् अज्ञात्वा यो जपेद् बगलामुखीम्। पिवन्ति शोणितं तस्य योगिन्यः प्राप्य सादराः।ष्ष् साधना के लिए नियत स्थान पर चैकी या पट्टे के ऊपर पीला वस्त्र बिछाकर उस पर पीले किए गए चावलों का अष्ट.दल कमल निर्मित कर लेना चाहिए। फिर उस पर पीले कलश की स्थापना कर ध्यानपूर्वक बगला माता का आवाहन कर पूजन करना चाहिए। जप क्रम का नियमन साधना के लिए जप की जितनी संख्या निर्धारित की जाएए उतनी ही संख्या में प्रत्येक दिन जप करना चाहिए। ऐसा न करने पर जप भ्रष्ट हो जाता है। मानस जप सर्वश्रेष्ठ होता है। लिखे हुए मंत्र का जप पढ़कर नहीं करना चाहिए बल्कि जप के पूर्व ही उसे कंठस्थ कर लेना चाहिए। जप करते समय माला को गुप्त रखना चाहिए। इसके लिए पीले कपड़े की सिली हुई थैली या गोमुखी का प्रयोग करना चाहिए। हरिद्रा माला को इतनी तेजी से नहीं घुमाना चाहिए कि उसके मनकों की आवाज दूसरों को सुनाई दे। माला भूमि से भी न टकराने पाए। पूजन.सामग्री केसरिया या पीला चंदनए पीले अक्षतए सूखी पिसी हल्दीए केसरए चम्पक पुष्पए पीले कनेर के फूलए पीला कलावाए पीत यज्ञोपवीतए पीला कपड़ाए पीतांबरा माता के लिए पीले वस्त्रए पीली चुन्नी पीतभूषणए पीले मौसमी फलए अर्थात ऋतुफल अर्थात जिस समय अनुष्ठान कार्य संपन्न कर रहे हों उस अवधि या मौसम में फलने वाले प्राप्य फलए बेसनी मोदकए पानए सुपारीए धूपए दीपए घीए कपूरए पीला आसनए हल्दीगांठ की जपमालाए कुंकुमए अबीरए गुलालए पीतांबरा को चढ़ाने के लिए पीले रंग की पताका आदि। बगला.गायत्री यदि पीतांबरा देवी बगलामुखी के विधि सहित पूजन के उपरांत नित्य एक माला जप बगला गायत्री का भी किया जाएए तो शत्रुओं का शमनए भीषण विघ्नों का नाशए विवादों का शमनए दुख.दारिद्र्य का नाशए मंत्र दोष प्रमोचन एवं ग्रह दोष निवारण हो सकता है। बगला गायत्री मंत्र का जप भी पीले वस्त्र पहनकरए पीले आसन पर बैठकरए पीली हल्दी की गांठों की माला से करना चाहिए। बगला गायत्री मंत्र इस प्रकार है। ष्ष्¬ ींीं ब्रह्मास्त्राय विद्महे स्तम्भनबाणाय धीमहि तन्नोः बगला प्रचोदयात्।ष्ष् बगला माता के जपानुष्ठान के बाद जप के दशांश होम करने का विधान है। होम का दशांश तर्पण और तर्पण का दशांश मार्जन करना तथा मार्जन का दशांश विप्र भोज कराना चाहिए। भोजन बेसन के पीत वर्ण मोदकए मिष्ठानए पकवान आदि का करना चाहिए। प्रतिदिन पूजा एवं जप के बाद श्री बगलामुखी माता की घी या कर्पूर से आरती करनी चाहिए। ष्ष्पूजाकाले कोऽपि आर्तिक्यं पठतेए धनधान्यादि समृद्धो सान्न्ािध्यं लभते।।ष्ष् माता श्री बगलामुखी का प्रातः स्मरणम् प्रातः स्मरामि मधु पूर्ण सुधा समुद्रम्। तन्मध्य दिव्य मणिद्वीप मनोहरं च। कल्पाटवीममित रत्न विभूष कोटम्। श्रीमण्डपं विशद शोभि हृदि स्फुरुतम्। ;1द्ध प्रातर्नमामि मधुसूदन त्रीक्ष्णाब्जैः नीराजितं ह्राति नतैः मुकुट . प्रदीपै। सौवर्ण वर्णमतुल तं पाद पीठम्ए देव्या निवेषित सदाप्रि द्वयं लालभम् ;2द्ध प्रातर्भजामि भव भूरि भयापहा ताम्। पीताम्बरा कर सु मुद्गर वैरि जिह्नाम। सु स्तम्भिनी सु वदनां करुणाद्र्रा चित्ताम् सृष्ट्युत्पत्ति स्थिति नियामिनी ब्रह्म विद्याम् ;3द्ध माता श्री बगलामुखी जिन्हें त्रैलोकी स्तम्भनी भी कहा जाता है। शत्रु स्तम्भन के लिए सर्वप्रथम माना जाता हैए या स्मरण किया जाता है। वो भगवती बगलामुखी हैं। बगलामुखी की मैं बात कहूं क्याए यह भोगए मोक्ष की दाता हैं। इसके साधक के शत्रु काए निश्चय अंत हो जाता है। ये पाप ताप मिटाती हैए जीवन को सरल बनाती है। भव बाधा सदा हटाती हैए जीवन में सौभाग्य सदा जमाती है।। जो बगला.बगला कहता हैए निश्चय कृपा को पाता है। अपना वो कल्याण करए भव सागर में तर जाता है।। लोमेशने नारद से कहाए बगला नाम की महिमा को। जो पूजे और चाहे इसेए वो सर्व सिद्ध हो जाता है।। यह बात केवल बात नहींए साधक की ये सच्चाई है। बगला के साधक की जग मेंए होती सदा भलाई है।। यह पंक्ति मैंने कही अवश्यए विजय कुमार के हृदय की बात है ये। जो भी इसमें दीक्षत हुआए उसके सदा ही साथ है ये।। मात कहोए जगदम्बे कहोए त्रिलोकी स्तम्भनी बगला रानी है। बगला.बगला करने सेए शत्रु को होती परेशानी है।। चहण्ण्ण्ण्37 मां बगलामुखीरू कलयुग की संकटहारिणी डाॅण् संजय बु;िराजा रतवर्ष के प्राचीन शास्त्रों यजुर्वेदए अथर्ववेदए पीतांबरोपनिषदए रुद्रयामल तंत्र अग्निपुराणए मेरु तंत्र षट्कर्म दीपिकाए सांख्यायन आदि में मां बगलामुखी का विशद उल्लेख मिलता है। शत्रुओं को नष्ट करने की इच्छा रखने वाली व परम पिता परमात्मा की संहार शक्ति ही बगला हैं। बगलामुखी दस महाविद्याओं में आठवीं महाविद्या हैं। इनकी तीन आंखें हैं। इनके एक हाथ में शत्रु की जीभ और दूसरे में मुद्गर है। यह पीले वस्त्र और रत्न पहनती हैं। टोडल तंत्र के अनुसार इनके दायीं ओर महारुद्र बैठते हैं। मां बगलामुखी को ष्ब्रह्मास्त्रष् के नाम से भी जाना जाता है। इन्हें ष्पीतांबरा व ष्स्तंभिनीष् भी कहा जाता है। पौराणिक तथ्य स सर्वप्रथम ब्रह्मा जी ने बगला महाविद्या की उपासना की थी। इसके दूसरे उपासक भगवान विष्णु व तीसरे परशुराम हुए। परशुराम ने ही यह विद्या आचार्य द्रोण को बताई थी। स रावण के पुत्र मेघनाद ने अशोक वाटिका में हनुमान के वेग को श्री बगलामुखी की स्तंभन शक्ति के बल पर ही अवरुद्ध किया था। स इसी शक्ति के बल पर रावण की सभा में अंगद ने अपना पैर जमा दिया था जिसे उठाने में कोई भी सफल नहीं हुआ था। स महारथी वीर अर्जुन ने भी महाभारत के युद्ध में विजय के लिए मां पीतांबरा बगलामुखी की साधना की थी। स महाबली द्रोण पुत्र अश्वत्थामा ने भी मां के इसी शक्तिशाली रूप की पूजा की थी। स 1962 में चीन के भारत पर आक्रमण के समय भी श्रद्धा माता के कहने पर पंडित नेहरू ने मां बगलामुखी के दतिया मंदिर जाकर यज्ञ व पूजा अर्चना की थी और फिर चीन ने आक्रमण रोक दिया था। मां बगलामुखी साधना का उद्देश्य व लाभ स शत्रु शमनए मुकदमोंए किसी तरह की प्रतिस्पर्धा आदि में विजय स मन चाहे व्यक्ति से भेंट स अनिष्ट ग्रहों के दुष्प्रभावों का शमन स कार्यक्षेत्र में सफलता स वाक् सिद्धि स फंसे हुए धन की प्राप्ति स रोंगो से मुक्ति स शरीर में ष्वातष् का संतुलन बनाए रखना स बुरी आत्माओं से बचाव व प्रेत बाधा आदि से मुक्ति स दुर्घटनाए घावए आपरेशन आदि से रक्षा 14 बार इंद्र या वरुण मंत्र से अभिमंत्रित यंत्र को बाढ़ के जल में फेंक देने से बाढ़ रुक जाती है साधना या उपासना विधि इसकी उपासना में हरिद्रा अर्थात हल्दी की मालाए पीले फूल व पीले वस्त्रों का विधान है। उपासना का सर्वोत्तम समय रात्रि 10 बजे से प्रातः 4 बजे तक का है। दिन रविवार या गुरुवार और योग रविपुष्य या गुरुपुष्य सर्वाधिक होते हैं। उपासना शुक्ल पक्ष में की जाती है। नवरात्र का का काल सर्वदा उत्तम होता है। साधना उत्तर दिशा की ओर मुंह करके की जाती है। उपासना के लिए बगलामुखी यंत्र की प्राण प्रतिष्ठा करने के बाद उसे पूजा घर में लकड़ी की चैकी पर पीले कपड़े पर इष्ट देवता के साथ रखें। स्नानादि के पश्चात पीले वस्त्र पहन कर पूर्वाभिमुख होकर बैठेंए दिया जलाएं तथा पीले फूल व फल लें। किसी पेड़ के पत्ते के साथ पहले अपने पर व फिर यंत्र पर जल छिड़कें। 21 बार निम्न मंत्र बोल कर अपने आप को भगवान को समर्पित कर दंे। ष्¬ ींीं बगलामुख्यै नमःष् फिर दायें हाथ में जल लेकर बगलामुखी मंत्र का जप मन ही मन करें और यंत्र पर जल छिड़कें। ग्यारह दिन की अवधि में एक लाख मंत्रों का जप करने पर एक संपूर्ण अनुष्ठान होता है। 36 अक्षरों वाला बगलामुखी मंत्रए जिसके देवता महर्षि नारद हैंए इस प्रकार है। ¬ींीं बगलामुखि सर्वदुष्टानां वाचं मुखं पदं। स्तभ्ं ाय जिह्नां कीलय बुिद्धं विनाशय ींीं ¬ स्वाहा।। हवनरू मां बगलामुखी के मंत्रों का जप के पश्चात दशांश हवन भी किया जाता हैए जिसके लाभ इस प्रकार से हैं। स चंपा पुष्प से हवन करने पर साधक सभी देवताओं को अपने वश में कर सकता है। स दूध व तिल की खीर से हवन करने से धन लाभ होता है। स घीए शक्कर और मधु से हवन करने पर आकर्षण बढ़ता है। स अशोक के पत्तों से हवन करने से संतान सुख मिलता है। गुग्गुल व तिल से हवन करने से कारागार से मुक्ति मिलती है। स सेंवल के फलों से हवन करने से शत्रु पर विजय मिलती है। स तालपत्र और नमक युक्त हल्दी की गांठ से हवन करने पर शत्रु स्तंभित होता है। स राईए भैंस के दूध का घी और गुग्गल से हवन करने पर भी शत्रु का शमन होता है। स गुग्गुल व तिल से हवन करने से जेल से छुटकारा मिलता है स लकड़ीए शहद और घी से हवन करने से रोगों से मुक्ति मिलती है स चीनी व मधु मिली दूर्वा व धान के लावा से हवन करने पर रोग से मुक्ति मिलती है। जप के बाद माला गले में धारण कर लें। फिर ब्राह्मणों को भोजन कराएंए यह अत्यावश्यक है। इसके बाद आंखें बंद कर मां बगलामुखी के सामने अपनी मनोकामना निवेदित करेंए पूरी होगी। बगलामुखी मंत्र के बारे में कहा गया है कि यह मंत्र प्रचंड तूफान को भी रोकने में सक्षम है। बगलामुखी यंत्र बगलामुखी यंत्र में मां बगलामुखी का वास होता है। यह एक शक्तिशाली यंत्र हैए जो मंगल ग्रह की शक्तिशाली ऊर्जा को ग्रहण कर साधक को लाभ पहुंचाता है। कलयुग मंे बगलामुखी यंत्र जीवन के हर मोड़ पर मदद कर सकता है। योगियों व तांत्रिकों का मानना है कि जहां दूसरे सभी उपाय काम नहीं करते वहां बगलामुखी यंत्र की साधना काम आती है। इस साधना से साधक की सभी बाधाएं दूर होती हैं। बगलामुखी यंत्र के बारे में कहा गया है ष्त्रिजगतम् नक्षत्र स्तंभिनिष् अर्थात इसमें नक्षत्रों को रोक देने की भी शक्ति है। इसकी साधना से अश्ुाभ ग्रहों के अशुभ फलों से बचा जा सकता है। इसे गले में भी धारण किया जा सकता है और पूजा घर में भी रखा जा सकता है। यह तांबे की प्लेट पर बनाया जाता है। हल्दी व धतूरे के फूलों के रस से इसे भोजपत्र पर भी बनाया जा सकता है। इस यंत्र को तैयार करने के लिए होलीए दीवाली या गेहण के दिन अधिक शुभ माने जाते हैं। मुंडमाल तंत्र में कहा गया है कि इसकी सिद्धि के लिए नक्षत्रादि विचार व कालशोधन की भी आवश्यकता नहीं है। साधना मंे सावधानियां सांख्यायन तंत्र में कहा गया है कि गुरु से विधिवत दीक्षा प्राप्त कर ही इस देवी की उपासना करनी चाहिए। बिना दीक्षा प्राप्त किए पुस्तक में लिखित मंत्र को देखकर जप करने से साधक के चांडाल अथवा विक्षिप्त हो जाने की संभावना रहती है। साधना काल में अलौकिक अनुभूतियों से विचलित नहीं होना चाहिए। चंद्रमा का साधक की जन्म राशि भाव 4ए 8 या 12 में वास नहीं होना चाहिए। बगलामुखी के भैरव मृत्यंुजय हैंए इसलिए साधना से पूर्व महामृत्युंजय मंत्र का एक माला जप अवश्य कर लेना चाहिए! साधना काल में घी का दीपक लगातार जलता रहना चाहिए। साधना में ब्रह्मचर्य का पालनए भूमि शयन तथा बाहर भीतर की पवित्रता अनिवार्य है। माता श्री बगलामुखी की स्तुति जयए जयतिए सुखदाए सिद्धिदा स्वार्थ साधक शंकरी। स्वाहाए स्वधाए सिद्धाए शुभाए दुर्गा नमो सर्वेश्वरी।। जय सृष्टिए स्थिति कारिणीए संहारिणी साध्या सुखी। शरणागतोऽहं त्राहिमामए मां त्राहिमाम बगलामुखी।। जय प्रकृति पुरूषात्मक जगतए कारण करणी आनन्दिनी। विद्या.अविद्याए सादिए कादिए अनादि ब्रह्म स्वरूपिणी।। ऐश्वर्य. आत्मा. भाव अष्टकए अंग परमात्मा सखी। शरणागतोऽहं त्राहिमाम्ए मां त्राहिमाम् बगलामुखी। जय पंच प्राण प्रदासुदाए प्रज्ञान ब्रह्म प्रकाशिकाए संज्ञान.धृति.अज्ञानमतिए विज्ञान शक्ति विधायिका। जय सप्त व्याहृति रूप ब्रह्मए विभूति सुंछरी शशिमुखी। शरणोगतोऽहं त्राहिमाम्ए मां त्राहिमाम बगलामुखी।ं आपत्ति . अम्बुधि . अगम. अम्बए अनाथ आश्रयहीन मैं। पतबार. श्वास. पर श्वास क्षीणए सुषुन तन.मन दीन मंै। शरणोगतोऽह त्राहिमामए मां त्राहिमाम बगलामुखी।। जय परम ज्योतिर्मय शुभमए ज्योति परा अपरा परा। नैका.एका.अनजा.अजाए मन बाग बुद्धि अगोचरा। पाशा कुशा की तासनाए पीताम्बर पंकज मुखी। शरणागतोऽहं त्राहिमामए मां त्राहिमाम् बगलामुखी।। भवताप रीतिमति.कुमतिए कर्तव्य कानन अति घनाए अज्ञान दावानल प्रबलए संकट निकल मन अनमना। दुर्भाग्य धन द्वारि पीत पटए विद्युत झरो करुणा अग्नि। शरणागतोऽहं त्राहिमामए मां त्राहिमाम बगलामुखी।। हिय पाप.पीत पयोधि मेए प्रगटो जननी पीताम्बरा। तन.मन सकल व्याकुल विकलए त्रयताप वायु भयंकरा।। अंतःकरण.दस इन्द्रियांए मम देह देवि चतुर्दशी। शरणोगतोऽहं त्राहिमाम् मां त्राहिमाम बगलामुखी।। द्रारिद्र्य दग्ध क्रिया कुटिलए श्रद्धा प्रज्वलित वासनाए अभिमान ग्रंथित भक्ति हारए विकारमय भक्त की साधना। अज्ञान.ध्यान विचार चंवलए वृत्ति वैभव उन्मुखीए शरणोगतोऽहं त्राहिमाम्ए मां त्राहिमाम बगलामुखी।। च्हण्ण्ण्ण्ण्40 किन कार्यों के लिए उपयोगी है बगलामुखी साधना प्रेमशंकर शर्मा स महाविद्याओं तथा उनकी उपासना पद्धतियों के बारे में संहिताओंए पुराणों तथा तंत्र ग्रंथों में बहुत कुछ दिया गया है। बगलामुखी देवी की गणना दस महाविद्याओं में है तथा संयम.नियमपूर्वक बगलामुखी के पाठ.पूजाए मंत्र जापए अनुष्ठान करने से उपासक को सर्वाभीष्ट की सिद्धि प्राप्त होती है। शत्रु विनाशए मारण.मोहनए उच्चाटनए वशीकरण के लिए बगलामुखी से बढ़ कर कोई साधना नहीं है। मुकद्दमे में इच्छानुसार विजय प्राप्ति कराने में तो यह रामबाण है। बाहरी शत्रुओं की अपेक्षा आंतरिक शत्रु अधिक प्रबल एवं घातक होते हैं। अतः बगलामुखी साधना कीए मानव कल्याणए सुख.समृद्धि हेतुए विशेष उपयोगिता दृष्टिगोचर होती है। यथेच्छ धन प्राप्तिए संतान प्राप्तिए रोग शांतिए राजा को वश में करने हेतु कारागार ;जेलद्ध से मुक्तिए शत्रु पर विजयए अ ा क षर्् ा ण् ा ए िव द्व े ष् ा ण् ा ए मारण आदि प्रयोगों हेतु अ न ा िद काल से बगलामुखी स ा ध् ा न ा द्वारा लोगों की इच्छा पूर्ति होती रही है। बगलामुखी के मंदिर वाराणसी ;उत्तरप्रदेशद्ध हिमाचलप्रदेश तथा दतिया ;मध्यप्रदेशद्ध में हैंए जहां इच्छित मनोकामना हेतु जा कर लोग दर्शन करते हैंए साधना करते हैं। मंत्र महोदधि में बगलामुखी साधना के बारे में विस्तार से दिया हुआ है। इसके प्रयोजनए मंत्र जपए हवन विधि एवं उपयुक्त सामान की जानकारीए सर्वजन हितायए इस प्रकार हैरू उद्देश्यरू धन लाभए मनचाहे व्यक्ति से मिलनए इच्छित संतान की प्राप्तिए अनिष्ट ग्रहों की शांतिए मुकद्दमे में विजयए आकर्षणए वशीकरण के लिए मंदिर मेंए अथवा प्राण प्रतिष्ठित बगलामुखी यंत्र के सामने इसके स्तोत्र का पाठए मंत्र जापए शीघ्र फल प्रदान करते हंै। जप स्थानरू बगलामुखी मंत्र जाप अनुष्ठान के लिए नदियों का संगम स्थानए पर्वत शिखरए जंगलए घर का कोई भी स्थानए जहां शुद्धता होए उपयुक्त रहता है। परंतु खुले स्थान ;आसमान के नीचेद्ध पर यह साधना नहीं करनी चाहिए। खुला स्थान होने पर ऊपर कपड़ाए चंदोबा तानना चाहिए। वस्त्ररू इस साधना के समय केवल एक वस्त्र पहनना निषेध है तथा वस्त्र पीले रंग के होने चाहिएंए जैसे पीली धोतीए दुपट्टाए अंगोछा ले कर साधना करनी चाहिए। पुष्प एवं मालारू बगलामुखी साधना में सभी वस्तु पीली होनी चाहिएंए यथा पीले पुष्पए जप हेतु हल्दी की गांठ की मालाए पीला आसन। भोजनरू दूधए फलाहार आदिए केसर की खीरए बेसनए केलाए बूंदियांए पूरी.सब्जी आदि। मंत्र एवं जप विधानरू साधक अपने कार्य के अनुसार ¬ ींीं बगलामुखी सर्वदुष्टानां वाचं मुखं पदं स्तम्भय जिह्नां कीलय बुद्धिं विनाशय ींीं ¬ स्वाहा। मंत्रा के 1 लाखए अथवा 10 हजार जापए 7ए 9ए 11ए या 21 दिन के अंदर पूरे करें। किसी शु; स्थान पर चैकी परए अथवा पाटे पर पीला कपड़ा बिछाएं। उसपर पीले चावल से अष्ट दल कमल बनाएं। उसपर मां बगलामुखी का चित्रए या यंत्र स्थापित करए षोडशी का पूजन करए जप आरंभ करना चाहिए। ध्यान रहे कि प्रथम दिन जितनी संख्या में जप करेंए प्रतिदिन उतने ही जप करने चाहिएंय कमए या अधिक जप नहीं। हवनरू जप संख्या का दशांश हवनए हवन का दशांश तर्पणए तर्पण का दशांश मार्जन तथा मार्जन का दशांश् ब्राह्मण भोजन कराना चाहिए। इस प्रकार साधना करने से सिद्धि प्राप्त होती है। यथेच्छ धन प्राप्तिरू चावलए तिल एवं दूध मिश्रित खीर से हवन करने पर इच्छा अनुसार धन लाभ होता है। संतान प्राप्तिरू अशोक एवं करवीर के पत्रों द्वारा हवन से संतान सुख मिलता है। शत्रु पर विजयरू सेमर के फलों के हवन से शत्रु पर विजय प्राप्त होती है। जेल से मुक्तिरू गूगल के साथ तिल मिला कर हवन करने से कैदी जेल से छूट जाता है। रोग शांति हेतुरू 4 अंगुल की रेडी़ की लकडियांए कुम्हार के चाक की मिट्टी तथा शहदए घीए बूरा ;शक्करद्ध के साथ लाजा ;खीलद्ध मिला कर हवन करने से सभी प्रकार के रोगों में शांति मिलती है। वशीकरणरू सरसों के हवन से वशीकरण होता है। सब वश में हो जाते हैं। आकर्षणरू शहदए घीए शक्कर के साथ नमक से हवन करने पर आकर्षण होता है। इस प्रकारए मनोकामना हेतुए श्रद्धा.विश्वास से जप द्वारा कार्य सिद्ध होते हैं।



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