मोहब्बत जिसके दम से थी, वो इस धरती की जीनत थी, वो जब भी मुस्कुराती थी बहारें खिलखिलाती थी... यह कहानी है खूबसूरती की देवी, मुस्कुराहटों के सैलाब और मोहब्बत के पैगाम की, जिसकी नायिका हैं मधुबाला। मोहब्बत की तारीख 14 फरवरी 1933 को दिल्ली के एक बेहद गरीब परिवार में उनका जन्म हुआ था। उनके जन्म पर न कोई जश्न, न कोई हंगामा हुआ। वे 11 भाई-बहनों में पांचवीं संतान थीं। एक साधारण से परिवार में साधारण सी घटना की तरह घटी, पर वो साधारण लड़की नहीं थी। मुमताज बेगम जहां देहलवी नाम उन्हंे दिया उनके मां-बाप ने। भगवान ने बचपन में उन्हें धन-दौलत तो नहीं दिया लेकिन ऊपर वाले ने उन्हें खूबसूरती देने में कोई कंजूसी नहीं की। उनकी खूबसूरती में चार-चांद लगाती थी उनकी हंसी। मुमताज एक बार हंसना शुरु करती तो फिर रुकने का नाम नहीं लेती थी। बेहद अभावों के बीच की वो नन्हीं परी जैसी मुमताज हंसने का कोई न कोई बहाना ढूंढ़ ही लेती थी। नन्हीं मुमताज की मां से एक फकीर ने कहा था कि ये लड़की बहुत नाम कमाएगी, इसके माथे पर नूर है। मुमताज से फकीर ने कहा था तुमसे जल्द ही मिलेंगे शायद मुम्बई में।
अचानक ही मुमताज के पिता अताउल्ला खां की नौकरी चली गई और वे दाने-दाने को मोहताज हो गये। तभी उन्हें फकीर की बात याद आई और उन्होंने बम्बई जाने का फैसला कर लिया। मात्र नौ साल की उम्र में मुम्बई की फिल्म इंडस्ट्री में कदम रखने के बाद फिर कभी मुमताज ने पीछे मुड़कर नहीं देखा और खुद को जिन बुलंदियों तक पहुंचाया ये सभी जानते हैं। फकीर की पास की नजरों ने जिस करिश्मे को पहचाना था उसे हम ग्रहों की नजरों से जानेंगे और समझेंगे - मधुबाला की कुंडली मकर लग्न की है। लग्न में लग्नेश शनि की पंचमेश व दशमेश शुक्र की युति है। शनि चंद्र के नक्षत्र और बृहस्पति के उपनक्षत्र में है। मधुबाला की खूबसूरती का कारण भी यही था। ज्योतिष शास्त्र में शुक्र कलात्मक गतिविधियों, सौंदर्य, भौतिक गतिविधियों व समृद्धि का प्रतीक माना जाता है। मकर लग्न में योगकारक शुक्र ने लग्नेश से संबंध बनाकर मधुबाला को असीम सौंदर्य, अद्भुत अभिनय क्षमता के साथ ही वैभव सम्पन्न भी बनाया। मधुबाला का जन्म अत्यंत गरीब परिवार में हुआ था। कुटुम्ब के स्वामी शनि अपने से द्वादश भाव लग्न में बैठे हैं।
द्वितीय भाव में अष्टमेश सूर्य, नवमेश बुध व राहु से युत होकर स्थित है। द्वितीय भाव पर व्ययेश बृहस्पति की अष्टम भाव से पूर्ण दृष्टि है। बृहस्पति सूर्य के ही नक्षत्र में होने के कारण अष्टम के अशुभ प्रभाव को बढ़ा रहे हैं। मारक भाव सप्तम के स्वामी चंद्रमा की महादशा में मधुबाला का जन्म हुआ। मारकेश मृत्यु अथवा मृत्यु तुल्य कष्ट प्रदान करते हैं। अपने बचपन के 6-7 वर्ष मधुबाला ने अत्यंत कष्ट और अभाव में बिताए। उसके बाद मंगल की दशा प्रारंभ हुई। मंगल शुक्र के नक्षत्र और शनि के उपनक्षत्र में हैं। शुक्र का योगकारी प्रभाव मंगल की दशा प्रारंभ होते ही शुरु हो गया। मधुबाला में सुदंरता थी, उन्हें अभिनय व नृत्य गायन का भी शौक था। उनके पिता के पास जब आजीविका का कोई साधन नहीं था तब एक फकीर की बात उन्हें याद आई कि ये लड़की बहुत नाम कमाएगी और वह उससे फिर मिलेगा शायद मुम्बई में। फकीर की बात याद करके वे अपने परिवार के साथ मुम्बई आ गये। उस फकीर की भविष्यवाणी का प्रभाव था या मधुबाला के अप्रतिम सौंदर्य और हुनर का असर, मुंबई आने के बाद मुमताज ने पीछे मुड़कर नहीं देखा। जी हां मुमताज, मधुबाला के माता-पिता ने उनका नाम मुमताज ही रखा था।
मधुबाला नाम तो उन्हें इस फिल्म इंडस्ट्री की चर्चित अभिनेत्री देविका रानी ने दिया था और इसी नाम से वे अभिनय की ऊँचाइयों पर जा बैठी। मधुबाला को मात्र 9 वर्ष की उम्र में ‘बसंत’ फिल्म में मुमताज शान्ति के बचपन का रोल करने का मौका मिला। पगार थी 100 रुपये महीना। चूंकि उनके पिता को दिनभर उनके साथ रहना था इसलिए उन्हें मेहनताने में मिलने थे 50 रूपये। उन गरीबी के दिनों में 150 रूपये महीने की पगार की खुशखबरी ने मुमताज और उसके परिवार के चेहरे पर मुस्कुराहट फैला दी। मंगल उनकी कुंडली में सुखेश व लाभेश है। साथ ही षड्बल में सर्वाधिक बली है। अपनी महादशा में उन्होंने मधुबाला की सफलता के रास्ते तय कर दिये और मंगल की महादशा के समाप्त होते-होते मधुबाला के अभिनय का असर फिल्मी दुनिया में होने लगा था। अप्रैल 1946 से शुरु हुई राहु की महादशा। राहु की युति भाग्येश बुध से है और मंगल की पूर्ण दृष्टि भी है। मंगल के योगकारी असर का प्रभाव राहु पर पूर्ण रूपेण पड़ा। इन शुभ और योगकारी प्रभावों के कारण ही मात्र 14 वर्ष की उम्र में मधुबाला को केदार शर्मा ने अपनी फिल्म ‘नीलकमल’ में बतौर लीड एक्ट्रेस लेने का निर्णय लिया।
यद्यपि फिल्म ज्यादा सफल नहीं हुई लेकिन मधुबाला के काम और सौंदर्य दोनों ने सबका मन मोह लिया। लेकिन राहु के साथ अष्टमेश सूर्य और षष्ठेश बुध की भी युति है। इसके साथ ही व्ययेश बृहस्पति की पूर्ण दृष्टि भी है। जब योगकारी ग्रह अपना शुभ प्रभाव दिखाते हैं तो अशुभ ग्रहों का अशुभ प्रभाव भी इंसान पर पड़ता है। उनकी किस्मत शायद ऊपर वाले ने कुछ हड़बड़ी में लिखी थी, जिंदगी में सब कुछ था और कुछ भी नहीं था। दुनियां की नजर से देखें तो उनसे ज्यादा सुखी कोई नहीं था और उनकी नजर से देखें तो उनसे ज्यादा दुःखी कोई नहीं था। बचपन के खेल, मस्ती, ऊधम क्या होता है ये मधुबाला ने कभी जाना ही नहीं। उन्हें बचपन से ही परिवार का भरण-पोषण करने वाला कमाऊ बच्चा बनना पड़ा। इस इंडस्ट्री न उन्हें वक्त से पहले ही बड़ा बना दिया और इसी दौरान उन्हें एक बड़ी बीमारी ने भी घेरा। उनके दिल में सुराख था। जब डाॅक्टर ने यह बात उनके पिता अताउल्ला खां को बताई तब देहलवी परिवार पर जैसे गाज गिर पड़ी। उनके पिता अताउल्ला खां ने मधुबाला और अपने परिवार के सभी सदस्यों को हमेशा के लिए मुंह बंद रखने के लिए कहा क्योंकि वे प्रोफेशनल होना क्या होता है यह अच्छी तरह जानते थे।
उन्हें पता था मगर ये बात किसी को पता चल गई तो मधुबाला का करियर बनने से पहले ही खत्म हो जायेगा। हृदय रोग के विचार हेतु चतुर्थ भाव और कारक सूर्य का विश्लेषण किया जाता है। मधुबाला की कुंडली में चतुर्थेश मंगल अष्टम भाव में व्ययेश बृहस्पति व केतु से युत होकर स्थित है। सूर्य द्वितीय भाव में षष्ठेश बुध और राहु से युत होकर बैठे हैं। चतुर्थ भाव पर व्ययेश बृहस्पति की पूर्ण दृष्टि भी पड़ रही है। चतुर्थ भाव, चतुर्थेश और सूर्य तीनों ही षष्ठेश, अष्टमेश व द्वादश भाव व भावेशों के साथ ही राहु, केतु के अशुभ प्रभाव में हैं। यही कारण है कि मधुबाला को हृदय की गंभीर बीमारी हुई और इसी बीमारी के कारण 36 वर्ष की अल्पायु में ही उनकी मृत्यु हो गई। इतनी गंभीर बीमारी को अपने शरीर में दबाए हुए मधुबाला मन ही मन घुटती रहीं और इस चमकते संसार को मुस्कुराहटें परोसती रहीं। एक ओर हृदय रोग ने मधुबाला के शरीर को तो कमजोर किया ही वहीं दूसरी ओर प्रेम में बार-बार असफल होने के कारण मधुबाला मानसिक रूप से भी टूटती जा रही थीं। उनके फिल्मी जीवन में आने वाले लगभग हर पुरुष ने उनके सौंदर्य को तो सराहा, उन्हें सर आंखों पर भी बैठाया लेकिन मधुबाला जीवनभर सच्चे प्रेम की तलाश में भटकती रहीं।
दिलीप कुमार, केदार शर्मा, कमाल अमरोही, प्रेमनाथ, भारत भूषण, प्रदीप कुमार, किशोर कुमार आदि अनेक पुरुषों का साथ मधुबाला को मिला लेकिन किसी न किसी कारण से सभी से उनका रिश्ता ज्यादा दिन नहीं चला। लेकिन दिलीप कुमार को मधुबाला ने हमेशा सच्चे दिल से चाहा और दिलीप साहब ने भी उनका साथ दिया। उन दोनों की मोहब्बत को साकार किया के. आसिफ ने मुग़लेआजम बनाकर। पर किस्मत को कुछ और ही मंजूर था। कुछ गलतफहमियों के चलते मधुबाला और दिलीप कुमार का लगभग 10-12 साल का प्रेम सफर खत्म हो गया। सप्तमेश, सप्तम भाव, नवमेश, नवम भाव का किसी भी प्रकार का संबंध व्यक्ति के जीवन में एक से अधिक प्रेम संबंधों का द्योतक होता है। जब पंचम, लग्न व सप्तम भाव का संबंध होता है तो जातक को प्रेम विवाह में सफलता मिलती है। मधुबाला की कुंडली में सप्तमेश चंद्र नवम भाव में स्थित है, इसी कारण उनके जीवन में इतने प्रेम प्रसंग हुए। यद्यपि लग्नेश शनि, पंचमेश शुक्र व सप्तमेश चंद्रमा तीनों ही सप्तमेश चंद्र के नक्षत्र में हैं इस कारण उनके प्रेम संबंधों में आकर्षण तो रहा लेकिन शनि स्वयं अपने ही उपनक्षत्र में है इस कारण मधुबाला हमेशा एकाकीपन का अनुभव करती रहीं और पंचमेश शुक्र, लग्न, सप्तमेश चंद्रमा, व्ययेश बृहस्पति के उपनक्षत्र में हैं इस कारण उनके प्रेम संबंध नष्ट होते गये।
मधुबाला ने किशोर कुमार से विवाह भी किया और किशोर कुमार भी हर संभव कोशिश करते थे कि अंतिम समय में वे मधुबाला को खुश रखें लेकिन सितारों का खेल ही कुछ ऐसा था कि सब कुछ होते हुए भी उनके पास कुछ भी नहीं था। मधुबाला का लग्न, द्वादशेश बृहस्पति तथा सप्तम भाव पीड़ित था। बुध नवमेश जोकि पितृ भाव के स्वामी हैं और सूर्य जोकि पितृ कारक हैं दोनों ही राहु के पाप प्रभाव में हैं और धन भाव में लाभेश व व्ययेश मंगल तथा बृहस्पति से दृष्ट हैं। यही कारण है कि मधुबाला के पिता अताउल्ला खां ने मधुबाला को अभिनय क्षेत्र में लाकर कमाई का साधन बनाने में कोई संकोच नहीं किया और सदैव ही उसकी खुशियों में बाधक बनते रहे ताकि उनके स्वार्थ पूर्ति में बाधा उत्पन्न न हो जाए। मधुबाला को अपनी कमाई से कोई मतलब नहीं था। वे अपने छोटे से जीवन में खूब काम करना चाहती थीं, स्वयं खुश रहना चाहती थीं और दूसरों को खुश रखना चाहती थीं। उनके पिता उनकी कमाई से ऐशोआराम का जीवन व्यतीत कर रहे थे। मधुबाला अपनी बीमारी और अकेलेपन को अपनी हंसी में छुपाए एक के बाद एक सफल फिल्में देती जा रही थीं।
उनके दर्द और मुस्कुराहटों का खेल 1954 में एक फिल्म की शूटिंग के दौरान आई खून की उल्टी से सबके सामने आ गया। उनकी बीमारी की खबर मीडिया में आग की तरह फैल गई, पर अब बहुत देर हो चुकी थी। मधुबाला की लंदन में हार्ट सर्जरी भी हुई और उसके बाद वे कुछ साल तक जीवित भी रहीं। मधुबाला जल्दी-जल्दी अपनी फिल्में पूरी करने में लगी थीं क्योंकि वो जानती थीं कि उनके पास बहुत कम समय है। 23 फरवरी 1969 को उन्होंने अपने जीवन की अंतिम सांस ली। मरने से पहले वे एक बार यूसुफ साहब (दिलीप कुमार) को देखना चाहती थीं पर उनकी ये आखिरी तमन्ना भी अधूरी रह गईं। मधुबाला की मृत्यु बृहस्पति की महादशा और बुध की अंतर्दशा में हुई। बृहस्पति व्ययेश व अष्टम के अष्टमेश अर्थात तृतीयेश हैं। बुध षष्ठेश हैं। गोचर में बृहस्पति उनके जन्मकालीन चंद्रमा जो कि कन्या में है पर से भ्रमण कर रहे थे। लग्नेश शनि जो कि मारकेश भी हैं शुक्र व राहु के साथ मीन राशि पर गोचरस्थ थे। मंगल जो कि चतुर्थेश हैं षष्ठ से षष्ठ अर्थात् एकादश भाव वृश्चिक राशि पर से गोचर कर रहे थे।
चंद्रमा मेष राशि में भ्रमण कर रहा था। षष्ठेश बुध मकर राशि अर्थात लग्न में ही विराजमान थे। सूर्य कुंभ राशिस्थ थे। मधुबाला के जन्म लग्न में तृतीयेश बृहस्पति केतु से युत हैं। ऐसी युति हृदय रोग को दर्शाती है। बृहस्पति व केतु के साथ चतुर्थेश मंगल की युति भी है। चतुर्थ भाव से हृदय का विचार होता है। इसी कारण मधुबाला को जन्म से ही हृदय रोग था। मधुबाला की मृत्यु के समय भी गोचर में बृहस्पति व केतु की युति कन्या राशि में थी जो कि रोग की तीव्रता दर्शाती है। उनके जन्मकालीन बृहस्पति भी वक्री थे और मृत्युकालीन बृहस्पति भी वक्री थे। मधुबाला की 36 वर्ष की छोटी सी जिंदगी प्यार की तलाश में भटकती हुई तकलीफ के वीरानों में घुल गई। उनके जीवन में प्यार, उदासी, अलगाव, तकलीफों के गहरे घाव थे। आज भी उनकी छवि परदे से सीधे दिलों में उतरती है। उनकी बेपनाह खूबसूरती और बेहतरीन अभिनय को लोग हमेशा याद रखेंगे।