वर्तमान समय में होटल व्यवसाय में काफी तेजी से प्रगति हुई है। होटल, रेस्तरां या रिसाॅर्ट का उपयोग शहरी जीवनशैली का एक महत्वपूर्ण अंग बन चुका है। शादी, पार्टी, घरेलू उत्सवों एवं अन्य सामाजिक एवं सांस्कृतिक कार्यक्रमों के लिए होटल, रिसाॅर्ट एवं रेस्तरां एक महत्वपूर्ण केन्द्र बन चुका है। अतः इसका निर्माण वास्तुशास्त्र के नियमों के अनुकूल करना चाहिए।
प्र.- होटल या रिसाॅर्ट में स्वागत कक्ष किस स्थान पर बनाना चाहिए ?
उ.- उत्तर-पूर्व, उत्तर या पूर्व की तरफ रखना लाभप्रद होता है। होटल के स्वागत कक्ष को साफ-सुथरा, प्रकाशमय एवं हवादार बनाना चाहिए। स्वागतकक्ष के कर्मचारियों को उत्तर या पूर्व की ओर मुंह कर कार्य करना चाहिए। इस कक्ष के उत्तर-पूर्व की ओर अधिक से अधिक खाली स्थान छोड़ना आवश्यक है। भवन के पूरे भूखंड के जमीन या सतह का झुकाव भी उत्तर-पूर्व की ओर रखना चाहिए।
प्र.- होटल या रिसाॅर्ट के विकास के लिए उत्तर-पूर्व में स्वीमिंग पूल या बहता दरिया होना क्या फल देता है ?
उ.-होटल या रिसाॅर्ट के उत्तर-पूर्व ें तालाब, झील, गड्ढा, स्वीमिंग पुल या बहता दरिया का होना व्यवसाय को चार चांद लगाते हैं। भूमिगत पानी का स्रोत या बोरिंग भी उत्तर-पूर्व की ओर करनी चाहिए इससे यथाशीघ्र लोकप्रियता मिलती है। धन की कभी कमी नहीं रहती तथा लक्ष्मी का निरंतर वास होता है। फव्वारा जिसमें संगीत और प्रकाश साथ-साथ होते हैं उसे भी उत्तर-पूर्व में लगाना चाहिए। इससे धनात्मक ऊर्जा का प्रवाह सुचारू रूप से परिसर के अंदर बना रहता है। इससे होटल या रिसाॅर्ट की तरफ लोगों के आकर्षण में वृद्धि होती है। स्वीमिंग पूल को दक्षिण-पश्चिम या भूखंड के मध्य भाग में नहीं रखना चाहिए। मध्य भाग में तरणताल बर्बादी और दिवालियापन का परिचायक है।
प्र.- होटल या रिसाॅर्ट के विकास में रसोईघर की क्या भूमिका है ?
उ.-किसी भी रेस्टोरेंट, होटल या रिसाॅर्ट में रसोईघर का उचित स्थान पर होना आवश्यक है अन्यथा इसका विकास बाधित होता है। रसोईघर को आग्नेय क्षेत्र में बनाना चाहिए। इसके विकल्प में वायव्य में रसोईघर बनाया जा सकता है। परंतु इस भाग मंे बने रसोईघर में खाना बनाने का प्लेटफाॅर्म या गैस चूल्हा दक्षिण-पूर्व में रखना आवश्यक होगा अन्यथा खर्च की अधिकता एवं अग्नि से दुर्घटना का भय बना रहता है। रसोईघर को नैर्ऋत्य, ईशान्य, उत्तर एवं भूखंड के मध्य भाग में नहीं रखना चाहिए।
उत्तर-पूर्व दिशा में होने पर खाद्य पदार्थों की बर्बादी एवं दिवालियापन का सामना करना पड़ता है। दक्षिण-पश्चिम में होने पर संबंधों में वैमनस्यता होती है तथा उत्तर की दिशा में रखने पर आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं रहती। रसोईघर में खाना बनाने का मुख्य प्लेटफाॅर्म पूर्व और दक्षिण-पूर्व कोने में होना चाहिए और खाना बनाते वक्त रसोईया का चेहरा पूर्व की ओर रहना चाहिए।
प्र.- होटल या रिसाॅर्ट में डायनिंग टेबल किस क्षेत्र में रखना लाभप्रद होता है ?
उ.-होटल में डायनिंग हाॅल या रेस्टोरेंट को पश्चिम दिशा में सबसे अच्छा माना जाता है। दूसरा अच्छा स्थान उत्तर और पूर्व दिशा को माना जाता है। यदि रसोईघर दक्षिण-पूर्व में हो तो भोजन कक्ष रसोईघर के पूर्व या दक्षिण की ओर बनायें। यदि रसोईघर उत्तर-पश्चिम में हो तो भोजन कक्ष पश्चिम की ओर बनायें। लेकिन यदि जगह की कमी हो तो उत्तर की ओर बना सकते हैं। होटल या रेस्टोरेंट के डायनिंग कक्ष में टेबल का आकार वर्गाकार अथवा आयताकार होना चाहिए।
भोजन कक्ष में टेबल का आकार उसके एक भाग से दूसरे भाग तक दुगुने से अधिक नहीं होना चाहिए। जैसे यदि चैड़ाई 4 फीट है तो उसकी लंबाई अधिकतम 8 फीट तक रखी जा सकती है। डायनिंग टेबल को विषम माप में नहीं रखना चाहिए क्योंकि विषम माप (जैसे चैड़ाई 3 फीट, लंबाई 7 फीट) होने से उपयोग करने वालांे में परस्पर वैमनस्य उत्पन्न होती है। डायनिंग टेबल के साथ सम संख्या में कुर्सियां लगायें।
प्र.- होटल या रिसाॅर्ट के डायनिंग हाॅल का आन्तरिक बनावट किस तरह का रखना चाहिए ?
उ.- भोजन कक्ष के उत्तर-पूर्व में पानी रखें। वाॅश-बेसिन भी उत्तर या पूर्व की तरफ लगाएं। भोजन कक्ष का दरवाजा पूर्व, पश्चिम या उत्तर की ओर लाभदायक ग्रिड में रखना चाहिए। भोजन कक्ष के दरवाजे बृहस्पति के पीले रंग से रंगवाना चाहिए क्योंकि इस कक्ष पर गुरु का आधिपत्य होता है। भोजन कक्ष की दीवारों का रंग हल्का पीला, क्रीम, नारंगी या हल्के उजले रंग का करना शुभफलप्रद होता है। लटकती हुई बीम के नीचे डाइनिंग टेबल नहीं रखना चाहिए अन्यथा भोजन करते वक्त तनाव में वृद्धि होगी।
प्र.- होटल या रिसाॅर्ट में भारी वस्तुओं का भंडारण किस क्षेत्र में करना चाहिए ?
उ.- होटल या रिसाॅर्ट में भारी वस्तुओं के लिए भंडार नैर्ऋत्य क्षेत्र में बनाना चाहिए। नैर्ऋत्य क्षेत्र के भंडार गृह में पानी या दीवारों पर नमी या सीलन नहीं होना चाहिए। खाद्य पदार्थ के लिए भंडार गृह वायव्य के क्षेत्र में बनाना चाहिए। वायव्य के क्षेत्र में रखने से खाद्य पदार्थों की नियमित आपूर्ति बनी रहती है। अतः प्रत्येक दिन इस्तेमाल की जाने वाली वस्तुओं का भंडारण उत्तर-पश्चिम के क्षेत्र में करना चाहिए।
तेल, घी, गैस सिलेंडर, किरोसिन आदि को भंडार कक्ष के दक्षिण या आग्नेय में रखें। भंडार गृह में खाद्य साम्रगी के पात्र को पूरी तरह से खाली नहीं होने देना चाहिए। जबतक नवीन सामग्री उनमें भर नहीं जाती तबतक पिछला अन्न या सामग्री कुछ न कुछ शेष रहने देना चाहिए। भंडार गृह के द्वार उत्तर एवं पूर्व की तरफ शुभफलदायक ग्रिड में रखें।
प्र.- होटल या रिसाॅर्ट में यात्रियों को ठहरने के लिए कमरा किस क्षेत्र में उपयुक्त होता है ?
उ.- होटल में यात्रियों के ठहरने के लिए कमरे पश्चिम, दक्षिण और दक्षिण-पश्चिम दिशा में बनाना चाहिए। अतिथि कक्ष को ब्रह्म स्थान में न रखें। ब्रह्म स्थान बहुत सारी ऊर्जा को खींचता है इसलिए आराम और शांति के लिए यह स्थान उपयुक्त नहीं रह पाता। कमरे के साथ बाथरूम, बाथटब, शौचालय, चेंज रूम आदि रखने हों तो इसे उत्तर-पश्चिम या पश्चिम की तरफ बनाएं।
प्र.- होटल या रिसाॅर्ट में यात्रियों को ठहरने के कमरों का आन्तरिक बनावट किस तरह का रखना चाहिए ?
उ.- कमरे के दक्षिण-पश्चिम या पश्चिम का कोना कभी खाली न रखें। कमरे में पलंग दक्षिण-पश्चिम की तरफ लगाना चाहिए। पलंग की स्थिति कभी भी इस तरह नहीं रखनी चाहिए जिससे सोने वाले का सिर अथवा पैर सीधे द्वार की तरफ हो। सोते समय पश्चिम की ओर सिर कर सोने से नाम, यश एवं भाग्य, पूर्व की तरफ मानसिक शांति एवं धार्मिक प्रवृत्ति तथा दक्षिण की ओर धन, भाग्य एवं स्वास्थ्य में वृद्धि होती है। पलंग कभी भी उभरी हुई बीम के नीचे न रखें। बंीम शरीर को काटते हुए रहने पर स्वास्थ्य के लिए घातक होता है। शयनकक्ष का बिस्तर डबल बेड रहने पर भी उसपर गद्दा एक ही रखें।
शयनकक्ष का दरवाजा एक पल्ला का होना चाहिए। कमरे का प्रवेश द्वार उत्तर या पूर्व दिशा से रखना चाहिए। कमरे में डेªसिंग टेबल को उत्तरी या पूर्वी दीवार पर इस तरह रखें कि सोते समय शरीर का कोई हिस्सा उसमें दिखाई न पडे़ अन्यथा वह हिस्सा पीड़ित रहेगा। कमरे का आंतरिक बनावट, दीवार का रंग, बिस्तर का गद्दा आदि खूबसूरत, रूचिकर और स्वागत योग्य होना चाहिए। कमरे में मनमोहक तस्वीर लगी होनी चाहिए।
कमरे में घास एवं फूलों के पौधे के तस्वीर लगाना शुभफलदायक होता है। होटल या रिसाॅर्ट में पुष्पों का उद्यान या बागीचा उत्तर-पूर्व दिशा में लगाना चाहिए। पर्यावरण को ठीक रखने के साथ-साथ हमारे दिल और दिमाग को स्फूर्ति देने एवं तरोताजा रखने के लिए भी इसकी आवश्यकता महसूस की जाती है। फूल मनुष्य के कार्य ऊर्जा में बढ़ोत्तरी करते हंै।
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