व्यास जी क े वचनान ुसार यह यथार्थ सत्य है कि अर्धमास (मलमास) सहित एक वर्ष की 26 एकादशियों में से मात्र एक निर्जला एकादशी का व्रत करने से ही संपूर्ण एकादशियों का फल प्राप्त हो जाता है। निर्जला व्रत करने वाला, अपवित्र अवस्था के आचमन के सिवा, बिंदु मात्र जल भी ग्रहण न करे। यदि किसी प्रकार से जल उपयोग में ले लिया जाए, तो उससे व्रत भंग हो जाता है। संपूर्ण इंद्रियों को दृढ़तापूर्वक भोगों से विरक्त कर, सर्वांतर्यामी श्री हरि के चरणों का चिंतन करते हुए, नियमपूर्वक निर्जल उपवास कर के, द्वादशी को स्नान करें और सामथ्र्य के अनुसार सुवर्ण और जलयुक्त कलश दे कर भोजन करें, तो संपूर्ण तीर्थों में जा कर स्नान-दानादि करने के समान फल मिलता है।
एक समय बह ुभा ेजी भीमस ेन न े पितामह व्यास जी स े प ूछा: ह े पितामह! भ्राता युधिष्ठिर, माता कुंती, द्रौपदी, अर्जुन, नकुल और सहदेव आदि एकादशी के दिन व्रत करते हैं और एकादशी के दिन अन्न खाने को मना करते हैं। मैं उनसे कहता हूं कि भाई, मैं भक्तिपूर्वक भगवान की पूजा कर सकता हूं, परंतु मैं एकादशी के दिन भूखा नहीं रह सकता। इस पर व्यास जी बोले: हे भीमसेन! यदि तुम नरक को बुरा और स्वर्ग को अच्छा समझते हो, तो प्रत्येक माह की दोनों एकादशियों को अन्न न खाया करो। इस पर भीमसेन बोले: हे पितामह! मैं आपसे पहले ही कह चुका हूं कि मैं एक दिन, एक समय भी भोजन किये बिना नहीं रह सकता। फिर मेरे लिए पूरे दिन का उपवास करना कठिन है।
यदि मैं प्रयत्न करूं, तो एक व्रत अवश्य कर सकता हूं। अतः आप मुझे कोई एक व्रत बतलाइए, जिससे मुझे स्वर्ग की प्राप्ति हो। श्री व्यास जी बोले: हे वायु पुत्र! बड़े-बड़े ऋषियों और महर्षियों ने बहुत से शास्त्र आदि बनाये हैं। मनुष्य को दोनों पक्षों की एकादशियों का व्रत करना चाहिए। इससे उन्हें स्वर्ग की प्राप्ति होती है। श्री व्यास जी के वचनों को सुन कर भीमसेन नर्क में जाने के विचार से अत्य ंत भयभीत ह ुए आ ैर लता क े समान का ंपन े लग े। व े बा ेल े: ह े पितामह! अब मैं क्या करूं? क्योंकि मुझसे व्रत नहीं हो सकता, अतः आप म ुझ े र्का ेइ एक ही व ्रत बतलाइए, जिससे मेरी मुक्ति हो जाए। इस पर श्री व्यास जी बोले: हे भीमसेन! वृष और मिथुन संक्रांति के मध्य ज्येष्ठ माह में शुक्ल पक्ष की एकादशी होती है।
उसका निर्जला व्रत करना चाहिए। इस एकादशी के व्रत में स्नान और आचमन में जल वर्जित नहीं है, लेकिन आचमन में 3 माशे से अधिक जल नहीं लेना चाहिए। इस आचमन से शरीर की शुद्धि हो जाती है। आचमन में 7 माशे से अधिक जल मद्यपान के समान है। इस दिन भोजन करने से व्रत नष्ट हो जाता है। यदि सूर्योदय से सूर्यास्त तक मनुष्य जलपान न कर े, ता े उस े बारह एकादशियों के फल की प्राप्ति होती है। द्वादशी के दिन सूर्योदय से पहले ही उठना चाहिए आ ैर स्नान कर के, ब्राह्मण को यथायोग्य दान देना मई माह के प्रमुख व्रत त्योहार चाहिए। इसके पश्चात भूखे ब्राह्मण को भोजन कराना चाहिए। तत्पश्चात स्वयं भोजन करना चाहिए। इसका फल संपूर्ण एकादशियों के फल के बराबर है।
हे भीमसेन! स्वयं भगवान ने मुझसे कहा था कि इस एकादशी का पुण्य समस्त तीर्थों और दानों के पुण्य के बराबर है। एक दिन निर्जल रहने से मनुष्य पापों से मुक्त हो जाता है। जो मनुष्य निर्जल एकादशी का व्रत करता है, उसको मृत्यु के समय भयानक यमदूत नहीं दिखते हैं। उस समय भगवान विष्णु के दूत स्वर्ग से आते हैं और उनको पुष्पक विमान पर बिठा कर स्वर्ग ले जाते हैं। अतः संसार में सबसे श्रेष्ठ निर्जला एकादशी का व्रत है। अतः यत्नपूर्वक इस एकादशी का निर्जल व्रत करना चाहिए। उस दिन ”ओम् नमो भगवते वासुदेवाय“ मंत्र उच्चारण करना चाहिए। व्यास देव जी के ऐसे वचन सुन कर भीम ने निर्जल व्रत किया। इसलिए इस एकादशी को भीमसेनी या पांडव एकादशी भी कहते हैं।
निर्जल व्रत करने से पहले भगवान की पूजा करनी चाहिए और उनसे विनय करनी चाहिए कि दूसरे दिन भोजन करूंगा। मैं इस व्रत को श्रद्धापूर्वक करूंगा। इससे मेरे सब पाप नष्ट हो जाते हैं। इस दिन, एक बड़े वस्त्र से ढंक कर, स्वर्ण सहित दान करना चाहिए। जो मनुष्य इस व्रत को दो प्रहर में, स्नान-तप आदि कर के, करते हैं, उनको करोड़ स्वर्ण के दान का फल मिलता है। जो मनुष्य इस दिन यज्ञ होमादि करता है, उसका फल वर्णन भी नही ं हा े सकता। इस निर्ज ला एकादशी के व्रत से मनुष्य विष्णु लोक को जाता है।