दक्षिण दिशा का ग्रहों से संबंध एवं दोष - निवारण के उपाय
वास्तु शास्त्र का मुख्य आधार ज्योतिष शास्त्र है। जिस प्रकार ग्रहों के अनुकूल और प्रतिकूल प्रभाव मानव जीवन पर पड़ते हंै उसी प्रकार ग्रह अपने शुभ और अशुभ प्रभाव से वास्तु की दिशाओं को प्रभावित कर उस मकान में रहने वालों के तत्संबंधी प्रभाव में कमी या वृद्धि करते हैं।
दक्षिण दिषा दोष
दक्षिण दिषा का स्वामी यम, आयुध दंड एवं प्रतिनिधि ग्रह मंगल है। मंगल सांसारिक कार्यक्रम को संचालित करने वाली विशिष्ट जीवनदायिनी शक्ति है। यह सभी प्राणियों को जीवन शक्ति देता है और उत्साह और स्फूर्ति प्रदान करता है। किंतु इसके बुरे प्रभाव से शारीरिक, भावनात्मक, मानसिक एवं आध्यात्मिक व्यग्रता बनी रहती है। यह धैर्य तथा पराक्रम का स्वामी होता है। दक्षिण दिषा से कालपुरुष के सीने के बाएं भाग, गुर्दे एवं बाएं फेफड़े का विचार किया जाता है। कुंडली का दषम् भाव इसका कारक स्थान है।
यदि घर के दक्षिण में कुआं, दरार, कचरा, कूड़ादान एवं पुराना कबाड़ हो तो हृदय रोग, जोड़ों का दर्द, खून की कमी, पीलिया आदि की बीमारियां होती हैं। यदि दक्षिण मंे कुआं या जल हो तो अचानक दुर्घटना से मृत्यु होती है। दक्षिण द्वार नैर्ऋत्याभिमुख हो तो दीर्घ व्याधियां एवं अचानक मृत्यु होती है साथ ही दिशा दोषपूर्ण होने पर स्त्रियों में गर्भपात, मासिक धर्म में अनियमितता, रक्त विकार, उच्च रक्तचाप, बवासीर, दुर्घटना, फोड़े-फुंसी, अस्थि मज्जा, अल्सर आदि से संबंधित बीमारियाँ देता है तथा नौकरी-व्यवसाय में नुकसान, समाज में अपयष, पितृ सुख मंे अवरोध, पिता के व्यसनी होने सरकारी कामों में असफलता आदि की संभावना रहती है।
उपाय
- यदि दक्षिण दिशा बढ़ा हुआ हो तो उसे काटकर आयताकार या वर्गाकार बनाएं।
- दिषा दोष के निवारणार्थ दक्षिण द्वार पर मंगल यंत्र लगाएं।
- दक्षिणावर्ती सूंड़वाले गणपति के चित्र अथवा मूर्ति द्वार के अंदर-बाहर लगाएं।
- दरवाजे पर वास्तु मंगलकारी तोरण लगाएं।
- भैरव या हनुमान जी की उपासना करें।
- गणेश जी का पूजन करें।
- दक्षिणामुखी घर का भी जल उत्तर-पूर्व दिशा से बाहर निकालें।
पूर्व दिशा का ग्रहों से संबंध एवं दोष - निवारण के उपाय
वास्तु शास्त्र का मुख्य आधार ज्योतिष शास्त्र है। जिस प्रकार ग्रहों के अनुकूल और प्रतिकूल प्रभाव मानव जीवन पर पड़ते हंै उसी प्रकार ग्रह अपने शुभ और अशुभ प्रभाव से वास्तु की दिशाओं को प्रभावित कर उस मकान में रहने वालों के तत्संबंधी प्रभाव में कमी या वृद्धि करते हैं।
पूर्व दिशा दोष
पूर्व दिषा का स्वामी इंद्र्र एवं प्रतिनिधि ग्रह सूर्य हैं। सृष्टि के सृजन में सूर्य का विशेष महत्व है। इनसे ही समस्त सृष्टि में प्राणियों और वनस्पतियों की उत्पत्ति, पोषण और प्रलय होते हैं। सूर्य ही ब्रह्मा, विष्णु एवं महेश की एकीकृत मूर्ति त्रिमूर्ति का प्रतीक हैं।
जिस घर का मुख्य द्वार बड़ा हो, जिसमें बड़ी-बड़ी खिड़कियों एवं झरोखांे से सूर्य का प्रकाश आता हो तथा पूर्व की दिशा में किसी प्रकार का दोष नहीं हो तो उसमें वास करने वाले को अच्छे स्वास्थ्य, पराक्रम, तेजस्विता, सुख-समृद्धि एवं गौरवपूर्ण जीवन की प्राप्ति होती है।
घर के पूर्वी भाग में कूड़ा-कचरा, पत्थर और मिट्टी के ढेर हों तो संतान की हानि होती है। साथ ही इस दिषा मंे दोष होने पर व्यक्ति के सांसारिक एवं आध्यात्मिक विकास में कमी आ जाती है। पिता के सुख में कमी, पुत्र संतान की कमी, विकलांग संतान का जन्म एवं यश और प्रतिष्ठा में कमी आती है।
इसके अतिरिक्त इस दिशा के दोषपूर्ण होने पर धन का अपव्यय, ऋण, मानसिक अषांति, नेत्र विकार, लकवा, रक्तचाप, सिर दर्द या सिर से संबंधित रोग, हड्डी के टूटने आदि रोग की संभावना बनती है।
उपाय
- दिषा दोष निवारणार्थ सूर्य यंत्र की स्थापना करें
- सूर्य को अघ्र्य दंे एवं उनकी उपासना करें
- पूर्व दिशा का प्रतिनिधि ग्रह सूर्य है। अतः पूर्वी द्वार पर सूर्य यंत्र स्थापित करें और वास्तु मंगलकारी तोरण लगाएं।
- आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ करें।
- पूर्व में पानी का जलकुंड बनाएं और उसमें लाल कमल लगायें। पानी की टंकी और कुआँ खुदवाएं
उत्तर दिशा का ग्रहों से संबंध एवं दोष - निवारण के उपाय
वास्तु शास्त्र का मुख्य आधार ज्योतिष शास्त्र है। जिस प्रकार ग्रहों के अनुकूल और प्रतिकूल प्रभाव मानव जीवन पर पड़ते हंै उसी प्रकार ग्रह अपने शुभ और अशुभ प्रभाव से वास्तु की दिशाओं को प्रभावित कर उस मकान में रहने वालों के तत्संबंधी प्रभाव में कमी या वृद्धि करते हैं।
उत्तर दिषा दोष
उत्तर दिषा का स्वामी कुबेर, आयुध गदा एवं प्रतिनिधि ग्रह बुध है। बुध उत्तर दिशा का स्वामी माना गया है। बुध जिस ग्रह के साथ होता है उसी के अनुसार अपना फल देता है अर्थात शुभ ग्रहों के साथ हो तो शुभ और अशुभ ग्रहों के साथ हो तो अशुभ होता है। उत्तर दिषा से काल पुरुष के हृदय एवं सीने का विचार किया जाता है। जन्म कुंडली का चैथा भाव इसका कारक स्थान है। यह दिषा मां का स्थान है। इस दिषा में खाली जगह छोड़ने से ननिहाल पक्ष लाभान्वित होता है।
यह दिशा शुभ होने पर व्यक्ति को विद्या तथा बुद्धि की प्राप्ति और उसमें कवित्व शक्ति तथा विभिन्न प्रकार के आविष्कारांे की क्षमता का विकास होता है। साथ ही नौकर-चाकर, मित्र, घर एवं विभिन्न प्रकार के सुखों की प्राप्ति होती है। उत्तर दिषा दोषपूर्ण हो तो गृहस्वामी की कंुडली का चैथा भाव निष्चित बिगड़ा हुआ होगा। ऐसे जातक के मातृ सुख, नौकर-चाकर के सुख, भौतिक सुख आदि की कमी रहती है। साथ ही हर्निया, हृदय तथा चर्मरोग, गाॅल ब्लैडर की बीमारी, पागलपन, हैजे, फेफड़े एवं रक्त से संबंधित बीमारियों की संभावना रहती है।
उपाय
- दिषा दोष निवारणार्थ पूजा में बुध यंत्र कुबेर यंत्र के साथ लगाएं।
- यदि उत्तर दिशा का भाग कटा हो तो उत्तरी दीवार पर एक बड़ा दर्पण लगाएं।
- घर की दीवारों को हरा रंग करें तथा घर के उत्तर दिशा की तरफ तोते का चित्र लगाएं।
- मरगज श्री यंत्र के समक्ष श्री सूक्त का नित्य पाठ करें।
पश्चिम दिशा का ग्रहों से संबंध एवं दोष - निवारण के उपाय</h2
वास्तु शास्त्र का मुख्य आधार ज्योतिष शास्त्र है। जिस प्रकार ग्रहों के अनुकूल और प्रतिकूल प्रभाव मानव जीवन पर पड़ते हंै उसी प्रकार ग्रह अपने शुभ और अशुभ प्रभाव से वास्तु की दिशाओं को प्रभावित कर उस मकान में रहने वालों के तत्संबंधी प्रभाव में कमी या वृद्धि करते हैं।
पश्चिम दिशा दोष
पष्चिम दिषा का स्वामी वरुण, आयुध पाष एवं प्रतिनिधि ग्रह षनि है। शनि काल है, शनि अवधि है। शनि दुर्भाग्य एवं सौभाग्य दोनों का प्रतिनिधित्व करता है। शनि को अपने लक्ष्य प्राप्ति के लिए कोई व्यग्रता या घबराहट नहीं होती है। वह निश्चयपूर्वक निर्मोही की तरह काल चक्र मंे अपने शिष्यों को डाल कर उनके अहं, उनकी आसक्तियों तथा उनकी दुर्बलताओं को शनैः शनैः हटा कर उन्हें आध्यात्मिक विकास के लिए सक्षम बनाता है।
पष्चिम दिषा कालपुरुष के अनुसार सप्तम स्थान से जुड़ा हुआ है। पत्नी सुख, वैवाहिक सुख, व्यवसाय में प्रगति, साझेदारी का व्यवसाय, कोर्ट कचहरी के मामले, गुप्तांग एवं जननांग का विचार इसी स्थान से किया जाता है। भवन में या घर में वर्षा का जल पश्चिम से होकर बाहर जा रहा हो तो पुरूष लम्बी बीमारियों के शिकार होते हैं।
इस दिशा में दोष रहने पर नपुंसकता, पैरांे में तकलीफ, कुष्ठ रोग, रीढ़ की हड्डी में कष्ट, गठिया, स्नायु एवं वात संबंधी रोगों की संभावना रहती है। यदि घर के पष्चिम दिषा में दरारें हों तो गृहस्वामी के गुप्तांग में बीमारी होती है तथा आमदनी अव्यवस्थित रहती है। यदि पश्चिम दिशा में अग्नि स्थान हो तो गर्मी, पित्त और मस्से की शिकायतें होंगी। यदि घर का प्रवेष द्वार पूर्व मंे हो और वह पूर्ण स्वच्छ और साफ हो तथा पष्चिम में मिट्टी, पत्थर, चट्टान आदि हों तो गृहस्वामी की आमदनी ठीक रहेगी।
उपाय
- पष्चिम दिषा जनित दोष निवारण हेतु घर में वरुण यंत्र की स्थापना करें।
- यदि पश्चिम दिशा बढ़ी हुई हो तो उसे काटकर वर्गाकार या आयताकार बनाएं।
- षनिवार को खेजड़ी के वृक्ष को पानी से सींचें।
- शनि व्रत करें तथा शनि यंत्र के समक्ष शनि स्तोत्र का पाठ करें।
- पश्चिम की चारदीवारी को ऊँचा करें तथा पश्चिम में भारी वृक्ष लगायें।
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