हस्तरेखा और दीपावली पूजन भारती आनन्द दीपावली के इस अवसर पर हम अपनी हथेली में मौजूद उच्च स्थिति वाले ग्रहों के प्रतिनिधि देवताओं की लक्ष्मी और गणेश के साथ विधिवत् पूजा करके उनकी कृपा प्राप्त कर सकते हैं।
दीपावली सनातन धर्मावलंबियों का एक प्रमुख पर्व है। यह अंधकार पर प्रकाश की विजय का प्रतीक है। यह पर्व कार्तिक मास की अमावस्या को मनाया जाता है। इस अवसर पर सभी सनातन धर्मावलंबी सुख-समृद्धि के लिए धन की देवी लक्ष्मी की पूजा-अर्चना करते हैं। इस दिन देश भर में हर्षोल्लास का वातावरण रहता है और सभी जातियों तथा धर्मों के लोग मिल-जुलकर खुशी मनाते हैं।
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यह पर्व वस्तुतः कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी अर्थात् धनतेरस के दिन ही शुरू हो जाता है और शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि तक पंच महोत्सव के रूप में 5 दिन तक मनाया जाता है। धनतेरस को अकाल मृत्यु के भय से मुक्ति की कामना करते हुए घर से बाहर यमराज के लिए दीपदान किया जाता है। इसी दिन लोग यथाशक्ति सोना, चांदी के गहने व बर्तन आदि खरीद कर समृद्धि की कामना करते हैं। चतुर्दशी को नरक चतुर्दशी भी कहा जाता है।
इस दिन सूर्याेदय से पूर्व उठकर अपने सिर के ऊपर से एक लंबा घीया (कद्दू) को वार कर नरक से बचाने की भगवान सूर्य से प्रार्थना करते हैं। इस दिन भगवान ने वामन अवतार लेकर राजा बली से तीन पग भूमि मांग कर पूरी पृथ्वी नाप ली थी। तत्पश्चात् भगवान ने राजा बली को वरदान दिया था कि आज के दिन जो भी दीप दान करेगा, विष्णु प्रिया लक्ष्मी जी सदैव उसके घर वास करेंगी।
दीपावली के दिन अर्थात् कार्तिक अमावस्या को सूर्योदय से पूर्व उठकर सूर्य देव की आराधना करने के बाद भगवान विष्णु का ध्यान करते हुए दूध, दही, घी, शहद और शक्कर का प्रसाद बनाकर भगवान को भोग लगाना चाहिए। उसके पश्चात् अपने अधीनस्थ कर्मचारियों को श्रद्धा व शक्ति के अनुसार मिठाई, उपहार व नगद पुरस्कार स्वरूप देना चाहिए।
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इसके बाद शाम को शुभ मुहूर्त में किसी योग्य व्यक्ति के दिशा-निर्देशों के अनुसार लक्ष्मी तथा गणेश के साथ-साथ सभी देवताओं का पूजन करना चाहिए। पुराणों में मान्यता है कि लक्ष्मी और गणेश जी के साथ-साथ सभी देवताओं की पूजा-आराधना करने से सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है। दीपावली के इस अवसर पर हम अपनी हथेली में मौजूद उच्च स्थिति वाले ग्रहों के प्रतिनिधि देवताओं की लक्ष्मी और गणेश के साथ विधिवत् पूजा करके उनकी कृपा प्राप्त कर सकते हैं।
लक्ष्मी प्राप्ति का संबंध भाग्य रेखा एवं गुरु तथा शनि पर्वत से है। इनकी स्थिति का अध्ययन करते हुए यदि दीपावली पूजन विधि-विधान पूर्वक करें तो हम अपनी सभी इच्छाओं की पूर्ति कर सकते हैं। यदि हाथ में भाग्य रेखा शनि से आरंभ होकर शनि पर समाप्त हो तो लक्ष्मी मंत्र का 108 माला जप व दशांश हवन करें।
यदि भाग्य रेखा खंडित हो, शनि, गुरु, बुध और शुक्र ग्रह दबे हुए हों तो व्यक्ति को अखंड लक्ष्मी पूजन (लक्ष्मी के सभी मंत्रों के साथ करना चाहिए। दीपावली के अगले दिन गोवर्धन पूजा और विश्वकर्मा पूजा का अयोजन किया जाता है।
पुराणों में उल्लेख है कि इस दिन भगवान कृष्ण ने गोवर्धन पूजा का अयोजन किया था जिसमें अपार जन समुदाय ने भाग लिया था। इस घटना के बाद इंद्र देव ने स्वयं हार मानकर कृष्ण की शरण ली थी। इस पूजा का विशेष महत्व राजनीतिज्ञों, बड़े उद्योगपतियों, छात्र संघ के नेताओं पता - रोड नं. 1, बंगला नं. 28, ईस्ट पंजाबी बाग, न्यू रोहतक रोड, नई दिल्ली-110026, मो. नं.: 9212222383 के लिए है जो विधिपर्वक यह पूजा करके जन समर्थन पा सकते हैं।
विश्वकर्मा जी की पूजा का विधान भी इस दिन है। इस दिन विधिपूर्वक मशीनों, औजारों व हथियारों आदि का पूजन करने से दुर्घटनाओं से रक्षा होती है। दूज का दिन दीपावली के पर्व का पांचवां व अंतिम दिन होता है। इस दिन भाई अपनी बहनों को अपनी शक्ति के अनुसार उपहार देते हंै और बहनें भाइयों की कलाई पर पवित्र रक्षा कवच बांधती हैं।
इस दिन यदि भाई अपने हाथों की शुभ व अशुभ रेखाओं को ध्यान में रख कर उपहार दें तो वे उपहार अत्यधिक शुभ व उपयोगी होंगे। अगर भाई की हथेली में शनि पर्वत की स्थिति उच्च हो तो बहन को उपहार के रूप में लोहे की वस्तुएं, मूर्ति, कार आदि देने चाहिए। यदि गुरु उच्च का हो तो खाद्य सामग्री, पुखराज, सोना, पीतल, साड़ी, कपड़े आदि उपहार स्वरूप देने चाहिए।
यदि सूर्य पर्वत की स्थित अच्छी हो तो सूर्य के प्रतीक वस्तुओं का उपहार देना चाहिए। ध्यान रहे कि जिन ग्रहों की स्थिति अच्छी नहीं हो, उनसे संबद्ध वस्तुएं उपहार स्वरूप नहीं दें, अन्यथा दोनों को हानि हो सकती है।
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