मां दुर्गा के विभिन्न रूप
मां दुर्गा के विभिन्न रूप

मां दुर्गा के विभिन्न रूप  

फ्यूचर समाचार
व्यूस : 6712 | अकतूबर 2009

मां दुर्गा के विभिन्न रूप मारकंडेय पुराण के अनुसार दुर्गा अपने पूर्व जन्म में प्रजापति दक्ष की कन्या के रूप में उत्पन्न हुई थीं। तब दुर्गा का नाम ‘सती’ था। इनका विवाह भगवान शंकर से हुआ था। एक बार प्रजापति दक्ष ने एक बहुत बड़े यज्ञ का आयोजन किया।

इस यज्ञ में सभी देवताओं को भाग लेने हेतु आमंत्रण भेजा, किंतु भगवान शंकर को आमंत्रण नहीं भेजा। ‘सती’ के पिता का यज्ञ देखने, वहां जा कर माता और बहनों से मिलने का प्रबल आग्रह देख कर भगवान शंकर ने, उन्हें वहां जाने की अनुमति दे दी। ‘सती’ ने पिता के घर पहुंच कर देखा कि कोई भी उनसे आदर और प्रेम से बातचीत नहीं कर रहा है।

Book Navratri Special Puja Online

उन्होंने देखा कि वहां भगवान शंकर के प्रति तिरस्कार का भाव भरा हुआ है। पिता दक्ष ने भी भगवान के प्रति अपमानजनक वचन कहे। यह सब देख कर ‘सती’ का मन ग्लानि और क्रोध से संतप्त हो उठा। वह अपने पति का अपमान न सह सकीं और उन्होंने अपने आपको यज्ञ में जला कर भस्म कर लिया।

अगले जन्म में सती ने नव दुर्गा के रूप धारण कर के जन्म लिया, जिनके नाम हैं:

1. शैलपुत्री

2. ब्रह्मचारिणी

3. चंद्रघंटा

4. कूष्मांडा

5. स्कंदमाता

6. कात्यायनी

7. कालरात्रि

8. महागौरी

9.सिद्धिदात्री

साधक नव रात्रों में दुर्गा को पूजते हैं और मनवांछित फल प्राप्त करते हैं।

शैलपुत्री: प्रथम नव रात्रि को शैलपुत्री माता की पूजा की जाती है। वंदना मंत्र वंदे वा×िछतलाभाय चंद्रार्धकृतशेखराम। वृषारूढां शूलधरां शैलपुत्री यशस्विनीम्। शैल पुत्री दुर्गा का महत्व और उनकी शक्ति अनंत हैं। इस प्रथम दिन की उपासना में योगी अपने मन को ‘मूलाधार’ चक्र में स्थित करते हैं।

Book Online Nav Durga Puja this Navratri

यहीं से उनकी योग साधना का प्रारंभ होता है। उपर्युक्त मंत्र का शुद्ध उच्चारण क्रिस्टल की माला से 1 माला (108 बार) करें। फिर दुर्गा जी की आरती कर के, तांबे का शैलपुत्री माता का चित्रयुक्त बीसा यंत्र भक्तों में बांटें, तो और भी लाभ प्राप्त होता है।

ब्रह्मचारिणी: द्वितीय नव रात्रि को ब्रह्मचारिणी माता की पूजा की जाती है। वंदना मंत्र दधाना करपद्माभ्यामक्षमालाकमण्डलु!। देवी प्रसीदतु मणि ब्रह्मचारिणी यनुत्तमा।। मां दुर्गा का दूसरा स्वरूप उनके भक्तों को अनंत फल देने वाला है। नव दुर्गा पूजन में दूसरे दिन साधक का मन ‘स्वाधिष्ठान’ चक्र मे स्थित होता है। इस चक्र में अवस्थित मन वाला योगी इनकी कृपा और भक्ति प्राप्त करता है। उपर्युक्त मंत्र का शुद्ध उच्चारण क्रिस्टल की माला से 1 माला (108 बार) करें। फिर दुर्गा जी की आरती कर के, तांबे का ब्रह्मचारिणी माता का चित्र, बीसा यंत्रसहित, देवी भक्तों में बांटंे, तो और भी अधिक लाभ प्राप्त होता है।

चंद्रघंटा: तृतीय नव रात्रि को चंद्रघंटा माता की पूजा की जाती है। वंदना मंत्र: पिण्डजप्रवरारूढा चण्डकोपास्त्रकैर्युुता। प्रसादं तनुते मह्यं चंद्र घंष्टेति विश्रुता।। नव दुर्गा पूजन के तीसरे दिन मां दुर्गा के तीसरे स्वरूप चंद्रघंटा के शरणागत हो कर उपासना, आराधना में तत्पर हों, तो, समस्त सांसारिक कष्टों से विमुक्त हो कर, सहज ही परम पद के अधिकारी बन सकते हैं। उपर्युक्त मंत्र का शुद्ध उच्चारण क्रिस्टल की माला से 1 माला (108 बार) करें। फिर दुर्गा जी की आरती कर के, चंद्रघंटा माता का तांबे का चित्रयुक्त बीसा यंत्र देवी भक्तों में वितरण करें, तो और भी अधिक लाभ प्राप्त होता है।

कूष्मांडा: चतुर्थ नव रात्रि को कूष्मांडा माता की पूजा की जाती है। वंदना मंत्र: सूरासम्पूर्णकलशं रुधिराप्लुतमेव च। दधानां हस्तपदमयां कूष्माण्डा शुभदास्तु मे। नव दुर्गा पूजन के चैथे दिन मां दुर्गा के चैथे स्वरूप कूष्मांडा की उपासना की जाती है। इस दिन साधक का मन ‘अनाहत’ चक्र में अवस्थित होता है। कूष्मांडा देवी का ध्यान करने से अपनी लौकिक-पारलौकिक उन्नति चाहने वालों पर इनकी विशेष कृपा होती है। उपर्युक्त मंत्र का शुद्ध उच्चारण क्रिस्टल की माला से 1 माला (108 बार) करें। फिर दुर्गा जी की आरती कर क,े कूष्मांडा माता का तांबे का चित्रयुक्त बीसा यंत्र देवी भक्तों में वितरण करें, तो और भी अधिक लाभ प्राप्त होता है।

स्कंदमाता: पंचम नव रात्रि को स्कंद माता की पूजा की जाती है। वंदना मंत्र सिंहासनागता नित्यं पद्माश्रितकरद्वया। शुभदास्तु सदा देवी स्कन्दमाता यशस्विनी। नव दुर्गा पूजन के पांचवे दिन मां दुर्गा के पांचवंे स्वरूप-स्कंदमाता की उपासना करनी चाहिए। इस दिन साधक का मन ‘विशुद्ध’ चक्र में अवस्थित होता है। स्कंदमाता का ध्यान करने से साधक, इस भव सागर के दुःखों से मुक्त हो कर, मोक्ष को प्राप्त करता है। उपर्युक्त मंत्र का शुद्ध उच्चारण क्रिस्टल की माला से 1 माला (108 बार) करें। फिर दुर्गा जी की आरती कर के स्कंदमाता का तांबे का चित्र, बीसा यंत्रयुक्त, देवी भक्तों में वितरण करें, तो अधिक लाभ प्राप्त होता है।

कात्यायनी: षष्ठ नव रात्रि को कात्यायनी माता की पूजा की जाती है। वंदना मंत्र: चंद्रहासोज्जवलकरा शार्दूलवर वाहना।। कात्यायनी शुभं दद्यादेवी दानवघातिनि। नव दुर्गा पूजन के छठे दिन दुर्गा के छठे स्वरूप कात्यायनी माता की उपासना की जाती है। इस दिन साधक का मन ‘आज्ञा’ चक्र में स्थित होता है। कात्यायनी माता के द्वारा बड़ी सरलता से अर्थ, धर्म, काम मोक्ष चारों फलों की प्राप्ति हो जाती है। उपर्युक्त मंत्र का शुद्ध उच्चारण क्रिस्टल की माला से 1 माला (108 बार) करें। फिर दुर्गा जी की आरती कर के, कात्यायनी माता का तांबे का चित्रयुक्त बीसा यंत्र देवी भक्तों में वितरण करें, तो और भी अधिक लाभ प्राप्त होता है।

कालरात्रि: सप्तम नवरात्रि को कालरात्रि माता की पूजा की जाती है। वंदना मंत्र: एकवेणी जपाकिर्णपूरा नग्ना खरास्थित। लम्बोष्ठी कर्णिकाकर्णी तैलाभ्यक्त शरीरिणी।। वाम पादोल्लसल्लोहलताकण्टक भूषणा।। वर्धनमूर्धध्वजा कृष्णा कालरात्रि भर्यङ्करी।। नव दुर्गा पूजा के सातवें दिन मां दुर्गा के सातवंे स्वरूप कालरात्रि की उपासना का विधान है। उस दिन साधक का मन ‘सहस्रार’ चक्र में स्थित रहता है। कालरात्रि माता का ध्यान करने वाले साधक को इनकी उपासना से होने वाले शुभों की गणना नहीं की जा सकती। उपर्युक्त मंत्र की शुद्ध उच्चारण क्रिस्टल की माला से 1 माला (108 बार) करें। फिर दुर्गा जी की आरती कर के, कालरात्रि माता का तांबे का चित्रयुक्त बीसा यंत्र देवी भक्तों में वितरण करें, तो और भी अधिक लाभ प्राप्त होता है।

महागौरी: अष्टम नव रात्रि को महागौरी माता की पूजा की जाती है। वंदना मंत्र श्वेते वृषे समारूढा श्वेताम्बरधरा शुचिः। महागौरी शुभं दद्यान्त्रमहादेवप्रमोददा।। नव दुर्गा पूजन के आठवें दिन मां दुर्गा के आठवें स्वरूप महागौरी की उपासना करनी चाहिए। महागौरी माता का ध्यान करने वाले साधक के लिए असंभव कार्य भी संभव हो जाते हैं। उपर्युक्त मंत्र का शुद्ध उच्चारण क्रिस्टल की माला से 1 माला (108 बार) करें। फिर अंबा जी की आरती कर के, महागौरी माता का तांबे का चित्रयुक्त बीसा यंत्र देवी भक्तों में वितरण करें, तो और भी अधिक लाभ प्राप्त होता है।

सिद्धिदात्री: नवम नव रात्रि को सिद्धिदात्री माता की पूजा की जाती है। वंदना मंत्र: सिद्धगन्धर्वयज्ञद्यैर सुरैरमरैरपि। सेव्यमाना सदा भूयात् सिद्धिदा सिद्धिदायिनी।। नवदुर्गा पूजन के नौवें दिन साधक मां दुर्गा के नौवंे स्वरूप सिद्धिदात्री की उपासना करते हैं। सिद्धिदात्री माता का ध्यान करने वाले साधक को इनकी उपासना से इस संसार की वास्तविकता का बोध होता है। वास्तविकता परम शांतिदायक अमृत पद की ओर ले जाने वाली होती है। साधकों को सभी प्रकार की सिद्धियां प्राप्त होती हैं। उपर्युक्त मंत्र का शुद्ध उच्चारण क्रिस्टल की माला से 1 माला (108 बार) करें तथा अंबा जी की आरती करने के बाद, कालरात्रि माता का तांबें का चित्रयुक्त बीसा यंत्र सभी देवी भक्तों में बांटें, तो और भी अधिक लाभ प्राप्त होता है।

If you are facing any type of problems in your life you can Consult with Astrologer In Delhi



Ask a Question?

Some problems are too personal to share via a written consultation! No matter what kind of predicament it is that you face, the Talk to an Astrologer service at Future Point aims to get you out of all your misery at once.

SHARE YOUR PROBLEM, GET SOLUTIONS

  • Health

  • Family

  • Marriage

  • Career

  • Finance

  • Business


.