त्राटक किसे करना चाहिए? त्राटक क्रिया हमारे मन को ध्यान की अवस्था में ले जाती है। ध्यान की अवस्था में विचारों का महत्व अत्यधिक होता है। अतः सकारात्मक विचारों वाले व्यक्ति त्राटक क्रिया के पात्र होते हैं। जब भी हम कोई कार्य एकाग्रता से करते हैं तो हमारे मस्तिष्क की तरंगें बदल जाती हंै अर्थात बीटा तरंगें एल्फा या थिटा तरंगों में बदल जाती है। इसी अवस्था को ध्यान की अवस्था कहते हैं। जब ध्यान की अवस्था में हम कोई कार्य करते हैं या विचार करते हैं तो हमारे मस्तिष्क में उनके चिह्न आसानी से बन जाते हैं जिन्हें न्यूरल पाथ वेज कहते हैं। इन्हीं चिह्नों के आधार पर हमारा व्यवहार निर्धारित रहता है। हमारा मन किसी कार्य या विचार या कल्पना सभी को समान रूप से स्वीकार करता है। अगर हमारे मन में अपने को शक्ति देने वाले विचार आ रहे हैं तो हमारा आत्मविश्वास बढ़ता है और आध्यात्मिक शक्ति का भी विकास होता है। लेकिन अगर नकारात्मक विचार आ रहा हो तो उनका प्रभाव भी नकारात्मक ही रहता है। अतः नकारात्मक विचारों की पृष्ठभूमि वाले व्यक्तियों को त्राटक नहीं करना चाहिए। डिप्रेशन से प्रभावित व्यक्ति या किसी अन्य मानसिक विषाद से प्रभावित व्यक्ति भी त्राटक न करें। अगर मनोदशा ठीक हो जाती है तो किया जा सकता है। आम व्यक्ति जो किसी भी साधारण व्यक्ति जैसी मानसिकता रखता है त्राटक कर सकता है। अगर आप किसी घोर मानसिक तनाव से गुजर रहे हैं तो कृपया त्राटक करना उस दौरान बंद कर दें क्योंकि वे विचार हमें त्राटक करते वक्त भी जरूर उद्वेलित करेंगे। तथा मस्तिष्क पर प्रभाव भी छोड़ेंगे जिसका हमारे व्यवहार व व्यक्तित्व पर असर पड़ेगा। विचार का महत्व त्राटक द्वारा प्राप्त की गई ध्यान की अवस्था में हम अपने विकास हेतु महत्वपूर्ण विचार या सुझाव डाल कर लाभान्वित हो सकते हैं। जैसे विचार हम अपने मन में लाते हैं वैसे ही चिह्न हमारे दिमाग में बन जाते हैं। अतः वो विचार जो व्यक्ति के हित में हो और उचित ढंग से स्वीकार भी किये जा सकं उस वक्त मन में आने चाहिये। इस तथ्य को समझने के लिये हमें अपने दैनिक जीवन में जाना होगा। जो काम हम अगले दिन करना चाहते हैं उनको प्रायः शाम को सोते वक्त अपने में दोहराते हैं जैसे किस से क्या लेना है या किस को क्या देना है अथवा कितने बजे उठना है इत्यादि। हमने अपने दैनिक जीवन में अनुभव किया है कि उसी अनुसार हमें वे बातें याद आ जाती हैं और सुबह भी हम सोचे गये समय के अनुसार जाग खड़े होते हैं। इन बातों से हमारा अपने मन पर भरोसा बढ़ता है कि यह हमारे कुछ कम कर सकता है। अब इस कुछ को बहुत कुछ में कैसे बदलना है यह सब इस बात पर निर्भर करता है कि हम विचार किस रूप में दे रहे हैं। अक्सर कहा जाता है कि बड़ी सोच बड़े काम करवाती है और छोटी सोच हीनता की भावना पैदा करती है। विचारों संबंधी महत्वपूर्ण तथ्य हम इतना तो जान ही गये हैं कि हमारा अवचेतन मन कल्पना और वास्तविकता में कोई भेद भाव नहीं करता। अपितु दोनों को वास्तविकता ही समझता है। अतः हमें अपने विचार हमेशा वर्तमान काल में ही देने चाहिये। कोई भी संदेश भूतकाल और भविष्य काल में देने से अवचेतन मन पर प्रभाव कम पड़ता है। जैसे अगर हम कहते हैं कि मेरी आमदनी बढ़ जाएगी तो यह भविष्यकाल की बात है जिसको वर्तमान में समझना कठिन हो जाता है। अगर इसी वाक्य को वर्तमान में कहें जैसे कि मैं एक अच्छी जीवन शैली का आनंद ले रहा हूं जिसमं सभी भौतिक सुख प्राप्त हैं, तो इस वाक्य में एक संपूर्णता का आभास होता है क्योंकि एक अचछी जीवन शैली जिसमें सारी भौतिक साधनों का उपभोग हो, बढ़ी हुई आमदनी से ही हो सकता है। अपने मन में कल्पना करो जैसे आप इस अवस्था को प्राप्त कर चुके हों और उसका आनंद भोग रहे हो। एक सकारात्मक भाषा का प्रयोग करना ही अवचेतन मन के लिये प्रभावकारी है। सकारात्मक भाषा जिसका संबंध परिणामों से हो न कि कारणों से। नकारात्मक भाषा हमेशा करणों पर ध्यान देती है या फिर उन बातों पर ध्यान देती है जो कि नहीं करना या नहीं चाहिये। जैसे अगर हम कहते हैं कि हमें लड़ना नहीं चाहिये तो हम अपने मन में लड़ाई की प्रतिमा को याद कर रहे हैं। हमारी कल्पना में लड़ाई का चित्रण होने लगता है और उसी के चिह्न मस्तिष्क में बन जाते हैं। इस प्रकार जो काम हम छोड़ना चाह रहे हैं हकीकत में हम उसी को बढ़ावा दे रहे हं। अतः जो होना चाहिये या जो अपेक्षित है उसी को ध्यान में लायें ताकि वही चित्र हमारे मस्तिष्क में बन सके। उपरोक्त गलती कई बार माता-पिता अपने बच्चों के साथ व्यवहार में भी करते हैं। हमेशा संदेश देते वक्त ध्यान रखें कि क्या वह संदेश वास्तविक रूप से जीवन में संभव है? मसलन वही बात सोचें जो हो सकती है। अगर एक व्यक्ति यह सोचता है कि वह चिड़िया की तरह हवा में उड़ रहा है तो इस प्रकार के विचार को मन धारण नहीं कर पायेगा या हमारी सोच यथार्थवादी नहीं रह पायेगी। एक कमजोर व्यक्ति अपने को शक्तिशाली सोच सकता है लेकिन अगर वह दुनिया का सबसे शक्तिशाली व्यक्ति सोचता है तो वह यथार्थ नहीं लगता है। इस प्रकार अपने मन में संदेश देते वक्त अपना स्वयं का मजाक न बनवायें। जो भी सोचें निश्चित सोचें और वास्तविकता पर आधारित सोचें। हमारा मन बारंबारता को स्वीकारता है या फिर यह कहिये कि ज्यादा स्वीकारता है। अपना संदेश बार-बार दीजिये और ज्यादातर अपने मन पर उसका प्रभाव बनाये रखिये क्योंकि हम जैसा सोचते हैं वैसा बन जाते हैं। अतः हम सभी अपने बच्चों को बुरी संगत से बचने की बात करते हैं। यही बात अध्यापक भी बच्चों को सिखाता है। बुरी संगत से बुरे विचार बार-बार आते रहते हैं और वही हमारे चिंतन में बैठ जाते हैं। जब भी हम त्राटक करते वक्त ध्यान की अवस्था में जायें तो इन सभी गुणों को मद्दे नजर रखते हुये संदेश दें। जो भी संदेश दें उस पर पूरा भरोसा करें। भरोसा सफलता की कुंजी है। स्वास्थ्य पर प्रभाव त्राटक से अनेकों लोग शिकायत करते हैं कि उनकी आंखे खराब हो गईं या कमजोर हो गई हं। कई लोग कहते हैं सिर चकराने लगता है तथा कई लोग कहते हैं हाजमा खराब हो जाता है। इस प्रकार की कई और शिकायतें भी लोग अक्सर त्राटक के प्रभाव के रूप में करते हैं। उनके अनुभव को गलत नहीं ठहराया जा रहा है। बल्कि ऐसा क्यां होता है उसको समझना ज्यादा उचित है। इसका एक प्रमुख कारण यह है कि वे बिना किसी की मदद से या निर्देशन से अपने आप सीखना शुरू कर देते हैं और आवश्यक सावधानियों की परवाह नहीं करते हैं। अक्सर लगातार एकटक देखने से आंखां पर जोर पड़ने लगता है। उस वक्त अगर साधक के मन में आंख कमजोर होने का डर आने लगता है तो वह एक विचार के रूप में स्वीकार हो जाता है तथा आंखें कमजोर होने लगती हं। जब भी आप त्राटक करें तो मन में पूरा विश्वास रखें कि आंखों की शक्ति बढ़ रही है और दृष्टि पहले से बेहतर होती जा रही है। उसी प्रकार सिर का चकराना भी हमारे विचार की कमी से ही शुरू होता है। हमेशा मन में सोचें कि मेरी एकाग्रता बढ़ती जा रही है जिसका मैं पूर्ण आनंद ले रहा हूं। पेट दर्द, गर्दन दर्द, बदहजमी जैसी कठिनाइयां भी हमारे विचारों की त्रुटि से संभव हो सकती है अतः अच्छा स्वास्थ्य, अच्छी दृष्टि और एकाग्रता के भाव अपने मन में रखिये। अपने ऊपर कभी ज्यादती न करें और अभ्यास का आनंद लें। इसे भार समझने से इसका हमारे तन और मन पर दुष्प्रभाव पड़ता है। स्वस्थ मन और स्वस्थ तन का संबंध प्रायः सभी लोग समझते हैं और मानते हैं। तन और मन दोनों एक दूसरे के साथ जुड़े हैं। तन एक साधन के रूप में कार्य करता है जबकि मन एक शक्ति के रूप में कार्य करता है। शक्ति मन से प्रारंभ होती है और शरीर में उसका प्रभाव दिखाई देता है। इसी प्रकार कमजोरी क्या बीमारी भी मन में ही शुरू होती है लेकिन उसका प्रभाव हमारे तन पर दिखाई देता है। जब हम अपने मन की शक्ति को जगा कर तन को प्रभावित कर सकते हैं तो हम इसे सकारात्मक रूप से प्रभावित क्यों न करें? महत्वपूर्ण सावधानियां सबसे प्रमुख सावधानी तो मन को सकारात्मक भाव से यथार्थ विचार देना ही है। लेकिन यह तो ध्यान की स्थिति प्राप्त करने के बाद अधिक महत्वपूर्ण है। त्राटक क्रिया करते वक्त विधि या प्रक्रिया संबंधी सावधानियां भी बहुत महत्व रखती हैं। त्राटक साधक के मन में बहुत सारी भ्रांतियां रहती हैं जैसे कितनी देर करना है, कितनी दूरी से करना है, किस समय करना है, किस आसन में करना है, किस यंत्र या वस्तु पर करना है इत्यादि। ये सभी प्रश्न बहुत ही महत्वपूर्ण हैं जिनके बारे में अगर मन में कोई भ्रम उठता है तो वह किसी अहितकारी कारण को जन्म दे सकता है। इन सभी प्रश्नों को हम तार्किक ढंग से समझने की कोशिश करते हैं। त्राटक कितनी देर करना है? इस प्रश्न का उत्तर हर साधक के लिये भिन्न हो सकता है और एक ही साधक के लिए उसके अभ्यास के अनुसार भी अलग-अलग हो जाता है। अक्सर प्रारंभ काल में त्राटक काफी कठिन क्रिया लगती है और साधक इस प्रक्रिया को अधिक देर तक नहीं कर पाता या अधिक देर तक करने में आरामदायक नहीं रहता है। यह पूर्ण रूप से अभ्यास पर निर्भर करता है। ज्यों -ज्यों अभ्यास काल बढ़ता जाएगा त्यों-त्यों प्रक्रिया का भी काल बढ़ता जाएगा। प्रक्रिया काल को धीरे-धीरे बढ़ाना है। पहले चंद रोज या प्रथम सप्ताह में यह प्रक्रिया चंद मिनटों की ही होगी। कुछ ही देर में थकान महसूस होना शुरू हो जाएगा। थकान शुरू होने पर बंद कर देना ज्यादा उचित रहता है। कुछ लोग पलकें बंद होना प्रक्रिया में विघ्न पड़ना समझते हैं। यह घटना पूर्ण रूप से सही नहीं है। थकान होते समय पलक बंद की जा सकती है या आंखों को अर्धखुली मुद्रा में भी आराम दिया जा सकता है। पलक जितनी देर बाद लगती है उतना अच्छा माना जाता है। अभ्यास के साथ आंखें अधिक समय तक खुली रहने की अभ्यस्त हो जाती है और यह प्रक्रिया आनंद देने लगती है। त्राटक के सभी समय अवधि को समझने के लिये अपनी आयु के पूर्ण वर्ष गिनें और उतने ही मिनट करें। अर्थात अगर आपकी आयु 30 वर्ष है तो आपको 30 मिनट तक त्राटक करना चाहिये लेकिन यह अपने अभ्यास पर निर्भर करता है इसे अति आवश्यक समझकर परेशान न हों। यह अवधि कम और ज्यादा भी अपनी क्षमता के आधार पर की जा सकती है। त्राटक किस समय करना है? यह भी एक निश्चित उत्तर के साथ ही कहा जा सकता है। कुछ लोग रात को सोने से पहले करते हैं कुछ लोग रात को सभी के सोने के बाद करते हैं। कुछ सुबह उठने के तुंरत बाद करते हैं और कुछ लोग दिन में करते हैं। यह तीन बातों पर निर्भर करता है। प्रथम तो आप कौन सी विधि का प्रयोग कर रहे हैं। अगर गहरे नीले आकाश में कर रहे हैं तो दिन में होगा, शक्ति चक्र पर कभी भी हो सकता है। दीपक पर रात को किया जाता है। सबसे अधिक लाभकारक रात को सोने से पहले करना होता है या फिर सुबह उठने के तुरंत बाद करना होता है। लेकिन किसी और समय का त्राटक पूर्ण लाभ देता है मात्र समय की अवधि बढ़ जाती है। त्राटक के लिये उचित आसन भी एक कठिन सवाल हैं। यह आप की खुद की क्षमता पर अधिक आधारित है। कुछ व्यक्ति आराम से काफी देर तक बैठ सकते हैं या खड़े रह सकते हैं। आसन आरामदायक होना चाहिये ताकि अगर प्रक्रिया लंबी हो तो आप कष्ट महसूस न करें। हां सोने की मुद्रा में त्राटक कभी नहीं करना चाहिये क्योंकि हमारा मन और शरीर सोने की मुद्रा को नींद से जोड़ता है और हमें नींद आना शुरू हो जाती है। त्राटक बिंदु हमारी आंख से इतनी दूरी पर हो कि आंखों पर भार न पड़े और आप साफ-साफ देख भी सकें। जैसे शक्तिचक्र अधिक दूरी से साफ नहीं दिखाई देता है। त्राटक बिंदु की ऊंचाई आप की आंख की उंचाई के समान या अधिक होनी चाहिए। ऊपर बताई गई सारी बातें उन सभी को मदद करेंगी जो पहले से त्राटक का अभ्यास करते रहे हैं। जो लोग अभी त्राटक प्रारंभ करना चाहते हैं तो उनके लिये राय है कि किसी जानकार से उचित निर्देशन लेकर ही यह प्रारंभ करें क्योंकि हर एक बात छोटे से अंक में नहीं आ पाती है। व्यावहारिक रूप से अभ्यास करते वक्त की कठिनाइयां जानकर ही दूर करेगा। याद रखना भी जरूरी है कि त्राटक सम्मोहन की मात्र एक विधि है जो कठिन परिश्रम मांगती है। सम्मोहन की अनेकों विधियां हं और काफी सरल विधियां भी हैं। अगले अंक में सम्मोहन से जुड़ी कुछ और जानकारियां दी जायेंगी।