काली भी दुर्गा का ही रूप
काली भी दुर्गा का ही रूप

काली भी दुर्गा का ही रूप  

व्यूस : 10351 | अकतूबर 2013
काली मां का नाम आते ही हमारे मन में राक्षसों का संहार करने वाली विकराल रूप लिए, मुंड माला गले में पहने अपनी कई भुजाओं से दुष्ट राक्षसों का वध करती देवी नजर आ जाती हैं। काली मां का उन दुष्ट राक्षसां का वध करना वास्तव में धरती से पापियों, दुष्ट प्रवृत्ति व मानसिक प्रभाव को दूर करना था। लेकिन जब काली मां क्रोधवश बड़ी संख्या में तेजी से राक्षसों का संहार करने लगीं तो उनसे भयभीत हो बचे-कुचे राक्षसों ने महादेव की शरण ली व उनसे अपनी गलतियों की क्षमा मांग, जीवन रक्षा हेतु प्रार्थना की। महादेव जानते थे कि महाकाली जैसी शक्ति ऐसे ही शांत नहीं होंगी। अब वह किसी की नहीं सुनेंगी। अतः वह स्वयं ही उनके रास्ते में लेट गए। जैसे ही महामाया का पैर उनके ऊपर पड़ा उन्होंने एकदम से पश्चाताप की भावना से जीभ निकाल ली (जैसा कि हम उनके रूप में देखते हैं) तब जाकर वह शांत हुईं। तब से मां काली के इस रूप का मनन व पूजन करने मात्र से ही हमारे मन-मस्तिष्क में आए तामसिक प्रभाव स्वतः ही खत्म हो जाते हैं। अतः एक अच्छा सात्विक जीवन बिताने के लिए तथा जीवन में तामसिक प्रभाव से मुक्त रहने के लिए हमें मां काली का स्मरण करना अनिवार्य है। बंगाल के लोग मां काली की पूजा-विशेष रूप से करते हैं तथा भाव-विभोर हो मां काली को मुंड भेंट चढ़ाते हैं। मां महाकाली महाकाल शब्द का स्त्रीलिंग है अर्थात् इनका काल से सम्बन्ध है। काल का अर्थ समय भी होता है और मृत्यु भी होता है। अर्थात् जन्म है तो मृत्यु सुनिश्चित है। इसी काली से जुड़ा है भारत के महानगर कोलकाता का इतिहास। काली और कोलकाता का रिश्ता बहुत पुराना है। कोलकाता के कालीघाट को भारत 52 शक्तिपीठों में से एक माना जाता है। सती के अंग भारत के जिन स्थानों पर गिरे, वे स्थान शक्तिपीठ कहलाए। शक्ति पीठमाला में गंगा के किनारे जहां सती के दाहिने पैर की उंगलियां गिरने का उल्लेख है, वही स्थान कालीघाट स्थित काली मंदिर कोलकाता का सबसे प्राचीन काली मंदिर है। यह करीब 200 वर्ष पुराना है। काली को शक्ति का रौद्रावतार माना जाता है। आमतौर पर काली की प्रतिमा या छवि में देवी को विकराल काले रूप में गले में मंडमाल और कमर में कठे, हाथों का घघरा पहने, एक हाथ में रक्त से सना खड्ग और दूसरे में खप्पर धारण किए, इन्हें लेटे हुए शंकर पर खड़ी जिह्वा निकाले दर्शाया जाता है। पर कालीघाट मंदिर में काली की जो प्रतिमा है, उसमें काली का मस्तक और चार हाथ नजर आते हैं। यह प्रतिमा एक चैकोर काले पत्थर पर उकेरी हुई है। पूरा शरीर लाल वस्त्रों से डंका रहता है, देवी के हाथ स्वर्ण आभूषणों से सुसज्जित रहते हैं, गले में लाल फूलों की माला होती है। देवी के नेत्रों में इतना तेज है कि कोई भी नजर मिलाकर दर्शन नहीं कर सकता। मां काली को प्रसन्न करने के लिए यहां हर रोज सुबह बकरे की बलि दी जाती है। यहां दर्शनार्थियों को प्रसाद के साथ सिंदूर का चोला भी दिया जाता है। भक्तगण उसे अपने माथे पर लगाते हैं। इस सिद्धपीठ पर दर्शन करने दुनिया भर से श्रद्धलु कोलकाता आते हैं। माना जाता है कि इस महानगर का नाम ही काली क्षेत्र के बांग्ला शब्द काली काता से कलकत्ता पड़ा जो अब कोलकाता हो गया है। काली कोलकाता की प्रधान देवी हैं। यहां का जनजीवन काली से बहुत गहराई से जुड़ा है।



Ask a Question?

Some problems are too personal to share via a written consultation! No matter what kind of predicament it is that you face, the Talk to an Astrologer service at Future Point aims to get you out of all your misery at once.

SHARE YOUR PROBLEM, GET SOLUTIONS

  • Health

  • Family

  • Marriage

  • Career

  • Finance

  • Business


.