गया जी जिसका आध्यात्मिक, सांस्कृतिक एवं भौगोलिक महत्व है, जिसकी चर्चा रामायण एवं पुराणों में वर्णित है। वायु पुराण के अनुसार गयासुर नामक राक्षस पर गया का नाम पड़ा। गया तीनों तरफ से (उत्तर-दक्षिण, दक्षिण-पश्चिम, दक्षिण-पूर्व ) छोटी-छोटी पहाड़ियों से घिरा हुआ है जिसका अपना आध्यात्मिक महत्व तो है ही वास्तु के दृष्टिकोण से भी उसका काफी फायदा एवं नुकसान है।
किसी भी शहर के दक्षिण और पश्चिम का ऊँचा होना या पहाड़ांे का होना उस शहर के स्थायित्व और विकास में बड़ी भूमिका अदा करता है। इस दृष्टिकोण से गया के दक्षिण और पश्चिम में ब्रह्मयोनि एवं अन्य छोटी-छोटी पहाड़ियों का होना गया के विकास एवं विस्तार के लिए लाभप्रद है जिसके फलस्वरूप यहाँ के लोगों को सभी प्रकार के विषमताओं एवं संघर्षों से जूझने की क्षमता प्राप्त है साथ ही यहाँ के लोग स्थायित्व एवं आत्म विश्वास से परिपूर्ण हैं।
धैर्य एवं सहनशीलता पूर्णरूप से उनमें देखने को मिलती है। विपरीत से विपरीत स्थिति में यहाँ के लोगों की सहनशक्ति बनी रहती है। साथ ही दक्षिणी नैर्ऋत्य में मंगला गौरी पर्वत होने से गया का मान-सम्मान एवं प्रसिद्धि प्राचीन काल से आज तक बनी हई है। गया के पूर्व की ओर विशाल फल्गु नदी है जिसका बहाव दक्षिण से उत्तर की ओर गया जी के लम्बाई के साथ-साथ है। गया जी का पूर्वी भाग पूरी तरह खुला हुआ है। साथ ही गया के जमीन की सतहों की ढाल दक्षिण-पश्चिम से उत्तर-पूर्व की ओर है। फलस्वरूप यहाँ पर आध्यात्मिक एवं सांस्कृतिक विकास पूर्ण रूप से देखने को मिलता है।
साथ ही पूरे विश्व में गया जी की प्रसिद्धि एवं मान-सम्मान बनी हुई है। तभी तो यहाँ के भूमि को मोक्ष एवं ज्ञान की भूमि कहा जाती है। पितृगण का आशीर्वाद पूर्ण रूप से प्राप्त होता है। दूर-दूर से आकर यहाँ पर लोग अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति एवं मोक्ष की प्राप्ति के लिए पिण्डदान करते हैं जिसके फलस्वरूप गया जी की प्रसिद्धि एवं मान-सम्मान देश-विदेश तक फैली हुई है एवं सदैव रहेगी। यहाँ पर वास करने वाले व्यक्ति परिश्रमी, पराक्रमी एवं मेहनती हैं।
गया जी में प्रवेश करने के लिए चारांे दिशाओं से लाभदायक स्थान पर मार्ग बना हुआ है जिसे लाभदायक ग्रिड या उच्च श्रेणी का प्रवेश मार्ग कहा जाता है। ईशान क्षेत्र से खासकर उत्तरी ईशान से बिहार की राजधानी पटना से प्रवेश करने का मुख्य प्रवेश मार्ग है। दक्षिण क्षेत्र से प्रवेश द्वार दक्षिण मध्य से है। मध्य पश्चिम एवं मध्य पूर्व से भी गया में प्रवेश करने का मार्ग है। फलस्वरूप देव कृपा, आध्यात्मिक चेतना का विकास एवं ज्ञान की प्राप्ति बनी हुई है।
साथ ही गया जी में निवास करने वाले लोग अत्यंत मेधावी, ज्ञानवान एव विद्वान हैं। गया जी के भौगोलिक स्थितियांे के अवलोकन करने पर यह पता चलता है कि गया के भूखंडों की सतह दक्षिण-पश्चिम और उत्तर-पश्चिम दिशाओं में ऊँची तथा उत्तर एवं पूर्व दिशाओं में नीची है। वास्तु के दृष्टिकोण से इस तरह के भूखंड को गजपृष्ठ कहते हंै। अतः गया के सतहांे की जमीन की ढलान गजपृष्ठ आकार का है। गया जी के जमीन के सतहों की ढाल दक्षिण से उत्तर एवं पश्चिम से पूर्व की ओर है जो गया के वास्तु के लिए लाभप्रद है जिसके फलस्वरूप गया जी का आध्यात्मिक, धार्मिक, शैक्षणिक, दार्शनिक एवं सांस्कृतिक महत्व पूरे विश्व में दृष्टिगोचर हुआ। इसके साथ ही ऐतिहासिक दृष्टि से भी गया गौरवशाली रहा है।
दक्षिण से उत्तर की ओर एवं पश्चिम से पूर्व की ओर सतहांे की ढाल वाले रोड पर व्यवसाय होने पर चार चाँद लगता है। आवक मजबूत बनी रहती है, देवी लक्ष्मी की असीम कृपा बनी रहती है। गया जी का मुख्य सड़क जी.बी. रोड जो पीरमंसूर से लेकर नई गोदाम तक का है, इस रोड की ढाल दक्षिण से उत्तर की ओर है। अतः इस रोड को गया के मुख्य व्यावसायिक स्थान के रूप में प्रसिद्धि मिली। इसी तरह धामी टोला रोड जो टावर चैक होते हुए किरण सिनेमा तक पश्चिम से पूर्व की ओर जाती है, इस रोड की ढलान भी पूर्व की ओर है।
अतः यह स्थान भी व्यावसायिक स्थल के रूप मंे गया जी का एक महत्वपूर्ण स्थान है। राय काशीनाथ मोड़ से लेकर स्वराजपुरी रोड होते हुए बाटा मोड़ तक रोड जाती है जिसकी ढलान उत्तर की ओर है। इस रोड पर अवस्थित व्यावसायिक विकास उत्कृष्ट रूप में देखने को मिलती है। इसी तरह राय काशीनाथ मोड़ से कमीश्नर कार्यालय तक रोड की ढलान पश्चिम से पूर्व की ओर है। इन स्थानों का व्यावसायिक विकास अच्छा है। साथ ही इस रोड पर कमीश्नर कार्यालय, वाणिज्यकर विभाग एवं न्यायालय इत्यादि मुख्य कार्यालय देखने को मिलता है।
प्रतिकूलता: गया के उत्तर में रामशिला पर्वत का होना गया के वास्तु के लिए प्रतिकूल फलप्रद है तथा लोगांे के मानसिक एवं आर्थिक विकास में बहुत बड़ी बाधा है। उत्तर की दिशा बाधित होने से विचारों में भिन्नता एवं सही निर्णय में कमी के साथ-साथ आर्थिक प्रगति में कमी कर रहा है। खासकर यह प्रभाव उन स्थानों पर अत्यधिक देखने को मिलता है जो रामशिला पहाड़ के समीप है।
जैसे-जैसे रामशिला पहाड़ से दूरियाँ बढ़ंेगी इस तरह के प्रभाव में कमी महसूस होती जाएगी। रामशिला पहाड़ के उत्तर की ओर नयी काॅलोनी का विस्तार करना अच्छा रहेगा क्योकि इस नयी काॅलोनी के दक्षिण दिशा में रामशिला पहाड़ अवस्थित होगा जो वास करने वाले को विशिष्ट जीवनदायिनी शक्ति देते हुए उत्साह और स्फूर्ति प्रदान करेगा।
साथ ही यश, पद एवं प्रतिष्ठा में वृद्धि करते हुए सांसारिक कार्यों को सम्पन्न करायेगा।
प्रतिकूल प्रभाव से बचने का उपाय: गया के इस प्रतिकूलता के प्रभाव से बचने के लिए गया के उत्तर-पूर्व में पार्क, वाटर फॅाउन्टेन पार्क, तालाब एवं झील का निर्माण करना लाभप्रद होगा। साथ ही पवित्र फल्गु नदी में सालों भर पानी का होना गयावासियों के विकास - विस्तार एवं कृति के वृद्धि में चार चांद लगायेगा।
रामशिला पहाड़ के उत्तर की ओर नयी काॅलोनी का विस्तार करना भी अच्छा रहेगा क्यांेकि इस नयी काॅलोनी के दक्षिण दिशा में रामशिला पहाड़ अवस्थित होगा जो वास करने वालों को विशिष्ट जीवनदायिनी शक्ति देते हुए उत्साह और स्फूर्ति प्रदान करेगा। साथ ही यश, पद एवं प्रतिष्ठा में वृद्धि करते हुए सांसारिक कार्यों को सम्पन्न करायेगा।
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