ऊखीमठ: शीतकालीन केदारनाथ चित्रा पफुलोरिया ऊखीमठ, भगवान केदारनाथ का शीतकालीन निवास स्थान। कैलाश शिखर भयंकर हिमपात से जब ढक जाता है तब केदारनाथ ज्योतिर्लिंग की पूजा छह महीने ऊखीमठ में संपन्न होती है। प्राचीन इतिहास का साक्षी ऊखीमठ मंदिर नैसर्गिक सौंदर्य एवं आध्यात्मिक रहस्यों से ओतप्रोत है। यहां स्थित प्राचीन शिवलिंग जीवंत प्रतीत होते हैं। यहां ऊखीमठ का आंखों देखा हाल प्रस्तुत किया जा रहा है ....
भ्गवान शिव शंकर ने नदी पर्वत जैसे प्रकृति के दूरस्थ स्थानों को हमेशा अपना निवास चुना। ऐसा ही एक ज्योतिर्लिंग केदारनाथ है। केदारनाथ की चल मूर्ति सर्दियों में ऊखीमठ आ जाती है इसलिए यहां की विशेष प्रसिद्धि है। ऋषिकेश से लगभग 185 किमी की दूरी पर प्रकृति के उन्मुक्त प्रांगण में बसा ऊखीमठ का मंदिर बहुत ही प्राचीन एवं ऐतिहासिक है।
शीतकाल में जब केदारनाथ के कपाट बंद हो जाते हैं, उस समय भगवान शंकर की चल मूर्ति की स्थापना यहीं की जाती है। इस प्रकार शीतकाल में भगवान केदारनाथ भोले शंकर की पूजा अर्चना यहीं संपन्न होती है। यहां भगवान केदारनाथ की पांच सिरों वाली स्वर्ण मूर्ति स्थापित है।
शीतकाल के अतिरिक्त भी यहां निरंतर पूजा अर्चना चलती रहती है यहां वर्ष भर तीर्थयात्रियों की भीड़ लगी रहती है। ऊखीमठ में भगवान शिव की पूजा ओंकारेश्वर के रूप में होती है। यहां स्थित ओंकारेश्वर मंदिर बहुत ही भव्य एवं प्राचीन है। यहां पंच केदार के रूप में भी शिव विद्यमान हंै।
इन शिवलिंगों को देखते ही ऐसी अनुभूति होती है कि ये प्राकृतिक रूप से सैकड़ों वर्षों से यहां विद्यमान हैं। पूरा मंदिर प्राचीन ऐतिहासिक रंग रूप में सराबोर दिखाई देता है। ऊखीमठ मूलतः ऊषीमठ का अपभ्रंश रूप है। यहां बाणासुर की पुत्री उषा और कृष्ण के पौत्र अनिरुद्ध का विवाह हुआ था। इसलिए इसे ऊषीमठ कहा जाता था। यहां आज भी उषा अनिरुद्ध का विवाह मंडप विद्यमान है।
अति प्राचीन रूप में अवस्थित विवाह वेदी को देखकर सहसा उषा अनिरुद्ध के विवाह का परिदृश्य आंखों के सम्मुख उपस्थित हो जाता है। उषा की प्रिय सखी चित्रलेखा के ही प्रयासों से उषा अनिरुद्ध का विवाह संपन्न हो पाया था। पौराणिक कथा के अनुसार पूर्व उसकी एक सुंदर कन्या उषा थी। वह सपने में श्री कृष्ण के पौत्र अनिरुद्ध के प्रेम में पड़ गई। सपने को यथार्थ रूप देने के लिए उसने अपनी सखी चित्रलेखा की मदद ली।
यहां तंुगनाथ, ओंकारेश्वर, केदारनाथ, उषा, अनिरुद्ध, चित्रलेखा, शिव, पार्वती एवं ऋषि मान्धाता तथा सतयुग, द्वापर एवं त्रेता की मूर्तियां विद्यमान हैं। कुंती, द्रौपदी सहित पांचों पांडवों की मूर्तियां भी यहां हैं। मंदिर में पूजा अर्चना करने वाले रावल जी उषा-अनिरुद्ध के विवाह का प्रसंग बड़े ही चाव से तीर्थयात्रियों को सुनाते हैं। केदारनाथ के रावल जी छह महीने यहीं रहते हैं।
ऊखीमठ मंदिर की दीवारों एवं दरवाजों पर की गई नक्काशीदार कलाकृतियां भी शिल्पकला की बेजोड़ मिसाल हैं। ऊखीमठ का प्राकृतिक सौंदर्य बड़ा ही मनमोहक है। कलकल बहती मंदाकिनी नदी, बर्फ से ढकी नंदा देवी की चोटी, विभिन्न स्थानों से गिरते जल प्रपात प्रतिपल नए नए रहस्यों को खोलते प्रतीत होते हैं।
प्रकृति की इन चचं ल अठखेि लयांे के बीच यहां का जन जीवन शहरी कोलाहल से दूर, शांत है। यहां पास ही स्थित गुप्त काशी बहुत ही रमणीक स्थान है। गुप्त काशी से यहां पैदल रास्ते से भी जाया जा सकता है। बस से एक-डेढ़ घंटे का रास्ता है। गुप्त काशी में विश्वनाथ अर्धनारीश्वर का सुंदर मंदिर है।
इस मंदिर में भगवान शिव का स्वयंभू शिवलिंग है। यहां मणिकर्णिका नामक जलकुंड है जिसमें गणेश मुख से गंगा व यमुना नामक दो धाराएं गिरती हैं। कहा जाता है, भगवान शिव को प्राप्त करने के लिए इस स्थान पर ऋषि मुनियों ने भयंकर तप किया था। इन्हीं के प्रभाव से गंगा और यमुना यहां प्रकट हुईं।
जब पांडव भगवान शंकर के दर्शनों के लिए काशी गए तो शिवजी ने उन्हें दर्शन नहीं दिए और यहां आकर गुप्तवास करने लगे, इसलिए यहां का नाम गुप्त काशी हो गया।
कैसे जाएं / कहां ठहरें - ऊखीमठ जाने के लिए निकटतम रेलवे स्टेशन ऋषिकेश है। सड़क मार्ग से ऊखीमठ सभी स्थानों से जुड़ा हुआ है। यहां अच्छी सुविधाओं वाले सरकारी एवं निजी गेस्ट हाउस पर्याप्त संख्या में सस्ते दर पर आसानी से उपलब्ध हो जाते हैं।
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