पाराशर मद्भागवत आदि ग्रंथों में वर्णन है कि भगवान विष्णु ने वामन अवतार लेकर बलि से तीन पग भूमि मांगी। दो पग में पृथ्वी और स्वर्ग को नापा और जब तीसरा पग रखने लगे तब बलि ने अपना सिर आगे कर दिया। तब भगवान ने बलि को पाताल भेज दिया तथा उसकी दानभक्ति को देखते हुए आशीर्वाद मांगने को कहा।
बलि ने कहा कि प्रभु आप सभी देवी-देवताओं के साथ मेरे लोक पाताल में निवास करें। इस कारण भगवान विष्णु को सभी देवी-देवताओं के साथ पाताल जाना पड़ा। यह दिन था विष्णुशयनी (देवशयनी) एकादशी का। इस दिन से सभी मांगलिक कार्यों के दाता भगवान विष्णु का पृथ्वी से लोप होना माना जाता है।
यही कारण है कि इन चार महीनों में हिंदू धर्म में कोई भी मांगलिक कार्य करना वर्जित है। इस वर्ष यह समय 25-7-2007 से 21-11-2007 तक रहेगा। इस समय में विशेष रूप से विवाह आदि सोलह संस्कार एवं भूमि पूजन तथा देव स्थापना आदि के कोई भी कार्य नहीं होते। इन दिनों केवल भगवान विष्णु की योगनिद्रा का ध्यान करके ऋषि मुनि गिरि कंदराओं में जाकर तप करते हैं।
भगवान श्रीराम ने भी इन दिनों प्रवर्सन पर्वत पर रहकर मां भगवती की उपासना की थी। इसलिए चातुर्मास वर्षाकाल में व्यर्थ के भ्रमण न करके तप और साधना करनी चाहिए। इस काल को तप और साधना काल कहा जाता है। यह देवशयनी एकादशी से देवउठानी एकादशी तक रहता है।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार किसी भी तिथि का क्षय होना अच्छा नहीं है। श्रवण नक्षत्र की उपस्थिति से ही श्रावण मास की उत्पत्ति मानी जाती है। पर दुर्भाग्य कि इस बार इस माह का प्रारंभ तथा अंत दोनों पंचकों से हो रहे हंै।
इस माह के प्रारंभ एवं अंत की उपस्थिति में श्रवण नक्षत्र का न होना अच्छा नहीं है क्योंकि श्रवण से ही श्रावण बना है। श्रावण मास में पंचकों (पांच उग्र नक्षत्रों का एक साथ पड़ना और मास के अंत में भी इन्हीं पांच उग्र नक्षत्रांे का पड़ना) का पिछले 100 वर्षों के पंचांगों में कोई वर्णन नहीं मिलता है।
इस कारण यह मास काफी कष्टकारी रहने की आशंका है। इस मास का प्रारंभ प्रतिपदा क्षय से हो रहा है। अर्थात मास के प्रारंभ की तिथि का भी क्षय हो गया है तथा बीच में त्रयोदशी के क्षय हो जाने से यह पक्ष तेरह दिन का हो गया है।
महाभारत काल में 13 दिन का पक्ष पड़ने के कारण रक्तवर्षा हुई थी। तेरह दिन के पक्ष के फलस्वरूप प्राकृतिक कारणों से जनहानि होती है। ऐसा गत वर्षों में 13 दिन का पक्ष पड़ने के कारण नाना प्रकार की आपदाएं विश्व को उठानी पड़ी हैं।
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