जीना है तो हंसना सीखें
जीना है तो हंसना सीखें

जीना है तो हंसना सीखें  

फ्यूचर समाचार
व्यूस : 8627 | सितम्बर 2007

हंसी सभी के लिए स्वास्थ्यवर्धक है। यह इयुस्ट्रेस का एक रूप है जो सुख की अनुभूति बढ़ाने वाले एंडोर्फिंस का उत्सर्जन करता है। हंसी आंतरिक जाॅगिंग या व्यायाम है। इसमें खुशी उत्पन्न करने की अपार क्षमता है। एक कहावत है कि एक मस्त दिल एक दवा के बराबर है, लेकिन एक पस्त दिल हड्डियों को सुखा देता है।

हंसी का संवेग नकारात्मक तनाव को दूर करने का एक कुदरती प्रतिकारक है और यह मनुष्य के मन में विनोद और कल्याण की भावना में वृद्धि करता है। यह नकारात्मक तनाव या अवसाद एपिनेफ्रीन और नाॅरएपिनेफ्रीन, काॅर्टिसाॅल जेसे कुछ रसायनों का उत्सर्जन करता है और बीमारी से लड़ने की क्षमता में वृद्धि करता है।

साइकाॅन्यूरोइम्यूनाॅलाॅजी के क्षेत्र में किए गए शोध में लोमा लिंडा विश्वविद्यालय के डाॅ. ली बर्क और डाॅ. स्टैनले टेन का योगदान उल्लेखनीय है। साइकाॅन्यूरोलाॅजी के अनुसार हमारी प्रतिरक्षक प्रणाली हमारे मस्तिष्क से सीधे तौर पर जुड़ी है और इस पर संवेगों का सीधा प्रभाव पड़ता है।

उक्त दोनों विद्वानों ने लिखा कि एपिनेफ्रीन और काॅर्टिसाॅल का स्तर हंसी के प्रोटोकाॅल में भाग लेने वाले लोगों में उन लोगों की तुलना में, जिन्होंने इसमें भाग नहीं लिया था, कम था। हंसी तनाव शामक है। मार्क ट्वेन ने कहा था कि मानव जाति के पास सही अर्थों में एक ही अस्त्र है और वह है हंसी।

कठिन परिस्थितियों में, जब समस्याएं अपार दिखाई देती हैं और समाधान सीमित होते हैं, तो हास-परिहास शक्तिशाली मित्र सिद्ध हो सकता है। एक हंसी बर्फ को पिघला सकती है, माहौल को अनुकूल बना सकती है और लोगों को आप और आपने जो कहा उसके प्रति ग्राही बना सकती है।

विक्टर बोर्ज ने कहा था कि हंसी दो व्यक्तियों के बीच की सबसे कम दूरी है। आपको यह जानना चाहिए कि कैसे हंसें, कैसे और कहां हंसी का वातावरण उत्पन्न करें और हर परिस्थति में विनोद की तलाश कैसे करें - गंभीर से गंभीर परिस्थितियों में भी।

विडंबना है कि तनाव के उपचार के नाम पर एंटासिड, उपशामक और बेटाब्लाॅकर्स तथा अन्य तनावरोधी के उपयोग की सलाह दी जाती है। एक अध्ययन के अनुसार इन दवाओं पर 75 अरब डाॅलर की विशाल राशि खर्च की गई। हंसी तनाव से छुटकारे का एक कारगर उपचार है।

स्वीडेन के एक शोधकर्ता के अनुसार हास्य चिकित्सा कार्यक्रम चिरकालिक रोग के मरीजों के जीवन की गुणवत्ता को बढ़ा सकता है। हंसी में ऐसे मरीजों को रोगमुक्त करने के गुण मौजूद हैं, ऐसे गुण जो कुछ देर की नियमित हंसी से उत्पन्न होते हैं।

इस तरह नियमित रूप से हास्य चिकित्सा के बल पर विद्वेष, विचारों में अस्थिरता और चिंता अथवा अवसाद जैसी मनोवैज्ञानिक स्थिति को दूर किया जा सकता है। हंसी के महत्व को केवल मनोवैज्ञानिक और पी एन आई शोधकर्ता ही नहीं बल्कि दुनिया भर के डाॅक्टर भी समझते हैं।

इसलिए कुछ देशों में कई अस्पतालों ने मरीजों के लिए हास्य कार्यक्रम चला रखे हैं। इन कार्यक्रमों में हास्य कक्ष, प्रहसन कार्ट और विदूषक संरक्षा दस्ता आदि होते हैं। न्यूयार्क शहर स्थित कोलंबिया प्रेसबाइटेरियन मेडिकल सेंटर के डाॅ. जाॅन एमडि ªस्काॅल का मानना है कि शुरू किए गए नए हास्य कार्यक्रमों के कारण अस्पतालों में अधिक देर तक ठहरने की जरूरत नहीं रह जाएगी।

अतः हर दफ्तर, हर निगम, हर अस्पताल, हर स्वास्थ्य क्लब में हास्य अथवा परिहास कक्ष होना चाहिए। सुनने में अटपटा लग सकता है, पर अन्य देशों की भांति हमारे देश में भी हास्य क्लब शुरू किए जा चुके हैं। वर्ष 1995 में मुंबई की एक महिला ने अपने शहर में देश के पहले हास्य क्लब की स्थापना की जिसका नाम लाफिंग क्लब इंटरनेशनल है। आज देश में एक सौ से ज्यादा हास्य क्लब हैं।

इन क्लबों के सदस्य सुबह कोई काम शुरू करने के पहले किसी पार्क में एकत्र होते हैं और फिर झिझक दूर करने के लिए अपने हाथ उठाकर हो-हो, हा-हा कर हंसते हैं। इस क्रम में वे मुंह बंद कर भी हंसते हैं और फिर मुंह खोल कर चुप हो जाते हैं। कुछ हास्य क्लबों में हंसने के साथ-साथ जाॅगिंग की व्यवस्था भी होती है।

हास्य क्लबों के सदस्यों का कहना है कि वे इस कार्यक्रम से बेहतर महसूस करते हैं। कुछ का तो मानना है कि इससे चिंता अथवा अवसाद से मुक्ति मिलती है। हंसी प्रतिकारक है और जीवन को खुशहाल करने में हमारी सहायता करती है। तनाव से मुक्ति पाने में इसका उपयोग किया जा सकता है। हंसी जीवन को सरल सुखकर बनाने वाली जादुई छड़ी है जो चमत्कार की तरह कार्य करती है। इसकी मादकता जैसी मादकता किसी अन्य मादक पदार्थ की नहीं हो सकती। इसके सिर्फ फायदे हैं। यह मानव के संप्रेषण का एक रूप है।

हंसी का वर्गीकरण हंसी किसी भी हास्यजनक स्थिति की शारीरिक और भावात्मक प्रतिक्रिया है। इसका वर्गीकरण इसकी सीमा और स्वरमान के आधार पर इस प्रकार किया जा सकता है। ठी ठी - दूसरों के मनोरंजन के लिए घुरघुर - बिना शर्त हंसी मंुहबंद हंसी - स्वयं पर हंसना ठहाका - जोर से हंसना कूं कूं - सस्वर हंसी ठहठह - फुफकारभरी या घुरघुर हंसी अट्टहास - तेज हंसी गाते हुए हंसना - स्त्रियों के हंसने का एक ढंग घुरघुरा कर या फटफट कर हंसना- पुरुषों के हंसने का एक ढंग हंसी का रचना विधान और क्रियाविज्ञान हंसी के रचना विधान और क्रियाविज्ञान के विश्लेषण से स्पष्ट हो जाता है कि हमारी भावनाएं नाकारात्मक अथवा सकारात्मक, न्यूरोपेप्टाइड्स या संदेशवाहक परमाण् ाुओं में परिवर्तर्तित हो जाती हैं, जिनका प्रभाव हमारे शरीर की सभी कोशिकाओं पर पड़ता है। जब हम हंसते हैं, तो एंडोर्फिस का उत्सर्जन होता है, जो हमारे तंत्र पर रोगहारी प्रभाव डालते हैं।

अन्य किसी भी व्यायाम की तरह हंसी की दो दशाएं होती हैं - उत्तेजक दशा जिसमें हृदय गति बढ़ जाती है और उपशमन दशा जिसमें हृदय गति कम हो जाती है। हंसी रक्तचाप को कम करती है, संवहनी प्रवाह को बढ़ाती है। यह शरीर के तंतुपट, उदर, श्वसन तथा मुख की मांसपेशियों समेत विभिन्न मांसपेशियों को काम करने के लिए प्रेरित करती है। मुस्कान से ही हमारी मनःस्थिति प्रमुदित होती है।

आप दांतों तले एक पेंसिल रखकर एक मुस्कान छोड़ सकते हैं जबकि उसी पेंसिल को होठों के बीच रख कर अपने तेवर बदल सकते हैं। विश्व के अग्रणी हास्य शोधकर्ताओं में प्रमुख डाॅ. विलियम एफ फ्राइ के अनुसार एक निष्कपट हंसी के दौरान हृदय की मांसपेशियां सक्रिय होती हैं, हृदय गति की दर और श्वासोच्छ्वास में वृद्धि होती है। जब हमें खुशी की अनुभूति होती है, तो हम बस मुस्कराते हैं, जब हम खुश होते हैं तो इससे हमें तंदुरुस्ती की अनुभूति होती है।

मुस्कराना त्योरियां चढ़ाने से आसान है। हंसी स्वास्थ्यवर्धन और रोग निवारण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। जो हंसते हैं वे दीर्घायु होते हैं। कोई बच्चा चार महीने की उम्र से हंसना शुरू करता है। हंसी मानवीय आचरण की एक अभिव्यक्ति है, जिसका संचालन दिमाग करता है। शरीर की अवयव प्रणाली दिमाग के पश्च भाग में होती है जिसका संबंध हमारे मनोभावों से होता है और जो जिंदा रहने के लिए जरूरी है।

हसं न े स े तनाव, दर्द आरै एसिडिटी से बचाव होता है और नींद पर्याप्त आती है। कुछ शोधकर्ताओं के अनुसार हंसने से कैंसर जैसी भयंकर बीमारी में भी आराम मिलता है। न्यू यार्क स्थित रिहैबिलिटेशन हाॅस्पिटल में ‘‘विनोद कक्ष’’ (लाफ्टर रूम) की व्यवस्था है जहां मरीज, उनके परिजन और अस्पताल के कर्मचारी चुटकुलों और प्रहसनों का आनंद लेते हुए आराम कर सकते हैं। कैलिफार्निया में कैथरीन फेरारी ह्यूमर कंसल्टैंसी आॅर्गेनाइजेशन चलाती हैं।

न्यूयाॅर्क में ही ह्यूमर प्रोजेक्ट के संस्थापक गुडमैन का कहना है कि अगर हम रोज हंसे तो हमारी नकारात्मक तनाव रोधी क्षमता में वृद्धि हो सकती है। उनका मानना है कि विनोद की भावना के विकास के लिए हमें किसी और पर हंसने की बजाय स्वयं पर हंसना चाहिए। हंसी के अल्पकालिक और दीर्घकालिक दोनों फायदे हैं। यह हमारी शरीर प्रणाली को ठीक रखने में सहायक होती है यह हमारी प्रतिरक्षी क्षमता में वृद्धि और तनाव प्रबंधन में सहायता करती है।

हंसने से, जैसा कि ऊपर कहा गया है, नींद गहरी आती है, जो एक स्वस्थ शरीर की द्योतक होती है। यह कई बीमारियों के इलाज में सहायक होती है और दिल को स्वस्थ रखती है। हंसी एक बेहतरीन दवा है। आम धारणा है कि यदि हम स्वस्थ हों तो खुश होंगे। किंतु वास्तविकता यह है कि यदि हम खुश हों तो स्वस्थ होंगे।

हम लाख शृंगार प्रसाधन कर लें, यदि हमारे चेहरे पर मुस्कान न हो तो हमारा सारा प्रसाधन फीका हो जाए। हंसी मनुष्य को ईश्वर की अनमोल देन है। वैज्ञानिक शोध के अनुसार बच्चे दिन में लगभग चार सौ बार हंसते हैं। यही कारण है कि ज्यादातर बच्चे वयस्कों से अधिक स्वस्थ रहते हैं। स्वस्थ रहने के लिए किसी वयस्क को दिन में पंद्रह से बीस बार हंसना चाहिए।

हंसी संक्रामक होती है। लोगों के किसी झुंड में एक बार शुरू हो जाए, तो फिर पूरे झुंड पर फैल जाती है और झुंड के सभी लोगों का तनाव दूर हो जाता है और उनमें आत्मीयता बढ़ जाती है। हंसी ठंडापन दूर कर जोश और उमंग पैदा करती है। इसलिए यदि स्वस्थ रहना चाहते हैं तो दिन में कम से कम 15 बार हंसें। दूसरों पर नहीं, स्वयं पर हंसें। लोगों पर नहीं, उनके साथ हंसें, इससे आपस में भाईचारा बढ़ेगा। हंसी की कोई शर्त न हो। सुबह मुस्कराते हुए उठें और ईश्वर को प्रणाम करें। ध्यान रखें कि आपके चेहरे पर मुस्कान हमेशा खिलती रहे।

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