पितृदोष = पितृ $ दोष, अर्थात हमारे पितरों या पूर्वजों द्व ारा किए गए कुछ ऐसे कर्म जो हमारे लिए श्राप बन जाते हैं। ये दोष हम पर पूर्वजों के ऋण होते हैं जिनके फल हमें अपने जीवन में भोगने पड़ते हैं।
पितृ ण का सिद्धांत है - करे कोई, भरे कोई। पिता के पापों का परिणाम पुत्र को भोगना ही पड़ता है, जैसे कि महाराज दशरथ के हाथों हुई श्रवण कुमार की मृत्यु के पाप के परिणामस्वरूप उनके पुत्र भगवान राम को जंगलों में भटक कर दुख उठाना पड़ा।
कहा गया है कि व्यक्ति को अपने जीवन में पितृ ऋण अवश्य चुकाना चाहिए ताकि उसके पितर तृप्त और शांत हों और उन्हें मुक्ति मिल सके। यदि उन्हें मुक्ति नहीं मिलती है तो वे प्रेत योनि में प्रवेश कर अपने ही कुल को कष्ट देना शुरू कर देते हैं।
कभी-कभी देखने में आता है कि हमारा कोई भी दोष नहीं होता, हमने कोई पाप कर्म नहीं किया होता, फिर भी हमें कष्ट भोगना पड़ता है। यह पितृदोष के कारण होता है। इसके अतिरिक्त अज्ञानतावश हम अपने पूर्वजों को जो कष्ट देते हैं, वे भी हमारे दुखों का कारण बनते हैं।
ऐसे कुछ कारण निम्न हो सकते हैं- पिता, ताया, चाचा, ससुर, माता, ताई, चाची और सास का अपमान करना, पूर्वजों का शास्त्रानुसार श्राद्ध व तर्पण न करना, पशु पक्षियों की व्यर्थ ही हत्या करना, सर्प वध करना।
पितृदोष के निवारण हेतु उपाय विधिपूर्वक उपाय करने से व्यक्ति स्वयं, अपने पितरों व आने वाली पीढ़ी को इस दोष के प्रभावों से बचा सकता है। इससे हमें अपने पितरों से सुखी व समृद्ध जीवन का आशीर्वाद मिल जाता है। यहां पितृ दोष निवारण के कुछ प्रमुख उपायों का वर्णन प्रस्तुत है।
1. गुजरात के बड़ोदा जिले में नर्मदा नदी के तट पर चनोड़ तीर्थ में नारायण बली पूजा करनी चाहिए। यह क्षेत्र अन्य किसी पितृ तर्पण पूजा के लिए भी प्रसिद्ध है।
2. नियमित श्राद्ध विधि के अतिरिक्त श्राद्ध के दिनों में कौओं, कुत्तों व जमादारों को खाना देना चाहिए।
3. लग्नानुसार भी उपाय किए जा सकते हैं जो इस प्रकार हैं।
मेष: पीपल पर सुबह जल चढ़ाएं व सायं दीप जलाएं।
वृष: नव दुर्गा पूजन करें व कन्याओं को खीर खिलाएं।
मिथुन: किसी गरीब कन्या के विवाह या बीमारी में मदद करें। कर्क: दूध या उड़द के बने पदार्थ दान दें।
सिंह: अन्न या शय्या दान करें। कन्या: शिव पूजन या गीता पाठ करें।
तुला: सिंदूर, तिल, तेल व उड़द का दान दें।
वृश्चिक: कमल पुष्प व गुग्गल की आहुति देकर हवन करें।
धनु: कुल देवता की पूजा अर्चना करनी चाहिए।
मकर: रुद्र पूजन या शिव महिमा स्तोत्र का पाठ करना चाहिए।
कुंभ: पितृ तर्पण व गीता पाठ करें।
मीन: गणेश या हनुमान या भैरव जी का पाठ करें।
तीर्थ स्थानों पर सविधि पिंड दान व तर्पण करने के लिए पितृ क्षेत्रों को पुराणों के अनुसार, पांच भागों में बांटा गया है- बोधगया, नाभिगया या वैतरण् ाी, पदगया या पीठापुर, मातृगया या सिद्धपुर व बदरीनाथ। इनमें से बोधगया क्षेत्र अति प्राचीन, प्रसिद्ध, पवित्र तीर्थ स्थान है जहां पुरखों व बुजुर्गों का पिंडदान किया जाता है।
यह बिहार राज्य में फल्गू नदी के किनारे मगध क्षेत्र में स्थित है। इसे विष्णु नगरी भी कहते हैं। यहां अक्षय वट स्थान है जहां पितरों के निमित्त किया गया दान अक्षय होता है। पितृगण अपनी संतान से यह आशा करते हैं कि वे गया में पिंड दान करें और अपने पितृ ण से उऋण हों।
नाभिगया: उड़ीसा राज्य में वैतरणी नदी के किनारे जाजपुर गांव में स्थित है। वैतरणी नदी के बारे में पुराणों में कहा गया है कि मृत्यु के पश्चात प्रत्येक व्यक्ति को इस नदी को पार करना ही पड़ता है। यदि व्यक्ति ने अपने जीवन में शुभ कर्म किए होते हैं तो वह इस नदी को आसानी से पार कर जाता है। यहां पितृ तर्पण पूजा करने से हम अपने पुरखों को यह नदी पार करवा सकते हैं।
पदगया: तमिलनाडु राज्य में पीठापुर में राजमंदरी स्टेशन के पास स्थित है।
मातृगया: गुजरात राज्य के मेहसाना जिले में स्थित है। भगवान परशुराम ने अपनी माता का पिंडदान यहीं किया था। यहां बिंदु सरोवर के किनारे पिंडदान व श्राद्ध पूजा की जाती है।
ब्रह्म कपाली: हिमालय की पहाड़ियों में बदरीनाथ के निकट एक शिला, जिसका नाम ब्रह्मकपाली है। कहा जाता है कि यहां पिंडदान व श्राद्ध करने से दोबारा श्राद्ध करने की आवश्यकता नहीं रहती।
इसके अतिरिक्त सर्पपूजा, ब्राह्मणों को गौदान, कुआं खुदवाना, पीपल व बरगद के वृक्ष लगवाना, विष्ण् ाु मंत्रों का जप करना, श्रीमद्भागवत गीता का पाठ करना, पिता को पूर्ण सम्मान देकर उन्हें खुश रखना, पितरों के नाम से अस्पताल, मंदिर, विद्यालय, धर्मशाला आदि बनवाने से भी पितृ दोष शांत होता है।
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