श्राद्ध की महिमा
श्राद्ध की महिमा

श्राद्ध की महिमा  

फ्यूचर समाचार
व्यूस : 7108 | सितम्बर 2007

कृष्ण पक्ष प्रतिपदा से अमावस्या पर्यंत पितृपक्ष में श्राद्ध, तर्पण, पंचमहायज्ञ आदि का विधान है। हिंदू धर्म ग्रंथों में श्राद्ध आदि का विवेचन अत्यंत विस्तार के साथ किया गया है। श्राद्ध की मूलभूत विवेचना यह है कि प्रेत और पितर के निमित्त उनकी आत्म तृप्ति के लिए श्रद्धापूर्वक जो अर्पित किया जाए वह श्राद्ध है। श्रद्धया दीयतेतत् श्राद्धम्।

मृत्यु के बाद दशगात्र और षोडशी सपिंडन तक मृत व्यक्ति की प्रेत संज्ञा रहती है। सपिंडन के उपरांत वह पितरों में सम्मिलित हो जाता है। शतपथ ब्राह्मण में कहा गया है कि वर्ष की बसंत, ग्रीष्म और वर्षा देवताओं की और शरद, हेमंत और शिशिर ऋतुएं पितरों की होती हैं। हमारा एक माह पितरों के लिए एक दिन माना जाता है। पितृ लोक की दृष्टि से हमारे 15 दिन उनका एक दिन होता है और बाकी 15 दिन उनकी एक रात्रि होती है। शुक्ल पक्ष की अष्टमी से कृष्ण पक्ष की अष्टमी तक पितरों का एक दिन होता है।

इसी अवधि के बीच में अमावस्या पड़ती है जो पितरों के लिए दिन का मध्य भाग है। अतएव प्रति अमावस्या को मध्याह्न में श्राद्धकर्म करने का विधान है। इसे ‘दर्श श्राद्ध’ कहते हैं। श्राद्ध या पितरों की आराधना दो प्रकार से हो सकती है। एक तिल अर्पण अर्थात जल के साथ तिल मिलाकर पितरों के नाम से जल छोड़ना। इसी को तिलांजलि कहते हैं।

दूसरे प्रकार का श्राद्ध हवन कर्म के साथ होता है। पितरों के लिए हवन कुंड में अन्न, घी आदि वस्तुएं मंत्रोच्चारण समेत डाली जाती हैं। इसे पार्वण श्राद्ध कहते हैं। इसी अवसर पर ब्राह्मणों को पितरों के नाम से भोजन कराया जाता है। प्रतिवर्ष 13 ऐसे संदर्भ आते हैं जिनमें पितरों का श्राद्ध करने के लिए कहा गया है। ये समय हैं - प्रतिमास की अमावस्या, एक राशि से दूसरी राशि में सूर्य संक्रांति का दिन, सूर्य ग्रहण अथवा चंद्र ग्रहण का समय और माघ मास कृष्ण पक्ष की अष्टमी का दिन।

इसी तरह के 13 अवसर बताए गए हैं। इनमें पितृ पक्ष का महत्व अधिक है। पितृ पक्ष में सूर्य कन्या राशि के दसवें अंश (100) पर आता है और वहां से तुला राशि की ओर बढ़ता है। इसे कन्यागत सूर्य कहते हैं। जब सूर्य कन्यागत हो तो उस समय पितरों का श्राद्ध करना अत्यधिक महत्वपूर्ण कहा गया है।

पितृ पक्ष में ‘गजछाया’ नामक एक समय आता है। जब सूर्य हस्त नक्षत्र पर और चंद्र मघा नक्षत्र पर चल रहा हो तो उस समय को गजछाया कहते हैं। यह आश्विन मास के कृष्णपक्ष की त्रयोदशी को होता है। ऐसे समय में श्राद्धकर्म करने की बड़ी महिमा कही गई है। वसु, रुद्र और आदित्य श्राद्ध देवता हैं।

हमारे श्राद्धकर्म से वे तृप्त होकर मनुष्यों के पितरों को भी तृप्त करते हैं। मनुष्य की आत्मा कहीं भी हो, किसी भी लोक में अथवा किसी भी योनि में हो, वहां तक मनुष्य के द्वारा किए गए पिंडदान को पहुंचा देते हैं। याज्ञवल्क्य का कथन है कि श्राद्ध देवता श्राद्धकर्ता को दीर्घ जीवन, आज्ञाकारी संतान, धन, विद्या, संसार के सुख भोग, स्वर्ग तथा दुर्लभ मोक्ष भी प्रदान करते हैं।

श्राद्ध किसी दूसरे के घर में कभी नहीं करना चाहिए, जिस भूमि पर किसी व्यक्ति का स्वामित्व न हो उस भूमि पर श्राद्ध किया जा सकता है। शास्त्रों में उल्लेख है कि दूसरे के घर में जो श्राद्ध किया जाता है उससे श्राद्ध करने वाले के पितरों को कुछ नहीं प्राप्त होता। इसलिए तीर्थ में किए गए श्राद्ध से आठ गुना पुण्य अपने घर में श्राद्ध करने से होता है। तीर्थादष्टगुणं पुण्यं स्वगृहे ददतः शुभे।

यदि किसी विवशता के कारण दूसरे के घर अथवा भूमि पर श्राद्ध कर्म करने की मजबूरी हो तो श्राद्ध से पूर्व उस स्थान का किराया अवश्य दे दें। श्राद्ध का प्रावधान मध्याह्न काल में है। प्रातः अथवा सायंकाल श्राद्ध नहीं करना चाहिए। वैदिक चिंतन के अनुसार इस सृष्टि के परिचालन में देव, ऋषि और पितर अपने-अपने ढंग से कार्य करते हैं।

ब्रह्मा, रुद्र, इन्द्र आदि देव हैं; सृष्टि, स्थिति, शृंगार आदि क्रियाएं उनके द्वारा प्रकट होती हैं। अग्नि, सोम, प्रजापति, आदि ऋषि हैं, वेद मंत्रों के द्रष्टा हैं। वशिष्ठ, विश्वामित्र आदि महर्षि, सप्तऋषि कहलाए हैं। इन ऋषियों के प्रभाव से जगत में ज्ञान का प्रकाशन होता रहा है।

पितृगण मनुष्य के शरीर के निर्माण में योग देने वाले हैं। इनके प्रति आदर और सम्मान प्रकट करना हमारा कर्तव्य है। पितृ पक्ष के प्रत्येक दिन श्राद्ध करना चाहिए। सामान्य रूप से तिल अर्पण के द्व ारा इसे संपन्न किया जा सकता है।

लेकिन जिस तिथि को माता या पिता का देहावसान हुआ हो, उस तिथि को विशेष रूप से श्राद्धकर्म करना चाहिए। वेदों के पश्चात हमारे स्मृतिकारों तथा धर्माचार्यों ने श्राद्ध संबंधी विषयों को बहुत अधिक व्यापक बनाते हुए जीवन के प्रत्येक अंग के साथ संबद्ध किया जो वास्तव में धर्म हेतु ही है।

If you are facing any type of problems in your life you can Consult with Astrologer In Delhi



Ask a Question?

Some problems are too personal to share via a written consultation! No matter what kind of predicament it is that you face, the Talk to an Astrologer service at Future Point aims to get you out of all your misery at once.

SHARE YOUR PROBLEM, GET SOLUTIONS

  • Health

  • Family

  • Marriage

  • Career

  • Finance

  • Business


.