लता मंगेशकर : बढती उम्र में जवां होती आवाज
लता मंगेशकर : बढती उम्र में जवां होती आवाज

लता मंगेशकर : बढती उम्र में जवां होती आवाज  

फ्यूचर समाचार
व्यूस : 8370 | सितम्बर 2007

भारत की ही नहीं विश्व की प्रसिद्ध गायिका हैं लता जी। उनका जन्म 28 सितंबर 1929 को इंदौर में रात्रि लगभग ग्यारह बजे अश्लेषा नक्षत्र के प्रथम चरण में हुआ था। उनके पिता मास्टर विनायक मंगेशकर भी एक कुशल गायक एवं संगीतज्ञ थे।

लता जी अपने पिता की पांच संतानों में सबसे बड़ी हैं। उनके चार भाई बहन हैं- आशा (आशा भोंसले), उषा, मीना और हृदय नाथ मंगेशकर। छोटे भाई हृदय नाथ भी संगीत में निपुण हैं। पिछले दिनों ही उन्होंने लता जी के धार्मिक गीतों एवं भजनों के संस्कृत श्लोकों सहित सिमरन एलबम का संगीत दिया है। यहां प्रस्तुत है लता जी की जन्मकुंडली का ज्योतिषीय विश्लेषण। 

1. वृष लग्न में गुरु, तीसरे पराक्रम भाव में कर्क का चंद्र। 

2. चैथे सुख भाव में फिल्म कारक ग्रह सिंह का शुक्र।

3. पांचवें संतान एवं शिक्षा भाव कन्या राशि में स्वगृही बुध व सूर्य की युति।

4. छठे रिपु एवं रोग भाव में मंगल एवं केतु की युति।

5. आठवें मृत्यु भाव में क्रूर ग्रह शनि धनु राशि में।

6. द्वादश भाव में मेष का राहु।

इस प्रकार सभी ग्रह छह भावों में दामिनी योग बना रहे हैं। यह योग जातक को परोपकारी एवं स्वावलंबी बनाता है। यों भी लता जी की कुंडली में लगभग पांच दर्जन से अधिक शुभ योग हैं। इनमें नौ तो राजयोग ही हैं।

प्रथम राज मंत्रित्व योग है जिसका आधार लग्न का गुरु है जो पापी ग्रह से रहित है। यह व्यक्ति को दानी बनाता है। केंद्र के चार भावों में से किसी में शुक्र का होना भी राजयोग है। लता जी के चैथे सुख भाव में सिंह का शुक्र है। इस राजयोग ने उन्हें कीर्तिवान एवं जगप्रसिद्ध बनाया है। यदि तीसरे, छठे एवं ग्यारहें भाव में चंद्र और शुभ ग्रह अपने नवांश और केंद्र में हों तथा पापी ग्रह निर्बल हों तो प्रतापी राजयोग बनता है। '

लता जी का चंद्र तीसरे भाव में कर्क का है। बुध-गुरु से दृष्ट भी राजयोग है। मकर का गुरु न हो तो भी राजयागे ह।ै इनका कदंे स््र थ त्रिकाण्े ोश से बलवान होकर केंद्र में है, यह भी राजयोग है। जन्म के समय लग्नेश बलवान होकर केंद्र में है अतः यह भी राजयोग कारक है।

लग्नेश केंद्र के चैथे भाव में स्थित है तथा मित्र ग्रह शनि से दृष्ट है। यह स्थिति भी राज योग बना रही है। साथ ही लग्न में शुभ ग्रह गुरु तो प्रबल राजयोग बना ही रहा है। यों देखा जाए तो संगीत में सफलता दिलाने वाले बुध एवं शुक्र दोनों ग्रह लता जी की कुंडली में प्रभावशाली हैं।

ये ग्रह द्वितीय, तृतीय या पंचम भाव में हांे तो विशेष महत्वपूर्ण होते हैं। द्वितीय भाव वाणी का है और वाणी का कारक बुध लता जी के द्वितीय भाव मिथुन का स्वामी है। कुंडली में पंचम भाव में कन्या के स्वगृही बुध की सूर्य के साथ स्थिति के फलस्वरूप उनका स्वर इतना मधुर है।

चतुर्थ केंद्र भाव के शुक्र ने उन्हें संगीत एवं अन्य कलाओं में निपुण बनाया। लता जी को फोटोग्राफी का भी भरपूर ज्ञान है। उनकी कुंडली में गंधर्व योग भी है जिसके कारण वह कलाओं को समर्पित हंै। गायन से पूर्व मात्र तेरह वर्ष की आयु में उन्होंने मराठी फिल्म में अभिनय भी किया था।

पंचम भाव में सूर्य व बुध की युति ने बुधादित्य एवं बुद्धि चातुर्य योग भी बनाया जिस कारण वह बड़ी से बड़ी समस्या का समाधान अपने बुद्धि बल से स्वयं ही कर लेती हैं। यही दोनों ग्रह कैलाश योग भी बना रहे हैं। यह भी एक प्रकार का पूर्णानंद राजयोग ही है।

केंद्र के घरों में गुरु एवं लग्नेश शुक्र और अष्टम मृत्यु भाव में क्रूर ग्रह शनि दीर्घायु योग बना रहे हैं। चैथा भाव जनता का भी है जहां सिंह राशि में शुक्र ने उन्हें लोकप्रिय कलाकार बनाया। इंदिरा गांधी के समान ही महाभाग्य योग में जन्मीं लता जी, का लग्न, चंद्र और सूर्य सम क्रमशः दूसरी, चैथी और छठी राशियों में हैं।

स्त्रियों का रात में जन्म भी शुभ होता है। वह अपने परिवार के लिए शुभ हुईं। अश्लेषा नक्षत्र के प्रथम चरण के कारण उन्हें सर्वप्रथम राशीश ग्रह बुध की 17 वर्ष की महादशा मिली जो 28 सितंबर 1946 तक रही। इसी महादशा में सन् 1942 में पिता की मृत्यु के बाद 13 वर्ष की छोटी उम्र में ही उन्होंने अपने परिवार की पूरी जिम्मेदारी उठा ली।

अपने चाचा मास्टर विनायक (नंदा के पिता) की फिल्म कंपनी में नौकरी की। बुध में शनि की अंतर्दशा में एक मराठी फिल्म में पहली बार अभिनय किया। इसके पूर्व इसी महादशा में सर्वप्रथम अपने पिता की नाट्य मंडली में केवल आठ वर्ष की आयु में एक मराठी नाटक में नारद की भूमिका में कुछ भजन गाकर सबको प्रभावित किया था।

तदुपरांत 124 बच्चों की गायन स्पर्धा में प्रथम आकर जता दिया कि वह एक कुशल गायिका हैं। अपने पिता के बाद संगीत की शिक्षा उन्होंने देवास (म.प्र.) में ही बड़े गुलाम अली खां के शिष्य गुरु तुलसी दास शर्मा जी से भी ली। तदुपरांत मुंबई में भिंडी बाजार के उस्ताद अमान अली खां साहेब से विधिवत गंडा बंधवा कर संगीत की उच्चतर शिक्षा प्राप्त की।

अपने पिता का दिया तानपूरा और संगीत के नोट्स उन्होंने आज भी अपने पास संजो रखे हैं। हिंदी एवं उर्दू का ज्ञान उन्होंने क्रमशः पं. लेखराज शर्मा एवं मौलवी महबूब खां से प्राप्त किया। उनकी जन्मकुंडली में बुधादित्य योग पर भाग्येश, कर्मेश और अष्टमेश शनि तथा लाभेश गुरु की दृष्टि है।

इसी कारण उन्होंने संगीत को अपनी जीविका का आधार बनाया। 28 सितंबर 1946 से 1953 तक चली सात वर्ष की केतु की महादशा ने बुध की महादशा के संघर्ष को आगे बढ़ाया। इस संघर्ष में छठे भाव में केतु के साथ मंगल की युति ने उन्हें परिश्रमी और जुझारू बनाया।

इन दोनों ग्रहों का तुला राशि में होना भी शुभ रहा क्योंकि इसका स्वामी ग्रह शुक्र फिल्मों का कारक ग्रह है। छाया ग्रह केतु ने लता जी को अपनी दशा के सात वर्षों में बहुत कुछ दिया। उन्होंने सर्वप्रथम 1947 में मराठी फिल्म में गाया। इसके एक वर्ष बाद 1948 में उस्ताद गुलाम हैदर के संगीत निर्देशन में उन्होंने पहली हिंदी फिल्म मजबूर की नायिका मुनव्वर सुल्ताना के लिए गाया।

उसी वर्ष उन्होनें मेला फिल्म में नर्गिस के लिए गाना गया। मेला के गीतों ने धूम मचा दी। यह सब केतु में शुक्र की अंतर्दशा (1948) में ही घटित हुआ। इस बीच उन्होंने पांच फिल्मों बड़ी मां, जीवन यात्रा, सुभद्रा, मंदिर और छत्रपति शिवाजी में अभिनय भी किया। तीन मराठी फिल्में भी बनाईं। केतु में चंद्र की अंतर्दशा में उन्होंने महल फिल्म में अपना प्रसिद्ध गीत ‘आएगा आने वाला’ 1949 में गाया और चोटी की गायिका बन गईं।

उनके द्वारा बरसात, अंदाज, आह, अलवेला, दीदार, दाग, गुमराह, दस्तक, बाबुल आदि में गाए गीत उस दौर में अत्यंत लोकप्रिय हुए। 28 सितंबर 1953 से कारक लग्नेश शुक्र की 20 वर्ष की महादशा प्रारंभ हुई। यह चैथे भाव से सीधे कर्म भाव पर दृष्टि थी।

अतः इनके गाए फिल्मी गीतों की झड़ी लग गई। इस दशा का प्रारंभ अनारकली, नागिन, मधुमती, मुगले आजम, गंगा जमुना, अनुपमा, अनपढ़ आदि के लोकप्रिय गीतों से हुआ। चीन से युद्ध के बाद प्रदीप का लिखा प्रसिद्ध गीत ‘ऐ मेरे वतन के लोगो’ जब उन्होंने पहली बार रामलीला मैदान में गाया तो नेहरू जी की आंखें भर आईं।

उस दौर में उन्होंने प्रत्येक वर्ष लगभग दो सौ गीत गाए। तदुपरांत 1973 से 79 तक सूर्य की छह वर्ष की महादशा रही जो कि नवांश में उच्च का है। इस दौरान वक्त, आराधना, गाइड, पाकीजा आदि के गीत गाए और अपनी धाक बनाए रखी।

1979 से 89 तक दस वर्ष की चंद्र की महादशा रही। चंद्र नवांश में लाभेश है तो दशमांश का दशमेश भी है। इसने उनकी प्रतिभा को और निखारा। इस प्रकार 89 तक एक के बाद एक दशाक्रम के उत्तम फलों की प्राप्ति हुई। लगातार चार वर्ष जब सर्वोत्तम गायकी का फिल्म फेयर एवार्ड उन्हें मिला तो 1984 से उन्होंने नये गायकों को अवसर देने के लिए अपना नाम इस क्षेत्र से हटवा लिया।

1974 में सबसे अधिक गीत गाने के कारण उनका नाम गिनीज बुक में भी आया। इसके अतिरिक्त पदम भूषण, पद्म विभूषण, भारत रत्न और दादा साहेब फाल्के सम्मान मिले। मध्य प्रदेश और महाराष्ट राज्यों ने उनके नाम पर कई पुरस्कार देना प्रारंभ कर दिया। चार विश्वविद्यालयों ने अलग-अलग उन्हें डाक्टरेट की मानद उपाधि प्रदान की।

फ्रांस सरकार ने अपना सर्वोच्च नागरिक सम्मान भी इस वर्ष उन्हें दिया है। राज्य सभा में वह भाजपा की सांसद रहीं। छठे एवं बारहवें मंगल एवं राहु में उन्होंने गायन को कुछ विराम दिया। इन दिनों उन पर राहु की महादशा प्रभावी है जो 2014 तक चलेगी। तदुपरांत गुरु की 16 वर्ष की महादशा चलेगी।

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