जन्म एवं मृत्यु दोनों अटल सत्य हंै। गीता में भी कहा गया है कि जन्म लेने वालांे की मृत्यु एवं मृत्यु को प्राप्त करने वालों का जन्म निश्चित है- जब तक कि उसे मोक्ष की प्राप्ति न हो जाए।
इस संसार में ऐसा कोई परिवार नहीं होगा जिसमें किसी की अकाल मृत्यु या आकस्मिक दुर्घटना से मृत्यु नहीं हुई हो। पूर्व जन्म के कर्मों के अनुसार इन आत्माओं का जन्म होता है। जन्म लेने से पूर्व तक इन्हें सब कुछ याद रहता है।
जन्म लेने से पूर्व ये आत्माएं अपने क्षेत्र विशेष पर मंडराती रहती हैं जो खुश होने पर किसी को लाभान्वित भी कर सकती हैं और नाखुश होने पर परिवार को उजाड़ने में भी देर नहीं करतीं।
भारतीय दर्शन के अनुसार पिता का लिया कर्ज पुत्र को चुकाना पड़ता है। इसी प्रकार अपने पूर्वजों द्व ारा किए गए कर्मों का कुछ भोग तो प्रत्येक जातक को करना ही पड़ता है। पूर्वजों को खुश रहने हेतु हिंदू धर्म में श्राद्ध, तर्पण की मान्यता भी है। श्राद्धादि करने के पश्चात जातक को आत्म संतुष्टि एवं उत्तरोत्तर प्रगति प्राप्त होती रहती है।
आज कुछ लोग इस कर्म को भ्रामक बताते हैं लेकिन उनके द्वारा भी मजबूरी में ही सही जब यह कर्म उचित विधि विधान से संपन्न कर लिया जाता है तो उनका विश्वास भी अटल होता जाता है। मानव तीन गुणों रजोगुण, तमोगुण व सतोगुण से मिलकर बना है।
उसमें जिस गुण की प्रधानता होती है उसी गुण के अनुसार उसकी श्रद्धा भक्ति भी केंद्रित रहती है। इनमें से सतोगुण प्रधान लोग देवी देवताओं में असीम श्रद्धा रखकर उपासना करते हैं तो रजोगुण प्रधान यक्ष पर पूर्ण विश्वास रखते हैं जबकि तमोगुणी लोग भूत प्रेत एवं मृत आत्मा पर आस्था रखकर उनके कर्म करते हैं एवं जीवन को उनके सहयोग से उज्ज्वल बनाने की कोशिश करते हैं।
प्रेतात्माएं किसी स्त्री या पुरुष के शरीर में प्रवेश कर भी अपनी इच्छाओं की पूर्ति करती रहती हैं तो रुष्ट हो जाने पर उनका अहित भी कर देती हैं। ये प्रेतात्माएं अधिकतर छाया रूप में अपने आस पास मंडराती रहती हैं लेकिन कुछ प्रेतात्माएं कुछ समय हेतु स्थूल रूप भी धारण कर लेती हंै।
कहते हैं, और यह सत्य भी है, कि ऐसी आत्मा का दर्शन कुछ लोगों को होता रहता है। कृष्ण पक्ष एवं स्वच्छता के अभाव की स्थिति में इनका जोर रहता है। पितृ दोष के कारण जातक की आर्थिक स्थिति खराब रहती है, लगातार कठिन मेहनत करने के बावजूद उसे कहीं लाभ दिखाई नहीं देता।
सुविधाएं यदि मिल भी जाएं तो हमेशा मन में अनहोनी की आशंका रहती है। अच्छे व्यवहार के बावजूद दुव्र्यवहार का सामना करना पड़ता है। इस दोष के कारण नौकरी में भी बार-बार परेशानियों, परिवार में हमेशा बीमारी, विवाह में रुकावट आदि की स्थिति बनी रहती है।
ज्योतिष में नवग्रहों को आधार मानकर पूर्व जन्म एवं वर्तमान जन्म के बारे में भविष्यवाणी करते हैं। नवग्रहों में बृहस्पति आकाश तत्व तो शनि वायु तत्व का प्रतिनिधित्व करता है जबकि राहु चुंबकीय क्षेत्र का, सूर्य पिता का, चंद्र माता का, शुक्र पत्नी का और मंगल भाई का प्रतिनिधितव करता है।
राहु एक छाया ग्रह है और प्रेतात्माएं भी छाया रूप में ही विद्यमान रहती हैं। अतः कुंडली म ंे राह ु की स्थिति किसी दोष का निर्धारण करने में महत्वपूर्ण है। यदि राहु सूर्य के साथ युति करे तो सूर्य को ग्रहण लगेगा। ऐसे में सूर्य के पिता का कारक होने के कारण पितृ दोष होता है। सूर्य व चंद्र के साथ राहु की युति भी पितृ दोष का निर्माण करती है।
पितृ दोष के कुछ प्रमुख योग : लग्न व लग्नेश का कमजोर होकर स्थित होना। नीच लग्नेश के साथ राहु एवं शनि का युति और दृष्टि संबंध हो तो कुंडली पितृ दोष से ग्रस्त मानी जाती है। चंद्र लग्न व चंद्र लग्नेश, सूर्य लग्न व सूर्य लग्नेश पर जब राहु, शनि व केतु का पापी प्रभाव हो तो पितृ दोष होता है।
इससे प्रभावित जातक मिर्गी, उन्माद और भ्रम से ग्रस्त होता है या उसकी प्रवृत्ति संकोची होती है। चंद्र लग्नेश व सूर्य लग्नेश नीच राशि में स्थित हों और लग्न में या लग्नेश के साथ युति या दृष्टि संबंध बनाते हों और उस पर राहु, शनि, मंगल व केतु का पापी प्रभाव हो तो पितृ दोष की स्थिति बनती है।
शनि अशुभ भावेश होकर चंद्र से युति या दृष्टि संबंध बनाए या चंद्र शनि के नक्षत्र या उसकी राशि में हो तो भी पितृ दोष होता है। शनि का चंद्र के नक्षत्र या राशि में स्थित होना भी पितृ दोष का सूचक है। लग्नेश का त्रिक भावों में त्रिकेशों के साथ होना या त्रिकेशों के दृष्टि प्रभाव में होना, लग्नेश का त्रिकेशों के नक्षत्र में स्थित होना, त्रिकेशों का किसी भी प्रकार से लग्न, लग्नेश को प्रभावित करना ये सभी योग पितृदोष के सूचक हैं।
यदि लग्नेश नीच राशि या नीच नवांश में हो तो पितृ दोष विशेष प्रभावी होता है। लग्नेश कुंडली में शत्रु राशि में निर्बल होकर स्थित हो और शनि, राहु, केतु व मंगल के पाप कर्तरी प्रभाव में हो और चंद्र व सूर्य त्रिक भाव में या त्रिकेशों के साथ स्थित हों तो पितृ दोष होता है। कुंडली में लग्न में गुरु नीच राशि में स्थित होकर पापी ग्रहों के प्रभाव में हो, नीच नवांश में होकर पापी ग्रहों के प्रभाव में हो या त्रिकेशों का उस पर युति या दृष्टि प्रभाव पड़ रहा हो तो जातक पितृ दोष से पीड़ित होता है।
जन्म कुंडली में बृहस्पति नीच राशि, नीच नवांश में षष्ठ या अष्टम भाव में स्थित हो और बृहस्पति लग्नेश, चंद्र लग्नेश या सूर्य लग्नेश हो तो पितृ दोष होता है। इस पर पापी ग्रहों का प्रभाव भी हो तो जातक पूर्णतया पितृदोष से ग्रस्त होता है। उसे जीवन में शारीरिक, आर्थिक एवं मानसिक समस्याओं का पग-पग पर सामना करना पड़ता है।
कुंडली में द्वादश भाव में लग्नेश नीच राशि में या नीचस्थ बृहस्पति के साथ स्थित हो तो जातक को प्रेतात्माओं का शिकार होना पड़ सकता है। यदि उस पर राहु व शनि का अशुभ प्रभाव भी हो तो जातक को नीच संगति के कारण या गलत खान पान के कारण विशेष परेशानियां आती रहती हैं। वह व्यसनों से ग्रस्त रहता है और उस पर पितृ दोष भी अपना प्रभाव डालता रहता है।
कुंडली में शनि लग्न में स्थित हो एवं लग्नेश पर राहु व केतु का प्रभाव हो और चंद्र व सूर्य नीच राशि या नीच नवांश में स्थित हों तो जातक पर पितृ दोष का प्रभाव रहता है। ऐसे लोग मानसिक रूप से परेशान एवं रात्रि में विशेष तौर पर व्यथित रहते हैं।
कुंडली में द्वितीय भाव से परिवार, पंचम से इष्ट, नवम से भाग्य एवं द्वादश से मरणोत्तर गति का विचार किया जाता है। जब इन भावों के कारकों व भावेशों पर अशुभ पापी ग्रहों का प्रभाव हो, भाव कारक व भावेश दोनों निर्बल, अस्तंगत हों एवं केतु भी इन पर नीच राशि में होकर प्रभाव डाल रहा हो तो जातक पितृ दोष से ग्रस्त होता है।
कुंडली में राहु एवं शनि दोनों किसी भी प्रकार से एक दूसरे को प्रभावित करते हों और लग्न व लग्नेश में से भी किसी को यदि इनमें से कोई प्रभावित करे तो जातक पितृदोष से पीड़ित होता है। नवम भाव में बृहस्पति व शुक्र की युति एवं दशम में चंद्र पर शनि व केतु का प्रभाव हो तो जातक पितृ दोष से पीड़ित होता है।
कुंडली में शुक्र का राहु या शनि व मंगल द्व ारा पीड़ित होना भी पितृदोष का सूचक है। पंचम भाव में सूर्य तुला राशि एवं मकर कुंभ नवांश में हो और पंचम भाव पाप कर्तरी प्रभाव में हो तो पितृ दोष से संतान हानि होती है। पंचम में सिंह राशि हो, पंचम या नवम भाव में पापी ग्रह हो व सूर्य भी पापी ग्रहों से युत या दृष्ट हो तो पितृ दोष के कारण संतान हानि होती है।
लग्न व पंचम भाव में सूर्य व मंगल स्थित हों और शनि भी इनसे युति करे तथा राहु व बृहस्पति की युति अष्टम या द्वादश में हो या दशमेश पंचमेश पंचम दशम हो व लग्न पंचम पर शनि, राहु व मंगल का किसी भी प्रकार से प्रभाव हो तो जातक पितृ दोष से ग्रस्त होता है।
जातक के संतान या तो होती नहीं या अल्प आयु वाली होती है। लग्नेश नीच राशि, नीच नवांश या शत्रु राशि में पंचमस्थ हो, पंचमेश व सूर्य की युति हो, लग्न व पंचम दोनों भावों पर पापी ग्रहों का प्रभाव हो तो जातक को पितृ दोष के कारण संतान नहीं होती।
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