हिंदू शास्त्र के अनुसार विवाह एक धार्मिक बंधन है। इसे एक साधारण संबंध नहीं समझना चाहिए जैसा कि पश्चिमी देशों में समझा जाता था और अब भारत में भी महानगरों में विवाह की परिभाषा ही बदल गई है। आजकल बहुत से माता-पिता और युवा वर्ग के लोग कुंडली मिलान में विश्वास नहीं रखते और बिना जन्मपत्री मिलाए विवाह कर लेते हंै। ऐसा नहीं है कि सभी विवाहों में समस्या आती है परंतु बहुत से संबंध बाद में काफी दुखदायी हो जाते हैं क्योंकि जब तक वर-वधू का मानसिक तत्व, शारीरिक तत्व, बुद्धि भेद, धार्मिक भेद आदि का परस्पर मेल न हो तब तक केवल मन के बंधन का संबंध काफी कष्टकारी हो सकता है।
ज्योतिष के अनुसार भिन्न-भिन्न राशियों के भिन्न-भिन्न तत्व होते हैं। यदि अग्नि तत्व वाले व्यक्ति का विवाह जल तत्व वाले से कर दिया जाए तो दोनों का वैवाहिक जीवन सफल होने में संदेह रहता है। पराशर, वशिष्ठ, जैमिनी आदि भारत वर्ष के प्राचीन ऋषियांे ने अपनी दिव्य दृष्टि, अनुभव तथा अनेक प्रकार से जांच विचार कर, मानव कल्याण के लिए बहुत से ज्योतिषी नियम प्रतिपादित किये हैं। जिनके अपनाये जाने पर सुखी वैवाहिक जीवन की आधारशिला रखी जा सकती है।
बहुत से व्यक्तियों का तर्क है कि कुंडली मिलान करने में बहुत असुविधा होती है, विवाह टलता रहता है तो यही कहा जायेगा कि हमें कोई कपड़ा भी खरीदना होता है तो हम पूरा बाजार छान डालते हैं, इंटरनेट पर सर्च करते हैं और कहीं दूर जाना हो तो संकोच नहीं करते तो जीवनभर के साथी को ढूंढ़ने के लिए आसान सा रास्ता क्यों अपनाना चाहते हैं। ‘ज्योतिष रत्नाकर’ के अनुसार हमारे ऋषियों ने कुछ नियम बनाये थे जो सुखी वैवाहिक जीवन के लिए बहुत कारगर हैं। इन नियमों का सोदाहरण वर्णन निम्नवत् है:
1. वर के सप्तम स्थान का स्वामी जिस राशि में हो यदि वही कन्या की राशि हो तो विवाह उत्तम होता है। उदाहरण कंुडली 1 में पुरुष का सप्तमेश सूर्य कर्क राशि में है तथा महिला की राशि भी कर्क ही है अतः यह विवाह काफी सफल रहा।
2. यदि कन्या की राशि, वर के सप्तमेश का उच्च स्थान हो तो विवाह शुभ होता है। इस कुंडली में पुरुष का सप्तमेश गुरु है जिसकी उच्च राशि कर्क होती है। महिला की राशि कर्क ही है। ये दम्पत्ति डाॅक्टर हैं तथा इनका वैवाहिक जीवन काफी सुखी है।
3. वर के सप्तमेश का नीच स्थान यदि कन्या की राशि हो तो भी विवाह सफल होता है। पुरुष की कुंडली में सप्तमेश शनि है तथा इसकी नीच राशि मेष ही महिला की जन्म राशि है। ये भी काफी सुखी वैवाहिक जीवन व्यतीत कर रहे हैं।
4. वर का शुक्र जिस राशि में हो वही राशि यदि कन्या की जन्मराशि हो तो भी सफल वैवाहिक जीवन का द्योतक है। इस उदाहरण कुंडली में पुरुष की कुंडली में शुक्र कन्या राशि में है तथा महिला की राशि भी कन्या ही है अतः इन दोनों का वैवाहिक जीवन भी काफी बेहतर है यद्यपि दोनों के बीच थोड़े वैचारिक मतभेद भी उत्पन्न होते रहते हैं।
5. वर की सप्तमस्थ राशि यदि कन्या की राशि हो तो वह विवाह अच्छा होता है। इस उदाहरण में पुरुष कुंडली के सप्तम भाव में वृश्चिक राशि है जो कि महिला की जन्म राशि है। इनका विवाह भी अत्यंत सफल रहा है तथा जो लोग इन्हें जानते हैं वे यही कहते हैं कि ये दोनों एक-दूसरे के लिए ही बने हैं।
6. वर का लग्नेश जिस राशि में हो वही राशि यदि कन्या की भी हो तो विवाह सुखदायी होता है। इस उदाहरण में लग्नेश बुध सिंह राशि में है तथा सिंह राशि ही महिला की जन्म राशि है। विवाहोपरांत दोनों काफी सुखी जीवन व्यतीत कर रहे हैं।
7. वर के चंद्र लग्न से सप्तम स्थान में जो राशि पड़े वही राशि यदि कन्या का जन्म लग्न हो तो विवाह बहुत शुभ होता है। इस उदाहरण में पुरुष की जन्म राशि से सातवीं राशि धनु है तथा यही महिला की लग्न राशि है। इसके कारण इका वैवाहिक जीवन काफी सफल रहा है।
8. वर की चंद्र राशि से सप्तम स्थान पर जिन-जिन ग्रहों की दृष्टि हो, वे ग्रह जिन-जिन राशियों में बैठे हों उन राशियों में से किसी राशि में यदि कन्या का जन्म हो तो वह विवाह भी उत्तम होता है। इस उदाहरण में पुरुष की जन्म राशि से सातवें भाव पर राहु की दृष्टि है जो कि कर्क राशि में स्थित है। महिला की कुंडली का लग्न कर्क है। इनके प्रेम विवाह से इनका जीवन हर प्रकार की खुशियों से भर दिया। उपर्युक्त दो नियमों का विचार कन्या की कुंडली से भी होता है। इन आठ नियमों में वर व कन्या की कुंडली में एक भी लागू हो तो विवाह शुभ होगा और यदि एक से अधिक हो तो सोने में सुहागा होगा। इसके अतिरिक्त हमें सभी राशियों के तत्वों का ज्ञान होना भी जरूरी है।
मेष, सिंह एवं धनु अग्नि तत्व राशियां हैं। वृष, कन्या, मकर पृथ्वी तत्व हैं। मिथुन, तुला, कंुभ वायु तत्व तथा कर्क, वृश्चिक व मीन जल तत्व राशियां मानी जाती हैं। जैसा कि हम जानते हैं जल से आग बुझ जाती है। अतः जल अग्नि का शत्रु है, अग्नि पृथ्वी को दग्ध कर देती है परंतु वायु अग्नि की सहायक है और अग्नि को प्रज्ज्वलित करती है। पृथ्वी जल से सिंचिंत होकर हरी-भरी हो जाती है अतः पृथ्वी तत्व और जल तत्व में और वायु तथा अग्नि तत्व में परस्पर मित्रता है परंतु वायु और अग्नि का शत्रु पृथ्वी और जल है।
अतः विवाह करते हुए तत्वों का भी ध्यान रखना चाहिए। लग्न अथवा राशि दोनों मंे से किसी एक में अवश्य ही दूसरे से मैत्री होनी चाहिए। अगर वर की कुंडली में चंद्र अग्नि तत्व में और वधू की कुंडली में जल तत्व मंे है और लग्न भी पृथ्वी तत्व में है तो उनके संबंधों में मित्रता का अभाव होगा। निष्कर्ष: वैवाहिक जीवन में पति-पत्नी के मध्य अच्छे सामंजस्य के लिए उपरोक्त नियम तथा राशियों के तत्वों का ज्ञान तो कारगर है ही साथ ही निम्नांकित चार महत्वपूर्ण बिंदुओं पर भी विचार करना चाहिए।
ये चार महत्वपूर्ण बिंदु इस प्रकार हैं:
1. कुंडली में सुखी वैवाहिक जीवन के योग
2. अष्टकूट मिलान
3. मंगलीक दोष मिलान
4. नवांश कुंडली का बल इन चार में से पहला बिंदु सर्वाधिक महत्वपूर्ण है। क्योंकि यदि वर और कन्या की जन्म कुंडलियों में सुखमय वैवाहिक जीवन के योगों का अभाव हुआ तो कुंडली मिलान के अन्य पैरामीटर्स व इस लेख में चर्चित सूत्र निरर्थक सिद्ध हो जायेंगे।