चातुर्मास - क्या करें और क्या न करें
चातुर्मास - क्या करें और क्या न करें

चातुर्मास - क्या करें और क्या न करें  

फ्यूचर पाॅइन्ट
व्यूस : 9857 | अप्रैल 2016

चातुर्मास पर्व यानि चार महीने का पर्व जैन धर्म का एक अहम पर्व होता है। इस दौरान एक ही स्थान पर रहकर साधना और पूजा पाठ किया जाता है। वर्षा ऋतु के चार महीने में चातुर्मास पर्व मनाया जाता है। वर्ष 2016 में जैन चातुर्मास पर्व 08 जुलाई से शुरू होंगे जो आने वाले चार महीने तक चलेंगे। जैन धर्म पूर्णतः अहिंसा पर आधारित है। जैन धर्म में जीवों के प्रति शून्य हिंसा पर जोर दिया जाता है। जैन धर्म के अनुसार बारिश के मौसम में कई प्रकार के कीड़े, सूक्ष्म जीव जो आंखों से दिखाई नहीं देते वे सर्वाधिक सक्रिय हो जाते हैं। ऐसे में मनुष्य के अधिक चलने-उठने के कारण इन जीवों को नुकसान पहुंच सकता है। अतः इन जीवों को परेशानी न हो और जैन साधुओं के द्वारा कम से कम हिंसा हो इसलिए चातुर्मास में चार महीने एक ही जगह रहकर धर्म कल्याण के कार्य किए जाते हैं। इस दौरान जैन साधु किसी एक जगह ठहरकर तप, प्रवचन तथा जिनवाणी के प्रचार-प्रसार को महत्त्व देते हैं।

चातुर्मास पर्व का महत्व जैन धर्म के अनुयायी वर्ष भर पैदल चलकर भक्तों के बीच अहिंसा, सत्य, ब्रह्मचर्य का विशेष ज्ञान बांटते हैं। चातुर्मास में ही जैन धर्म का सबसे प्रमुख पर्व पर्युषण पर्व मनाया जाता है। मान्यता है कि जो जैन अनुयायी वर्ष भर जैन धर्म की विशेष मान्यताओं का पालन नहीं कर पाते वे इन 8 दिनों के पर्युषण पर्व में रात्रि भोजन का त्याग, ब्रह्मचर्य, स्वाध्याय, जप-तप मांगलिक प्रवचनों का लाभ तथा साधु-संतों की सेवा में संलिप्त रह कर जीवन सफल करने की मंगलकामना कर सकते हैं। साथ ही चार महीने तक एक ही स्थान पर रहकर ध्यान लगाने, प्रवचन देने आदि से कई युवाओं का मार्गदर्शन होता है। चातुर्मास खुद को समझने और अन्य प्राणियों को अभयदान देने का अवसर माना जाता है। भगवान विष्णु गुरुतत्व में गुरु जहाँ विश्रांति पाते हैं, ऐसे आत्मदेव में भगवान विष्णु 4 महीने समाधिस्थ रहेंगे। उन दिनों में शादी विवाह वर्जित है, शुभ कर्म वर्जित हंै और इस समय शुभ मुहूर्त नहीं मिलते हैं।

क्या करें ?

- जलाशयों में स्नान करना, तिल और जौं को पीसकर बाल्टी में बेलपत्र डालकर स्नान करने से पाप का नाश होता है तथा तन- मन के दोष मिटते हैं। अगर ¬ नमः शिवाय 5 बार मन में जप करके फिर लोटा सिर पर डाला पानी का, तो पित्त की बीमारी, कंठ का सूखना ये तो कम हो जायेगा, चिड़चिड़ा स्वभाव भी कम हो जायेगा और स्वभाव में जलीय अंश रस आने लगेगा। भगवान नारायण शेष शैय्या पर शयन करते हैं इसलिए ४ महीने सभी जलाशयों में तीर्थत्व का प्रभाव आ जाता है।

- गद्दे-वद्दे हटा कर सादे बिस्तर पर शयन करें। संत दर्शन और सत वचन बोलें तथा धर्म शास्त्र का पाठ करें। इसके अतिरिक्त सत्संग सुनें और संतों की सेवा करें। इन कार्यों के लिए ये ४ महीने दुर्लभ हैं।

- स्टील के बर्तन में भोजन करने की अपेक्षा पलाश के पत्तों पर भोजन करें तो वे भोजन पापनाशक पुण्यदायी होते हैं, ब्रह्मभाव को प्राप्त कराने वाले होते हंै।

- चातुर्मास में इन 4 महीनों में दोनों पक्षों की एकादशी का व्रत करना चाहिये। 15 दिन में 1 दिन उपवास 14 दिन का खाया हुआ जो अन्न है वो ओज में बदल जायेगा। ओज, तेज और बुद्धि को बलवान बनायेगा।

- चातुर्मास में भगवान विष्णु के आगे पुरुष सूक्त का पाठ करने वाले की बुद्धि का विकास होता है और सुबह या जब समय मिले भूमध्य में ओंकार का ध्यान करने से बुद्धि का विकास होता है।

- दान, दया और इन्द्रिय संयम करने वाले को उत्तम लोकों की प्राप्ति होती है।

- आंवला-मिश्री जल से स्नान महान पुण्य प्रदान करता है।

क्या न करंे ?

- इन 4 महीनांे में पराया धन हड़प करना, परस्त्री से समागम करना, निंदा करना, ब्रह्मचर्य नहीं तोड़ना चाहिए वरना हाथ में आया हुआ अमृत कलश व्यर्थ हो जायेगा। इसके अतिरिक्त इस समय में निंदा न करंे, ब्रह्मचर्य का पालन करें तथा परधन, परस्त्री पर बुरी नजर न डालें।

- ताम्बे के बर्तन में भोजन नहीं करना चाहिये एवं पानी नहीं पीना चाहिये।

- चातुर्मास में काला और नीला वस्त्र पहनने से स्वास्थ्य हानि और पुण्य का नाश होता है।

- परनिंदा महा पापं शास्त्र वचन:- “परनिंदा महा पापं परनिंदा महा भयं परनिंदा महा दुखं तस्या पातकम न परम”। ये स्कन्द पुराण का श्लोक है। परनिंदा महा पाप है, परनिंदा महा भय है, परनिंदा महा दुःख है तस्या पातकम न परम, उस से बड़ा कोई पाप नहीं। इस चातुर्मास में पक्का व्रत ले लो कि हम किसी की निंदा न करेंगे।

- असत्य भाषण का त्याग कर दें एवं क्रोध का त्याग कर दें।

- बाजार की चीजें जैसे आइसक्रीम, पेप्सी, कोका- कोला अथवा शहद आदि चीजों का त्याग कर दें। चातुर्मास में जो स्त्री-पुरुष मैथुन का त्याग करता है वह अपने दोषों से पार होकर देव भक्ति और मुक्ति प्राप्त करता है तथा अश्वमेध यज्ञ के फल को पाता है।

- भोजन के समय खाने व पीने के पात्र अलग-अलग होने चाहिए।

- काँसे के पात्र बुद्धिवर्द्धक, स्वाद अर्थात् रूचि उत्पन्न करने वाले हैं। उष्ण प्रकृतिवाले व्यक्ति तथा अम्लपित्त, रक्तपित्त, त्वचाविकार, यकृत व हृदयविकार से पीड़ित व्यक्तियों के लिए काँसे के पात्र स्वास्थ्यप्रद हैं। इससे पित्त का शमन व रक्त की शुद्धि होती है।

- ‘स्कन्द पुराण’ के अनुसार चातुर्मास के दिनों में पलाश (ढाक) के पत्तों में या इनसे बनी पत्तलों में किया गया भोजन चान्द्रायण व्रत एवं एकादशी व्रत के समान पुण्य प्रदान करने वाला माना गया है। इतना ही नहीं, पलाश के पत्तों में किया गया एक-एक बार का भोजन त्रिरात्रि व्रत के समान पुण्यदायक और बड़े-बड़े पातकों का नाश करने वाला बताया गया है। चातुर्मास में बड़ के पत्तों या पत्तल पर किया गया भोजन भी बहुत पुण्यदायी माना गया है।

- केला, पलाश या बड़ के पत्ते रूचि उत्पन्न करने वाले, विषदोष का नाश करने वाले तथा अग्नि को प्रदीप्त करने वाले होते हैं। अतः इनका उपयोग हितकारी है।

- लोहे की कड़ाही में सब्जी बनाना तथा लोहे के तवे पर रोटी सेंकना हितकारी है इससे रक्त की वृद्धि होती है। परंतु लोहे के बर्तन में भोजन नहीं करना चाहिए इससे बुद्धि का नाश होता है। स्टील के बर्तन में बुद्धि नाश का दोष नहीं माना जाता। पेय पदार्थ चाँदी के बर्तन में लेना हितकारी है लेकिन लस्सी आदि खट्टे पदार्थ न लें। पीतल के बर्तनों को कलई कराके ही उपयोग में लाना चाहिए।

- एल्यूमीनियम के बर्तनों का उपयोग कदापि न करें। वैज्ञानिकों के अनुसार एल्यूमीनियम धातु वायुमंडल से क्रिया करके एल्यूमीनियम ऑक्साइड बनाती है, जिससे इसके बर्तनों पर इस ऑक्साइड की पर्त जम जाती है। यह पाचनतंत्र, दिमाग और हृदय पर दुष्प्रभाव डालती है। इन बर्तनों में भोजन करने से मुँह में छाले, पेट का अल्सर, एपेन्डीसाईटिस, रोग, पथरी, अंतःस्राव, ग्रन्थियों के रोग, हृदयरोग, दृष्टि की मंदता, माईग्रेन, जोड़ों का दर्द, सर्दी, बुखार, बुद्धि की मंदता, डिप्रेशन, सिरदर्द, दस्त, पक्षाघात आदि बीमारियाँ होने की पूरी संभावना रहती है। एल्यूमीनियम के कुकर का उपयोग करने वाले सावधान हो जायें।

- प्लास्टिक की थालियाँ (प्लेट्स) व चम्मच, पेपल प्लेट्स, थर्मोकोल की प्लेट्स, सिल्वर फाइल, पाॅलिथिन बैग आदि का उपयोग स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है।

- पानी पीने के पात्र के विषय में ‘भावप्रकाश’ ग्रंथ में लिखा है कि पानी पीने के लिए ताँबा, स्फटिक या काँच-पात्र का उपयोग करना चाहिए। ताँबा तथा मिट्टी के जलपात्र पवित्र व शीतल होते हैं। टूटे-फूटे बर्तन से अथवा अंजलि से पानी नहीं पीना चाहिए। चातुर्मास में जीवनशक्ति बढ़ाने के उपाय: - साधारणतया चातुर्मास में पाचनशक्ति मंद रहती है। अतः आहार कम करना चाहिए। पन्द्रह दिन में एक दिन उपवास करना चाहिए।

- चातुर्मास में जामुन, कश्मीरी सेब आदि फल होते हैं। उनका यथोचित सेवन करें।

- हरी घास पर खूब चलें। इससे घास और पैरों की नसों के बीच विशेष प्रकार का आदान-प्रदान होता है, जिससे स्वास्थ्य पर अच्छा प्रभाव पड़ता है।

- गर्मियों में शरीर के सभी अवयव शरीर शुद्धि का कार्य करते हैं, मगर चातुर्मास शुद्धि का कार्य केवल आँतों, गुर्दों एवं फेफड़ों को ही करना होता है। इसलिए सुबह उठने पर, घूमते समय और सुबह-शाम नहाते समय गहरे श्वांस लेने चाहिए। चातुर्मास में दो बार स्नान करना बहुत ही हितकर है। इस ऋतु में रात्रि में जल्दी सोना और सुबह जल्दी उठना बहुत आवश्यक है।

- चातुर्मास में श्री महावीर चालीसा का नित्य पाठ करने से विशेष पुण्य की प्राप्ति होती है।

श्रीमहावीर चालीसा दोहा:

सिद्ध समूह नमों सदा, अरु सुमरूं अरहन्त। निर आकुल निर्वांच्छ हो, गए लोक के अंत ।।

मंगलमय मंगल करन, वर्धमान महावीर। तुम चिंतत चिंता मिटे, हरो सकल भव पीर ।।

चैपाई:

जय महावीर दया के सागर, जय श्री सन्मति ज्ञान उजागर।

शांत छवि मूरत अति प्यारी, वेष दिगम्बर के तुम धारी।

कोटि भानु से अति छबि छाजे, देखत तिमिर पाप सब भाजे।

महाबली अरि कर्म विदारे, जोधा मोह सुभट से मारे।

काम क्रोध तजि छोड़ी माया, क्षण में मान कषाय भगाया।

रागी नहीं नहीं तू द्वेषी, वीतराग तू हित उपदेशी।

प्रभु तुम नाम जगत में साँचा, सुमरत भागत भूत पिशाचा।

राक्षस यक्ष डाकिनी भागे, तुम चिंतत भय कोई न लागे।

महा शूल को जो तन धारे, होवे रोग असाध्य निवारे।

व्याल कराल होय फणधारी, विष को उगल क्रोध कर भारी।

महाकाल सम करै डसन्ता, निर्विष करो आप भगवन्ता।

महामत्त गज मद को झारै, भगै तुरत जब तुझे पुकारै।

फार डाढ़ सिंहादिक आवै, ताको हे प्रभु तुही भगावै।

होकर प्रबल अग्नि जो जारै, तुम प्रताप शीतलता धारै।

शस्त्र धार अरि युद्ध लड़न्ता, तुम प्रसाद हो विजय तुरन्ता।

पवन प्रचण्ड चलै झकझोरा, प्रभु तुम हरौ होय भय चोरा।

झार खण्ड गिरि अटवी मांहीं, तुम बिनशरण तहां कोउ नांहीं।

वज्रपात करि घन गरजावै, मूसलधार होय तड़कावै।

होय अपुत्र दरिद्र संताना, सुमिरत होत कुबेर समाना।

बंदीगृह में बँधी जंजीरा, कठ सुई अनि में सकल शरीरा।

राजदण्ड करि शूल धरावै, ताहि सिंहासन तुही बिठावै।

न्यायाधीश राजदरबारी, विजय करे होय कृपा तुम्हारी।

जहर हलाहल दुष्ट पियन्ता, अमृत सम प्रभु करो तुरन्ता।

चढ़े जहर, जीवादि डसन्ता, निर्विष क्षण में आप करन्ता।

एक सहस वसु तुमरे नामा, जन्म लियो कुण्डलपुर धामा।

सिद्धारथ नृप सुत कहलाए, त्रिशला मात उदर प्रगटाए।

तुम जनमत भयो लोक अशोका, अनहद शब्दभयो तिहुँलोका।

इन्द्र ने नेत्र सहस्र करि देखा, गिरी सुमेर कियो अभिषेखा।

कामादिक तृष्णा संसारी, तज तुम भए बाल ब्रह्मचारी।

अथिर जान जग अनित बिसारी, बालपने प्रभु दीक्षा धारी।

शांत भाव धर कर्म विनाशे, तुरतहि केवल ज्ञान प्रकाशे।

जड़-चेतन त्रय जग के सारे, हस्त रेखवत् सम तू निहारे।

लोक-अलोक द्रव्य षट जाना, द्वादशांग का रहस्य बखाना।

पशु यज्ञों का मिटा कलेशा, दया धर्म देकर उपदेशा।

अनेकांत अपरिग्रह द्वारा, सर्वप्राणि समभाव प्रचारा।

पंचम काल विषै जिनराई, चांदनपुर प्रभुता प्रगटाई।

क्षण में तोपनि बाढि-हटाई, भक्तन के तुम सदा सहाई।

मूरख नर नहिं अक्षर ज्ञाता, सुमरत पंडित होय विख्याता।

सोरठा:

करे पाठ चालीस दिन नित चालीसहिं बार। खेवै धूप सुगन्ध पढ़, श्री महावीर अगार ।।

जनम दरिद्री होय अरु जिसके नहिं सन्तान। नाम वंश जग में चले होय कुबेर समान ।।



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