पंचांगों में भिन्नता क्यों?
पंचांगों में भिन्नता क्यों?

पंचांगों में भिन्नता क्यों?  

किशोर घिल्डियाल
व्यूस : 8854 | अप्रैल 2010

पंचांगों में भिन्नता क्यों? पं. किशोर घिल्डियाल काल के मुखय पांच अंग होते हैं - तिथि, वार नक्षत्र, योग, व करण। इन पांच अंगों के मेल को ही पंचांग कहा जाता है। अलग-अलग प्रांतों में अलग-अलग पद्धतियों पर आधारित पंचांग प्रयोग में लाए जाते हैं। पद्धतियों की इस भिन्नता के कारण ही पंचांगों में भिन्नता होती है। इस भिन्नता के कारणों पर विचार करने से पूर्व पंचांगों के इतिहास पर विचार भारतवर्ष के ऋषि मुनियों ने अपने ज्ञान के आधार पर प्राचीन शास्त्रों में कहा है कि कलयुग में छह शक होंगे जिनमें से तीन हो चुके हैं और तीन अभी होने बाकी हैं। इनके नाम और अवधि निम्नलिखित तालिका में प्रस्तुत हैं।

स्पष्ट है कि राजाओं के नाम पर इन शकों व संवतों का नामकरण हुआ। वर्तमान में शक तथा विक्रम संवत अधिक प्रचलित हैं। संवत शब्द संवत्सर का अपभ्रंश है। विक्रम संवत राजा विक्रमादित्य के काल में आरंभ हुआ। यह चैत्र शुक्ल प्रतिपदा (चैत्र मास के शुक्लपक्ष की प्रारंभ तिथि) को शुरू होता है। शक संवत शक वंश के राजाओं ने आरंभ किया जो कि प्रत्येक वर्ष के सूर्य के सायन मेष राशि में प्रवेश के समय अर्थात 22 मार्च को माना जाता है।


Book Navratri Maha Hawan & Kanya Pujan from Future Point


संवत्सरों के आरंभ के समय में अंतर के कारण पंचोगों में 1 से 3 दिन तक का अंतर आ जाता है। शक संवत विक्रम संवत से 135 वर्ष पीछे है जो अंग्रेजी ईस्वी सन् से 78 वर्ष कम होता है। इसे आम शब्दों में हम ऐसे कह सकते हैं कि अंग्रेजी सन् में 57 जोड़ने पर विक्रम संवत तथा 78 घटाने पर शक संवत प्राप्त होता है। पंचांगों में अंतर क्यों? सूर्य जब मकर में प्रवेश करता है तब उत्तरायण और जब कर्क में प्रवेश करता है तब दक्षिणायन होता है।

इसी आधार पर भारत में वर्ष का दो बराबर भागों में विभाजन करने का विधान किया गया है। संवतों का सीधा संबंध सूर्य व चंद्र की गति से है। सूर्य और चंद्र की गति में अंतर होने से सौर वर्ष में 11 दिनों का फर्क आता है, जिस कारण तीसरे या चौथे वर्ष 1 मास जोड़कर अधिक मास बना लिया जाता है जिसे मलमास व क्षयमास कहा जाता है। पंचांगों में भिन्नता के कारण गणना में भी भिन्नता आती है। भारत एक अति विशाल देश है। यहां सूर्योदय के समय में भी फर्क आता है।

ज्योतिष में सूर्योदय से अगले सूर्योदय तक एक वार गिना जाता है, जबकि अमावस्या के दिन से सूर्य से चंद्र जब 12 डिग्री आगे चला जाता है तब एक तिथि मानी जाती है। कभी-कभी तिथि घट या बढ़ भी जाती है। फलस्वरूप पंचांग शुद्धि करनी पड़ती है। अंग्रेजी ईस्वी सन् का प्रचलन बढ़ने से भी पंचांगकर्ताओं ने पंचांगों में अंग्रेजी मास, तारीख आदि लिखना प्रारंभ किया जिससे अगला वार मध्यरात्रि से गिना जाने लगा। फलस्वरूप पंचांगों में अंतर आना स्वाभाविक हो गया। भारत में अनेक धर्मों के लोग रहते हैं और वे अपने-अपने समुदाय द्वारा निर्धारित रीति-रिवाजों का पालन करते हैं।

इन समुदायों और संप्रदायों के अपने-अपने पंचांग हैं और रीति-रिवाजों में भिन्नता के कारण इन पंचांगों में भी भिन्नता है। मुस्लिम समुदाय हिजरी संवत को मानता है, जिसमें अमावस्या के बाद जिस रात को प्रथम चंद्र दर्शन होता है वही मासारंभ का दिन माना जाता है। फलस्वरूप मास का पहला दिन सूर्यास्त से माना गया। ये महीने 29 या 30 दिन के होते हैं। इस कारण भी पंचांग की अलग आवश्यकता पड़ी। तात्पर्य यह कि पंचांगों में भिन्नता के अनेकानेक कारण हैं।

भारत का अति विशाल होना, अलग-अलग धर्म के लोगों का व अलग-अलग मतों का होना, अंग्रेजी का बढ़ता प्रभाव आदि इस भिन्नता के मुखय कारण हैं। विडंबना यह है कि पंचांगों का कोई सर्वसम्मत मानक तय नहीं है। फलस्वरूप उपलब्ध पंचांगों में कोई भी सूचना एक-सी नहीं होती जिससे आमजन भ्रमित होता रहता है।



Ask a Question?

Some problems are too personal to share via a written consultation! No matter what kind of predicament it is that you face, the Talk to an Astrologer service at Future Point aims to get you out of all your misery at once.

SHARE YOUR PROBLEM, GET SOLUTIONS

  • Health

  • Family

  • Marriage

  • Career

  • Finance

  • Business


.