मधुमेह
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मधुमेह  

किशोर घिल्डियाल
व्यूस : 10090 | अकतूबर 2012

वर्तमान समय मं तेजी से बढ़ते हुये रोगों में से एक “डायबिटिस” अर्थात मधुमेह नामक रोग है। यह रोग “साइलेंट किलर” की भांति धीरे-धीरे प्रत्येक 10 में से 4 व्यक्तियों को अपने कब्जे में लेता जा रहा है। आजकल के इस भागदौड़ वाले समय में हमारी अनियमित दिनचर्या ने भी इस रोग को तेजी से बढ़ने में मदद की है। दैनिक जीवन में शक्ति प्राप्त करने के लिए मानव शरीर की कोशिकाआंे को ग्लूकोज नामक अवयव चाहिए होता है जो हमारे भोजन से प्राप्त होता है। इस ग्लूकोज को विभिन्न कोशिकाओं में पहुंचाने हेतु अग्नाशय (पेंक्रियाज) द्वारा एक हारमोन “इंसुलिन” निकाला जाता है जो रक्त कोशिकाआंे में ग्लूकोज पहुँचाता है जिससे शरीर को शक्ति प्राप्त होती है।

जब यह इंसुलीन किसी भी कारण से ठीक से निर्मित नहीं हो पाता है तब हमारे शरीर में रक्त शर्करा का चय-अपचय (मेटाबाॅलिज्म) सही ढंग से नहीं हो पाने से रक्त में ग्लूकोज की मात्रा बढ़ जाती है जिसे उचित मात्रा में गुर्दे अवशोषित नहीं कर पाते हैं और हमारे शरीर में ग्लूकोज की अधिकता के कारण यह मधुमेह नामक रोग जन्म ले लेता है। यह रोग दो प्रकार का होता है- डी-वन तथा डी-टू डी-वन - इस प्रकार का मधुमेह बचपन से होता है

व इंसुलिन पर आधारित होता है। इसमें रोगी को प्यास ज्यादा लगती है तथा पसीना भी ज्यादा आता है। डी-टू - इस प्रकार के मधुमेह का जन्म अन्य बाहरी कारणों से होता है जैसे अनुचित खान-पान आदि। यह भी दवाइयों व इंसुलिन द्वारा संतुलित किया जाता है। यह रोग गंभीर किस्म का होता है जिससे व्यक्ति के कई अंगों पर दुष्प्रभाव पड़ने लगते हैं। आइए ज्योतिषीय दृष्टि से इस रोग के होने की संभावना का पता लगाते हैं। पेंक्रियाज (अग्नाशय) अमाशय के नीचे तथा पेट के ऊपरी भाग में होती है।


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ज्योतिषीय दृष्टि से यह कुंडली में पंचम भाव द्वारा देखी जाती है जिस भाव का कारक गुरु ग्रह माना जाता है। गुरु ग्रह ही यकृत(लीवर), गुर्दों तथा पेंक्रियाज का कारक भी है। पेंक्रियाज का कुछ हिस्सा शुक्र ग्रह के हिस्से में भी आता है जो शरीर में बनने वाले हार्मोन्स को संतुलित करता है। हमारे शरीर में रक्त का कारक मंगल ग्रह माना गया है जो इस बीमारी में एक अहम भूमिका निभाता है। (रक्त की जांच से ही मधुमेह की पुष्टि की जाती है।)

इस प्रकार मुख्यतः पंचम भाव, पंचमेश, गुरु, मंगल व शुक्र ग्रह का अध्ययन इस रोग की पहचान हेतु किया जाता है। सामान्यतः किसी भी रोग हेतु हमें अन्य भाव जैसे लग्न, द्वितीय(खानपान), षष्ठ(रोग) तथा अष्टम भाव (दीर्घ रोग) भी देखने पड़ते हैं परंतु इस लेख में हम केवल मधुमेह रोग होने की संभावना की चर्चा कर रहे हैं अतः यहाँ हम सिर्फ उसी से संबंधित भावों एवं ग्रहों का अध्ययन करेंगे। शुक्र ग्रह की भूमिका पेंक्रियाज के कुछ हिस्से का कारक होने के साथ-साथ शुक्र मूत्र का कारक भी है (उत्तर कालामृत में ऐसा कहा गया है) तथा शरीर में अत्यधिक शर्करा की मात्रा का पता मूत्र के द्वारा ही चलता है।

इसलिए इस रोग में शुक्र का शामिल होना अवश्यंभावी प्रतीत होता है (शुक्र मूत्रेन्द्रिय का कारक भी है और इस रोग से पीड़ित व्यक्ति बहुमूत्र से पीड़ित भी रहता है) अतः निश्चित रूप से शुक्र ग्रह का नीच राशि में होना, दोषयुक्त होना, पाप प्रभाव में होना, 6, 8, 12 भावों में होना इस रोग का एक कारण हो सकता है।

गुरु ग्रह की भूमिका-यह रोग मिठास या शर्करा से संबंधित है जिसका ज्योतिषीय दृष्टि से कारक ग्रह गुरु है। इसके अलावा गुरु यकृत, गुर्दों एवं पेंक्रियाज का कारक भी है। वहीं यह विस्तार के लिए भी जाना जाता है और यह रोग दिन प्रतिदिन शनैः शनैः बढ़ता रहता है यानि फैलता रहता है।

अतः कहा जा सकता है कि गुरु का किसी भी रूप मंे पीड़ित होना, नीच राशि में होना, वक्री होना, 6, 8, 12 भावों में होना इस रोग को जन्म दे सकता है। मंगल ग्रह की भूमिका: चूंकि यह रोग रक्त मंे शर्करा की मात्रा लिए होता है तथा इस रोग की पुष्टि रक्त की जांच द्वारा ही की जाती है और रक्त का कारक ग्रह मंगल को माना जाता है

इसलिए मंगल ग्रह की भी स्थिति का अध्ययन जरूरी हो जाता है। पहले प्रकार के मधुमेह (डी वन) के रोगियांे हेतु मंगल ग्रह को हमने कई जन्म कुंडलियों में पीड़ित पाया।


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इन सबके अतिरिक्त कुछ और ज्योतिषीय योग भी हैं जो शरीर में इस रोग की पुष्टि करते हैं,जिनमें कुछ निम्नलिखित हैं:

- गुरु व शनि का किसी भी प्रकार से संबंधित होना।

- तुला राशि पर पाप प्रभाव होना (कालपुरुष की कुंडली मंे यह सप्तम भाव की राशि है जिसका कारक शुक्र माना गया है। यही भाव गुर्दों से भी संबंधित होता है।)

- लग्नेश, पंचमेश, पंचम भाव, गुरु, शुक्र का राहु-केतु प्रभाव में होना।

- शुक्र षष्ठ भाव मंे तथा गुरु द्वादश भाव में होना।

- नीच शुक्र का केंद्र में होना।

- लग्न या लग्नेश का राहु-केतु अक्ष मंे होना (हमने इसे लगभग 60ः कुंडलियों पर सही पाया)

- के.पी. पद्धति के अनुसार भाव संधि का उपस्वामी शुक्र, गुरु या चन्द्र होकर लग्न या षष्ठ भाव या कर्क, तुला, वृश्चिक, मीन राशि से संबंध रखते हांे तो यह रोग होता है। आइये अब कुछ कुंडलियों मंे इस रोग की पुष्टि करते हैं।

1. प्रस्तुत कर्क लग्न की कुंडली में पंचम भाव राहु-केतु अक्ष में है तथा पंचमेश मंगल शनि द्वारा दृष्ट है। शनि पंचम भाव को भी देख रहा है। गुरु वक्री अवस्था मंे है, शुक्र मंगल के नक्षत्र मंे है तथा मंगल स्वयं पंचमेश होकर शनि के प्रभाव में है। इस प्रकार सभी कारक व भाव पीड़ित होने से मधुमेह की पुष्टि होती है। जातक पिछले 10 वर्षों से इस रोग से पीड़ित है।

2. कर्क लग्न की इस कुंडली में पंचमेश मंगल राहु-केतु अक्ष में छठे भाव में है। पंचम भाव पापकर्तृ में है। गुरु 12वें भाव में राहु-केतु प्रभाव में है तथा शुक्र अपनी नीच राशि में है। यह जातक काफी समय से इस रोग से पीड़ित है।

3. मेष लग्न की इस कुंडली में पंचम भाव व पंचमेश सूर्य पर वक्री शनि की दृष्टि है। लग्नेश मंगल राहु-केतु अक्ष में है तथा गुरु व शुक्र दोनों मृतावस्था मंे हैं। इन सब कारणों से जातिका काफी समय से इस रोग से पीड़ित है।

4. कन्या लग्न की इस कुंडली में लग्नेश बुध 12वें भाव में मंगल के साथ राहु-केतु अक्ष में है। पंचमेश शनि नीच राशि में अष्टम भाव से पंचम भाव व दूसरे भाव को देख रहे हैं जहां गुरु व शुक्र हैं। गुरु स्वाति तथा शुक्र विशाखा नक्षत्र में हैं। अतः सभी अवयव पीड़ित होने से जातक पिछले सात सालों से मधुमेह से पीड़ित है।

5. कन्या लग्न की इस कुंडली मंे पंचमेश शनि राहु-केतु प्रभाव मंे है और इस भाव पर मंगल की दृष्टि भी है। गुरु छठे भाव में है व शुक्र वक्री अवस्था मं दूसरे भाव मं मंगल द्वारा दृष्ट भी है। इस जातक को भी काफी समय से मधुमेह है। प्रस्तुत सभी कुंडलियों में डी-वन प्रकार का मधुमेह है।


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आइए अब डी-टू प्रकार के मधुमेह की कुछ कुंडलियों को देखते हैं।

1. तुला लग्न की इस कुंडली में पंचमेश शनि नीच के होकर सप्तम भाव में है जिनकी लग्न व शुक्र दोनों पर दृष्टि है। पंचम भाव पर सूर्य एवं मंगल दोनों की दृष्टि है। अतः इस रोग की पुष्टि हो रही है। इस व्यक्ति की मृत्यु इस रोग के कारण गुर्दे खराब होने से ही हुई थी।

2. धनु लग्न की इस कुंडली मंे पंचमेश मंगल 12वें भाव में शुक्र के साथ है। पंचम भाव राहु-केतु अक्ष मं है। गुरु शतभिषा नक्षत्र में होकर तीसरे भाव में मंगल द्वारा दृष्ट है। जातक मधुमेह से काफी समय से पीड़ित रहे तथा हृदय रोग से इनकी मृत्यु हुयी।

3. मिथुन लग्न की इस कुंडली में पंचम भाव राहु-केतु अक्ष में है। पंचमेश शुक्र सूर्य, शनि व लग्नेश बुध के साथ दूसरे भाव मं अस्त अवस्था में है तथा गुरु 12वें भाव मं है। जातक करीब 6 सालांे से मधुमेह से पीड़ित है।

4. मेष लग्न की इस कुंडली में पंचमेश सूर्य मृतावस्था मं तीसरे भाव में है, पंचम भाव पर शनि की दृष्टि है, गुरु छठे भाव में है। शुक्र पर शनि का प्रभाव है तथा लग्नेश मंगल व लग्न पर राहु-केतु अक्ष है। जातक 2003 से मधुमेह से पीड़ित है।

5. वृष लग्न की इस कुंडली में पंचम भाव पर केतु का प्रभाव है। पंचमेश बुध पर शनि की दृष्टि है। गुरु वक्री अवस्था में है। शुक्र पर मंगल की दृष्टि है तथा लग्न राहु-केतु अक्ष में है। जातक मधुमेह से पीड़ित है तथा प्रतिदिन इन्हें इंसुलिन लेनी पड़ती है।

6. कन्या लग्न की इस कुंडली में पंचमेश शनि छठे भाव मं वक्री अवस्था में है। पंचम भाव पापकर्तृ मं द्वादशेश सूर्य के प्रभाव मंे भी है। गुरु अष्टम भाव में शनि और उसपर शनि का प्रभाव है तथा शुक्र नवम भाव मं मंगल के नक्षत्र में है मंगल स्वयं राहु-केतु अक्ष में है। लग्नेश बुध पर भी शनि षष्ठेश की दृष्टि है। इस प्रकार सभी अवयवां पर प्रभाव होने से जातिका कई सालों से इस रोग से पीड़ित है। अन्य कुंडलियों में भी इसी तरह के परिणाम पाये गए हैं।

लगभग 1100 कुंडलियां का अध्ययन कर कुछ इस प्रकार के नतीजे प्राप्त किए गए: मधुमेह नामक यह रोग ग्लूकोज की मात्रा, रक्त तथा शरीर के तंतुओं में बढ़ जाने से उत्पन्न होता है जिससे पेंक्रियाज से निकलने वाला हारमोन ग्लूकोज को ठीक से पचा नहीं पाता है और यह रोग जन्म ले लेता है। इसके मुख्य अवयव पंचम भाव, पंचमेश, गुरु, शुक्र व मंगल ग्रह होते हैं।


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