कुंडली को देखकर संतान संख्या बता पाना मुश्किल अवश्य प्रतीत होता है परंतु असंभव नहीं, परंतु यहां यह भी ध्यान रखना होता है जो जातक विशेष आपके सम्मुख है वह आपको संतान संबंधी विषय में सही जानकारी प्रदान करे, कई बार जातक विशेष सही सूचना नहीं देते हैं। आइए जानते हैं कि ऐसे कौन से सूत्र हैं जो कुंडली में संतान संख्या के विषय में जानकारी देते हैं।
प्राचीन मत इस प्रकार से है
1. लग्न से पांचवें गुरु, गुरु से पांचवें शनि, शनि से पांचवें राहु तो एक पुत्र होता है।
2. पंचमेश का नवांशपति यदि स्वराशि के नवांश में हो तो एक पुत्र होता है।
3. पंचम भाव में जितने ग्रहों की दृष्टि हो उतनी संतान होती है।
4. पंचमेश उच्च का हो तो संतान अधिक होती है।
5. पंचम भाव में पंचमेश संग गुरु हो तो अनेक संतान होती है।
6. पंचम भाव में जितने ग्रह हांे उतनी संतान होती है।
7. पंचम भाव में जितने स्त्री-पुरुष ग्रहों का प्रभाव होता है उतनी ही स्त्री-पुरुष संतान होती है।
8. कहीं-कहीं पंचमेश की राशि संख्या के अनुसार भी संतान संख्या देखी जाती है। स्पष्ट कहा जा सकता है कि आज के संदर्भ में यह प्राचीन मत कारगर साबित नहीं होते हैं। आधुनिक मतानुसार देखें तो निम्न तीन तरीकों से संतान संख्या काफी हद तक सही पाई जाती है।
1. अष्टक वर्ग के द्वारा-गुरु ग्रह के अष्टक वर्ग में गुरु ग्रह से पंचम भाव में (गुरु पंचम भाव का तथा संतान का कारक होने के कारण) जितने शुभ बिंदु होंगे उतनी ही संतान होती है। यहां यह ध्यान रखंे कि शत्रु ग्रह, नीच ग्रह द्वारा दी गई बिंदु कुल बिंदुओं से घटाएं। अब जो संख्या बचे वह संख्या पैदा हुई संतानों की संख्या होगी।
2. पंचमेश जितने नवांश गुजार चुका हो उतनी ही संतान होती है यदि उस पर शत्रु ग्रहों का प्रभाव हो तो ग्रहानुसार संख्या घटानी चाहिए।
3. पंचमेश के उच्चबल साधन द्वारा उसकी रश्मियां ज्ञात कर उन रश्मियों के आधार पर संतान संख्या जानी जा सकती है। मंगल, बुध व शनि के उच्च राशि पर होने से इनकी 5-5 रश्मियां गुरु के उच्च राशि होने पर 7 रश्मियां चंद्र के उच्च होने पर 9 तथा सूर्य के उच्च राशि होने पर 10 रश्मियां होती हैं। उदाहरण के लिए यदि जन्म लग्न में शनि, मंगल अथवा बुध उच्च राशि के हों तो संतान की जन्म संख्या 5 हो सकती है। इस प्रकार किसी की भी पत्रिका में संतान की संख्या निम्न तरीकों से जानी जा सकती है।