अच्छे पंचांग की विशेषताएं पं. मनोहर शर्मा 'पुलस्त्य' आज बाजार अनेकानेक पंचांगों, पत्रों आदि से भरा पड़ा है, परंतु इनमें से अधिकांश अपने मानदंड पर खरे नहीं उतरते। कुछ गिने-चुने पंचांग या पत्रे ही जन सामान्य की सहायता कर पाते हैं। ऐसे में एक ऐसे पंचांग का होना आवश्यक है, जो हर दृ ष्टिकोण से उत्कृष्ट हो। यहां एक अच्छे पंचांग की कुछ विशेषताओं का विवरण प्रस्तुत है। पत्रे, पंचाग और तिथिपत्रक का संतुलित समायोजन : एक अच्छे पंचांग में पत्रे, पंचांग और कैलेंडर का पूर्ण संतुलित समायोजन होनी चाहिए। पंचांग में जनवरी से दिसंबर तक वर्ष के बारह मासों की प्रत्येक तारीख में विक्रमी संवत व संवत मासों की तिथियों, दैनिक नक्षत्र एवं ग्रहयोग, दिनमान, सूर्योदय और सूर्यास्त के समय, चंद्र के राशियों में प्रवेश, भद्रा एवं व्रत व त्यौहार आदि का उल्लेख होना चाहिए। प्रत्येक राशि का मासिक भविष्यफल भी दिया जाना चाहिए।
इसके साथ ही वर्ष में प्रमुख संभावित घटनाओं की भविष्यवाणी, व्यापारिक तेजी-मंदी एवं मौसम से संबंधित भविष्यवाणी भी होना चाहिए। ग्रहों एवं देवी-देवताओं के अशुभ प्रभावों के निवारण संबंधी उपायों एवं मंत्रों का उल्लेख : ग्रहों एवं नक्षत्रों की सम्यक् जानकारियों के साथ-साथ विभिन्न ग्रहों के अशुभ प्रभावों के निवारण के उपायों व मंत्रों का विस्तृत विवेचन एवं विभिन्न देवी- देवताओं के मंत्रों (जो उन निर्दिष्ट तिथियों व पर्वों में आते हैं), उनके यंत्रों के चित्र, चुने हुए महत्वपूर्ण मंत्र एवं उनके जप-विधान के साथ-साथ मंत्रों के जागरण, यंत्रों की प्राण-प्रतिष्ठा व तंत्र शास्त्र से संबंधित पर्याप्त जानकारियां भी एक अच्छे पंचांग में होनी चाहिए। साथ ही, धार्मिक अनुष्ठानों, देवी-देवताओं की पूजा-आराधना और मंत्रों से संबंधित शास्त्रसम्मत एवं लौकिक विधि-विधानों की पर्याप्त जानकारियां भी एक अच्छे पंचांग में दी जानी चाहिए।
ज्योतिष, धर्म, लोक-प्रचलित टोने-टोटके, शकुनों व स्वप्नों के शुभाशुभ फलों की जानकारी : शास्त्रसम्मत ज्योतिष और धर्म संबंधी जानकारी के साथ-साथ लोकप्रचलित टोने-टोटकों, शकुन अपशकुनों एवं विभिन्न प्रकार के स्वप्नों और उनके शुभाशुभ फलों तथा सामान्य ज्ञान का विस्तृत विवरण भी एक अच्छे पंचांग में होना चाहिए। साथ ही, विभिन्न रोगों के लक्षणों, कारणों व पथ्यापथ्य के साथ-साथ देशी-दवाइयों व विभिन्न जड़ी बूटियों एवं तंत्र-मंत्र-यंत्र जन्य उपचारों का उल्लेख भी आवश्यक है। अंग-फड़कन व स्वर-विज्ञान से संबंधित जानकारी : शरीर के विभिन्न अंगों के फड़कने के शुभाशुभ फलों के साथ-साथ विभिन्न तिथियों को चलने वाले स्वरों और उनके शुभाशुभ फलों और उपायों का विवरण भी एक अच्छे पंचांग में होना चाहिए। सामुद्रिक शास्त्र का की जानकारी : हमारा शरीर ही एक पूर्ण तंत्र विज्ञान है।
किसी व्यक्ति के लिए इसका सम्यक् ज्ञान आवश्यक होता है। अतः एक अच्छे पंचांग में इसकी यथासंभव सही-सही जानकारी होनी चाहिए। इस जानकारी के फलस्वरूप पंचांग की एक अलग पहचान बनेगी। सर्वार्थसिद्धि, रविपुष्य, गुरु पुष्य, द्विपुष्कर, त्रिपुष्कर व रवि योगादि का विवरण : हमारे दैनिक जीवन में कई ऐसे कार्य हैं जो सवार्थ सिद्धि, रवि पुष्य, गुरु पुष्य, द्विपुष्कर, त्रिपुष्कर व रवि योगों में ही होना चाहिए अन्यथा उनके बिगड़ जाने की प्रबल संभावना रहती है। इसलिए एक अच्छे पंचांग में इन योगों का सांगोपांग उल्लेख भी होना चाहिए। साथ ही विभिन्न प्राचीन तंत्राचार्यों की शोधपरक संहिताओं की महत्वपूर्ण तथ्यों का समावेश भी होना चाहिए जैसे भृगु व रावण संहिताओं के अंश, लाल-किताब के अंश आदि। रावण का 'काल निर्णय' भी एक बहुत अच्छा शोध ग्रंथ है जिसमें पांच प्रकार के कालों का उल्लेख है।
अधिकांश पंचांगों में केवल राहुकाल का ही समावेश किया जाता है। महेंद्रकाल, अमृतकाल, वक्र काल और शून्यकाल का आंशिक उल्लेख भी एक अच्छे पंचांग में होना चाहिए। कृषि एवं वर्षा संबंधी जानकारियों का समावेश : एक अच्छे पंचांग में कृषि एवं वर्षा संबंधी जानकारी का होना भी आवश्यक है। साथ ही अच्छी फसल के उपायों के साथ-साथ किन तिथियों एवं अवधियों में कौन-कौन सी फसल लगानी चाहिए इसका उल्लेख भी आवश्यक है। हानिकारक कीटों का प्रकोप कब हो सकता है, उसके प्रकोप के निवारण के क्या औषधीय तथा मंत्र-तंत्र-यंत्र जन्य उपचार हों इसकी जानकारी भी होनी चाहिए।
प्राचीन काल में आयुर्वेदिक एवं तांत्रिक उपाय अपनाए जाते थे, जिसके फलस्वरूप फसल अच्छी होती थी। सारांशतः एक अच्छे पंचांग में उक्त तथ्यों और कालगणना के साथ-साथ उन सभी तथ्यों का समावेश होना चाहिए, जिनका सीधा संबंध मानव जीवन से है।