भक्तों की पुकार सुनते हैं वर्धमानेश्वर महादेव
भक्तों की पुकार सुनते हैं वर्धमानेश्वर महादेव

भक्तों की पुकार सुनते हैं वर्धमानेश्वर महादेव  

राकेश कुमार सिन्हा ‘रवि’
व्यूस : 3611 | फ़रवरी 2017

संपूर्ण देश में शिवशंकर जी का स्थान यत्र तत्र सर्वत्र है और भारत भूमि के हरेक सांस्कृतिक प्रक्षेत्र में विभिन्न काल खंड व विविध आकार-प्रकार के शिवलिंग पूजित हैं। इनमें संपूर्ण बंगाल की भूमि का विशालतम् शिवलिंग जहां आज विराजमान है, वह है वर्धमान, जहां के वर्धमानेश्वर शिव को विशालतम् होने के कारण ‘मोटे शिव’ कहा जाता है। राष्ट्रीय राजामार्ग-2 और नई दिल्ली हावड़ा ग्रैंड काॅर्ड रेल खंड पर कोलकाता महानगरी से तकरीबन 100 किमी. पहले दामोदर नदी के किनारे अवस्थित वर्धमान पश्चिम बंगाल का प्रगतिशील शहर है जहां आज भी विशाल राजभवन, पुरातन स्मारक, अंग्रेजी राज्य के धरोहर व विभिन्न धर्म से जुड़े उपास्य स्थल विद्यमान हैं।

संक्षिप्त इतिहास: इतिहास के पन्नों पर अध्ययन अनुशीलन से ज्ञात होता है कि वर्धमान का नामकरण 24वें तीर्थंकर वर्धमान महावीर के नाम से प्रकाशित है जहां दामोदर नदी के पाश्र्व में उन्होंने सर्वप्रथम बाह्य क्षेत्रीय धर्म प्रचार किया था। ऐसे वर्धमान का शाब्दिक सन्निकटता बांग्ला भाषा साहित्य में ‘प्रगति’ या ‘वृद्धि’ सूचक है जो इस नगर की विकास गाथा का स्पष्ट व्याख्यान है। सिकंदर महान के समय इस पूरे क्षेत्र को ‘पार्थेनिस’ कहा गया है तो गुप्त अभिलेखों में वर्धमान मुक्ति का स्पष्ट उल्लेख आया है। आईन-ए-अकबरी में इसका संबोधन शरीफाबाद के रूप में है। विवरण मिलता है कि 1650 ई. के करीब कोहली (लाहौर) खतरी वंशीय संगम राय ने जगन्नाथ पुरी की यात्रा से लौटते वक्त विश्राम करने के उपरांत स्थान के महत्व को देखते हुए व्यापार की दृष्टि से यहां बैकुंठपुर गांव बसाया और काफी पैसे खर्च करके इस नगर की स्थापना की। यह कालांतर में वर्दमान, वर्द्धमान अथवा वर्धमान के नाम से चर्चित हुआ। कुछ पूर्व तक यहां एक प्राचीन रियासत थी जिसके विशाल राज भवन, स्मारक व धर्म स्थल आज भी नगर की शोभा बढ़ा रहे हैं।

सन् 1510 ई. में यहां गुरुनानक जी के कदम पड़े हैं जो कटुवा से होकर इधर आए थे और आज भी राजवाटी क्षेत्र में उनका स्थान विराजित है। वर्ष 1742 ई. में इस स्थान पर अलीवर्दी खान का आधिपत्य हो गया और फिर 1760 ईमें यह ईस्ट इंडिया कंपनी के अधीन चला गया। प्रारंभ में इसका भूक्षेत्र मिदनापुर जिले के अंतर्गत था और 1884 ई. तक यह हुगली जिले का क्षेत्र रहा बाद में 1885 में इसे जिले का रूप दे दिया गया जो संप्रति बंगाल के पांच बड़े नगरों में एक है। वर्तमान विवरण: संपूर्ण वर्धमान नगर में नए-पुराने ऐतिहासिक व धार्मिक स्मारक स्थापित हैं जिसमें मुख्य राजमार्ग पर बना विजय तोरण आज भी अंग्रेजी राज की याद दिलाता है जिसे स्टार आॅफ इंडिया गेट भी कहा गया है। इसका निर्माण 1903 ई. में लाॅर्ड कर्जन के सम्मान में किया गया। पूरे नगर में शिवशंकर के नाम पर महादेव पाड़ा, प्राचीन शिव मंदिर, लोकेश्वर नाथ, सर्वमंगला शिव मंदिर, 108 शिव मंदिर आदि विराजित हैं पर इस संपूर्ण क्षेत्र में जिनकी सर्वाधिक प्रसिद्धि निरंतर बनी है वह हैं वर्धमानेश्वर महादेव, जो आलमगंज क्षेत्र में राइस मिल्स के ठीक सामने समतल भूख्ंाड पर शोभायमान है।

शिव मंदिर कथा: ग्रिल के बने दीवार के ऊपर खुले शेड से शृंगारित बाबा के इस स्थान पर पहुंचते ही शैव शक्ति का स्पष्ट आभास होने लगता है जिसका आविर्भाव चारू चंद्र डे की जमीन से वर्ष 1972 के 10 अगस्त के दिन गुरुवार को हुआ है। कहते हैं पहले यहीं पर एक मनौति वृक्ष था जिसकी पूजा स्थानीय लोग करते थे। एक बार उसी के नीचे कुछ काला नजर आया जिसपर कुछ ठोस गिरते खूब टनक झंकार की आवाज आती। लोगों ने परिश्रम से इसकी खुदाई की और देखते-देखते इसका उद्धार हो गया। वर्धमान विश्वविद्यालय की टीम ने इस पूरे क्षेत्र का निरीक्षण किया और इसे क्षेत्र के सबसे पुराने व बड़े शिव के रूप में रेखांकित किया। यह शिवलिंग साढ़ेतीन सौ मन वजन का है जो 5 फीट 9 इंच व 18 फीट व्यास युक्त है। चमकदार कसौटी पत्थर का बना यह शिवलिंग निर्माण व शिल्पकारिता के आधार पर कुषाण कालीन बताया जाता है जिसके निचले खंड में वक्र रेखीय आकृति देखी जा सकती है। मंदिर के 91 वर्षीय सेवक राम प्रसाद गंगोपाध्याय के पुत्र पुजारी अमर गंगोपाध्याय बताते हैं कि चैव सौदागर व बिहुला लाखविन्द की कथा के महानायक यही शिव जी हैं जिसे वर्ष 1972 के श्रावण 25 बांग्ला तिथि को स्थापित किये जाने के बाद पूरे देश के शैव भक्तों का जमावड़ा बना रहता है। ऐसे तो यहां पूरे श्रावण और शिवरात्रि में दूर-दूर से भक्त आते हैं पर हरेक सोमवार को भी खूब भीड़ लगती है। श्रावण के दिनों में 72 किमी. दूरी पर अवस्थित कटवा से गंगा जल भर कर कांवरियों की होली के जलापर्ण का अब अपना अंदाज देखा जा सकता है। शिवलिंग के नीचे बनी रेखीय आकृति त्रिकोण का निर्माण करती है और ऐसे शिवलिंग की पूजा तंत्र सिद्धि के लिए उपयुक्त मानी जाती है।

अन्य मंदिर: यहीं पास में आगे राजबाटी क्षेत्र में मां धनेश्वरी मंदिर, सोमार काली बाड़ी, सर्वमंगला-मां मंदिर, लक्ष्मी नारायण मंदिर, मनोकामना मंदिर, नवीन हनुमान मंदिर व नवग्रह मंदिर के साथ विशाल राजप्रासाद देखा जा सकता है। इसका नाम ‘अंजमन’ है जिसमंे अब पश्चिम बंगाल सरकार का विभागीय कार्य संचालित होता है। वर्धमान के शैव तत्व से जुडे़ वर्णन विवेचन में नवाबघाटा का 108 शिव मंदिर विशेष रूप से दर्शनीय है जिसे मुख्य सिंह द्वार चैक से 10 मिनट की दूरी तय करके देखा जा सकता है। प्रायः एक ही आकार प्रकार के बने इन शिव मंदिरों के बारे में यहीं की शोध छात्रा नयना गोस्वामी बताती हैं कि पूरे देश में 108 मंदिरांे की यह माला अनूठी व अद्वितीय है जो रानी विष्णु कुमारी द्वारा बनवायी गयी है। बाहर में शिव पार्वती का सुंदर रूप स्वागत करते प्रतीत होता है।

दर्शन के अन्य स्थान: इसके अलावा शहर में ही काली स्थान, कमलाकांत का साधनापीठ, कंकालेश्वरी मंदिर, विज्ञान भवन, तारामंडल, गुलाब बाग, ललितगढ़ कास्त्र कैंपस, संस्कृति भवन व कृष्णा सागर पार्क देखने लायक है। विश्वगुरु रवीन्द्रनाथ टैगोर की अमर कृति शांति निकेतन यहां से 52 किमी. दूरी पर सड़क व रेल मार्ग से जुड़ा है। दुर्गापुर जैसे - लौह नगरी से 65 किमी. दूरी पर अवस्थित वधर्ममान में खाना, ठहरना व घूमना तीनों सस्ता है और इन सबों के बीच यहां का मिष्टान्न्ा ‘सीता भोग’ ‘व’ ‘मिहिदाना’ खाने का अपना मजा है। यहां के देवालय दोपहर में प्रायः बंद रहते हैं इस कारण दर्शन पूजन शाम सुबह ज्यादा सटीक है।

देश के विशालतम् शिवलिंग:- संपूर्ण देश में शिवशंकर के विशालतम् शिवलिंग विराजमान हैं जिनमें भोपाल से 32 कि.मी. दूर भोजपुर के भोनेश्वर नाम (18 X 7.5 फीट), मरौदा, गरिमा बंद, छत्तीसगढ़ के महादेव (18 X 20 फीट), खजुराहो के मंतेगेश्वर शिव (8.4 X 3.8 फीट), जीरो टाउन (आंध्र प्रदेश) के सिद्धेश्वर महादेव (25 X 22 फीट), विन्ध्य क्षेत्र में अमरेश्वर महादेव (11 X 7 फीट), तंजौर के बृहदेश्वर (11.5 X 9.7 फीट), वाराणसी के तिलमंडेश्वर (3.5 X 3 फीट), कोल्लार के कोलिंगेश्वर महादेव (3.7 X 5.1 फीट), गया के वृद्ध परपिता शिव (4.5 X 6.3 फीट) आदि का सुनाम है पर खुले में शिवशंकर का इतना बड़ा शिवलिंग देखकर मन गद्गद् हो जाता है। उपस्थित भक्तजन व नगर के जानकार लोग बताते हैं कि सर्वप्रथम चारू चंद्र डे व उनके पुत्रों ने ही यहां मंदिर बनवाना चाहा पर बाबा ने सपने में खुले में रहने की बात बतायी। अस्सी के दशक में भी एक बार बड़े शिखर वाले मंदिर बनाने की बात उठी पर बाबा ने अपने भक्तों का मन बदल दिया। इस तरह आज भी ये मोटे शिव खुले में ही हैं। कुल मिलाकर वर्धमान नगर का वर्धमानेश्वर महादेव अपने आकार प्रकार के अनुरूप यश, महिमा की दृष्टि से भी अनुपम व अतुलनीय है जो पुरातन काल में और पुनः नए जमाने में जन-जन का अहर्निश कल्याण कर रहा है।



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