सूर्य सुलभ दृष्ट, प्रकाशवान व ज्वलंत ग्रह है। वह जीवनी शक्ति, पिता, सफलता, सत्ता, सोना, लाल कपड़ा, तांबा, ऊर्जा, स्वास्थ्य, आरोग्य, औषधि आदि का कारक है। इसका आंखों की ज्योति, शरीर के मेरूदंड, तथा पाचन क्रिया पर प्रभुत्व है। सूर्य के तेज के कारण अन्य ग्रह- चंद्र, मंगल, शनि, शुक्र, बृहस्पति व बुध उसके पास आने पर अस्त होकर प्रभावहीन हो जाते हैं, परंतु राहु व केतु सूर्य के समीप आने पर उसे ग्रहण लगाते हैं। सूर्य को ग्रहों का राजा माना गया है। वह 24 घंटे में भचक्र में 10 प्रगति कर एक राशि का गोचर 30 दिन में पूरा करता है। सूर्य सिंह राशि का स्वामी है, मेष में उच्च तथा तुला राशि में नीचस्थ होता है। उसकी विंशोत्तरी दशा छः वर्ष की होती है। सूर्य के विपरीत शनि ग्रह प्रकाशहीन, दूरबीन से दृष्ट और ठंडा ग्रह है। वह आलस, दासता, गरीबी, लंबी बीमारी और मृत्यु का मुख्य कारक है। शनि काले तिल, तेल, उड़द, लोहा, कोयला व काले वस्त्र आदि का कारक है।
भचक्र में शनि दो राशियों- मकर व कुंभ का स्वामी है। वह तुला राशि में उच्च तथा मेष राशि में नीचस्थ होता है। शनि एक राशि का गोचर ढाई वर्ष में पूरा करता है। वह कुंडली में षष्ठ, अष्टम और द्वादश (त्रिक) भावों का कारक है जो कष्ट, दुःख और हानि दर्शाते हैं। अतः उसे नैसर्गिक पापी ग्रह की संज्ञा दी गई है, परंतु वह तुला, मकर, कुंभ और वृष लग्नों में शुभकारी होता है। बलवान शनि जातक की प्रगति में पूर्ण सहायक होता है। अन्य ग्रहों पर शनि के दुष्प्रभाव से उनके कारकत्व में न्यूनता आती है। सूर्य से अस्त होने पर शनि अधिक कष्टकारी बन जाता है। हृदय को खून ले जाने वाली नाड़ियों के संकुचित होने से जातक हृदय रोग से ग्रस्त होता है। शनि ग्रह के बारे में हिंदू धार्मिक ग्रंथों में अनेक महत्वपूर्ण तथ्य प्राप्त होते हैं। जैसे शनि सूर्य के पुत्र हैं। इनका सूर्य की पत्नी की छाया से जन्म होने के कारण ये कृष्ण वर्ण, कुरूप तथा पिता समान ज्ञानी और बलवान ग्रह हैं। इनकी हानिकारक दृष्टि से बचने के लिए पिता सूर्य द्वारा जन्म के तुरंत बाद ब्रह्मांड में बहुत दूर फेंके जाने के कारण यह प्रकाश रहित और शीतल ग्रह है। कुंडली में अशुभ भाव में स्थित होने पर शनि शीत-जनित और दीर्घकालीन रोग व कष्ट देता है।
इनका अपने पिता सूर्य से शत्रुवत व्यवहार है। शनि शिवजी के परम प्रिय शिष्य हैं। शनि के धार्मिक, सात्विक और निष्पक्ष आचरण से प्रसन्न होकर शिवजी ने इन्हें सभी प्राणियों के कर्मफल का निर्णायक बनाया था। विंशोत्तरी दशा में शनि को 19 वर्ष प्राप्त हैं। सप्तम दृष्टि के अतिरिक्त शनि की तीसरी और दसवीं पूर्ण दृष्टि होती है। शनि जिस भाव में स्थित हों उसमें स्थिरता तथा दृष्ट ग्रह व भावों के कार्यकाल को हानि पहुंचाते हंै। शनि कष्टकारी होने पर शिवजी तथा हनुमान जी की आराधना लाभकारी होती है। कुंडली में इन दो विपरीत प्रकृति वाले शक्तिशाली ग्रहों की युति स्वभावतः जातक का जीवन कठिनाईयों से भरा और हताशापूर्ण बनाती है। इस बारे में कुछ मानद ज्योतिष ग्रंथों का मार्गदर्शन इस प्रकार है:- फलदीपिका (अ. 18) के अनुसारः ‘सूर्य व शनि साथ-साथ हो तो जातक धातु के बर्तन निर्माण और व्यापार द्वारा अपना निर्वाह करता है अर्थात् मेहनत से जीवन यापन करता है। सारावली (अ. 15.7) के अनुसार: जातक धातुशिल्पी होता है। यह युति 6, 8, 12 (त्रिक) भावों में होने पर जातक पारिवारिक क्लेशों से घिरा रहता है। पुनश्च, (अ. 31, 22.25) के अनुसार: लग्न में सूर्य-शनि की युति होने पर जातक की माता का चरित्र संदिग्ध होता है। जातक स्वयं दुश्चरित्र, मलिन और दुष्कर्मी होता है। चतुर्थ भाव में धन की कमी, रिश्तेदारों से खराब संबंध और माता का सुख कम प्राप्त होगा। सप्तम भाव में युति से जातक आलसी, मंदबुद्धि, दुर्भागी और नशे का सेवन करता है तथा पति-पत्नी के संबंधों में कटुता रहती है। दशम भाव में युति होने पर जातक विदेश में या स्वदेश में निम्न स्तर की नौकरी से धन कमाता है, और वह भी चोरी चला जाता है जिससे जातक धनहीन और दुःखी रहता है।
सूर्य-शनि की युति के फलादेश का अध्ययन दर्शाता है कि शनि के दुष्प्रभाव से युति वाले भाव तथा उससे सप्तम भाव के फलादेश में न्यूनता आती है। यह युति सूर्य के कारकत्व पिता की स्थिति, उनका स्वास्थ्य तथा जातक के अपने कार्यक्षेत्र तथा मान-सम्मान में कमी करती है। जातक के अपने पिता से संबंध अच्छे नहीं रहते। सूर्य के अधिक निर्बल होने पर पिता का साया जल्दी उठ जाता है या जातक अपने पिता से अलग हो जाता है। इसी प्रकार संबंधियों से भी अलगाव होता है। अतः कुछ आचार्य इस युति को ‘विच्छेदकारी योग’ की संज्ञा देते हैं। लेखक के संज्ञान में सूर्य-शनि युति फल दर्शाती कुछ कुंडलियां इस प्रकार हैं:- उदाहरण कुंडली 1 में लग्न में सूर्य तथा शनि की युति है। साथ में शुक्र भी है। जातक का वैवाहिक जीवन दुःखी है। चतुर्थ में राहु-चंद्र की युति से अपनों से धोखा मिला जिससे वह चिंतित रहता है। शनि अपनी 10वीं दृष्टि से दशम भाव स्थित केतु को देख रहा है और केतु की द्वितीय भाव स्थित बुध और मंगल पर दृष्टि है। जातक को नौकरी में संतुष्टि नहीं है और धन की कमी रहती है। बुध की दशा 27.11.2013 से चल रही है तथा 10-9-2009 से साढ़ेसाती भी चल रही है। उदाहरण कुंडली 2 में द्वितीय भाव में सूर्य, शनि व दशमेश बुध की युति है। जातक ने बी. टेक किया है। नौकरी ढूंढ रहा है। 2.11.2014 तक शनि ढैय्या थी। 3-2-2018 तक बुध की दशा चल रही है। परिवार में धन का संकट है। चतुर्थ भाव में पीड़ित चंद्रमा के कारण माता भी बीमार रहती है। जातक अशांत रहता है। उदाहरण कुंडली 3 में चतुर्थ भाव में सूर्य, शनि, शुक्र और गुरु की युति है। पंचमेश मंगल षष्ठ भाव में केतु के साथ है। पंचम से अष्टम (द्वादश भाव) में राहु स्थित है। जातक का पिता लकवा से पीड़ित है।
जातक एम. बी. ए. पूरा नहीं कर पाया। राहु की दशा 8-11-2001 से चल रही है। जातक का विवाह नहीं हुआ है। उदाहरण कुंडली 4 में सूर्य शनि लग्न से षष्ठ तथा चंद्रमा से अष्टम भाव में, दशमेश शुक्र अष्टम भाव में राहु और शनि से दृष्ट हैं। जातिका व पिता का स्वास्थ्य खराब है। जातिका के एम. बी. ए. की शिक्षा में कठिनाई आ रही है। पंचम भाव पापकत्र्तरी योग में है। पंचमेश बृहस्पति कन्या राशि में वक्री है तथा केतु से दृष्ट है। पिता की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं है। शनि दशा 28-4-2011 से चल रही है। उदाहरण कुंडली 5 में नीच नवमेश मंगल, राहु के साथ पंचम भाव में है। सूर्य, शनि और दशमेश बृहस्पति सप्तम में है। जातक का जीवन कष्टपूर्ण है। उसको पेट की बीमारी है। पिता भी बीमार है। जातक अभी तक अविवाहित है। 29-3-2010 से शनि दशा है तथा 10-9-2009 से साढ़ेसाती भी चल रही है। सूर्य-शनि युति जनित कष्टों को सहनशील बनाने के लिए आगे दिये गये उपाय लाभदायक सिद्ध हो सकते हैं:- उपाय 1. सूर्य को बल देने के लिए जातक को सूर्योदय से पहले जागकर अपने पिता के चरण स्पर्श कर उनका आशीर्वाद प्राप्त करना चाहिए। पिता की उम्र के व्यक्तियों का आदर करना चाहिए। 2. स्नान के बाद उगते सूर्य को तांबे के बर्तन में जल, थोड़ा गंगाजल, रोली, खांड और लाल फूल डालकर ‘ऊँ’ आदित्याय नमः। ‘ऊँ’ भास्कराय नमः। ‘ऊँ’ सूर्याय नमः का उच्चारण करते हुए धीरे-धीरे सूर्य को अघ्र्य देना चाहिए। ध्यान रखें कि छींटे पैर पर न पड़ें तथा चढ़े हुए जल से अपना तिलक करना चाहिए। उसके बाद एक माला ‘ंऊँ आदित्याय नमः’ मंत्र का जप करना चाहिए। 3. प्रत्येक रविवार को अनार फाड़कर सूर्य को अघ्र्य के बाद भोग अर्पण करते समय सूर्य मंत्र का धीरे-धीरे जप करना चाहिए।
कुछ अनार के दाने प्रसादस्वरूप ग्रहण करना चाहिए। साथ ही शनि की शांति के लिए 1. प्रत्येक शनिवार सायंकाल शनिदेव का तैलाभिषेक करके कुछ तेल को मिट्टी के दीपक में डालकर समीपस्थ पीपल के पेड़ की जड़ के पास प्रज्ज्वलित करना चाहिए और ‘ऊँ शं शनैश्चराय नमः’ मंत्र का कुछ समय जप करना चाहिए। 2. उसके बाद मंदिर के सामने बैठे अपाहिज भिखारियों को उड़द दाल-चावल की खिचड़ी या उड़द दाल के बड़े यथाशक्ति बांटना चाहिए। धन का दान नहीं देना चाहिए। 3. अपने नौकरांे और सफाई कर्मचारियों से अच्छा व्यवहार और सामथ्र्य अनुसार कभी-कभी उनकी सहायता करते रहना चाहिए। उपरोक्त उपाय श्रद्धापूर्वक कुछ माह करने से जीवन में सुख-शांति का अनुभव होना आरंभ हो जाएगा।