शनि की साढ़ेसाती व ढैय्या का प्रभाव
शनि की साढ़ेसाती व ढैय्या का प्रभाव

शनि की साढ़ेसाती व ढैय्या का प्रभाव  

राजेंद्र कुमार शर्मा
व्यूस : 7268 | फ़रवरी 2017

प्रत्येक जातक को अपने जीवन में दो या तीन बार शनि की साढ़ेसाती या ढैय्या का सामना करना ही पड़ता है। जिन जातकों की दीर्घायु होती है उनके जीवन में कुल तीन साढ़ेसाती आती है क्योंकि 30 वर्षों के पश्चात ही शनि वापस राशि में आता है। यह आवश्यक नहीं है कि शनि की साढ़ेसाती या ढैय्या आपको कष्ट ही प्रदान करेंगी। अनुभव में देखा गया है कि शनि की साढ़ेसाती में लोगों ने इतनी उन्नति की है जितनी उन्होंने अपने पूरे जीवन में नहीं की। शनि की साढ़ेसाती एवं ढैय्या का प्रभाव कैसा होगा यह जातक की जन्मपत्रिका में शनि की स्थिति से पता चलता है।

‘‘द्वादशे जन्मगे राशौ, द्वितीये च शनैश्चरः। सार्धानि सप्तवर्षाणि तदा दुःखौर्युतो भवेत्।।’’ ‘‘कल्याणी प्रदाक्षति वै, रविस्तुतो राशेश्चतुर्थाष्टमे।’’ शनिदेव एक राशि में ढाई वर्ष के लगभग रहते हैं। शनि की गोचर गति सबसे कम है। अतः यह मंदतम ग्रह कहलाते हैं। इसकी अधिकतम दैनिक गति सात कला तथा वक्री से मार्गी या मार्गी से वक्री होते समय न्यनूनतम गति एक कला प्रतिदिन भी हो सकती है। शनिदेव को बड़ी विपत्ति के नाम से जाना जाता है। प्राणी शनि के गोचर से भयभीत रहते हैं। अतः गोचर विचार में शनि का महत्व अत्यधिक है। जन्मपत्रिका में शनि की स्थिति यदि जन्मपत्रिका में शनि उच्च, स्वराशि या मित्रराशि में हो तो षष्ठ, अष्टम या द्वादश (दुःस्थानों) भाव में स्थित होते हुए भी शनि हानिकारक नहीं होता, परंतु शनि नीच राशिस्थ, अस्तंगत या शत्रुक्षेत्री होने पर अधिक अशुभ फल देता है। इसी प्रकार गोचर में भी उच्च अथवा नीच राशिस्थ होने पर फल पर अच्छा या बुरा प्रभाव पड़ता है। यदि शनि पर अशुभ ग्रहों की दृष्टि हो तो उसका फल अधिक अशुभ होता है।

इसके विपरीत यदि उस पर किसी शुभ ग्रह की दृष्टि हो तो उसके अशुभ फल में कमी आती है। बुध व शुक्र शनि के मित्र हैं। बुध की राशियां मिथुन व कन्या तथा शुक्र की वृषभ व तुला हैं। शनि मकर व कुंभ राशियों का स्वामी है, तुला का शनि उच्च का होता है। अतः वृषभ, मिथुन, कन्या, तुला, मकर तथा कुंभ राशियों में शनि गोचरवश आये या शुभ ग्रहों से दृष्ट या युक्त हो तो ुभ फल नहीं देता है। गुरु शनि के संबंध सम हैं। अतः शनि धनु एवं मीन राशियों में अधिक हानि नहीं करता, जबकि शत्रु सूर्य, चंद्र तथा मंगल की राशियों मेष, कर्क, सिंह तथा वृश्चिक में गोचरवश आने पर तथा अशुभ ग्रहों से दृष्ट या युक्त होने पर अधिक कष्ट देगा।

उदाहरणार्थ: किसी जातक की राशि वृश्चिक है। जब शनि तुला में गोचरवश प्रवेश करेगा तो तुला शुक्र (मित्र) की राशि तथा स्वयं शनि उच्च राशि का होने से लगती साढ़ेसाती (दृष्टिकाल) अधिक हानिकारक नहीं होगी। वृश्चिक राशि मंगल (शत्रु) की राशि होने से शनि का भोगकाल अधिक कष्टदायी होगा। उतरती साढ़ेसाती (शनि के पैर) धनु राशि (गुरु सम होने से) में आने पर अधिक कष्टदायक नहीं होगी। शनि की साढ़ेसाती: जातक की जन्मराशि से एक राशि पूर्व (चंद्र लग्न से द्वादश), जन्म राशि में (चंद्र लग्न में) तथा जन्म राशि से एक राशि पश्चात (चंद्र लग्न से द्वितीय) जब शनि गोचरवश आता है तो इस अवधि को साढ़ेसाती कहते हैं।


Get the Most Detailed Kundli Report Ever with Brihat Horoscope Predictions


एक राशि में ढाई वर्ष रहने से तीन राशियों का गोचर काल साढ़े सात वर्ष हुआ। उदाहरणार्थ किसी जातक की तुला राशि है। जब शनि गोचरवश कन्या राशि में आयेगा तब इस जातक की लगती साढ़ेसाती (शनि की दृष्टि), तुला राशि में आने पर राशिगत साढ़ेसाती (शनि का भोग) तथा शनि के वृश्चिक राशि में आने पर उतरती साढ़ेसाती (शनि के पैर) कहलाती है। इस जातक के लिए शनि का कन्या से वृश्चिक तक इन तीन राशियों का गोचर काल साढ़े सात वर्ष ही शनि की साढ़ेसाती कहलाती है।

प्रभाव: 1. दृष्टिगत साढ़ेसाती या लगती साढ़ेसाती चंद्र लग्न से द्वादश भाव में शनि के आने से शनि की तृतीय पूर्ण दृष्टि द्वितीय भाव (धन/वाणी) पर, सप्तम पूर्ण दृष्टि षष्ठ भाव (रिपु/यश) पर, एवं दशम पूर्ण दृष्टि नवम (भाग्य/ धर्म) भाव पर पड़ती है। लग्न के दोनों ओर द्वादश एवं द्वितीय भाव शनि के दुष्प्रभाव से ग्रसित होने पर मध्य लग्न भी दूषित हो जाता है। धन, यश तथा भाग्य भाव तो शनि के कुप्रभाव में आ ही जाते हैं। लग्न के दूषित होने पर तन, मन एवं सम्मान पर भी कुप्रभाव पड़ता है। इसी कारण साढ़ेसाती जातक के लिए कष्टदायी होती है।

2. राशिगत साढ़ेसाती या शनि का भोगकाल इसी प्रकार चंद्र लग्न में गोचरवश शनि के आने पर शनि की तृतीय पूर्ण दृष्टि तृतीय भाव (पराक्रम/ भ्राता) पर, सप्तम दृष्टि सप्तम भाव (जीवनसाथी) तथा दशम दृष्टि दशम भाव (कर्म/पिता) पर पड़ती है, जिससे क्रमशः पराक्रम, पत्नी एवं कर्म के भावों पर कुप्रभाव पड़ता है।

3. उतरती साढ़ेसाती या शनि के पैर जब शनि चंद्र लग्न से द्वितीय भाव में आता है तब शनि की तृतीय, सप्तम एवं दशम दृष्टि क्रमशः चतुर्थ भाव (सुख/माता), अष्टम भाव (आयु) एवं एकादश (लाभ/आय) भाव पर पड़ती है जो क्रमशः सुख, माता, संपत्ति, आय तथा लाभ भाव हैं। शनि के गोचरवश चंद्र लग्न से द्वितीय होने से तीनों भाव बिगड़ जाते हैं। इस प्रकार साढ़े सात वर्ष में अधिकांश भावों से संबंधित हानि होती है। शनि की साढ़ेसाती गत तीनों भावों का प्रभाव उपरोक्त संलग्न कुंडलियों में दृष्टि के आधार पर दर्शाया गया है। शनि की ढैय्या: चंद्र लग्न से चतुर्थ भाव एवं अष्टम भाव में गोचर शनि के आने से जातक को ढैय्या लगती है। इसे लघु कल्याणी या लघु पनौति भी कहा जाता है। चतुर्थ भाव में स्थित शनि की ढैय्या को कण्टक शनि भी कहते हैं। अष्टम भाव में स्थित शनि की ढैय्या को अष्टमस्थ शनि भी कहा जाता है।

प्रभाव: चतुर्थस्थ शनि ढैय्या गोचरवश जब शनि जातक के चंद्र लग्न से चतुर्थ भाव में आता है तब इसे शनि की ढैय्या या लघु कल्याणी अथवा कण्टक शनि कहा जाता है। शनि की तृतीय दृष्टि षष्ठ भाव, सप्तम दृष्टि दशम भाव पर तथा दशम दृष्टि लग्न पर पड़ने से इन भावों के फलों पर कुप्रभाव पड़ता है।


For Immediate Problem Solving and Queries, Talk to Astrologer Now


2. अष्टमस्थ शनि ढैय्या इसी प्रकार शनि के चंद्र लग्न से अष्टम भाव में होने पर तृतीय दृष्टि दशम भाव पर, सप्तम दृष्टि द्वितीय भाव पर तथा दशम दृष्टि पंचम भाव पर पड़ती है। अतः क्रमशः कर्म, धन तथा संतान पक्ष दुष्ट प्रभाव में आ जाते हैं। दक्षिण भारत में विशेष रूप से कर्नाटक में साढे़साती से अधिक दुष्प्रभाव देने वाला पंचमस्थ शनि को मानते हैं। चंद्र लग्न से पंचमस्थ शनि की तृतीय, सप्तम व दशम दृष्टि क्रमशः सप्तम, एकादश तथा द्वितीय भावों पर होती है। इस कारण ये भाव कुप्रभाव में आ जाते हैं। यदि इस अवधि में शनि नीच, अस्तंगत, शत्रुक्षेत्री तथा पापग्रह युक्त व दृष्ट हों तो अत्यंत वैभवशाली जातकों को भी फूटे मटके में रोटी खिला देता है। यदि शनि मित्र राशि, उच्च राशि तथा शुभ ग्रहों से संबंधित हो तो शनि की साढे़साती या ढैय्या शुभ प्रभाव प्रदान करती है।

सामान्यतया साढ़ेसाती जातक के जीवन में प्रथम बचपन में, द्वितीय युवावस्था में तथा तृतीय वृद्धावस्था में आती है। प्रथम साढ़ेसाती का प्रभाव शिक्षा एवं माता-पिता पर पड़ता है। द्वितीय का कार्य क्षेत्र, आर्थिक स्थिति एवं परिवार पर पड़ता है। परंतु तृतीय साढे़साती स्वास्थ्य पर अधिक बुरा प्रभाव डालती है। पति-पत्नी, पिता-पुत्र अथवा भाई-भाई पर एक साथ साढ़ेसाती आना अधिक हानिकारक है।

एक ही परिवार के अनेक सदस्यों पर एक साथ साढ़ेसाती आने पर परिवार के मुखिया पर भी संकट आ जाता है। शनि की साढ़ेसाती या ढैय्या सभी के लिए हानिकारक नहीं शनि की साढ़ेसाती या ढैय्या सभी जातकों के लिए तथा पूरी अवधि के लिए अनिष्टकारी नहीं होती है। शनि सदैव अनिष्टकारी नहीं होता यह जातक को जीवन में आश्चर्यजनक उन्नति भी देता है- यथा ‘‘जन्मांगरूद्रेषु सुवर्णपादं द्विपंचनन्दे रजतस्य वदन्ति। त्रिसप्तदिक् ताम््रपादं वदन्ति वेदार्क साष्टेऽपिवह लौहपादम्।।’’ शनि के साढ़ेसाती या ढैय्या में प्रवेश करते समय चंद्र किस राशि में है, इसका प्रभाव शनि के प्रभाव पर पड़ता है। इसे शनि का चरण विचार कहते हैं।

यदि शनि के साढ़ेसाती या ढैय्या में प्रवेश करते समय चंद्र राशि से एक, छठे या ग्यारहवें स्थान (राशि) में हो तो स्वर्णपाद साढे़साती, चंद्र राशि से दो, पांच या नौ में हो तो रजतपाद साढ़ेसाती, चंद्रमा तीन, सात या दस में हो तो ताम्रपाद तथा चार, आठ या बारह में होने पर लौहपाद साढ़ेसाती कहलाती है।

यथा- प्रभाव: ‘‘लौहे धनविनाशः स्यात् सर्व सौख्यं च कान्चने। ताम्रे च समता जेया सौभाग्यं रजकं भवेत।।’’ लौहपाद में धन नाश, स्वर्णपाद सर्वसुखप्रदायक, ताम्रपाद में सामान्य फलदायक तथा रजतपाद में शनि का प्रवेश सौभाग्यप्रद रहता है। अतः शनि के बारे में प्रत्येक जातक को शांतिपूर्वक धैर्य के साथ विचार करना चाहिए। नक्षत्रीय प्रभाव: साढ़ेसाती की अवधि में शनि जिन राशियों में गोचर करेगा उनके नक्षत्रों के स्वामियों के साथ यदि शनि की मित्रता या समता है तो शनि अधिक हानि नहीं करेगा।


अपनी कुंडली में सभी दोष की जानकारी पाएं कम्पलीट दोष रिपोर्ट में


यदि उन नक्षत्रों के स्वामियों से शनि की शत्रुता है तो अधिक हानि करेगा। शनि वाहन विचार: जब शनि एक राशि से दूसरी राशि गोचरवश आये तो उस समय निम्न तीन काल संज्ञक अंगों की गणना करते हैं। तिथि: अमावस्या से उस दिन तक की संख्या गिनें। नक्षत्र: अश्विनी से शनि के गोचर प्रवेश के समय नक्षत्र संख्या गिनें। वार: वार की संख्या रविवार से गिनें। उपरोक्त तिथि, वार तथा नक्षत्र शनि के राशि प्रवेश के समय के होने चाहिए। इन तीनों संख्याओं का योग कर योगफल में नौ का भाग लगायें जो शेष बचे उसके अनुसार शनि का वाहन तथा उसका फल निम्नानुसार है:-

शेष वाहन फल 1 गर्दभ धन नाश 2 घोड़ा धन लाभ 3 हाथी धन धर्म लाभ 4 महिष शत्रु भय 5 सियार भय 6 सिंह शत्रुनाश 7 कौआ अनिष्ट 8 मृग शुभ 9 मयूर संपत्ति वर्ष मध्ये शनि निवास: शनि देव 3 मास 10 दिन मुख पर, 1 वर्ष 1 मास 10 दिन दाहिनी भुजा पर, 10 मास दाहिने पैर पर, 10 मास बाएं पैर पर तथा 1 वर्ष 4 मास 20 दिन हृदय पर, 1 वर्ष 1 मास 10 दिन बाईं भुजा पर, 10 मास मस्तिष्क, सिर पर तथा 3 मास 10 दिन बाईं आंख पर, 3 मास 10 दिन दाहिनी आंख पर और 6 मास 20 दिन गुदा पर निवास करते हैं।

इसका स्थान प्रतिफल इस प्रकार है- स्थान फल 1 मुख हानिप्रद 2 दाहिनी, भुजा, विजय, उत्साह 3 दाहिना, पैर, भ्रमण 4 हृदय धन-धान्य, संपदा 5 बायीं भुजा पीड़ा-विकार 6 मस्तिष्क शांति, विद्याध्ययन 7 नेत्र शुभ फलद 8 गुदा स्थान चिंता, विकार व पीड़ा



Ask a Question?

Some problems are too personal to share via a written consultation! No matter what kind of predicament it is that you face, the Talk to an Astrologer service at Future Point aims to get you out of all your misery at once.

SHARE YOUR PROBLEM, GET SOLUTIONS

  • Health

  • Family

  • Marriage

  • Career

  • Finance

  • Business


.