महाशिवरात्रि व्रत का आध्यात्मिक महत्व
महाशिवरात्रि व्रत का आध्यात्मिक महत्व

महाशिवरात्रि व्रत का आध्यात्मिक महत्व  

फ्यूचर पाॅइन्ट
व्यूस : 4246 | फ़रवरी 2017

इस दिन शिव लिंग का प्रादुर्भाव हुआ था। इस कारण यह महाशिवरात्रि मानी जाती है। इस व्रत को वर्ण और वर्णेतर सभी समान रूप से कर सकते हैं। व्रत का पालन नहीं करने वाला दोष का भागीदार होता है। इस वर्ष महाशिवरात्रि का पावन पर्व 24.02.2017 शुक्रवार को निश्चित है। महाशिवरात्रि व्रत निर्णय शिव लिंग के प्रकट होने के समयानुसार फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी की रात्रि महाशिवरात्रि के नाम से जानी जाती है तथा अन्य मासों की कृष्ण चतुर्दशी शिवरात्रि के नाम से। सिद्धांत रूप में सूर्योदय से सूर्योदय पर्यंत रहने वाली चतुर्दशी शुद्धा निशीथ (अर्धरात्रि) व्यापिनी ग्राह्य होती है। यदि यह शिवरात्रि त्रिस्पृशा (त्रयोदशी-चतुर्दशी- अमावस्या के स्पर्श की) हो, तो परमोत्तम मानी गयी है। मासिक शिवरात्रि में, कुछ विद्वानों के मतानुसार, त्रयोदशी विद्धा बहुत रात तक रहने वाली चतुर्दशी ली जाती है। इसमें जया त्रयोदशी का योग अधिक फलदायी होता है। स्मृत्यंतरेऽपि प्रदोषव्यापिनी ग्राह्या शिवरात्रिः चतुर्दशी। रात्रौ जागरणं यस्मांतस्मांतां समुपोषयेत्।। अत्र प्रदोषो रात्रिः । उत्तरार्धे तस्यां हेतुत्वोक्तेः।

स्मृत्यंतर में भी कहा गया है, कि शिवरात्रि में चतुर्दशी प्रदोषव्यापिनी ग्रहण करें। रात्रि में जागरण करें। अतः उसमें उपवास करें। यहां पर प्रदोष शब्द से मतलब रात्रि का ग्रहण है। उत्तरार्ध में उसका कारण बताया गया है: कामकेऽपि- आदित्यास्तमये काले अस्ति चेद्या चतुर्दशी। तद्रात्रिः शिवरात्रिः स्यात्सा भवेदंुतमोत्तमा।। कामिक में भी कहा गया है कि सूर्य के अस्त समय में यदि चतुर्दशी हो, तो उस रात्रि को शिवरात्रि कहते हैं। वह उत्तमोत्तम होती है। आधी रात के पहले और आधी रात के बाद जहां चतुर्दशी युक्त हो, उसी तिथि में ही व्रती शिवरात्रि व्रत करें। आधी रात के पहले और आधी रात के बाद यदि चतुर्दशी युक्त न हो, तो व्रत को न करें, क्योंकि व्रत करने से आयु, ऐश्वर्य की हानि होती है। माधव मत से ईशान संहिता में कहा गया है, कि जिस तिथि में आधी रात को प्राप्त कर चतुर्दशी की प्राप्ति होती है, उसी तिथि में ही मेरी प्रसन्नता से मनुष्य अपनी कामनाओं के लिए व्रत करें। आधी रात के बाद चतुर्दशी को सदा व्रत करने वाले व्रत करें। निशीथ के पहले दिन और प्रदोष में दूसरे दिन एकदेश की व्याप्ति में तो पूर्वा ही ग्रहण करें, क्योंकि जया योग की प्रशंसा है। अन्यान्य विद्वानों का भी यही मत प्रशंसनीय है।

शिव पूजन विधान चूंकि यह व्रत सभी वर्णों (ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र) और अछूत समुदाय के स्त्री-पुरुष और बाल, युवा, वृद्ध के लिए मान्य है, अतः आवश्यक नहीं कि प्रत्येक व्यक्ति मंत्रों और पूजा विधि का ज्ञान रखता हो। अतः अपने भक्ति भाव और श्रद्धा के अनुसार ही शिव पूजन करें। धन का सामथ्र्य हो, तो विद्वान् ब्राह्मणों से विधि-विधान से पूजन संपन्न कराएं। रुद्राभिषेक, रुद्री पाठ, पंचाक्षर मंत्र का जाप आदि कराएं। साधारणतया व्रती को चाहिए कि व्रत के दिन प्रातः स्नानादि के बाद दिन भर शिव स्मरण करें और सायं काल में फिर स्नान कर के भस्म का त्रिपुंड्र तिलक और रुद्राक्ष की माला धारण कर के, गंध पुष्पादि सभी प्रकार की पूजन सामग्री सहित, शिव के समीप पूर्व या उत्तर मुख बैठ कर शिव जी का यथाविधि पूजन करें। रात्रि के प्रथम प्रहर में संकल्प कर के दूध से स्नान तथा ‘ऊँ ह्रौं ईशानाय नमः’ का जाप करें। द्वितीय प्रहर में दधि स्नान करें एवं मंत्र ‘ऊँ ह्रौं अघोराय नमः’ का जाप करें। तृतीय प्रहर में घृत स्नान एवं मंत्र ‘ऊँ ह्रौं वामदेवाय नमः’ तथा चतुर्थ प्रहर में मधु स्नान एवं ‘ऊँ ह्रौं सद्योजाताय नमः’ मंत्र से पूजन और जप करें।

ऊँ नमः शिवाय एवं शिवाय नमः मंत्र से भी संपूर्ण पूजा विधि तथा ध्यान, आसन, पाद्य, अघ्र्य, आचमन, स्नान, पयः स्नान, दधि स्नान, घृत स्नान, मधु स्नान, शर्करा स्नान, पंचामृत स्नान, गंधोदक स्नान, शुद्धोदक स्नान, अभिषेक, वस्त्र, यज्ञोपवीत, उपवस्त्र, गंध, सुगंधित द्रव्य, अक्षत, पुष्पमाला, बिल्व पत्र, नाना परिमल द्रव्य, धूप, दीप, नैवेद्य, करोद्वर्तन (चंदन का लेप), ऋतुफल, तांबूल-पुंगीफल, दक्षिणा- ऊँ भूर्भुव स्वः श्री नर्मदेश्वर सांबसदाशिवाय नमः- उपर्युक्त उपचारों का, जैसे ध्यानं नाम ले कर ‘समर्पयामि’ कह कर पूजा संपन्न करें। पुनः आरती कपूर आदि से पूर्ण कर प्रदक्षिणा, पुष्पांजलि, साष्टांग प्रणाम कर पूजन कर्म शिवार्पण करें। चारों प्रहर का पूजन करें। शिवरात्रि व्रत पारणा विचार पारणा के लिए ‘व्रतांते पारणम्’,‘तिथ्यंते पारणम्’ और ‘तिथिभांते च पारणम्’ आदि वाक्यों के अनुसार व्रत की समाप्ति में पारण किया जाता है। किंतु शिवरात्रि के व्रत में यह विशेषता है, कि ‘तिथि नामेव सर्वासामुपवासव्रतादिषु। तिथ्यंते पारणं कुर्याद्विना शिव चतुर्दशीम्’।। (स्मृत्यंतर) शिवरात्रि के व्रत का पारण चतुर्दशी में ही करना चाहिए और यह पूर्वविद्धा (प्रदोषनिशीथो भयव्यापिनी) चतुर्दशी होने से ही हो सकता है।

एक समय नैमिषारण्य तीर्थ में शौनकादि ऋषियों ने सूत जी को प्रणाम कर शिवरात्रि व्रत के संबंध में प्रश्न किया कि हे सूत जी ! पूर्व काल में किसने इस उत्तम शिवरात्रि व्रत का पालन किया था और अनजान में भी इस व्रत का पालन कर के किसने कौन सा फल प्राप्त किया था ? इसका उत्तर उन्हें ऐसे मिला: एक बार एक धनवान् मनुष्य कुसंगवश शिवरात्रि के दिन शिव मंदिर में गया। एक सौभाग्यवती स्त्री वहां भक्तिपूर्वक पूजन में लीन थी। तब धनिक ने उसके आभूषण चुरा लिये। वहां उपस्थित जनों ने उसके कृत्य से क्षुब्ध हो कर उसे मार डाला। किंतु चोरी के लिए वह आठ प्रहर भूखा-प्यासा रह कर जागता रहा था, इसी कारण स्वतः व्रत हो जाने से शिवजी ने उसको सद्गति दी। शिवरात्रि व्रत का लाभ अनेक विद्वानों ने इस व्रत से होने वाले लाभों पर प्रकाश डाला है, यथा ः ‘मम भक्तस्तु यो देवी शिवरात्रि मुपोषकः। गणत्वमक्षयं दिव्यमक्षयं शिवशासनम्। सर्वान् भुक्तवा महाभोगान् ततो मोक्षमवाप्नुयात्।। इति स्कांदात। स्कंद पुराण में कहा है कि हे देवी, जो मेरा भक्त शिवरात्रि में उपवास करता है, उसे क्षय न होने वाला दिव्य गण बनाता हूं। यह शिव की शिक्षा है। वह सब महाभोगों को भोग कर अंत में मोक्ष को प्राप्त करता है। ‘द्वादशा द्विकमेतस्माच्चतु र्विंशाद्विकं तु वा। इति तत्रैवेशानसंहिता वचनात् काम्यता। ईशान संहिता का वचन है कि यह बारह वर्ष या चैबीस वर्ष के पापों का नाश करता है।

इससे इसमें काम्यता है। ‘तत्रैव- शिवरात्रि व्रतं नाम सर्वपाप विनाशनम्। आचंडाल मनुष्याणां भुक्ति मुक्ति प्रदायकम्।’ शिवरात्रि नाम वाला व्रत सब पापों का शमन करने वाला है। आचांडालांत (चांडाल पर्यंत) मनुष्यों को भुक्ति तथा मुक्ति दोनों देने वाला है। ‘तथा अखंडित व्रतो यो हि शिवरात्रि मुपोषयेत्। सर्वान् कामानवाप्नोति शिवेन सह मोदते।’ जो मनुष्य अखंडित व्रत को, व्रती हो कर, शिवरात्रि में उपवास करता है, उसकी सारी इच्छाएं पूर्ण होती हैं तथा शिव के साथ वह आनंद करता है। ‘कश्चित् पुण्यविशेषेण व्रतहीनोऽपि यः पुमान्। जागरं कुरुते तत्र स रुद्र समतां व्रजेत्।। इत्यादि स्कांदं, तदनुकल्पत्वादशक्त परम्।’ जो पुरुष व्रत से हीन भी कभी पुण्य विशेष से शिवरात्रि में जागरण करता है, वह रुद्र के बराबर होता है। इत्यादि स्कंद पुराण का वचन है, वह अनुकूल होने से, अशक्त विषयक है। संपूर्ण शास्त्रों तथा अनेक प्रकार के धर्मों के विषय में भली भांति विचार कर के इस शिवरात्रि व्रत को सबसे उत्तम बताया गया है। इस लोक में अनेकानेक प्रकार के व्रत, विविध तीर्थ, नाना प्रकारेण दान, अनेक प्रकार के यज्ञ, तरह-तरह के तप तथा जप आदि भी इस व्रत की समानता नहीं कर सकते। अतः अपने हित साधनार्थ सभी को इस व्रत का अवश्य पालन करना चाहिए। यह शिवरात्रि व्रत परम मंगलमय और दिव्यतापूर्ण है। इससे सदा सर्वदा भोग और मोक्ष की प्राप्ति होती है। यह शुभ शिवरात्रि व्रत व्रतराज के नाम से विख्यात है एवं चारों पुरुषार्थों को देने वाला है। हो सके तो उक्त व्रत को जीवन पर्यंत करें ; नहीं तो चैदह वर्ष के बाद, पूर्ण विधि-विधान के साथ, उद्यापन कर दें।



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