मंदिर निर्माण में वास्तु की उपयोगिता
मंदिर निर्माण में वास्तु की उपयोगिता

मंदिर निर्माण में वास्तु की उपयोगिता  

प्रमोद कुमार सिन्हा
व्यूस : 14294 | नवेम्बर 2014

प्र. मंदिर के निर्माण के लिए किस तरह की भूमि का चयन करना चाहिए ?

उ.- मंदिर निर्माण के लिए भूखंड का चयन सावधानी पूर्वक करना चाहिए। मंदिर निर्माण के लिए भूखंड खुले, शांत और स्वच्छ स्थान पर होने चाहिए। मंदिर को घनी आबादी से दूर रखना चाहिए। मंदिर के आस पास 100 फीट के विस्तार में मकान नहीं होना चाहिए। इससे मंदिर के आस-पास शांति एवं स्वच्छता बनी रहती है। साथ ही ध्वजदोष से होने वाली पीड़ा से भी बचाव होता है।

साथ ही मंदिर निर्माण हेतु उपलब्ध भूखंड के उत्तर एवं पूर्व की ओर समुद्र, नदी, झील या झरना आदि हो तो वह भूखंड मंदिर निर्माण हेतु सर्वश्रेष्ठ मानी जाती है। इस तरह के भूखंड पर मंदिर के निर्माण करने से शीघ्रताशीघ्र प्रसिद्धि मिलती है। मंदिर को शहर के ऊँचे स्थान या पहाड़ों के बीच में होना अच्छा होता है। मंदिर शहर के दक्षिण-पश्चिम में होने पर प्रत्येक प्रकार के सुख-समृद्धि एवं यश देने वाला होता है। ऐसे मंदिर मनोकामनापूरक मंदिर हो जाते हंै।

इस तरह मंदिर के पूर्व या उत्तर में निवास करने वाले लोग सुख-शांति पूर्वक अपना जीवन व्यतीत करते हैं जबकि मंदिर के दक्षिण-पश्चिम में निवास करने वाले लोगों की सुख-शांति खत्म हो जाती है तथा हमेशा परेशानियों का सामना करना पड़ता है। मंदिर के चारों ओर खाली जगह रखनी चाहिए।

उत्तर और पूर्व दिशा में अधिक से अधिक खाली जगह रखना लाभप्रद होता है। मंदिर के सतह की ढाल उत्तर, पूर्व या उत्तर-पूर्व की ओर रखना चाहिए। जिन मंदिरों के उत्तर एवं पूर्व भागों में ऊँचे जमीन की सतह बनी होती है वहां देवी-देवता प्रवेश करना पसंद नहीं करते तथा मंदिर लोकप्रिय नहीं होती।

प्र.- मंदिर में प्रवेश करने के लिए द्वार किस ओर से रखना अत्यधिक लाभप्रद होता है ?

उ.- मंदिर में मुख्य प्रवेश द्वार पूर्व एवं उत्तर की ओर से करना लाभप्रद होता है क्योंकि कुछ देवी-देवता इन्द्र के रास्ते पूर्व से मंदिर में आना पसंद करते हैं। जिस मंदिर का प्रवेश द्वार पूर्व दिशा की ओर हो तथा निकास उत्तर दिशा की ओर से हो उस मंदिर में पूजा पाठ करने वाले को आत्मिक शांति के साथ यश और प्रतिष्ठा की प्राप्ति होती है।

कुछ देवी देवता उत्तर, ईशान्य या वायव्य के रास्ते मंदिर में आना पसंद करते हैं। उनके लिए उत्तर, ईशान्य या पश्चिमी वायव्य की ओर द्वार रखना लाभप्रद होता है। वरूण या वायु देवता हमेशा पश्चिमी वायव्य के रास्ते मंदिर में आना पसंद करते हैं। इसलिए इस स्थान से द्वार का होना भी लाभप्रद होता है। दक्षिणी आग्नेय में द्वार का होना अग्नि देव को पसंद है। अतः इस ओर भी द्वार रखा जा सकता है।

मुख्य मंदिर में द्वार चारांे तरफ अर्थात् चार द्वार रखना अच्छा होता है। लेकिन मुख्य द्वार अन्य द्वार की अपेक्षा बड़ी एवं आकर्षक रखनी चाहिए। मुख्य द्वार को इस तरह से नहीं बनाना चाहिए कि रास्ते से ही भगवान के दर्शन हो रहे हों। आमतौर पर इस तरह द्वार की स्थिति रहने पर अत्यंत प्रयास के बावजूद मंदिर प्रसिद्ध नहीं हो पाता है।

प्र.-मंदिर का आंतरिक बनावट किस तरह का रखना लाभप्रद होता है ?

उ.- मंदिर परिसर में प्रवेश करने पर जूते चप्पल रखने की जगह वायव्य की ओर रखना चाहिए। हाथ-पैर धोने के लिए पानी या नल उत्तर या पूर्व की ओर रखना लाभदायक होता है जबकि शौचालय, मंदिर परिसर के बाहर बनाना चाहिए। पार्किंग भी मंदिर परिसर के बाहर पूर्व या उत्तर की तरफ करना चाहिए। खाने-पीने की वस्तुएं भूखंड के उत्तर-पश्चिम की ओर रखना चाहिए।

पानी का स्रोत (कुआं या पंप) या पानी का अंडरग्राउंड भंडारण उत्तर-पूर्व भाग में करना लाभप्रद होता है। रसोईघर या प्रसाद बनाने का स्थान दक्षिण-पूर्व भाग में रखना चाहिए जबकि प्रसाद स्थल अर्थात् मंदिर में चढ़ाने के लिए जहां से लोग प्रसाद खरीदते हों पूर्व या उत्तर-पूर्व में रखना चाहिए। मंदिर में हुंडी या दान पेटी उत्तर या पूर्व की तरफ रखना चाहिए। शादी-विवाह या अन्य दूसरे धार्मिक कार्य मंदिर परिसर के बाहर खुले स्थान पर पश्चिम या दक्षिण तरफ करना चाहिए।

प्र.-मंदिर परिसर के उत्तर-पूर्व में झरना, तालाब या पानी का कुदरती स्रोत क्या फल देता है ?

उ.- मंदिर के उत्तर-पूर्व में नदी, तालाब या झरना बहता हो तो मंदिर की प्रसिद्धि में आश्चर्यजनक वृद्धि देखने को मिलती है। साथ ही ऐसे मंदिर या तीर्थ स्थान शीघ्र फलदायी होते हैं। भारत में बहुत से विश्व विख्यात मंदिर या मठ हैं जिनके उत्तर-पूर्व में नदी, तालाब या झरना बहता है। तिरूपति बालाजी के मंदिर के उत्तर में पुष्यकरणी नदी एवं रामकृष्ण मठ के पूर्व में गंगा नदी का बहना इसका एक उत्कृष्ट उदाहरण है।

प्र.- मुख्य मंदिर को भूखंड के किस स्थान पर स्थापित करना अच्छा होता है ?

उ.- मुख्य मंदिर को भूखंड के दक्षिण-पश्चिम भाग अर्थात चंद्र भूमि पर स्थापित करना अच्छा होता है। इस तरह का मंदिर सभी प्रकार के सुख और ऐश्वर्य प्रदान करता है। चंद्र भाग पर मंदिर की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा की जाये तथा सूर्य भाग की ओर से प्रवेश द्वार बनाई जाए तो ऐसे मंदिर मनोकामना पूरक मंदिर बन जाते हंै।

प्र.- मंदिर में मूर्ति किस तरह का रखना चाहिए ?

उ.- मंदिर में मूर्ति हमेशा पत्थर या धातु का ठोस होना चाहिए। मिट्टी की भी मूर्तियां शुभ होती हैं, लेकिन इन्हें अंदर से खोखला नहीं होना चाहिए। मूर्ति स्थापना और प्राण प्रतिष्ठा शुभ मुहूर्त में करनी चाहिए। मंगल का प्रतीक गणेश जी हैं। अतः गणेश जी की स्थापना के लिए सही दिशा दक्षिण है। ऐसा होने से गणेश जी की दृष्टि उत्तर की तरफ रहेगी। उत्तर में हिमालय पर्वत है जिस पर गणेश जी के माता-पिता शंकर-पार्वती जी का निवास स्थान है। भगवान गणेश को अपने माता-पिता की ओर देखना अच्छा लगता है। इसलिए गणेश जी की मूर्ति दक्षिण दिशा में रखना सर्वथा योग्य होता है।

गणेश जी की स्थापना पश्चिम दिशा में कभी नहीं करनी चाहिए क्योंकि गणेश जी मंगल के प्रतीक हैं और पश्चिम दिशा के स्वामी शनि हंै। इस तरह शनि एवं मंगल एक साथ हो जायेंगे जो कि उचित नहीं है। लक्ष्मी, विष्णु एवं कुबेर की मूर्तियां उत्तर-पूर्व में पूर्व दिशा की तरफ, महासरस्वती को पश्चिम की दिशा की तरफ एवं महाकाली को दक्षिण दिशा की तरफ रखना लाभप्रद होता है।

प्र.- पूजा करतेे वक्त देवताओं के चरणों में सिर क्यों टेकते हैं ?

उ.- मनुष्य का सिर उत्तरी धु्रव होता है और प्राण प्रतिष्ठित मूर्ति का चरण दक्षिण ध्रुव होते हैं। जब देवी-देवता के पवित्र चरणों में सिर रखा जाता है तो मनुष्य के शरीर के ऋणात्मक ऊर्जा खत्म हो जाते हैं तथा शरीर के अंदर सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है जिससे शरीर के गुप्त विकार समाप्त हो जाते हैं। इसी कारण पूजा करते वक्त देवताओं के चरणों में सिर टेकते हैं।

जीवन में जरूरत है ज्योतिषीय मार्गदर्शन की? अभी बात करें फ्यूचर पॉइंट ज्योतिषियों से!



Ask a Question?

Some problems are too personal to share via a written consultation! No matter what kind of predicament it is that you face, the Talk to an Astrologer service at Future Point aims to get you out of all your misery at once.

SHARE YOUR PROBLEM, GET SOLUTIONS

  • Health

  • Family

  • Marriage

  • Career

  • Finance

  • Business


.