नीलम एक ऐसा रत्न है जो कि शनि के दुष्प्रभाव को नष्ट करता है। इसे इंद्र नीलमणि, नीलमणि, याकूत, कबूद, सेफायर (इंग्लिश में) कहते हैं। नीलम और माणिक्य दोनों ही मूलतः कुरून्दम समूह का रत्न है। वास्तव में लाल कुरून्दम तो ‘माणिक्य’ बन जाता है और अन्य रंगों के रत्न नीलम कहलाते हैं, जैसे - श्वेत, हरा, बैंगनी, पीला आदि। नीला, आसमानी, बैंगनी आदि रंग का नीलम हो- हल्का हो या गहरा, उसे ही धारण करना चाहिये। श्वेत नीलम को जौहरी बाजार में श्वेत पुखराज, पीले नीलम को पीला पुखराज जिसे ‘टोपाज’ कहते हैं, के नाम से बेचा जाता है। ‘स्टार माणिक्य के समान ‘स्टार नीलम भी होते हैं। भौतिक गुण कठोरता 9, आपेक्षिक गुरुत्व 4.03, वर्तनांक 1.76, 1.77, दुहरावर्तन 0.008, द्विवर्णिता अति स्पष्ट, भंगुर, अपकिरण हीरे की अपेक्षा कम होता है। इसलिये दमक तथा जाज्वल्यता हीरे से कम होती है और इस आधार पर श्वेत नीलम तथा हीरे में अंतर बताया जाता है। नीलम अल्युमीनियम और आॅक्सीजन का यौगिक है। अल्प मात्रा में कोबाल्ट मिला रहने से रंग नीला होता है। प्राप्ति स्थान/पहचान कश्मीर का नीलम सर्वश्रेष्ठ होता है। इसका रंग मोर की गर्दन के रंग का होने से इसको मयूर-नीलम कहते हैं।
बर्मा के नीलम में हरापन कम तथा सुंदर नीला रंग होता है। इसके नग बनाने में सुविधा रहती है। श्रीलंका का नीलम उपरोक्त नीलमों से घटिया दर्जे का होता है। इसमें लाल रंग की आभा होती है श्याम आभा भी बहुत होती है। श्याम देश के नीलम में काली आभा तथा हरापन अधिक होता है। रंग गहरा होने के कारण यह काला दिखाई देता है। सलेम (दक्षिण भारत) के नीलम में हरापन श्याम के नीलम से अधिक होता है। पीला और नीला रंग मिश्रित होता है। आॅस्ट्रेलिया के नीलम गहरे नीले रंग के होते हैं। रोडेशिया तथा रूस के नीलम घटिया दर्जे के होते हैं। नीलम किसको धारण करना चाहिए नीलम शनि का रत्न है। जिसकी कुंडली में शनि शुभ भावों का स्वामी होगा उसको नीलम धारण करना शुभ फलदायक होगा। नीलम अपना लाभ या हानि दो-तीन दिन में दे देता है और कभी-कभी कुछ घंटों में ही अपना शुभ या अशुभ फल दिखा देता है। अतः नीलम को अंगूठी में जड़वाने से पूर्व उसकी परीक्षा कर लेना अत्यंत आवश्यक है। इसके लिए नीलम को किसी शनिवार को खरीदकर गंगाजल या कच्चे दूध और फिर पानी से धोकर, रत्न की विधिपूर्वक उपासना करें।
शनि की मूर्ति या तस्वीर या शिव प्रतिमा के समक्ष नीलम को रखकर नीले पुष्प चढ़ाकर ‘‘ऊँ शन्नो देवीरभिष्टय आपोभवन्तु प्रीतये शन्नोरभि श्रवन्तु’’ या ‘‘ऊँ शनये नमः’ मंत्र की एक रुद्राक्ष की माला जप करके कपड़े में बांधकर दायीं भुजा पर बांध लें, कपड़ा नीले रंग का नया हो, रत्न शरीर का स्पर्श न करे। यदि रत्न को धारण करने से रात को भयानक स्वप्न न आये या मन में या घर में अशांति न हो या कोई दुर्घटना या रोग उत्पन्न न हो तो रत्न अनुकूल है, परंतु यह परीक्षा एक सप्ताह तक जारी रखनी चाहिये। प्रतिकूलता दिखने पर रत्न वापस कर देना चाहिये। राशि के अनुसार उपयुक्तता मेष लग्न में शनि दशम तथा एकादश भाव का स्वामी है। अतः दशम भाव शुभ तथा एकादश भाव अशुभ है। परंतु यदि शनि द्वितीय, चतुर्थ, पंचम, दशम, एकादश या लग्न में स्थित हो तो शनि की दशा में नीलम धारण करने से आशातीत लाभ होगा। वृषभ लग्न में शनि नवम और दशम भावों का स्वामी होने से अत्यंत शुभ तथा योगकारक है। यह नीलम सदा सुख, संपदा, समृद्धि, मान-प्रतिष्ठा, राज्यकृपा तथा धन प्राप्त करेगा। शनि की महादशा में नीलम के साथ लग्नेश के रत्न हीरा को भी धारण करना चाहिए यह अत्यंत उत्तम फलदायक सिद्ध होगा।
मिथुन लग्न के लिए शनि अष्टम और नवम भावों का स्वामी होता है। नवमेश होकर यह त्रिकोण का स्वामी है अतः नीलम लाभदायक है। यदि नीलम को लग्नेश के रत्न पन्ना के साथ धारण किया जाय तो और भी उत्तम फलदायक होगा। कर्क लग्न के लिए शनि सप्तम (मारक भाव) और अष्टम (दुःभाव) भावों का स्वामी होने से अशुभ ग्रह माना गया है। लग्नेश चंद्र शनि का मित्र भी नहीं है। अतः नीलम धारण नहीं करना चाहिए। नोट: जहां ग्रह अशुभ हो वहां उसका रत्न धारण करने से रत्न और भी कष्टकारक होता है। कारण-रत्न ग्रह को और भी ज्यादा शक्तिशाली बनाता है। सिंह लग्न के लिये शनि षष्ठ (दुःस्थान) और सप्तम (मारक) भावों का स्वामी होने के कारण अशुभ ग्रह माना गया है। शनि लग्नेश का शत्रु भी है। अतः जातक को नीलम धारण नहीं करना चाहिए। कन्या लग्न के लिए शनि पंचम और षष्ठ भावों का स्वामी है। पंचम त्रिकोण का स्वामी होने से शनि शुभ है तथा लग्नेश बुध का मित्र है। अतः शनि की महादशा में जातक नीलम धारण कर सकता है। तुला लग्न के लिए शनि चतुर्थ और पंचम भाव का स्वामी होने के कारण अत्यंत शुभ योगकारक ग्रह माना गया है। लग्नेश शुक्र का शनि मित्र भी है।
अतः जातक को नीलम धारण करना शुभ रहेगा। लग्नेश शुक्र के रत्न हीरे या नवम भाव के स्वामी बुध के रत्न पन्ना के साथ नीलम धारण किया जाय तो और भी अधिक शुभ फल देता है। वृश्चिक लग्न के लिए शनि तृतीय और चतुर्थ भावों का स्वामी है। ज्योतिष के सिद्धांतानुसार इस लग्न के लिए शनि शुभ ग्रह नहीं माना गया है। किसी भी स्थिति के अनुसार नीलम धारण करना श्रेयस्कर नहीं रहेगा। धनु लग्न के लिए शनि द्वितीय (मारक) और तृतीय भावों का स्वामी होने से अशुभ माना गया है। लग्नेश गुरु का शनि शत्रु भी है। अतः नीलम धारण नहीं करना चाहिये। मकर लग्न के लिए शनि लग्न और धन भाव का स्वामी होने से सदा शुभ फलदायक रहेगा। अतः नीलम धारण करना चाहिये। कुंभ लग्न के लिए शनि द्वादश का स्वामी होते हुए भी लग्नेश है। उसकी मूल त्रिकोण राशि लग्न में पड़ती है। अतः नीलम शुभफलदायक रत्न रहेगा। मीन लग्न में शनि एकादश और द्वादश भाव का स्वामी होने के कारण अशुभ ग्रह माना गया है।
यदि शनि द्वितीय, चतुर्थ, पंचम, नवम या लग्न में स्थित हो तो शनि की महादशा में नीलम धारण करने से आर्थिक लाभ हो सकता है। किंतु इस लग्न के जातक यदि नीलम धारण न करें तो अच्छा है। धारण विधि शनिवार के दिन स्वाति, विशाखा, चित्रा, धनिष्ठा, श्रवण या उत्तराषाढ़ा नक्षत्र हो तो, इन शुभ दिनों में पंचधातु या चांदी में 6 रत्ती का नीलम अंगूठी में जड़वायें। शनि मंत्र द्वारा अभिमंत्रित कर, पूजा-धूप-दीप, पुष्पादि द्वारा उपासना कर सूर्यास्त से दो घंटे पूर्व मध्यमा (बीच की बड़ी उंगली) अंगुली में धारण करना चाहिये। शनि मंत्र- ‘‘ऊँ शं शनैश्चराय नमः’- जप संख्या 23000 है, माला रुद्राक्ष या नीले मोती/रत्नों की हो। रत्न का वजन चार रत्ती से कम नहीं होना चाहिए। जो व्यक्ति नीलम खरीदने में असमर्थ हों वे बदले में नीली, जिरकाॅन, कटैला या लाजवर्त या नीला तामड़ा या नीला स्पाइनल या पूर्ण रूप से पारदर्शक और नीले रंग की तुरमुली को धारण कर सकते हैं। सावधान: नीलम के साथ माणिक्य, मोती, पीला पुखराज या मूंगा कभी धारण नहीं करना चाहिए।