शनि देव: एक परिचय
शनि देव: एक परिचय

शनि देव: एक परिचय  

फ्यूचर पाॅइन्ट
व्यूस : 13601 | नवेम्बर 2014

शनिदेव की उत्पत्ति पौराणिक कथा के अनुसार सम्पूर्ण जगत में श्री ब्रह्मा, श्री विष्णु, श्री महेष त्रिदेव के नाम से विख्यात हैं। श्री ब्रह्माजी सृष्टि के रचनाकार, श्री विष्णु पालनहार एवं भगवान शंकर संहारक के पद को संभालकर कार्यरत हो गये। सूर्य पुत्र यम तथा शनिदेव में अपने राजपाट को लेकर विवाद हो गया, इस विवाद के निराकरण के लिये वे दोनों भगवान शंकर के समीप गये तथा अपनी चिंता प्रकट की। उन दोनों के वचनों को सुनकर भगवान शंकर ने यमराज को मृत्यु के देवता का पद दिया एवं प्रत्येक जीव को उनके कर्मों के आधार पर दण्ड या फल देने का कार्य अर्थात् दण्डाधिकारी का पद शनिदेव को प्रदान किया तथा शनिदेव को वरदान दिया कि तुम्हारी दृष्टि के प्रभाव से देवता भी नहीं बच पायेंगे तथा कलियुग में तुम्हारा अत्यधिक महत्व होगा। तभी से शनिदेव की उत्पत्ति सम्पूर्ण जगत में है। शनि जयंती व शनि अमावस्या शास्त्रों के आधार पर ज्येष्ठ कृष्ण अमावस्या को शनिदेव का जन्मोत्सव मनाने का विधान है। यह अमावस्या सात वारों में किसी भी वार को आ सकती है। इसलिये यह अमावस्या शनि जयंती की अमावस्या कहलाती है। शनि अमावस्या के संबंध में यह नियम है कि वर्षभर में जो अमावस्या केवल शनिवार को होती है उसे शनि अमावस्या का योग कहते हैं।

शनि अमावस्या का योग वर्षभर में प्रायः दो या तीन बार आता है। यदि शनि जयंती का योग अर्थात ज्येष्ठ कृष्ण अमावस्या शनिवार को आती है तो शनि जयंती व शनि अमावस्या का विषेष महा संयोग बनता है। हनुमानजी की आराधना से शनि की पीड़ा की शांति हनुमानजी एवं शनिदेव के संबंध में यह कथा है कि जब हनुमान जी रावण की लंका का दहन करके लंका के कारावास पहुंचे तो उन्होंने वहां शनिदेव को उल्टा लटका हुआ देखा। शनिदेव अत्यंत करूण स्वर में भगवान शंकर का स्मरण कर रहे थे। यह दृष्य देखकर हनुमान जी ने दया स्वरूप भगवान शनिदेव को बंधनों से मुक्त किया। बंधन मुक्त होकर शनिदेव ने हनुमान जी से कहा कि पवनपुत्र हनुमान मैं आपके इस कार्य के लिये सदैव ऋणी रहूंगा तथा मैं यह वचन देता हूं कि आपके भक्तों पर मेरा प्रभाव कम रहेगा।

उसके बाद लंका पर शनिदेव की दृष्टि पड़ते ही लंका की सुंदरता कोयले के समान काली हो गयी। शनि उपासना के साधन भारतीय संस्कृति में नवग्रह उपासना का उतना ही महत्व है जितना कि किसी भी देवी या देवता की उपासना का होता है। नवग्रहों की उपासना के लिये पूजा-साधना हमारे शास्त्रों में जप, तप, व्रत, दान इन चार प्रकार के साधनों के माध्यम से दी गई है। यदि साधक पूर्ण श्रद्धा-आस्था-विष्वासपूर्वक ये उपासना सम्पन्न करता है तो साधक को अभीष्ट फल की प्राप्ति होती है। प्रत्येक उपासना, शुद्धता के साथ गुरू स्मरण, गणेष स्मरण एवं पंचामृत उपचार आदि करके संकल्प, विनियोग, न्यासपूर्वक उपचार सहित यथा स्थान पर आरती, क्षमा प्रार्थना के साथ सम्पन्न करना चाहिये। नवग्रहों में शनिदेव को भी जप, तप, व्रत व दान इन चार प्रकार के साधनों के माध्यम से प्रसन्न करें तो वे जीवन में खुषहाली प्रदान करते हैं।

जिनके जन्मकाल में, गोचर में, दषा में, महादषा में, 27 अंतर्दषाओं में अथवा लग्न, द्वितीय, चतुर्थ, अष्टम्, द्वादष स्थान में शनि हो उन जातकों को निम्न उपाय अवष्य ही करना चाहिये। शनिदेव से संबंधित जप, तप, व्रत व दान विधान निम्न प्रकार हैं: शनि जप विधान शनिदेव के मंत्र का निष्चित जप संख्या के आधार पर रूद्राक्ष माला के द्वारा करना चाहिये। प्रतिदिन नियत संख्या में माला जाप करना चाहिये। जाप पूर्ण होने के पष्चात् जप का दषांष हवन, हवन का दषांष तर्पण, तर्पण का दषांष मार्जन एवं मार्जन का दषांष ब्राह्मण भोजन का विधान है। शनि के विभिन्न मंत्रों में से किसी भी एक मंत्र का जप विभिन्न जप संख्या के आधार पर करने से शनि की पीड़ा व दोष का निवारण होता है। शनि तप विधान शनि तप विधान के अंतर्गत शनिदेव के विभिन्न स्तोत्रों, कवच आदि का पाठ किया जाता है। यह उपाय अनुष्ठानिक कर्म के आधार पर 11 दिन, 21 दिन, 31 दिन, 51 दिन, 108 दिन तक किया जाता है। कवच व स्तोत्र के पाठ से शनिदेव की साढे़साती व ढैया दोष को शांत किया जा सकता है। शनि की पत्नियों के नामों का पाठ ध्वजिनी, धामिनी चैव कंकाली कलहप्रिया कलही कंटकी चैव ज्वालामुखी सुलोचना शनि पत्न्याष्च नामानि प्रातरूत्थय यः पठेत्।

तस्य शनैष्चरी पीड़ा कदापि न भविष्यति। शनि व्रत विधान शनिवार का व्रत शनि ग्रह की शांति के लिये किया जाता है। यह व्रत रोग, शोक, भय व बाधा को दूर करता है तथा मषीनरी, गाड़ी, गृह निर्माण व भूमि इत्यादि का लाभ देता है। साढ़ेसाती व ढैया दोष निवारण के लिये यह व्रत किसी भी माह के शुक्ल पक्ष के शनिवार को प्रारंभ किया जाता है। यह व्रत शनि ग्रह के लिये कम से कम 51 शनिवार को करना चाहिये। इस व्रत में एक समय उपवास रखकर काले पदार्थों का सेवन करें। प्रातःकाल स्नान करने के पश्चात् संबंधित व्रत के शनि यंत्र का पूजन करें। शनिवार व्रत कथा पढ़ें तथा व्रत वाले दिन काले रंग या नीले रंग की वस्तुओं का अधिक से अधिक उपयोग करें। शनि दान विधान शनि ग्रह की अनुकूलता प्राप्त करने के लिये शनि ग्रह से संबंधित सामग्रियां वस्त्र में बांधकर शनि ग्रह के सम्मुख दान करने व तेल चढ़ाने से शनिदेव की अनुकूलता प्राप्त होती है। शनिग्रह की दान की ये प्रक्रिया 7 शनिवार, 11 शनिवार, 21 शनिवार आदि के क्रम में लगातार करना चाहिये। शनि दान सामग्री काला वस्त्र, उड़द साबुत, तेल, काली तिल्ली, लोहा, कोयला, काला फल, काला कंबल, नारियल, दक्षिणा, सुपारी, शनिवार व्रत कथा की पुस्तक। शनि यज्ञ (हवन) शनि ग्रह से संबंधित दोष व पीड़ा की सम्पूर्ण शांति हेतु शनि शांति यज्ञ का विधान है। यज्ञ में अपूर्व शक्ति होती है। यज्ञ के द्वारा पूर्ण वातावरण शुद्ध हो जाता है। हवन का कर्म पूर्ण शुद्धता के द्वारा यज्ञों के नियमों के अनुकूल करना चाहिये। शनि शांति यज्ञ शुभ मुहूर्त में पंचांग में अग्निवास देखकर वेद मंत्रों के द्वारा सम्पन्न करना चाहिये। इस विधान के अंतर्गत हवन से संबंधित देवी या देवता के अलग-अलग पीठ या मण्डल विभिन्न धान्यों के द्वारा बनाये जाते हैं।

इन पीठों में श्री गणेष, अंबिका पीठ, कलष स्थापना, पुण्याहवाचन, रूद्र कलष, षोडष मातृका, सप्तघृत मातृका, नवग्रह मण्डल, सर्वतोभद्र मण्डल, वास्तु मण्डल, चतुःषष्टियोगिनीपीठ, क्षेत्रपाल आदि यज्ञ कर्म के अनुसार संबंधित पीठ व मण्डल बनाये ंजाते हैं। गुरु का ध्यान करके शनि कृपा, प्रसाद, प्रसन्नता, आषीर्वाद प्राप्ति का संकल्प करके श्री गणेष अंबिका का पूजन करके संबंधित पीठों का पूजन किया जाता है। यज्ञ विधान के अनुसार हवनकुण्ड का निर्माण करके अग्नि स्थापन, पंचभू संस्कार आदि कार्य करके शुद्ध घी, शुद्ध हवन सामग्री एवं मंत्रों के द्वारा गणेष व अंबिका की आहुति प्रदान करें। तत्पष्चात् ग्रहषांति हवन करके संबंधित पीठ व मण्डल के देवी-देवताओं की मंत्रपूर्वक आहुति प्रदान करके खीर-हलवे की आहुति द्वारा लक्ष्मी होम करना चाहिये। इसके बाद क्षेत्रपाल पूजन, बलि विधान करके हवन पूर्णाहुति व वर्सोधारा की प्रक्रिया संपन्न होती है।

शनि शांति यज्ञ में शनि की लकड़ी शमी समिधा द्वारा विषेष आहुतियां अधिक से अधिक संख्या में प्रदान करना चाहिये। शनिदेव की आरती करके मंत्र पुष्पांजलि एवं क्षमाप्रार्थना करना चाहिये। शनि शांति के अन्य उपाय शनिदेव से खुषहाली पाने के कुछ ऐसे सरल उपाय हैं जिन्हें साधक स्वयं कर सकता है जो निम्नलिखित हैं:- - प्रति शनिवार शनि के 108 नामों का पाठ व शनि चालीसा का पाठ करना चाहिये। - प्रति शनिवार शनि मंदिर में जाकर शनिदेव से संबंधित दान, तेल, उड़द, शनिदेव को अर्पण करके शनि दर्षन लेना लाभप्रद है। - किसी विद्वान ज्योतिषी या गुरु के परामर्ष अनुसार शनि रत्न नीलम या उपरत्न धारण करें। - पूजा घर में शनियंत्र को प्रतिष्ठित करके प्रतिदिन पूजन करना हितकर होता है - शनिदेव से संबंधित सातमुखी रूद्राक्ष या शनि कवच धारण करें। - साधक लोहे का पात्र लाकर उसमें तेल डालकर अपनी छाया देखकर तेल छाया दान किसी निर्धन को दे तो शनि पीड़ा का निवारण होता है। - काले घोड़े के नाल की अंगूठी शनिवार को शनि मंत्र द्वारा मध्यमा में पहनें। - शनिदेव की अनुकूलता की प्राप्ति हेतु हनुमान जी की पूजा-अर्चना-आराधना श्रेष्ठतम् है। - शनिवार को न तो लोहा खरीदें और न ही बेचें अपितु लोहे की वस्तुएं दान करें। - पीपल तथा शमी वृक्ष की सेवा करें व दीपक जलाएं। - शिव आराधना व भैरव उपासना द्वारा भी शनिदेव की पीड़ा को शांत किया जा सकता है - शनिदेव से संबंधित औषधियों के स्नान से भी शनिदेव के कोप से मुक्ति मिलती है।



Ask a Question?

Some problems are too personal to share via a written consultation! No matter what kind of predicament it is that you face, the Talk to an Astrologer service at Future Point aims to get you out of all your misery at once.

SHARE YOUR PROBLEM, GET SOLUTIONS

  • Health

  • Family

  • Marriage

  • Career

  • Finance

  • Business


.