अष्टकवर्ग, दशा एवं शनि का गोचर
अष्टकवर्ग, दशा एवं शनि का गोचर

अष्टकवर्ग, दशा एवं शनि का गोचर  

फ्यूचर पाॅइन्ट
व्यूस : 8045 | नवेम्बर 2014

जहां एक ओर साधारण जन-मानस शनि की साढ़े-साती व ढैय्या (कंटक शनि) को लेकर भयभीत रहता है, वहीं एक विद्वान व अनुभवी ज्योतिषी यह जानता है कि गोचर फल अध्ययन के लिए जातक की कुंडली को अनेक कसौटियों पर परखना पड़ता है। मात्र शनि के जन्मकालीन चंद्रमा, उससे 2 या 12 भावों पर 4 अथवा 8वें भाव पर गोचरस्थ होने से भयभीत होने का कोई कारण नहीं। गोचर का सूक्ष्मता से अध्ययन करने हेतु महर्षि पराशर द्वारा बताई अष्टकवर्ग की विधि का प्रयोग एक अनुभवी ज्योतिषी करना कभी नहीं भूलता। अष्टकवर्ग पद्धति में ग्रह की गोचर में स्थिति न केवल जन्मकालीन चंद्रमा तथा जन्म लग्न से संबंध रखते हैं, अपितु प्रत्येक ग्रह की स्थिति जन्मकालीन सूर्य, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र व शनि से विभिन्न भावों में देखी जाती है।

इनमें राहु-केतु जो कि छाया ग्रह है, को सम्मिलित नहीं किया जाता। महर्षि पराशर कृत बृहत पाराशर होरा शास्त्र में राहु-केतु के अष्टकवर्ग बनाने का कोई उल्लेख नहीं है। राहु-केतु का गोचर यद्यपि भृगु (नाड़ी) में बहुत महत्वपूर्ण है, परंतु शास्त्रीय ग्रंथों के अनुसार अष्टकवर्ग में इनका कोई स्थान नहीं। अष्टकवर्ग पद्धति में प्रत्येक ग्रह को लग्न तथा अन्य सभी ग्रहों से उसकी विभिन्न भावों में जन्मकालीन स्थिति के अनुसार विभिन्न राशियों में 0 (शून्य) अथवा 1 (एक) अंक प्राप्त होता है। इसी के आधार पर प्रत्येक ग्रह का भिन्नाष्टक वर्ग बनाया जाता है।

तत्पश्चात् सभी सातांे ग्रहों के भिन्नाष्टक वर्ग के आधार पर सर्वाष्टक वर्ग की गणना की जाती है। सर्वाष्टक वर्ग के आधार पर त्रिकोण शोधन तथा एकाधिपति शोधन के पश्चात शोध्य पिंड की गणना की जाती है। इसके बाद शुभ-अशुभ फल देने वाले नक्षत्रों की गणना की जाती है, जिसपर सूर्य, चंद्र आदि ग्रहों के गोचर के परिणाम स्वरूप जातक को विभिन्न ग्रहों के कारक तत्व अनुसार फलों को भोगना पड़ता है। सामान्यतः सर्वाष्टक वर्ग में जिस राशि को 18 से कम अंक प्राप्त हांे वह राशि निर्बल मानी जाती है, 25 अंक पर मध्यम, 30 या उससे अधिक अंक पर शुभ। शनि तथा अन्य ग्रहों के गोचर में संबंधित फलादेश में सर्वाष्टक वर्ग तथा उनके अपने भिन्नाष्टक वर्ग में अच्छे बिंदु होने पर शुभ कम बिंदु होने पर अशुभ फल कहे गये हैं।

ग्रहों के भिन्नाष्टक में 4 से कम बिंदु किसी राशि में होना अशुभ माना गया है तथा 4 या उससे अधिक बिंदु शुभ माने जाते हैं। परंतु इन सामान्य नियमों के कुछ अपवाद भी हैं। जैसे 6, 8 अथवा 12 भावों में सर्वाष्टक वर्ग तथा ग्रहों के भिन्नाष्टक वर्ग में कम बिंदु होना अच्छा माना जाता है। साथ ही यदि विंशोत्तरी दशा अच्छी चल रही हो तो अन्य भावों में (6, 8, अथवा 12 को छोड़) भी यदि कम बिंदु हों तब भी बुरे फल नहीं प्राप्त होते। अर्थात शुभ ग्रहों की प्रबल दशा में यदि शनि का गोचर अष्टकवर्ग में कम बिंदु लिये राशि से हो तब भी शुभ फल ही प्राप्त होंगे। आइये अब अष्टकवर्ग के इन सामान्य नियमों को कुछ उदाहरणों की सहायता से समझते हैं:


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उदाहरण 

1 का विवेचन ः वर्तमान प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी की कुंडली वर्गोत्तम वृश्चिक लग्न की है। अपने राजनैतिक करियर में ये राष्ट्रीय स्तर पर सुर्खियों में सर्वप्रथम तब आए जब इन्हें अक्तूबर 2001 में, शुक्र-बुध की विंशोत्तरी दशा में गुजरात का मुख्यमंत्री बना दिया गया। उस समय शनि वृषभ राशि में सर्वाष्टक वर्ग में 24 बिंदु लेकर तथा अपने भिन्नाष्टक वर्ग में मात्र 1 बिंदु लेकर गोचरस्थ था। अष्टकवर्ग में कमजोर बिंदु तथा अष्टमेश बुध की अंतर्दशा ने मोदी जी को वर्ष 2002 के गुजरात दंगों के बाद मुश्किल हालात में डाल दिया। राजनैतिक पार्टियों तथा मीडिया में उनकी आलोचना हुई। किंतु ये अपने पद पर बने रहे और शानदार कार्य से उद्योग जगत व जनता का दिल जीतने में सफल हुए। गत मई 2014 में जब ये लोक सभ चुनावों में शानदार जीत के बाद प्रधानमंत्री बने तो उस समय ये शनि की साढ़ेसाती में थे। तुला में शनि सर्वाष्टक वर्ग में 17 अंक लिये है, जो कि अच्छा है क्योंकि 12वें घर में कम अंक अष्टकवर्ग पद्धति में अच्छे माने जाते हैं।

शनि के भिन्नाष्टक में केवल 3 अंक तुला राशि को प्राप्त है। साथ ही चंद्रमा में गुरु की शुभ दशा ने अनुकूल अष्टकवर्ग का बखूबी साथ निभाया और ये अपनी साढ़ेसाती में एक शक्तिशाली राजनेता बन कर उभरे। अब गोचरस्थ शनि वृश्चिक राशि में मोदी जी के जन्मकालीन चंद्रमा तथा लग्नेश व षष्ठेश मंगल पर गोचर करेगा। सर्वाष्टक वर्ग में वृश्चिक राशि को 30 अंक तथा शनि के भिन्नाष्टक में 1 अंक प्राप्त है। यह मध्यम फल देने वाला गोचर तथा मार्च 2015 से शुरू हो रही चंद्रमा में शनि की अशुभ विंशोत्तरी दशा उनके राजनैतिक करियर में कुछ मुश्किलें लाएंगी। बीजेपी द्वारा 2015 में राम मंदिर, काॅमन सिविल कोड, गोवध प्रतिबंध, धारा 370 में बदलाव जैसे उग्र हिंदुत्ववादी मुद्दों को जोर-शोर से उठाया जाएगा जिसके कारण मोदी जी को अनेक आलोचनाओं का सामना करना पड़ेगा।

उदाहरण कुंडली 2 का विवेचन ः सिंह लग्न की यह कुंडली ‘आम आदमी पार्टी’ के संस्थापक अरविंद केजरीवाल की है। दिसंबर 2013 में गुरु-बुध-चंद्र की विंशोत्तरी दशा में ये दिल्ली के मुख्यमंत्री बने। इन्होंने श्रीमती शीला दीक्षित को विधान सभा चुनावों में करारी मात देकर भारत की राजनीति में सनसनी फैला दी। किंतु गोचर में शनि इनके सर्वाष्टक वर्ग में तुला राशि में मात्र 23 अंक लिये था। भिन्नाष्टक में शनि के तुला में मात्र 2 अंक हैं। कमजोर गोचर तथा तुला-मेष के अक्ष पर ग्रहण के प्रभाव से इन्होंने एक भारी भूल करते हुये 14 फरवरी 2014 को गुरु-बुध-मंगल की विंशोत्तरी दशा में स्वयं मुख्यमंत्री पद से त्यागपत्र तक दे दिया तथा बाद में मई 2014 के लोक सभा चुनावों में करारी हार झेली। अब वृश्चिक राशि में गोचर करते हुए शनि, इनके जन्मकालीन चंद्रमा से अष्टम भाव में तथा लग्न से चतुर्थ में अशुभ स्थिति में आने वाले हैं। वृश्चिक में शनि को सर्वाष्टक वर्ग में केवल 23 अंक तथा भिन्नाष्टक में मात्र 2 अंक प्राप्त हैं। अतः अरविंद केजरीवाल को अभी अपने राजनैतिक जीवन में और संघर्ष व बाधाओं का सामना करना होगा। आगामी गुरु-केतु की विंशोत्तरी दशा, जो कि मार्च 2015 से शुरू हो रही है, में उनके फिर से मुख्यमंत्री बनने की अच्छी संभावनाएं होंगी।


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उदाहरण कुंडली 3 का विवेचन ः कर्क लग्न की यह कुंडली तीन बार दिल्ली की मुख्यमंत्री रही श्रीमती शीला दीक्षित की है जो कि दिसंबर 2013 के दिल्ली विधान सभा चुनावों में करारी हार के बाद अब कठिन दौर से गुजर रही हैं। राहु-राहु-गुरु की विंशोत्तरी दशा में ये चुनाव हारीं तथा राहु-राहु-बुध की दशा में अगस्त 2014 में इन्होंने केरल के राज्यपाल पद से इस्तीफा दिया। तुला का गोचरस्थ शनि इनके जन्मकालीन चंद्रमा से अष्टम में है तथा लग्न से चतुर्थ भाव में पुनः खराब स्थिति में गोचर कर रहा है। अब वृश्चिक राशि में जाने पर भी शनि कुछ खास अच्छा नहीं कर पाएगा क्योंकि सर्वाष्टक वर्ग में वहां, तुला की भांति, केवल 27 बिंदु हैं। शनि के भिन्नाष्टक में तुला तथा वृश्चिक में केवल 2 अंक हैं। लगातार दो कमजोर राशियों में शनि का गोचर तथा राहु-राहु की अशुभ विंशोत्तरी दशा ने राजनैतिक करियर को बर्बादी की ओर धकेल दिया।

उदाहरण कुंडली 4 का विवेचन ः सिंह लग्न की यह कुंडली जम्मू-कश्मीर राज्य के वर्तमान मुख्यमंत्री श्री उमर अब्दुल्ला की है। उमर अब्दुल्ला 5 जनवरी 2009 को चंद्रमा-शुक्र की विंशोत्तरी दशा में राज्य के मुख्यमंत्री बने थे। उस समय शनि सिंह राशि में 30 सर्वाष्टक बिंदु (अंक) लिये गोचरस्थ था। शनि के भिन्नाष्टक में सिंह राशि को 6 अंक प्राप्त हैं, जो कि बहुत अच्छे अंक हैं। परंतु वर्तमान में शनि तुला राशि में सर्वाष्टक वर्ग में 27 अंक तथा भिन्नाष्टक में केवल 2 अंक लेकर गोचर कर रहा है जो कि बहुत अच्छी स्थिति नहीं है। हाल ही में कश्मीर घाटी में आई बाढ़ के बाद पैदा हुये हालातों में इनकी सरकार को राज्य में जनता का गुस्सा झेलना पड़ा। अब वृश्चिक राशि में जा रहे शनि इनके जन्मकालीन चंद्रमा से अष्टम तथा लग्न से चतुर्थ में बुरी स्थिति में गोचरस्थ होंगे। सर्वाष्टक वर्ग में वृश्चिक में 30 अंक तथा भिन्नाष्टक वर्ग में शनि को वृश्चिक में 2 अंक प्राप्त हैं जो कि साधारण है। मंगल-शुक्र की वर्तमान विंशोत्तरी दशा में इनकी पार्टी के दिसंबर 2014 में होने वाले राज्य विधान सभा चुनावों में हार की संभावना है। उमर अब्दुल्ला की कुंडली इस बात का अच्छा उदाहरण है कि सर्वाष्टक वर्ग और भिन्नाष्टक में मिलने वाले अंकों का महत्व शनि के गोचर फल अध्ययन में कितना महत्वपूर्ण है।

उपरोक्त चार उदाहरणों में दी गई राजनेताओं की कुंडलियां दर्शाती हैं कि शनि के राशि परिवर्तन से आने वाली साढ़ेसाती या ढैय्या से घबराने की बजाय, अष्टकवर्ग तथा दशा की कसौटी पर शनि के गोचर को जन्मकुंडली में लगाकर ही कोई फलादेश करना चाहिए। ऐसे अनेक उदाहरण दिये जा सकते हैं जिनमें महत्वपूर्ण व्यक्तियों /राजनेताओं ने शनि की साढ़ेसाती या ढैय्या में उल्लेखनीय सफलताएं पाईं। इनमें गोचरस्थ ग्रहों को अष्टकवर्ग में मिलने वाले अंक व अनुकूल दशा का अधिक महत्व था। नरेंद्र मोदी, राजीव गांधी, चैधरी चरण सिंह, इंदिरा गांधी आदि कई नेताओं ने साढ़े-साती या ढैय्या में प्रधानमंत्री बन अपने राजनैतिक जीवन की ऊंचाइयों को छुआ है।


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