सफल व्यापारी बनने के लिए कुंडली में श्रेष्ठ धन योग के साथ-साथ व्यापार, व्यवसाय भाव के कारक बुध ग्रह की श्रेष्ठ स्थिति वांछित है। बुध को कुशल प्रबंधन व आर्थिक प्रबंधन का कारक होने से इसके बली होने की स्थिति में धन के स्रोतों का दोहन करने में श्रेष्ठस्तरीय सफलता प्राप्त होती है। एक व्यापारिक संस्थान की नींव स्थापित करने के लिए कुशल प्रबंधन के अतिरिक्त जातक के मेहनती होने की भी आवश्यकता रहती है
जिसके लिए मंगल व तृतीय भाव का बली होना जरूरी है। साथ ही छठे भाव के श्रेष्ठ होने से बाजार के प्रतिद्वंद्वी को पछाड़ने की क्षमता प्राप्त होगी इसके अतिरिक्त व्यापार में स्थिरता तथा अच्छी योजनाओं की परिकल्पना हेतु इसके कारक शनि का बलवान होना भी उतना ही आवश्यक है।
व्यापार में सही समय पर सही निर्णय लेने की क्षमता के लिए लग्न व लग्नेश के बल की नाप तोल भी करनी होगी। भाग्य भाव का सहयोग प्राप्त करने हेतु भाग्य भाव के कारक गुरु व सौभाग्य के प्रतीक शुक्र के अतिरिक्त नवम से नवम अर्थात् पंचम भाव आदि सभी के बल से निर्विघ्न कार्य संपन्न होने की गारंटी मिलती है। सप्तम भाव को व्यापार का कारक भाव माना जाता है
इसलिए श्रेष्ठ व बली सप्तम भाव भी श्रेष्ठतम व्यापारिक योग्यता संपन्न करता है। दशम भाव से जातक की सफलता के स्तर और मान सम्मान, संपन्न व्यवसाय का निर्धारण तो होता ही है इसलिए दशम भाव भी बली होना चाहिए। श्रेष्ठ व्यापारी योगों में धनेश व लाभेश का स्थान परिवर्तन योग सर्वोपरि है। लग्न में सूर्य चंद्र की युति अखण्ड लक्ष्मी योग का प्रतीक मानी गई है। लग्नेश, धनेश व लाभेश की केंद्र में युति हो और इनमें से एक ग्रह उच्च राशिस्थ हो तो श्रेष्ठ व्यापारी होता है। केंद्र व त्रिकोण के स्वामियों का स्थान परिवर्तन योग भी व्यापारियों के लाभदायक होते हुए देखा गया है।
-लग्न में शुक्र, भाग्येश व दशमेश की बुध के साथ युति हो तो सफल व्यापारी बने। देखें रतन टाटा की इस कुंडली में उपरोक्त योग होने के अतिरिक्त तृतीय भाव, मंगल व शनि भी बली है।
-लग्न में सूर्य, चंद्र की युति हो, धन भाव, तृतीय भाव व दशम भाव बली हो तो श्रेष्ठतम व्यापारी बने। देखें धीरूभाई अंबानी की कुंडली-
-शुक्र की लग्न में दशमेश व बुध के साथ युति हो, द्वितीयेश बली हो तथा चतुर्थेश व पंचमेश का स्थान परिवर्तन योग बनता हो तो कुशल व्यापारी बने। देखें टेड टर्नर की
-बुध, धनेश व सप्तमेश बली हों व राहु एकादशस्थ हो तो सफलतम व्यापारी हो।
-लग्न, द्वितीय, तृतीय, सप्तम, नवम, दशम व एकादश सभी भाव बली हों तो सफलतम व्यापारी बनने में संदेह नहीं।
-सप्तमेश, दशमेश व भाग्येश की केंद्र में युति हो, धनेश व लाभेश का दृष्टि या युति संबंध हो तथा तृतीय भाव, गुरु व सूर्य बली हों व सप्तम भाव शुभकर्तरी में हो तो उच्च स्तरीय व्यापारिक सफलता प्राप्त हो। -यदि धनेश लाभेश की केंद्र में युति हो और गुरु की उस केंद्र के स्वामी और इन ग्रहों से युति व दृष्टि संबंध हो।
इसके अतिरिक्त तृतीय, पंचम, सप्तम, नवम व दशम भाव भी बली हों तो व्यापारिक क्षेत्र में श्रेष्ठ सफलता प्राप्त होती ह -राहु केतु को छोड़कर अन्य सभी ग्रह द्वितीय, नवम, दशम व लाभ भाव में हों तो कुशल व्यापारी बनने में श्रेष्ठतम सफलता प्राप्त होती है।
देखें आर.पी. गोएन्का की कुंडली उपरोक्त कुंडलियों के विश्लेषण से यह स्पष्ट है कि कुशल व्यापारी बनने हेतु द्वितीय, पंचम, नवम व एकादश भाव के कारक गुरु की श्रेष्ठ स्थिति भी सहायक हो सकती है क्योंकि व्यापार में सफलता हेतु इन सभी भावों की श्रेष्ठ स्थिति अत्यंत आवश्यक होती है। गुरु के अतिरिक्त तृतीय व सप्तम भाव तथा बुध, शनि व मंगल का बली होना शुभ रहेगा।