अगस्त्य संहिता में कहा है: चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि में पवित्र पुनर्वसु नक्षत्र में गुरु नवांश में पांच ग्रहों के उच्च राशि में स्थित होने पर, मेष में सूर्य के प्राप्त होने पर तथा कर्क लग्न में कौशल्या महारानी से (महाराज दशरथ के आंगन में) परब्रह्म परमात्मा का आविर्भाव हुआ। उसी दिन सदा उपवास रूपी व्रत करना चाहिए। उसी दिन रघुनाथ के भक्त पृथ्वी पर जागरण करें। यह तिथि मध्याह्न कालव्यापिनी ग्रहण करें। यदि चैत्र शुक्ल नवमी तिथि पुनर्वसु नक्षत्र युक्त होकर मध्याह्नव्यापिनी हो, तो वह महापुण्यप्रद होती है। कहा भी है: चैत्र मास की नवमी तिथि में स्वयं हरि, राम के रूप में उत्पन्न हुए। यदि पुनर्वसु नक्षत्र से नवमी तिथि संयुक्त हो, तो संपूर्ण कामनाओं को देने वाली होती है।
यह राम नवमी करोड़ों सूर्य ग्रहों से अधिक फलदायक होती है। संपूर्ण भारतवर्ष में हिंदू परिवारों में विशेष रूप से मर्यादा पुरुषोत्तम राम का यह जन्म महोत्सव मनाया जाता है। प्रत्येक राम मंदिर में भक्तों द्वारा श्री राम का गुणगान किया जाता है। स्थान-स्थान पर कई दिन पूर्व से ही गोस्वामी तुलसीदास के अमर काव्य ‘रामचरित मानस’ का पाठ, ‘हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे । हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे।।’ महामंत्र का जाप, दिव्य राम कथा, श्री राम की प्रतिमा का पंचामृत से अभिषेक, गंधोदक-शुद्धोदक स्नान, धूप, दीप, नैवेद्यादि से पंचोपचार एवं षोडशोपचार पूजा, नृत्य, गीत, भजन आदि के कार्यक्रम सानंद संपन्न किये जाते हैं। बाबा तुलसीदास ने श्री रामचरित मानस की रचना इसी दिन से अयोध्या में आरंभ की थी। भगवान श्री राम की जन्मस्थली अयोध्या में इस दिन बड़ा भारी मेला लगता है।
दूर-दूर के अंचलों से आये भक्त जन राम लला के दर्शन एवं सरयू स्नान से कृत कृत्य होकर आदिपुरुष की अतीत लीलाओं में खो जाते हैं। देवता भी इस परम उत्सव को देखने के लिए निज विमानों और वाहनों पर बैठकर इस अलौकिक छटा का आनंद लेते हैं। भक्तों द्वारा विभिन्न प्रकार की आरतियां, स्तोत्र पाठ, प्रार्थनाएं की जाती हैं। पुनः पुष्पांजलि, क्षमा प्रार्थना और भोग-प्रसाद एवं भंडारे के भी विशाल आयोजन संपन्न होते हैं। सत्यता है कि जो एक बार प्रभु राम के सम्मुख हो जाता है, उसके करोड़ों जन्म के पातक नष्ट हो जाते हैं। सन्मुख होहि जीवन मोहिं जब हीं। जन्म कोटि अघ नासहिं तब हीं।। यह व्रत सभी वर्णों के नर-नारियों को समान रूप से करना श्रेयस्कर है, क्योंकि भगवान राम की मर्यादाएं जनमानस के लिए विशेष लाभकारी हैं। भाई का भाई के प्रति, माता का पुत्र के प्रति, पुत्र का पिता के प्रति, पति का पत्नी के प्रति, पत्नी का पति के प्रति, वीर का वीर के प्रति, शत्रु का शत्रु के प्रति, मित्र का मित्र के प्रति, पुत्र का माता के प्रति आदि जो कर्तव्य हैं, वे भगवान श्री राम के चरित्र से ही प्राप्त हैं। मनुष्य जीवन के चार पुरुषार्थ (धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष) इस व्रत से सिद्ध हो जाते हैं।
यह वह राम है, जो कण-कण में व्याप्त है, जड़ चेतन में व्याप्त है, ऊर्जा शक्ति को प्रवाहित करने वाला है। यह पे्रम से प्रगट होने वाला राम है- हरि व्यापक सर्वत्र समाना, प्रेम से प्रगट होहि मैं जाना। अतः ऐसे मर्यादा पुरुषोत्तम सबके अंतर्यामी परब्रह्म परमात्मा सच्चिदानंद स्वरूप तापत्रय नाशक श्री राम के युगल चरणों में कोटिशः साष्टांग प्रणाम: नीलम्बुजश्यामलकोमलाङ्गं सीतासमारोपितवामभागम्। पाणौ महासायकचारुचापं, नमामि रामं रघुवंशनाथम्।। श्री रामचन्द्रचरणौ मनसा स्मरामि, श्री रामचन्द्र चरणौ वचसा गृणामि। श्री रामचन्द्र चरणौ शिरसा नमामि, श्री रामचन्द्र चरणौ शरणं प्रपद्ये।। श्री राम जय राम जय जय राम। धर्म की जय हो, अधर्म का नाश हो, प्राणियों में सद्भावना हो, विश्व का कल्याण हो, सनातन धर्म की जय हो। विचार शुद्धि के लिए: ताके जुग पद कमल मनावउं। जासु कृपां निरमल मति पावउं।ं जीवन सुधारने के लिए: मोरि सुधारिहि सो सब भांती। जासु कृपा नहिं कृपा अघाती।। बुद्धि को धर्म में लगाने के लिए: जग मंगल गुनग्राम राम के। दान मुकुति धन धरम धाम के।। प्रारब्ध दोष निवृत्ति के लिए: मंत्र महामनि बिषय ब्याल के। मेटत कठिन कुअंक भाल के।।
मंगल कल्याण के लिए: मंगल भवन अमंगल हारी। द्रवऊ सो दशरथ अजिर बिहारी।। कार्यसिद्धि के लिए: जेहि बिधि नाथ होइ हित मोरा। करहु सो बेगि दास मैं तोरा।। भगवद्दर्शन की व्याकुलता के लिए: उर अभिलाष निरंतर होई। देखिय नयन परम प्रभु सोई।। पुत्र प्राप्ति के लिए: प्रेम मगन कौशल्या निसि दिन जात न जान। सुत सनेह बस माता बालचरित कर गान।। विवाह कार्य के लिए: देवि पूजि पद कमल तुम्हारे। सुर नर मुनि सब हो हिं सुखारे।। सुनि सिय सत्य असीस हमारी। पूजिहि मन कामना तुम्हारी।। गुप्त मनोरथ सिद्धि के लिए: मोर मनोरथ जानहु नीके। बसहु सदा उर पुर सबही के।। शंकर भगवान की प्रसन्नता के लिए: आसुतोष तुम्ह अवठर दानी। आरति हरहु दीन जनु जानी।। पाप नाश के लिए: राम राम कहि जे जमुहाहीं। तिन्हहि न पाप पुंज समुहाहीं।। भगवत भक्ति की वृद्धि के लिए: सीता राम चरन रति मोरे। अनुदिन बढ़उ अनुग्रह तोरे।।
भगवान के चरणों की प्रीति के लिएः यह बर मागऊं कृपानिकेता। बसहु हृदय श्री अनुज समेता।। संपूर्ण मनोरथों की सिद्धि के लिए भव भेषज रघुनाथ जस सुनहि जे न अरु नारि। तिन्ह कर सकल मनोरथ सिद्ध करहिं त्रिसिरारि।। किंकर्तव्यविमूढ़ावस्था के समय: तरु पल्लव महुं रहा लुकाई। करइ विचार करौं का भाई।। मानसिक दुर्बलता को दूर करने के लिए: गरुड़ सुमेरु रेनु सम ताही। राम कृपा करि चितवा जाही।। संकट नाश के लिए: दीन दयाल बिरिदु संभारी। हरहु नाथ मम संकट भारी।। यात्रा में दुर्घटना से बचाव के लिए चलत बिमान कोलाहल होई। जय रघुवीर कहइ सबु कोइ।। सुख-संपत्ति के लिए: जो सकाम नर सुनहिं जे गावहिं। सुख संपति नाना विधि पावहिं।। हार्दिक इच्छा की पूर्ति के लिएः जो इच्छा करिहहु मन माहीं। हरि प्रसाद कछु दुर्लभ नाहीं।।