अलबर्ट आइंस्टाईन
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अलबर्ट आइंस्टाईन  

यशकरन शर्मा
व्यूस : 6003 | जुलाई 2010

अलबर्ट आइंस्टाईन सितारों की कहानी सितारों की जुबानी स्तंभ में हम जन्मपत्रियों के विश्लेषण के आधार पर यह बताने का प्रयास करते हैं कि कौन से ग्रह योग किसी व्यक्ति को सफलता के शिखर तक ले जाने में सहायक होते हैं। यह स्तंभ जहां एक ओर ज्योतिर्विदों को ग्रह योगों का व्यावहारिक अनुभव कराएगा, वहीं दूसरी ओर अध्येताओं को श्रेष्ठ पाठ प्रदान करेगा तथा पाठकों को ज्योतिष की प्रासंगिकता, उसकी अर्थवत्ता तथा सत्यता का बोध कराने में मील का पत्थर साबित होगा। महान वैज्ञानिक अलबर्ट आइंस्टाईन की मस्तिष्कीय प्रखरता का समस्त संसार कायल है। उन्होंने टाइम, स्पेस और कांजेक्शन पर अनेक अद्भुत थ्यूरियां दी हैं। शरीर शास्त्रियों ने इनसे संपर्क किया और जानना चाहा और सहयोग भी मांगा कि इनकी विलक्षण बौद्धिक क्षमता का क्या रहस्य है। आइंस्टाईन ने केवल इतना कहा, ''अपने कार्य को महत्वपूर्ण मानना और उसमें समान रसास्वादन करते हुए तन्मय हो जाना ही वह उपाय है जिसे अपनाकर कोई भी व्यक्ति साधारण से असाधारण बन सकता है।''


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अलबर्ट आइंस्टाईन का जन्म 14 मार्च 1879 को सुबह 11:30 बजे उल्म, जर्मनी में हुआ। यह एक महान वैज्ञानिक, दर्शनिक और लेखक थे, जिन्हें आज तक का सर्वाधिक प्रभावशाली वैज्ञानिक और बुद्धिजीवी व्यक्ति माना जाता है। इन्हें आधुनिक भौतिक विज्ञान का पिता माना जाता है। इन्हें 1921 में भौतिक विज्ञान में इनकी उपलब्धियों के लिए नोबल पुरूस्कार प्राप्त हुआ था। इन्होंने विज्ञान पर 300 से अधिक और अन्य विषयों पर 150 से भी अधिक पुस्तकें लिखीं। आइंस्टाईन का विवाह जनवरी 1903 में हुआ। इनके दो पुत्र हुए 1919 में इनका अपनी पत्नी से तलाक हुआ। सन् 1912 में इनका एक दूसरी महिला से प्रेम संबंध हुआ और 1919 में इनका उससे विवाह भी हो गया। सन् 1933 में अपनी दूसरी पत्नी के साथ युनाइटेड स्टेटस में स्थाई रूप से रहने हेतु चले गए। आइंस्टाईन को 1905 में ज्यूरिच यूनिवर्सिटी से डॉक्टर की उपाधि प्राप्त हुई।

उनके थीसिज को ''आन ए न्यु डिटर्मिनेशन ऑफ मौलिक्यूलर डायमैन्शन्ज'' का नाम दिया गया। इस वर्ष को इनके जीवन का चमत्कारी वर्ष कहा जाता है। क्योंकि इनकी फोटोइलैक्ट्रिक इफैक्ट, ब्राउनियन मोशन, स्पैशल रिलेटिविटी और इक्वीवैलेंस ऑफ मैटर एण्ड एनर्जी आदि महत्वपूर्ण थ्यूरियों ने इन्हें विशेष प्रसिद्धि दिलाई। सन् 1908 में उन्हें उभरता हुआ वैज्ञानिक माना जाने लगा और बर्लिन यूनिवर्सिटी में लेक्चरार के पद पर मनोनीत किया गया। वर्ष 1911 में यह प्रोफेसर बन गए। 1914 में यह बर्लिन यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर और ''केसर विल्हेम इन्स्टीच्यूट फॉर फिजिक्स'' के डायरैक्टर बने। 1919 में विज्ञान में अपने योगदान के कारण आइंस्टाईन विश्व विखयात हो गए और 1920 में इन्हें नोबल पुरस्कार से सम्मानित किया गया। सन् 1925 में इन्हें कोप्ले मेडल से भी सम्मानित किया गया। सन् 1940 में इन्हें अमेरिका की नागरिकता प्राप्त हुई।

सन् 1952 में प्रधानमंत्री डेविड बेन गूरियन ने इनके सामने इजराइल का राष्ट्रपति बनने की पेशकश कर दी लेकिन इन्होंने इसे ठुकरा दिया। सन् 1955 में 76 वर्ष की आयु में इनकी मृत्यु हो गई। इनकी मृत्यु होने पर प्रिंसटन हॉस्पिटल के थॉमस स्टॉल्ज हार्वे ने इनका मस्तिष्क सुरक्षित रखने के लिए निकाल लिया ताकि भविष्य में न्यूरोसाइंस के अन्वेषण से यह जाना जा सके कि आइंस्टाईन इतने बुद्धिमान कैसे थे? अलबर्ट आइंस्टाईन की जन्मकुंडली का विश्लेषण- अलबर्ट आइंस्टाईन का जन्म लग्न मिथुन है जिसका स्वामी ग्रह बुध बुद्धि का कारक ग्रह होता है। यह बुध लग्नेश होकर, उच्चराशि के पंचमेश (बुद्धि भाव का स्वामी), बुद्धि के अधिष्ठाता देव सूर्य तथा पंचम से पंचम भाव के स्वामी से संयुक्त होकर दशम भाव में स्थित है। इस प्रकार से अगर देखा जाए तो दशम भाव में बैठे सभी ग्रह बुद्धि के कारक हैं। यह सभी ग्रह पंचम भाव के कारक ग्रह गुरु की राशि में स्थित हैं।

भाग्येश व दशमेश के स्थान परिवर्तन से यह कुंडली और अधिक बलवान हो गई है क्योंकि ऋषि पाराशर ने दशम व नवम भाव के संबंध को सर्वश्रेष्ठ राजयोग माना है। उच्चराशि का पंचमेश शुक्र मालव्य योग बना रहा है और दशम तथा नवम भाव की उत्तम स्थिति व बुद्धि के कारक ग्रहों का पंचम भाव के कारक ग्रह की राशि में बैठना तथा इस कारक ग्रह का लग्न, पंचम भाव तथा बुद्धि की राशि सिंह पर दृष्टि डालना इनकी विलक्षण बौद्धिक क्षमताओं का कारण है। दशम भाव में सूर्य से संयुक्त चतुर्ग्रही योग तथा भाग्येश व दशमेश के स्थान परिवर्तन के कारण इन्हें अपार यश की प्राप्ति हुई। अष्टम भाव गूढ़ विद्या, रिसर्च/अन्वेषण आदि का माना गया है। इस अष्टम भाव का स्वामी बलवान होकर दशमस्थ है जो स्वयं भाग्येश भी है और दशमेश के साथ स्थान परिवर्तन योग बनाकर तथा शुभ ग्रहों से संयुक्त होकर व नवांश में उच्चराशिस्थ होकर और अधिक बली हो गया है तथा अष्टम भाव में उच्चराशिस्थ मंगल है जो इन्हें गुप्त तर्कशक्ति तथा विज्ञान के क्षेत्र में रिसर्च करने में निपुणता देने में समर्थ हुआ।

ज्योतिष में नियम है कि राहू या केतु यदि किसी स्वग्रही या उच्चराशिस्थ ग्रह के साथ बैठ जाए तो उसका बल चार गुणा बढ़ जाता है। इसलिए इनका अष्टम भाव में उच्च का चार गुणा बली मंगल ज्ञान व रिसर्च के क्षेत्र में अद्वितीय सफलता का कारक बना। इनकी नवांश कुंडली में पंचमेश व भाग्येश का स्थान परिवर्तन योग है। पंचमेश शुक्र आत्माकारक होकर दशम भाव में लग्नेश, सूर्य व भाग्येश के साथ स्थित होकर कुंडली को बलवान करने में सहायक हुआ। पंचम भाव का कारक गुरु पुत्र कारक होकर कारकांश लग्न में स्थित होकर इन्हें बुद्धिजीवी बनाने में सहायक हुआ। जैमिनी ज्योतिष के अनुसार पंचम भाव, पंचमेश, पंचम भाव का कारक व पुत्र कारक ग्रह का महत्व सर्वोपरि है। आइंस्टाईन की कुंडली में यह सभी पक्ष परम उत्तम हैं परिणामस्वरूप यह महाबुद्धिमान बुद्धिजीवी हुए। आइंस्टाईन का विवाह उच्चराशिस्थ शुक्र की महादशा में सप्तमेश के ऊपर से गुरु का गोचर होने पर हुआ। विवाह का कारक शुक्र दो संबंध विच्छेद कारक ग्रहों से युक्त है इसलिए सन 1919 में सूर्य की महादशा आरंभ होने पर इनका पहली पत्नी से तलाक हो गया।


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उच्चराशिस्थ पंचमेश की महादशा सन् 1899 में आरंभ होने पर इन्हें शिक्षा के क्षेत्र में उच्चकोटि की सफलता प्राप्त हुई और इनका अपार मान सम्मान बढ़ा तथा सन 1905 में इन्हें डॉक्टर की उपाधि प्राप्त हुई और सन 1908 में इन्हें उभरता हुआ वैज्ञानिक माना जाने लगा। सन 1911 में शुक्र में गुरु की अंतर्दशा में आइंस्टाईन प्रोफेसर बने। सन 1914 में बर्लिन यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर का व ''केसर विल्हेम इंस्टीच्यूट फॉर फिजिक्स'' के डायरेक्टर का पद भी इसी शुक्र की महादशा में प्राप्त हुआ। इस प्रकार से दशम भाव में उच्चराशिस्थ शुक्र की महादशा का समय इनके जीवन का स्वर्णिम युग सिद्ध हुआ जिसमें इन्हें अपार यश की प्राप्ति भी हुई। सन् 1921 में सूर्य की महादशा में चंद्रमा से दशम भाव पर गुरु और शनि का गोचर होने पर इन्हें नोबल पुरूस्कार की प्राप्ति हुई। सन् 1933 में चंद्रमा में केतु की दशा में यह अमेरिका चले गए। सन् 1952 में राहू में बुध की अंतर्दशा में प्रधानमंत्री डेविड बेन ने इनके समक्ष, इजराईल का राष्ट्रपति बनने का प्रस्ताव रखा। सन 1952 में लग्न से दशम भाव पर गोचर के गुरु व शनि का संयुक्त प्रभाव चल रहा था।



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