संसार भर के वीरों में अद्वितीय, ज्ञानियों में सर्वश्रेष्ठ, अष्टसिद्धि के स्वामी श्री रामभक्त हनुमान की आराधना प्राचीन काल से लेकर आज तक संपूर्ण भारतीय प्रायद्वीप में निर्बाध रूप से जारी है जो भक्तों के कल्याणार्थ इस भू-धरा पर शिव शंकर के एकादश रुद्रावतार के रूप में अवतरित हैं। किसी कार्य को करने की ऊर्जा, शक्ति, बल व आंतरिक प्रेरणा देने वाले परम कल्याणक जो हैं वही हनुमान जी हैं जो युग युगान्तर से भारतीय समाज में संपूर्ण सनातन भक्तों के बीच भक्त प्रवर व भक्तराज के रूप में पूजित हैं।
धर्म जगत् में सामान्यतः श्री हनुमान जी के एक मुख की पूजार्चना व साधना-उपासना सर्वत्र की जाती है पर बल, बुद्धि, विद्या व सद्विचार से परिपूर्ण ऐवश्वर्ययुक्त श्री संपन्न हनुमान जी के ‘पंचमुख’, ‘सप्रमुख’ व ‘एकादश’ उपासना की अपनी महत्ता सनातन संस्कृति में पुरातन है जिसमें श्री हनुमान जी के पंचमुखी रूप की उपासना का विशेष महत्व है। ऐसे तो पूरे देश में पंचमुखी हनुमान के पूजन अर्चन के नए-पुराने कितने ही स्थान हैं पर इन सबों के बीच गया के श्री विष्णुपद मंदिर परिसर में विराजमान पंचमुखी हनुमान आयुफलदाता हैं। श्री हनुमान से जुड़े किसी प्रकार का जप-तप, पूजा-पाठ, होम-हवन से यहां त्वरित लाभ मिलता है। गया के श्री विष्णुपद के पुराने मार्ग जो पंचमहल्ला, सूर्यकुंड होते आया है, से श्री विष्णुपद मंदिर में प्रवेश करने पर श्री गयाश्वरी देवी मंदिर के बाद के आंगन के आगे श्री हनुमान जी के पंचमुखी रूप का प्राचीन मंदिर पाल कालीन है जिसके ठीक बगल में ही गया गदाधर जी का ऐतिहासिक देवालय विराजमान है।
गया का गौरव श्री विष्णुपद के कुल 21 देवालयों में श्री पंचमुखी हनुमान मंदिर साधना उपासना का जागृत स्थल है जहां दूर देश के भक्तों का सालों भर आगमन होता रहता है और मंगलवार को भक्तों के आगमन से मेला जैसा दृश्य उत्पन्न हो जाता है। इस देवालय से जुड़े साक्ष्यों के अध्ययन अनुशीलन और पुराने जानकारों से ली गई जानकारी से स्पष्ट होता है कि पुरातन काल में श्री विष्णुपद के पंचम देवालयों में एक पंचमुखी जी का यह स्थान पंचकोशी मोक्ष तीर्थ गया के गयापाल परिजनों के लिए खासकर कुश्ती, अखाड़े व मल्ल विद्या से जुड़े महारथियों के लिए अति पूज्यनीय बना रहा और आज भी कमोबेश यह परंपरा जारी है।
पहले श्री गदाधर मंदिर के बगल में उत्तर की ओर से एक पतली सीढ़ी से हनुमान जी के इस मंदिर में पहुंच का रास्ता थोड़ा कष्टकर था। तकरीबन सत्रह वर्ष पहले भक्तों की कृपा व पुजारियों के सहयोग से इस मंदिर का नव शृंगार होने के बाद यहां का कलेवर ही बदल गया है। इस कक्ष में हनुमान जी की एक मूर्ति दीवार में लगी है पहले यहीं से प्रवेश द्वार था जिनके गर्भगृह के प्राचीन द्वार के ऊपर ‘श्रीराम ऊँ श्रीराम’’ अंकित हैं। जालीदार ग्रिल लगने से यहां की शोभा में आशातीत निखार आ गया है। गया के ख्यातनाम साहित्य सेवी पं. मोहन लाल महतो वियोगी की अगाध आस्था पंचमुखी हनुमान से जुड़ी थी। नए जमाने में मंदिर में सेवा देने वालों में गयापाल माधो लाल गुर्दा बताते हैं कि प्रेत-बाधा, विष-शमन, शत्रु-संकट निवारण, महामारी, अमंगलनाशक, ग्रह दोष, भूत-पिचाश दोष आदि के निवारण के लिए यह एक मान्यताप्राप्त स्थल है जहां के भक्त भारत ही क्या विदेशों में भी निवास करते हैं। मंदिर में प्रवेश खंड के सीढ़ी के किनारे पर ताखे में सिद्धि विनायक श्री गणेश विराजमान हैं। आगे चबूतरे के बाद प्रथम कक्ष में आते ही हनुमत भक्ति का भाव स्वतः जागृत होता है
जहां संकट मोचन हनुमानाष्टक, श्री हनुमान चालीसा, श्री हनुमत सहस्त्रनाम स्तोत्र और बजरंग बाण संगमरमर के प्लेट पर अंकित कर दीवार से लगा दिया गया है। यहीं ताखे पर हनुमान जी से जुड़े नए-पुराने पुस्तक व धर्म ग्रंथ हैं जिसका उपयोग पाठ करते समय भक्त लोग भी करते हैं। दक्षिण मुखी होने के कारण यहां की महिमा बहुत ही अधिक है। मंदिर के गर्भगृह में श्री हनुमान जी की प्रतिमा लाल सिंदूर लेपित है। यहां प्रभु के पांचों मुख का सजीव चित्रण हुआ है।
मंत्र महार्णव के वर्णित तथ्यों के अनुसार यहां प्रभु का रूप देखा जा सकता है जिनके उत्तर का मुख शुकर, दक्षिण मुख नृसिंह, पूर्व का मुख वानर, पश्चिम का मुख गरुड़ और ऊपर में सामने का मुख घोड़े का है। विवरण है कि गया गदाधर मंदिर पाल राजा गोविद पाल (1161-1175 ई.) द्वारा बनवाए जाने के समय इस मंदिर को नया रूप दिया गया। इसके बाद तकरीबन सात सौ वर्षों तक मंदिर के ऐसे ही रूप में पूजा-पाठ, जप-तप चलता रहा और इसी रूप का दर्शन भक्त शिरोमणि चैतन्य महाप्रभु, गुरुनानक, राजा मान सिंह, महारानी अहिल्याबाई सरीखे महान लोगों द्वारा किया गया। बाद में 1934-35 में भक्तों की सद्कृपा और पुजारी गयापाल के विमर्श से इसके शिखर सहित अग्रभाग का नव शृंगार कराया गया और तब से यहां की प्रसिद्धि खूब बढ़ गई है।
आज संपूर्ण गया जी मंे पंचमुखी हनुमान जी के और भी तीर्थ स्थापित हैं पर जिनकी सर्वाधिक प्रसिद्धि आज तक बनी है, वह हैं श्री विष्णुपद के पंचमुखी हनुमान जी जहां की मूल प्रतिमा मात्र सवा हाथ लंबा और इतना ही चैड़ा बताया जाता है। यहां से जुड़े पुराने जानकार व धर्मज्ञाता स्व. बाबू गोविन्द लाल धोकड़ी बताते थे कि यह स्थान इतना फलदायी है कि 21 मंगल निश्चित समय से किसी कार्य सिद्धि के लिए किया गया कोई पाठ पूर्णता की प्राप्ति अवश्य करा देता है और अगर कार्य नहीं होना है तो बीच में ही अकस्मात् कोई विघ्न बाधा आ जाती है। आज भी यहां दूर-दूर के साधक, तांत्रिक, तपस्वी व वीतरागी आकर हनुमान जी के श्री चरणों में अपनी श्रद्धा निवेदित करते हैं। श्री पंचमुखी हनुमान जी के पश्चिम में श्री राम दरबार ठाकुर बाड़ी का उल्लेख आवश्यक हो जाता है
जहां पुरातन महत्व के देव विग्रह के साथ पालकालीन हाथी की उत्कृष्ट प्रतिमा देखी जा सकती है जो कभी इन्द्रपद की शोभा बढ़ाता था। श्री हनुमान जी के चातुर्दिक शंकराचार्य मठ, गदाधर मंदिर, साक्षी महादेव, अहिल्याबाई मंदिर व श्री काल भैरव और सामने में माई ललिता देवी का मंदिर विराजित है। प्रत्येक वर्ष श्री हनुमान जयंती (दो बार चैत्र व कर्तिक मास में), श्री रामनवमी, श्री सीता नवमी व विवाह पंचमी में यहां की साज-सज्जा व रौनक देखते बनती है और इस क्रम में अखंड, विशेष भोग व भंडारा की व्यवस्था भी की जाती है।
अस्तु ! देश भर में वाराणसी, उज्जैन, चित्रकूट, प्रयागराज, अयोध्या, हरिद्वार, रामेश्वरम्, जगन्नाथपुरी, ओंकारेश्वर, गोरखपुर, त्रयम्बकेश्वर, खेड़ा, सालासर, सिलवासा, अजमेर, कुर्नूल, यमुना नगर, अटिगुप्प, बंगलूर, रायचूर, औजन, कोटा, कन्याकुमारी, नासिक, देवघर जैसे ख्यातिप्राप्त हनुमान तीर्थ स्थलों के बीच गया के श्री विष्णुपद में विराजित पंचमुखी पंचानन हनुमान जी का विशिष्ट महत्व प्राच्य काल से अक्षुण्ण है जहां की यशः कृपा से समस्त क्लेश का निवारण हो सर्वकार्य सफल हो जाते हैं। मंगल मूरति मारूति नन्दन। सकल अमंगल मूल निकन्दन।।