शनि-कुछ खगोलीय तथ्य
शनि-कुछ खगोलीय तथ्य

शनि-कुछ खगोलीय तथ्य  

विनय गर्ग
व्यूस : 4572 | जून 2016

हमारे सौर मंडल में शनि सूर्य से छठे क्रम का ग्रह है। बड़ा ग्रह होने की दृष्टि से यह शनि ग्रह सौर मंडल में दूसरे क्रम पर आता है। सबसे बड़ा गुरु ग्रह होता है और दूसरे क्रम में शनि ग्रह होता है। शनि ग्रह गैस के बड़े गोले के रूप में है और इसकी त्रिज्या ;त्ंकपनेद्ध पृथ्वी से लगभग नौ गुनी है। भार की दृष्टि से पृथ्वी से लगभग 95 गुना भारी है जबकि पृथ्वी के घनत्व का लगभग 1/8वां भाग है। शनि का नाम ‘शनि’ कृषि कार्य के रोमन देवता के नाम के ऊपर पड़ा है।

इसका खगोलीय प्रतीक चिह्न ( ) जो कि हंसिया के समान होता है, यह हंसिया कृषि कार्यों में फसल काटने के काम आता है। शनि की भीतरी सतह संभवतः लोहे और निकल तथा सिलिकन और आॅक्सीजन से बनी चट्टान के द्वारा बनी है और यह भीतरी सतह के ऊपर धात्विक हाइड्रोजन से बनी सतह है। मध्य वाली सतह द्रवित हाइड्रोजन और द्रवित हीलियम गैस से बनी है और अंत में सबसे ऊपरी सतह द्रव रूप में और बाहरी सतह गैस के रूप में बनी है। शनि ग्रह का रंग हल्का पीला और सफेद रंग अमोनिया के क्रिस्टल के कारण है। धात्विक हाइड्रोजन में विद्युत तरंगों की सतह के कारण शनि ग्रह में चुंबकीय क्षेत्र पृथ्वी की तुलना में कम है।

लेकिन चुंबकीय चाल पृथ्वी की तुलना में 580 गुनी अधिक है और ऐसा शनि के बड़े साइज के कारण है। गुरु की तुलना में शनि की चुंबकीय शक्ति मात्र 20वां हिस्सा है। शनि पर हवा की तीव्रता 1800 किमी./प्रतिघंटा तक है जो कि गुरु की तुलना में कम है तथा नेप्च्यून की तुलना में शनि की गति कम है। शनि पर चलने वाली हवाओं की गति सौर मंडल के सभी ग्रहों के दूसरे क्रम की गति है। शनि मुख्य रूप से छल्ले की पद्धति पर आधारित है। इसमें 9 संपूर्ण मुख्य छल्ले हैं जबकि 3 विखंडित रूप में चाप के रूप में हैं। शनि ग्रह मुख्य रूप से बर्फ के कणों से बना है और कुछ थोड़ा सा हिस्सा पथरीले मलबे से या धूल के रूप में बना है और इसकी अपनी कक्षा पद्धति है। इसमें कुल 62 चंद्रमा हैं, जिनमें से 53 चंद्रमाओं के अधिकारिक रूप से नाम हैं। ये चंद्रमा उनमें शामिल नहीं है जो कि शनि का वलय (रिंग) बनाते हैं।


For Immediate Problem Solving and Queries, Talk to Astrologer Now


वे तो सैकड़ों छोटे चंद्रमा से मिलकर बना है। शनि के सबसे बड़े चंद्र का नाम ‘टाइटन’ है। यह टाइटन सौर मंडल के बुध ग्रह से भी बड़ा है लेकिन इसका वजन बुध से कम है। सौरमंडल में केवल चंद्रमा पर ही वांछित वातावरण उपलब्ध है। सूर्य और श्ािन के बीच औसत दूरी 1.4 अरब किमी. के लगभग या उससे भी ज्यादा है। शनि अपनी कक्षा में औसत गति 9.69 किमी/सेकेंड की गति से 10759 दिन या लगभग साढ़े 29 वर्षों में सूर्य के चारों ओर एक चक्कर पूरा करता है। शनि की कक्षा दीर्घवृत्ताकार रूप में पृथ्वी के अक्ष से 20 48’ पर झुकी हुई है। वैज्ञानिकों के आधार पर शनि की घूर्णन गति तीन प्रकार की मानते हैं। पहली पद्धति के अनुसार अपने अक्ष पर 10 घंटे 14 मिनट के समय में पूरा होता है। दूसरी पद्धति के आधार पर घूर्णन समय 10 घंटे 38 मिनट और 25 सेकेंड है। पद्धति-3 के अनुसार शनि की आंतरिक घूर्णन गति 10 घंटे 39 मिनट 22 सेकेंड का समय लेती है।

क्योंकि पद्धति-3, पद्धति-2 के बीच बहुत कम अंतर है, इसलिये इस तीसरी पद्धति को छोड़ देते हैं। सन् 2007 में पाया गया कि शनि से रेडियो उत्सर्जन हो रहा था, लेकिन वह शनि की घूर्णन गति से मेल नहीं खाता था जिसका कारण संभवतः शनि ग्रह के ऊपर पानी की वाष्प के कारण समस्या रही हो। शनि एक ऐसा ग्रह है जो सामान्य रूप से नंगी आंखों से पृथ्वी से देखा जा सकता है। यह पांच बाह्य ग्रहों में से एक है क्योंकि यह चमकदार ग्रह है। 17 दिसंबर 2002 में शनि को पृथ्वी के अनुरूप होने के कारण सबसे अधिक चमकदार देखा गया था। शनि की आंतरिक सतह बहुत गर्म है जिसका तापमान 11,700 डिग्री सेन्टीग्रेड तक पहुंच जाता है।

शनि के वक्री रहने की अवधि लगभग साढ़े चार महीने की होती है और लगभग 1 वर्ष में एक बार ही शनि वक्री होता है। जबकि इसके अस्त होने की अवधि लगभग एक महीना होती है। शनि सूर्य के चारों ओर अपनी कक्षा में लगभग 30 वर्षों में एक चक्कर पूरा कर लेता है। इस प्रकार एक राशि में ढाई वर्ष रहता है। एक राशि का तात्पर्य 300 होगा। अर्थात शनि को 300 जाने में 30 माह का समय लगता है। दूसरे शब्दों में कह सकते हैं कि 10 चलने में शनि को 1 महीना अर्थात 30 दिन का समय लगता है। इस प्रकार शनि की ब्रह्मांड में औसत गति 2’ प्रतिदिन होती है। लेकिन जब शनि वक्री से मार्गी गति में परिवर्तित होता है तो यह गति 5’ प्रतिदिन तक तीव्रतम पहुंच जाती है जबकि वक्री गति की स्थिति में यह न्यूनतम औसतन 1’ प्रतिदिन या इससे भी कम स्थिर अवस्था तक पहुंच जाती है।


अपनी कुंडली में सभी दोष की जानकारी पाएं कम्पलीट दोष रिपोर्ट में


जब भी पृथ्वी घूमते-घूमते किसी ग्रह के नजदीक आ जाती है तो ग्रह की चाल वक्री हो जाती है। ग्रह की वक्री गति तब तक रहती है जब तक पृथ्वी व ग्रह के बीच की कोणीय दूरी 1350 तक रहती है। यह पृथ्वी के अंदर व बाहर वाली कक्षा में घूमने वाले सभी ग्रहों पर लागू होती है। यही कारण है कि शनि की वक्रता का समय साढ़े चार महीने अर्थात 30 ग 4ण्5 माह = 135 दिन होता है। यदि शनि की गति नगण्य मान ली जाय तो पृथ्वी सूर्य के चारों ओर 1350 घूमने में 135 दिन अर्थात 4.5 महीने का ही समय लेती है। जब-जब यह शनि ग्रह वक्री होता है तब-तब इसका बल बढ़ जाता है या दूसरे शब्दों में कह सकते हैं कि अधिक प्रभावशाली हो जाता है।

अर्थात् जिन कुंडलियों में शनि अनुकूल होता है तो जातक को बहुत लाभ और यदि प्रतिकूल है तो बहुत अशुभ फल देता है। शनि चाहे शुभ फल दे रहा हो या अशुभ फल दे रहा हो, वक्री शनि की ताकत बढ़ जाती है। हां अस्त होने पर शनि का बल हमेशा कम ही रहेगा। साथ ही शनि जब गोचर में साढ़ेसाती के दौरान वक्री होता है तो निर्णयात्मक फल दे देता है जो कि सबसे खतरनाक स्थिति होती है। विशेष तौर पर जब जातक का लग्न या राशि सिंह या कर्क हो जाए तो और भी हानिकारक या प्रभावशाली हो जाता है।



Ask a Question?

Some problems are too personal to share via a written consultation! No matter what kind of predicament it is that you face, the Talk to an Astrologer service at Future Point aims to get you out of all your misery at once.

SHARE YOUR PROBLEM, GET SOLUTIONS

  • Health

  • Family

  • Marriage

  • Career

  • Finance

  • Business


.