परंपरागत ज्योतिष एवं लाल किताब दोनों में शनि को सर्वाधिक पापी एवं अशुभ ग्रह माना गया है। किंतु शनि को न्यायाधीश की भी संज्ञा दी गई है। शनि दंडित सिर्फ उसे करते हैं जिसने पाप कर्म किये हों अथवा जो अवैध कार्यों में संलिप्त हो। यदि शनि के पक्के घरों की बात की जाय तो अष्टम, दशम तथा एकादश भाव को शनि का पक्का घर माना जाता है। यद्यपि कि सप्तम भाव में शनि की उच्च राशि पड़ती है किंतु सप्तम भाव पर अधिक प्रभाव बुध एवं शुक्र का होता है। लाल किताब के अनुसार शनि की कारक वस्तुएं: काला रंग, लोहार, मिस्त्री, मजदूर, ला ैह उपकरण, जल्लाद, शल्य चिकित्सक, चालाक, मगरमच्छ, सर्प, नशे की वस्तुएं, बादाम, नारियल एवं जूते आदि। कुंडली में शनि के मंदा होने की पहचान: - घर का ढह जाना - घर में यदि भैंस हो तो उसकी मृत्यु - आग लगना - जूते की चोरी - कान की बीमारी, खांसी तथा आंखों में खराबी - अत्यधिक शराब एवं अभक्ष्य पदार्थों का भक्षण - झूठ बोलना - गलत प्रेम संबंधों में पड़ना शनि प्रथम भाव में प ्रथम भाव स ूर्य एव ं म ंगल द्वारा प ्रभावित हा ेता ह ै। म ंगल स ूर्य का मित्र तथा शनि का शत्रु है साथ ही पिता-प ुत्र हा ेत े ह ुए भी शनि आ ैर सूर्य में आपस में कट्टर शत्रुता है।
प्रथम भाव में मेष राशि पड़ती है जो कि शनि की नीच राशि है। अतः इस भाव में शनि का प्रभाव कदापि शुभ नहीं होता। लेकिन शनि का प्रभाव प्रथम भाव में अति शुभ होता है जब तीसरा, सातवां एवं दसवां भाव रिक्त हो अर्थात इन भावों में किसी भी ग्रह की उपस्थिति नहीं हो। साथ ही इस शुभ प्रभाव को कायम रहने के लिए यह भी आवश्यक है कि शनि के पक्के घरों में कोई शत्रु ग्रह स्थित न हो अथवा किसी शत्रु ग्रह की दृष्टि शनि के ऊपर न हो। शनि का प्रभाव उस स्थिति में भी शुभ होता है यदि सप्तम भाव में राहु अथवा केतु स्थित हो।
राहु एवं केतु को लाल किताब में शनि का चेला कहा गया है जो सिर्फ शनि के लिए मददगार ही साबित होते हैं। यदि शनि प्रथम भाव में हो तो जातक को 48 वर्ष की उम्र तक गृह निर्माण नहीं करवाना चाहिए। यदि शनि के प्रथम भाव में स्थिति के समय अष्टम भाव में बुध स्थित हो तो दोनों ग्रहों के बीच आपसी टकराव के कारण जातक की शिक्षा अधूरी रह जाती है। उपाय: - जमीन के अंदर सुरमे की डिब्बी दबाएं। - घर के फर्श पर सरसों का तेल छिड़कें। - चिमटा, तवा एवं चूल्हा दान करें।
- धन एवं समृद्धि के लिए बंदर पालें। शनि द्वितीय भाव में लाल किताब के अनुसार द्वितीय भाव शुक्र एवं बृहस्पति से प्रभावित है। शनि के संबंध शुक्र एवं बृहस्पति दोनों से मधुर होते हैं अतः द्वितीय भाव म े ं सामान्यतः शनि श ुभ फल प्रदान करते हैं। शनि के फल का विवेचन करते वक्त छठे, आठवें एवं बारहवें भाव में स्थित ग्रहों की स्थिति का विश्लेषण करना आवश्यक है। शनि द्वितीय भाव में स्थित होने के समय यदि चंद्रमा शुभ स्थिति में हो तो हर प्रकार का बेहतर फल देखने को मिलता है। चंद्रमा के एकादश भाव में स्थित होने पर जातक को उच्च पद एवं प्रतिष्ठा की प्राप्ति होती है। शनि द्वितीय के समय यदि गुरु चतुर्थ भाव में स्थित हो तो जातक काफी बुद्धिमान होता है।
यदि शनि की सूर्य के साथ युति हो अथवा शुक्र एवं बुध युति में हों तो मंगल अशुभ हो जाता है तथा इसके कारण जातक को 31 वर्ष की उम्र तक बीमारियों का सामना करना पड़ता है। यदि राहु अष्टम भाव में स्थित हो तो राहु की शनि के साथ शत्रुता हो जाती है जिसके परिणामस्वरूप ससुराल परिवार पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। उपाय - माथे पर दूध अथवा दही का तिलक लगाएं। - भूरे रंग की भैंस पालें। - यदि स्वास्थ्य से संबंधित परेशानी हो तो राहु का उपाय करें।
- 43 दिन तक लगातार खाली पैर मंदिर में जाकर माथा टेकें। शनि तीसरे भाव में तीसरा भाव म ंगल एव ं ब ुध द्वारा प्रभावित होता है। जब भी मंगल एवं बुध मिलते हैं तो शनि का जन्म होता है।
अतः शनि तीसरे भाव में दुगुना शक्तिशाली हो जाता है। तीसरा भाव अष्टम भाव का प्रवेशद्वार है। अष्टम भाव श्मशान है अतः शनि तृतीय भाव में प्रयास से कम फल प्रदान करते हैं। तृतीय भाव से शनि पंचम भाव पर दृष्टि प्रदान करते हैं तथा पंचम भाव सूर्य का है अतः यदि कुंडली में शनि किसी भी रूप में मंदा हो जाय तो तीसरे भाव में स्थित होने पर वह सरकार से सहायता प्राप्त नहीं होने देगा। पंचम भाव संतान भाव होने के कारण यह संतान क्षति को भी निर्दिष्ट करता है साथ ही जातक को संतान से संपूर्ण संतुष्टि प्राप्ति नहीं होगी। वैसे सामान्य रूप में तृतीय भाव में शनि का फल शुभ ही होता है तथा यह जातक को स्वस्थ, बुद्धिमान तथा विद्वान बनाता है। यदि तृतीय भाव के शनि पर केतु की दृष्टि हो अथवा केतु शनि से युत हो तो शनि अपना सर्वश्रेष्ठ फल प्रदान करेगा। शनि की तृतीय भाव में स्थिति के समय यदि सूर्य प्रथम, तृतीय अथवा पंचम भाव में स्थित हो तो इसके कारण केतु एवं शनि दोनों के फल अशुभ हो जाते हैं।
इस अशुभत्व के कारण जातक के कान, पैर, रीढ़ की हड्डी, कार तथा चाचा पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। उपाय - कुत्ता पालें। - घर के अंत में एक अंधेरी कोठरी बनवाएं। - धन की प्राप्ति के लिए घर में मिट्टी के तीन कुत्ते स्थापित करें। - घर की दहलीज के नीचे लोहे की कील गाड़ें। शनि चतुर्थ भाव में चतुर्थ भाव हर प्रकार से चंद्रमा की संपत्ति है। यदि शनि चतुर्थ भाव में स्थित हो तो ऐसा माना जाता है कि शनि एवं चंद्रमा दोनों चतुर्थ भाव में स्थित हैं। शनि की चतुर्थ भाव में स्थिति जातक को वाहन सुख प्रदान करती है। जातक को नशीले पदार्थ क े व्यवसाय स े लाभ प ्राप्त हा ेता है। ऐसे जातक को अक्सर पेट से स ंब ंधित बीमारिया ं हा ेती रहती ह ै ं।
किसी भी बीमारी के लिए यदि ये नशीली दवाईयों का उपयोग करते हैं तो इनके लिए ज्यादा फायदेमंद साबित होता है। शनि चतुर्थ के समय यदि चंद्र दशम भाव में स्थित हो तो जातक की मां दुःखी रहती है तथा इनके लिए रात में दूध पीना बीमारी का बहाना बन जाता है। ऐसा जातक यदि किसी विधवा महिला की सहायता करता है अथवा परस्त्री से अवैध संबंध कायम करता है तो यह जातक के लिए दरिद्रता का कारण बन जाता है। उपाय - बीमारी के समय ऐसी दवा ल े ं जिसमें मदिरा के अंश हों। - मछलियों, भैंसों, कौओं को खिलाना काफी शुभ फल देगा। - मजदूरों की सहायता करना काफी शुभ होगा। - किसी काले कपड़े में काला चना, सरसों के तेल बांधकर शनिवार को दान दें। शनि पंचम भाव में पंचम भाव सूर्य से प्रभावित है तथा सूर्य एवं शनि में आपसी शत्रुता है।
जिस जातक के पंचम भाव में शनि हो उसे अपने नाम पर गृह निर्माण नहीं करना चाहिए। गृह निर्माण का तात्पर्य है शनि को स्थापित करना जिसके कारण सूर्य एवं शनि में आपसी प ्रतिद्व ंद्विता हा ेगी जिसक े कारण जातक को सूर्य का शुभ प्रभाव नहीं मिल पाएगा। जातक के संतान जन्म के समय मीठी वस्तुओं की बजाय नमकीन चीजें बांटकर खुशी मनानी चाहिए। शनि पंचम में स्थित होने के समय यदि एकादश भाव रिक्त हो तो यह अति शुभ होता है। यदि बृहस्पति नवम भाव में स्थित हो तो जातक को उम्र के 5वें, 17वें, 29वें, 41वें, 53वें, 65वें वर्ष में काफी शुभ परिणाम प्राप्त होते हैं। शनि पंचम में स्थित होने पर यह जातक के स्वास्थ्य को 9वें, 18वें, 36वें वर्ष प्रभावित करता है। पंचम शनि वाला जातक यदि 48 वर्ष के पूर्व गृह निर्माण करता है तो उसकी संतति नाश होने की संभावना होती है।
उपाय - 48 वर्ष की उम्र तक गृह निर्माण न करवाएं। - संतान को गृह निर्माण अपनी कमाई से करनी चाहिए। - दूसरे एवं बारहवें भाव में शुक्र की वस्तुएं स्थापित करें। - बच्चे के जन्म के समय मिठाई न बांटें। साबुत मूंग अथवा हथियार पैतृक घर के अंधेरे कमरे के अंदर रखें। - कुत्ते पालें। शनि षष्ठ भाव में छठा भाव बुध एवं शनि से प्रभावित होता है। दोनों ग्रह आपस में शत्रु हैं किंतु शनि दोनों का मित्र है। अतः छठे भाव में शनि शुभ परिणामदायी होता है। यदि बुध एवं केतु कुंडली में शुभ हों तो छठे भाव में शनि अत्यधिक प्रभावशाली होता है। छठे भाव से शनि अष्टम भाव को दृष्ट करता है अतः 28 वर्ष की उम्र तक विवाह करना अशुभ है। यदि राहु कुंडली में मंदा हो तो शनि का प्रभाव अशुभ होता है। छठे भाव का शनि शत्रुनाशक कहा जाता है। किंतु जातक का छोटा भाई स्वयं उसके लिए शत्रु बन जाता है।
जातक का बड़ा बेटा उसके साथ अच्छा व्यवहार नहीं करता किंतु अंत में वही उसको बचाने के लिए आगे भी आता है। छठे भाव से शनि वक्र दृष्टि से द्वितीय भाव को देखता है जिसके कारण इसका प्रभाव दशम भाव अर्थात व्यवसाय पर पड़ता है। छठे भाव में शनि के स्थित होने के समय यदि वर्षफल में शनि द्वितीय, सप्तम, नवम अथवा द्वादश भाव में आ जाय तो यह अति शुभ परिणाम देता है। छठे शनि के समय यदि वर्षफल में राहु छठे अथवा तृतीय भाव में आ जाय तो काफी शुभ होता है। उपाय - भूरे एवं काले कुत्ते पालना काफी शुभ होता है। - किसी को जूते दान देना काफी शुभ होता है।
- जब कभी कोई नई मशीन लगाएं तो उसके साथ पुरानी मशीन भी अवश्य लगाएं। - बीमारी क े समय 6 नारियल लगातार 6 दिन तक बहते जल में प्रवाहित करें। - बहते जल में बादाम प्रवाहित करें। शनि सप्तम भाव में सप्तम भाव शुक्र का पक्का स्थान है। बुध कन्या है अतः इस भाव पर बुध एवं शुक्र दोनों का प्रभाव होता है। शुक्र चूंकि शनि की प्रेमिका है अतः शनि सप्तम भाव में काफी शुभ परिणाम देता है। लोहे, चमड़े एवं मशीन से संबंधित व्यवसाय काफी लाभदायक सिद्ध होते हैं। सप्तम में शनि वाला जातक यदि अपनी पत्नी क े साथ अच्छ े स ंब ंध रखता है तो उत्तरोत्तर उसके धन एवं आयु में वृद्धि होती है। सप्तम शनि के समय यदि बृहस्पति प्रथम भाव में स्थित हो तो शनि काफी शुभ हो जाता है तथा जातक को सरकारी सहायता प्राप्त होती है।
सप्तम शनि वाले जातक को साझेदारी में कोई व्यवसाय नहीं करना चाहिए। उपाय - पत्नी को बालों में सोने का क्लिप लगाना चाहिए। - साझेदारी में कोई व्यवसाय न करें तथा मांस, मदिरा एवं परस्त्री से दूर रहें। - काले कुत्ते पालें। - पीतल के बर्तन में भरकर घर में शहद रखें। - बांसुरी में खांड भरकर इसे किसी एकांत स्थान पर भूमि के अंदर दबा दें। शनि अष्टम भाव में अष्टम भाव मृत्यु स्थान है। शनि इस भाव का कारक है तथा मंगल का भी इस भाव पर प्रभाव है क्योंकि मंगल की वृश्चिक राशि इस भाव में होती है। इस भाव में कोई भी ग्रह शुभ नहीं होते। अष्टम भाव में शनि एक जल्लाद की तरह कार्य करता है।
अष्टम शनि वाला जातक यदि मांस, मदिरा आदि का सेवन करता है तो यह उसके लिए काफी अशुभ साबित होता है। अष्टम शनि के समय यदि कुंडली में बृहस्पति शुभ स्थिति में हो तो जातक को पैतृक संपत्ति की प्राप्ति होती है। अष्टम शनि वाले जातक को हमेशा राजदंड का भय होता है। यदि कोई भी ग्रह इस भाव में शनि के साथ युत हो तो शनि उस ग्रह के कारकत्व को हानि पहुंचाता है। यदि शनि अष्टम के समय द्वादश भाव रिक्त हो तो जातक ताउम्र गरीबी में ही जीवन व्यतीत करता है। अष्टम शनि के समय यदि सूर्य, चंद्र एवं मंगल शनि के साथ हों अथवा शनि से दृष्टि संबंध में हों तो जातक के घर में निरंतर मृत्यु होती रहती है।
उपाय - आठ किलो काले उड़द को थोड़ा सरसों तेल डालकर प्रत्येक वर्ष जल में प्रवाहित करें। - आठ बादाम जल में प्रवाहित करें। - चिमटा, तवा एवं चूल्हा दान करें। - छुहारे जल में प्रवाहित करें। - चांदी का एक चैकोर टुकड़ा हमेशा अपने पास रखें। - पानी में एक चम्मच दूध डालकर स्नान करें। शनि नवम भाव में नवम भाव बृहस्पति से प्रभावित होता है तथा शनि इस भाव में काफी शुभ परिणाम देता है। नवम भाव में शनि वाला जातक यदि लोक कल्याणकारी कार्य करने वाला हो तो शनि अति शुभ परिणाम देता है क्योंकि ऐसी स्थिति में बृहस्पति यहां स्थापित हो जाते हैं। शनि नवम के समय यदि बृहस्पति कुंडली में शुभ स्थिति में हो तो जातक तिमंजिला मकान अथवा तीन मकानों का मालिक होता है।
किंतु यदि वह तीन से अधिक मकान बनाता है तो यह जातक के लिए काफी नुकसानदेह साबित होता है। नवम शनि के समय यदि वर्षफल में शुक्र द्वितीय भाव में आ जाय तो शनि नौ गुना शुभ फल प्रदान करता है। नवम शनि वाला जातक सामान्यतः कर्ज नहीं लेता। नवम भाव का शनि अधिक उम्र में संतान देता है। उपाय - बृहस्पति, सूर्य एवं चंद्र की वस्तुएं जंगल में ले जाकर छोड़ दें। - चावल एवं बादाम बहते जल में प्रवाहित करें। - घर की छत साफ-सुथरा रखें। - चांदी का चैकोर टुकड़ा हमेशा अपने पास रखें। शनि दशम भाव में दशम भाव पर शनि का स्वामित्व है। अतः इस भाव में शनि हमेशा काफी शुभ परिणाम देते हैं।
ऐसे जातक को भूसंपदा एवं संपत्ति से लाभ होता है। यदि जातक शनि की ही तरह चालाक हो तो उसे हर प्रकार का सुख प्राप्त होता है। यदि ऐसा जातक धार्मिक एवं कल्याणकारी कार्यों में लगा रहता है तो समस्याएं कभी उसका पीछा नहीं छोड़तीं। दशम भाव का शनि जातक को अति महत्वाकांक्षी बनाता है। ऐसे जातक को सरकार से लाभ प्राप्त होता है। दशम शनि वाला जातक यदि मांस, मदिरा आदि से दूर रहता है तभी उसका भाग्योदय होता है अन्यथा उसका भाग्य सा ेया रहता है। इस भाव का शनि हर तीसरे वर्ष शुभ परिणाम देता है किंतु दशम भाव में शनि अकेला होना चाहिए। दशम शनि वाला जातक यदि परोपकारी एवं दयालु हो जाय तो शनि अशुभ परिणाम देना शुरू कर देता है यहां तक कि वह प ूरी तरह बर्बा द हा े सकता है।
उपाय Û यदि शनि मंदा हो तो बृहस्पति का उपाय करें। - अतिथियों का आदर-सत्कार करें। - मांस, मदिरा आदि से परहेज करें। - दाढ़ी अथवा मूंछ रखें। - चने की दाल लगातार 43 दिन तक जल में प्रवाहित करें। - रात में दूध न पीएं। शनि एकादश भाव में एकादश भाव शनि का पक्का स्थान है क्योंकि इस भाव में शनि की मूल त्रिकोण राशि कुंभ पड़ती है। एकादश भाव बृहस्पति से भी प्रभावित होता है क्योंकि यह आय स्थान है तथा बृहस्पति धन के कारक हैं। इस भाव का शनि न्याय प्रदान करता है तथा न्याय शनि के दो शिष्यों राहु एवं केतु के द्वारा किये जाते हैं। शनि एकादश के समय यदि केतु पंचम भाव में हो तो जातक को कम से कम एक पुत्र अवश्य होता है।
जातक को पैतृक संपत्ति से लाभ प्राप्त होता है। ऐसा जातक यदि 36 से 39 वर्ष के उम्र के बीच गृह निर्माण प्रारंभ करता है अथवा शनि स े स ंब ंधित र्का ेइ म ंदा कार्य करता है तो इससे उसका स्वास्थ्य बुरी तरह से प्रभावित हो सकता है। एकादश शनि के समय यदि शुक्र सप्तम भाव में स्थित हो तो जातक को दूसरों के लिए कल्याणकारी कार्य करना चाहिए। ऐसा करने से एकादश भाव का शनि जीवन में हर प्रकार की सुख-समृद्धि प्रदान करता है। उपाय - कोई भी शुभ कार्य प्रारंभ करने से पूर्व पानी से भरा घड़ा स्थापित करें। - सूर्योदय के समय तेल अथवा शराब 43 दिनों तक लगातार जमीन पर छिड़कें। - बृहस्पति के उपाय करें। मांस, मदिरा एवं परस्त्री से दूर रहें। शनि द्वादश भाव में द्वादश भाव बृहस्पति, शुक्र एवं राहु से प्रभावित होता है।
इस भाव का शनि शुक्र की रक्षा करता है। यदि कुंडली में राहु-केतु शुभ हों तो शनि अधिक शुभ फल प्रदान करता है। द्वादश शनि के समय यदि कुंडली में बृहस्पति, मंगल एवं राहु शुभ हों तो जातक मुखिया होता है। द्वादश शनि वाले जातक को गृह निर्माण शुरू करने पर एक बार में ही उसे पूर्ण कर लेना चाहिए। द्वादश शनि वाला जातक धन संचय की परवाह नहीं करता। द्वादशस्थ शनि मां एवं पिता की संपत्ति के लिए ठीक नहीं होता। उपाय - जातक को घर में एक अंधेरी कोठरी का निर्माण करना चाहिए। - अंधेरी कोठरी में जातक को 12 बादाम एक टिन के छोटे बक्से में रख देना चाहिए। - मांस, मदिरा से दूर रहें। - अपना चरित्र उत्तम रखें।