एक पौराणिक कथा के अनुसार यह कहा जाता है कि रावण एक बहुत ही विद्वान और भगवान शिव का भक्त था। एक बार की बात है कि रावण ने अपनी तपस्या और भक्ति से सभी ग्रहों को अपने एकादश भाव में स्थित कर लिया था जिससे कि वह हर समय अपनी इच्छाओं की पूर्ति कर सके तथा सभी ग्रह उसके वश में हो जायें और जब चाहे और जो चाहे उसकी मनमांगी मुराद पूरी हो सके। इसी क्रम में रावण ने शनि को भी अपने वश में करके एकादश भाव में स्थित कर लिया। लेकिन शनि भगवान को रावण की इस इच्छा का पता चल गया, जिसके कारण शनि भगवान ने उस स्थान से भागना चाहा, परंतु क्योंकि रावण ने भगवान शनि को रस्सियों से बांधकर बंधक बना रखा था इसलिये शनि भगवान वहां से मुक्त नहीं हो सकते थे परंतु वहां से भागने और मुक्त होने की व्याकुलता से ग्रस्त होने लगे और कामना करने लगे कि कोई मुझे इस बंधन से मुक्त करवा दे।
तभी हनुमान जी ने भगवान शनि की इस प्रार्थना को सुना और हनुमान जी भगवान शनि को मुक्त कराने के लिये आये और अथक प्रयासों के बाद भगवान शनि को मुक्त करा दिया। उसी समय रावण ने भगवान शनि के पैर के ऊपर वार कर दिया, जिसके कारण शनि भगवान लंगड़े हो गये। तभी ज्योतिष में कहा जाता है कि शनि प्रधान व्यक्ति की चाल मदमस्त होती है और कभी-कभी ऐसा महसूस होता है कि व्यक्ति लंगड़ा कर चल रहा है। जिस समय हनुमान जी ने भगवान शनि को रावण के बंधन से मुक्त कराया उसी समय भगवान शनि ने हनुमान जी को वचन दिया कि आज के बाद से जो व्यक्ति आपकी पूजा-अर्चना या भक्ति करेगा, उसको मैं कभी भी तंग नहीं करूंगा या उसके दुष्कर्मों की सजा से मुक्त करते हुये सजा नहीं दूंगा।
इसीलिए कहा जाता है कि जब भी कोई व्यक्ति शनि की साढ़ेसाती, ढैय्या या दशा के कारण दुख, पीड़ा या कष्ट भोग रहा हो तो हनुमान जी की शरण में जाये और उनकी भक्ति तथा पूजा-अर्चना करे तो शनि के दुष्प्रभावों से बच सकता है। हनुमान जी की पूजा-अर्चना और भक्ति के रूप में हनुमान चालीसा का पाठ किया जा सकता है या बजरंग बाण, संकटमोचक, हनुमानाष्टक का पाठ किया जा सकता है। इसके अतिरिक्त नियमित रूप से सुंदर कांड का पाठ भी हनुमान जी की पूजा-अर्चना के रूप में ही माना जाता है। इसके अलावा प्रत्येक मंगलवार को हनुमान जी को प्रसाद चढ़ायें। प्रसाद के रूप में क्या चढ़ायें, इस पर मतांतर है।
सामान्यतः लोग बूंदी का प्रसाद चढ़ाते हैं, कुछ लोग कहते हैं, हनुमान जी बंदर के प्रतिरूप हैं और बंदरों की सेना के प्रमुख थे और क्योंकि बंदर को बूंदी से अधिक केला खाना पसंद होता है, तो इसीलिए हनुमान जी को बूंदी के स्थान पर केले का भोग लगाना अधिक शुभ है। इसके अतिरिक्त गुड़, चना, बेसन के लड्डू या कोई भी अन्य मिष्टान्न का भोग लगाया जा सकता है। हनुमान जी की पूजा कब तक करना चाहिये। इसका निर्णय इस प्रकार करें कि जब तक शनि की दशा चले या शनि की साढ़ेसाती या शनि की ढैय्या चले तब तक तो आवश्यक रूप से पूजा-भक्ति करनी ही चाहिए। यदि इसको आजीवन किया जा सके तो और भी अधिक शुभ है।
विशेष तौर पर घर के मुखिया को तो आजीवन ही करना चाहिए क्योंकि परिवार में किसी न किसी सदस्य के ऊपर शनि की साढ़ेसाती, शनि की ढैय्या या साढ़ेसाती चल ही रही होती है और परिवार के मुखिया होने के नाते पारिवारिक सुख-समृद्धि एवं शांति का उत्तरदायित्व घर के मुखिया पर ही पड़ता है। ऐसा भी कहा जाता है कि ज्योतिषियों को कभी भी शनि की साढ़ेसाती, ढैय्या या दशा गोचर प्रभावित नहीं करता क्योंकि ऐसा माना जाता है कि जब ज्योतिषी किसी जातक को शनि की ढैय्या या साढ़ेसाती के कारण शनि की पूजा करने के लिये कहता है और जब जातक उस पूजा को करता है तो उसका 10 प्रतिशत लाभ पंडितों को भी मिल जाता है। इसलिये पंडितांे को शनि कभी परेशान नहीं करता है।