ऐसे हैं मेरे हनुमान
ऐसे हैं मेरे हनुमान

ऐसे हैं मेरे हनुमान  

पुनीता गुप्ता
व्यूस : 5869 | जून 2016

हनुमान जी की उपासना से जीवन के सारे कष्ट, संकट मिट जाते हंै। माना जाता है कि हनुमान एक ऐसे देवता हंै जो थोड़ी-सी प्रार्थना और पूजा से ही शीघ्र प्रसन्न हो जाते हैं। दुनिया के सारे मुश्किल काम सिर्फ श्री हनुमान की कृपा व स्मरण से ही आसान हो जाते हैं। मंगलवार एवं शनिवार के दिन हनुमानजी का ध्यान करने से जीवन मंगलमय होता है। परमेश्वर की भक्ति की सबसे लोकप्रिय अवधारणाओं और भारतीय महाकाव्य रामायण में ये सबसे महत्वपूर्ण व्यक्तियों में प्रधान हैं। हनुमान जी की सबसे प्रसिद्ध उपलब्धि थी, जैसा कि रामायण में वर्णित है, बंदरों की सेना के अग्रणी के रूप में राक्षस राजा रावण से लड़ाई। परन्तु कई विद्वानांे ने हनुमान जी की जाति वानर बताई है। हनुमानजी का जन्म कपि नामक वानर जाति में हुआ था। नए शोधानुसार प्रभु श्रीराम का जन्म 10 जनवरी 5114 ईसा पूर्व अयोध्या में हुआ था। श्रीराम के जन्म के पूर्व हनुमानजी का जन्म हुआ था अर्थात आज (फरवरी 2016) से लगभग 7130 ईसा वर्ष पूर्व हनुमानजी का जन्म हुआ था। शोधकर्ता कहते हैं कि आज से 9 लाख वर्ष पूर्व एक ऐसी विलक्षण वानर जाति भारतवर्ष में विद्यमान थी, जो आज से 15 से 12 हजार वर्ष पूर्व लुप्त होने लगी थी और अंततः लुप्त हो गई। इस जाति का नाम कपि था।

एक अन्य गणना के अनुसार हनुमान जी का जन्म 1 करोड़ 85 लाख 58 हजार 112 वर्ष पहले चैत्र पूर्णिमा को मंगलवार के दिन चित्रा नक्षत्र व मेष लग्न के योग में सुबह 6.03 बजे हुआ था। आज वर्ष में दो बार हनुमान जयन्ती(उत्तर एवं दक्षिण भारतीय) मनाई जाती है। हनुमानजी के संबंध में यह प्रश्न प्रायः सर्वत्र उठता है कि ‘क्या हनुमानजी बंदर थे?’ इसके लिए कुछ लोग रामायणादि ग्रंथों में लिखे हनुमानजी और उनके सजातीय बांधव सुग्रीव अंगदादि के नाम के साथ ‘वानर, कपि, शाखामृग, प्लवंगम’ आदि विशेषण पढ़कर उनके बंदर प्रजाति का होने का उदाहरण देते हैं। वे यह भी कहते हैं कि उनकी पुच्छ, लांगूल, बाल्धी और लाम से लंकादहन का प्रत्यक्ष चमत्कार इसका प्रमाण है। यह भी कि उनकी सभी जगह सपुच्छ प्रतिमाएं देखकर उनके पशु या बंदर जैसा होना सिद्ध होता है। रामायण में वाल्मीकिजी ने जहां उन्हें विशिष्ट पंडित, राजनीति में धुरंधर और वीर-शिरोमणि प्रकट किया है, वहीं उनको लोमश ओर पुच्छधारी भी शतशः प्रमाणों में व्यक्त किया है। दरअसल, आज से 9 लाख वर्ष पूर्व मानवों की एक ऐसी जाति थी, जो मुख और पूंछ से वानर समान नजर आती थी, लेकिन उस जाति की बुद्धिमत्ता और शक्ति मानवों से कहीं ज्यादा थी। अब वह जाति भारत में तो दुर्भाग्यवश विनष्ट हो गई, परंतु बाली द्वीप में अब भी पुच्छधारी जंगली मनुष्यों का अस्तित्व विद्यमान है जिनकी पंूछ प्रायः 6 इंच के लगभग अवशिष्ट रह गई है।

ये सभी पुरातत्ववेत्ता अनुसंधानकर्ता एकमत से स्वीकार करते हैं कि पुराकालीन बहुत से प्राणियों की नस्ल अब सर्वथा समाप्त हो चुकी है। इसी का जीता जागता उदाहरण है विराट नगर (राजस्थान) में स्थापित पंचखंडपीठ पावन धाम स्थित वज्रांग मन्दिर। गोभक्त महात्मा रामचन्द्र वीर ने पूरे हिंदुस्तान में विश्व का सबसे अलग मंदिर स्थापित किया जिसमंे हनुमान जी की बिना बन्दर वाले मुख की मूर्ति स्थापित है। महात्मा रामचन्द्र वीर ने हनुमान जी की जाति वानर बताई है, शरीर नहीं। उन्होंने कहा है कि सीता माता की खोज करने वाले और वेदों पाठांे के ज्ञाता हनुमानजी बन्दर कैसे हो सकते हैं। उन्होंने लंका को जलाने के लिए वानर का रूप धरा था। 2009 में महात्मा के स्वर्गवास के बाद उनके सुपुत्र आचार्य धर्मेन्द्र (विश्व हिन्दू परिषद के केंद्रीय मार्गदर्शक मंडल में शामिल संत) एवं पंचखंडपीठ विराटनगर के पीठाधीश्वर हैं। इन्हें बजरंगबली के रूप में जाना जाता है क्योंकि इनका शरीर एक वज्र की तरह था। हनुमान पवन-पुत्र के रूप में जाने जाते हैं। वायु अथवा पवन (हवा के देवता) ने हनुमान को पालने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। हनुमानजी का जन्म कहां और कैसे हुआ इस विषय में भी भिन्न मत हैं। एक मान्यता है कि एक बार जब मारुति ने अजंनी को वन में देखा तो वह उस पर मोहित हो गया।

उसने अंजनी से संयोग किया और वह गर्भवती हो गई। एक अन्य मान्यता है कि वायु ने अंजनी के शरीर में कान के माध्यम से प्रवेश किया और वह गर्भवती हो गई। एक अन्य कथा के अनुसार इनके जन्म का सम्बन्ध भगवान शिव और विष्णु जी के मोहिनी अवतार से सम्बन्धित भी है। एक अन्य कथा के अनुसार महाराजा दशरथ ने पुत्रेष्टि यज्ञ से प्राप्त जो हवि अपनी रानियों में बाँटी थी उसका एक भाग गरुड़ उठाकर ले गया और उसे उस स्थान पर गिरा दिया जहाँ अंजनी पुत्र प्राप्ति के लिए तपस्या कर रही थी। हवि खा लेने से अंजनी गर्भवती हो गई और कालांतर में उसने हनुमानजी को जन्म दिया। तुलसी और वाल्मीकि द्वारा वर्णित हनुमान-चरित की तुलना में कई अन्य रामकथाओं में वर्णित चरित इतना भिन्न है कि सर्वथा मिथ्या और काल्पनिक प्रतीत होता है। हनुमान को शिवावतार अथवा रुद्रावतार भी माना जाता है। रुद्र आँधी-तूफान के अधिष्ठाता देवता भी हैं और देवराज इंद्र के साथी भी। विष्णु पुराण के अनुसार रुद्रों का उद्भव ब्रह्माजी की भृकुटी से हुआ था। हनुमानजी वायुदेव अथवा मारुति नामक रुद्र के पुत्र थे। ‘हनुमान’ शब्द का ह ब्रह्मा का, नु अर्चना का, मा लक्ष्मी का और न पराक्रम का द्योतक है। हनुमान के जन्म-स्थान के बारे में कुछ भी निश्चित नहीं है। मध्यप्रदेश के आदिवासियों का कहना है कि हनुमानजी का जन्म राँची जिले के गुमला प्रमंडल के ग्राम अंजन में हुआ था।

कर्नाटकवासियों की धारणा है कि हनुमानजी कर्नाटक में पैदा हुए थे। पंपा और किष्किंधा के ध्वंसावशेष अब भी हम्पी में देखे जा सकते हैं। अपनी रामकथा में फादर कामिल बुल्के ने लिखा है कि कुछ लोगों के अनुसार हनुमानजी वानर-पंथ में पैदा हुए थे। पहला जन्म स्थान: हनुमानजी की माता का नाम अंजना है, जो अपने पूर्व जन्म में एक अप्सरा थीं। हनुमानजी के पिता का नाम केसरी है, जो वानर जाति के थे। माता-पिता के कारण हनुमानजी को आंजनेय और केसरीनंदन कहा जाता है। केसरीजी को कपिराज कहा जाता था, क्योंकि वे वानरों की कपि नाम की जाति से थे। केसरीजी कपि क्षेत्र के राजा थे। कपिस्थल कुरु साम्राज्य का एक प्रमुख भाग था। हरियाणा का कैथल पहले करनाल जिले का भाग था। यह कैथल ही पहले कपिस्थल था। कुछ लोग मानते हैं कि यही हनुमानजी का जन्म स्थान है। दूसरा जन्म स्थानः गुजरात के डांग जिले के आदिवासियों की मान्यता अनुसार डांग जिले के अंजना पर्वत में स्थित अंजनी गुफा में ही हनुमानजी का जन्म हुआ था। तीसरा स्थान: कुछ लोग मानते हैं कि हनुमानजी का जन्म झारखंड राज्य के उग्रवाद प्रभावित क्षेत्र गुमला जिला मुख्यालय से 20 किलोमीटर दूर आंजन गांव की एक गुफा में हुआ था। अंत में - आखिर कहां जन्म लिया:- ‘पंपासरोवर’ अथवा ‘पंपासर’ होस्पेट तालुका, मैसूर का एक पौराणिक स्थान है।

हंपी के निकट बसे हुए ग्राम अनेगुंदी को रामायणकालीन किष्किंधा माना जाता है। तुंगभद्रा नदी को पार करने पर अनेगुंदी जाते समय मुख्य मार्ग से कुछ हटकर बाईं ओर पश्चिम दिशा में, पंपासरोवर स्थित है। यहां स्थित एक पर्वत में एक गुफा भी है जिसे रामभक्तनी शबरी के नाम पर ‘शबरी गुफा’ कहते हैं। इसी के निकट शबरी के गुरु मतंग ऋषि के नाम पर प्रसिद्ध ‘मतंगवन’ था। हंपी में ऋष्यमूक के राम मंदिर के पास स्थित पहाड़ी आज भी मतंग पर्वत के नाम से जानी जाती है। कहते हैं कि मतंग ऋषि के आश्रम में ही हनुमानजी का जन्म हआ था। मतंग नाम की आदिवासी जाति से हनुमानजी का गहरा संबंध रहा है। अन्ततः अपने धर्म में अनेकान्तवाद के चलते सभी के अपने मत एवं विश्वास हैं । अतः मारुत (संस्कृतः मरुत) का अर्थ हवा है। नंदन का अर्थ बेटा है। हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार हनुमान मारुति अर्थात मरुत-नंदन (हवा के पुत्र) हैं। हनुमान के पिता सुमेरू पर्वत के वानरराज राजा केसरी थे तथा माता अंजना थीं। हनुमान जी को पवन पुत्र के नाम से भी जाना जाता है और उनके पिता वायु देव भी माने जाते हैं। रामायण के अनुसार वे माता जानकी के अत्यधिक प्रिय हैं। इस धरा पर जिन सात मनीषियों को अमरत्व का वरदान प्राप्त है, उनमें बजरंगबली भी हैं। अन्य सात हैं - अश्वत्थामा, बलि, व्यास, विभीषण, नारद, परशुराम और मार्कण्डेय।

हनुमानजी का अवतार भगवान राम की सहायता के लिये हुआ। हनुमानजी के पराक्रम की असंख्य गाथाएं प्रचलित हैं। इन्होंने जिस तरह से राम के साथ सुग्रीव की मैत्री कराई, लंका जलाई और फिर वानरों की मदद से राक्षसों का मर्दन किया, वह अत्यन्त प्रसिद्ध है। हनुमान को सभी देवताओं का आशीर्वाद प्राप्त था। वे सेवक भी थे और राजदूत, नीतिज्ञ, विद्वान, रक्षक, वक्ता, गायक, नर्तक, बलवान और बुद्धिमान भी। उन्हें अष्ट सिद्धि नव निधि प्राप्त थी। शास्त्रीय संगीत के तीन आचार्यों में से एक हनुमान भी थे। अन्य दो थे शार्दूल और कहाल। ‘संगीत पारिजात’ हनुमानजी के संगीत-सिद्धांत पर आधारित है। संसार में इनकी पूजा आराधना अनेक रूप में की जाती है । कुछ भक्त हनुमान की पूजा एक शिर, पंचशिर और एकादश शिर, संकटमोचन, सर्व हितरत और ऋद्धि-सिद्धि के दाता के रूप में करते हैं। कहीं बाल हनुमान के रूप में तो कहीं दाढ़ी-मूँछ वाले हनुमान के रूप में(सालासर व मेहंदीपुर धाम में इनके विशाल एवं भव्य मन्दिर हैं) कहीं लंगडे़ हनुमान (जब भरत का तीर हनुमान जी के घुटने में लगा था), कहीं वृद्ध हनुमान, कहीं वीर हनुमान, कहीं लेटे हनुमान तो कहीं बैठे हनुमान.... पर किसी भी रूप में इनकी साधना उतनी ही फलदायक है जितनी किसी अन्य रूप में।

ये अपने भक्तांे पर समान कृपा करते हैं। जो जितने सच्चे तन मन से आराधना करता है उतना ही पाता है। हनुमानजी इस कलयुग के अंत तक अपने शरीर में ही रहेंगे। वे आज भी धरती पर विचरण करते हैं। हनुमानजी को धर्म की रक्षा के लिए अमरता का वरदान मिला था। इस वरदान के कारण आज भी हनुमानजी जीवित हैं और वे भगवान के भक्तों तथा धर्म की रक्षा में लगे हुए हैं। जब कल्कि रूप में भगवान विष्णु अवतार लेंगे तब हनुमान, परशुराम, अश्वत्थामा, कृपाचार्य, विश्वामित्र, विभीषण और राजा बलि सार्वजनिक रूप से प्रकट हो जाएंगे। हनुमान जी की उपासना से जीवन के सारे कष्ट, संकट मिट जाते हैं। हनुमान जी एक ऐसे देवता हैं जो थोड़ी-सी प्रार्थना और पूजा से ही शीघ्र प्रसन्न हो जाते हैं। दुनिया के सारे मुश्किल काम सिर्फ श्री हनुमान की कृपा व स्मरण से ही आसान हो जाते हैं। मंगलवार और शनिवार का दिन इनके पूजन के लिए सर्वश्रेष्ठ हैं। इस दिन हनुमानजी का ध्यान करने से जीवन मंगलमय होता है।



Ask a Question?

Some problems are too personal to share via a written consultation! No matter what kind of predicament it is that you face, the Talk to an Astrologer service at Future Point aims to get you out of all your misery at once.

SHARE YOUR PROBLEM, GET SOLUTIONS

  • Health

  • Family

  • Marriage

  • Career

  • Finance

  • Business


.