औषधि मणि मंत्राणां-ग्रह नक्षत्र तारिका।
भाग्य काले भवेत्सिद्धिः अभाग्यं निष्फलं भवेत्।।
औषधि, रत्न एवं मंत्र ग्रह जनित रोगों को दूर करते हैं। यदि समय सही है तो इनसे उपयुक्त
फल प्राप्त होते हैं। विपरीत समय में ये सभी निष्फल हो जाते हैं।
जन साधारण रत्नों की महिमा से अत्यधिक प्रभावित है। लेकिन अक्सर रत्न और रंगीन कांच के टुकड़ों में अंतर करना कठिन हो जाता है। रत्न अपने रंग के कारण ही प्रभाव डालते हैं, ऐसी धाराणा कई लोगों के मन में आती है परंतु ऐसा नहीं है। रत्न का रंग केवल उसकी खूबसूरती के लिए होता है। रत्नों की लोक प्रियता बढ़ने का कारण यह भी रहा है कि इनसे अध्यात्म, सामाजिक जीवन की हर परेशानी का हल माना जाने लगा है।
फिर चाहे वह प्रतिस्पर्धा से निपटने की बात हो या टूटे रिश्ते को जोड़ने का मामला हो, रत्नों का कट और साईज उनके सौंदर्य में इज़ाफा करता है। रत्नों का समकोणीय कटा होना भी आवश्यक है, यदि ऐसा नहीं है तो वह ग्रहों से संबंधित रश्मियों को एकत्रित करने में पूर्ण सक्षम नहीं होगा।
इस लिए किसी भी रत्न को धारण करने से पहले उसके रंग, कटाव, साइज व कौन सा रत्न आपके लिए अनुकूल होगा इन जानकारियों के बाद ही उचित रत्न को धारण करें। रत्नों को धारण करने से मनमें एक खास प्रकार की अनुभूति भी होती है, जैसे कि आपने किसी खजाने को धारण कर लिया हो और वैसे भी रत्नों पर किया निवेश व्यर्थ नहीं जाता।
रत्न एवं ग्रहों के संबंध पर वैज्ञानिक दृष्टि कोण
मानव जीवन पर ग्रहों का अत्यधिक प्रभाव पड़ता है, ग्रहों में व्यक्ति के सृजन एवं संहार की जितनी प्रबल शक्ति है उतनी ही शक्ति रत्नों में ग्रहों की शक्ति घटाने तथा बढ़ाने की होती है। वैज्ञानिक भाषा में रत्नों की इस शक्ति को हम आकर्षण या विकर्षण शक्ति कहते हैं।
रत्नों में अपने से संबंधित ग्रहों की रश्मियों, चुम्बकत्व शक्ति तथा वाइव्रेशन (कम्पन) को खींचने की शक्ति होती है तथा परावर्तित कर देने की भी शक्ति होती है। रत्न की इसी शक्ति के उपयोग के लिए इन्हें प्रयोग में लाया जाता है।
क्यों पहनें रत्न?
हम जिस भौतिक युग में जी रहे हैं, वहां व्यक्ति जल्दी प्रगति की सीढ़ियां चढ़ना चाहता है। इसलिए वह रत्न, ज्योतिष एवं मंत्र का सहारा लेता है, व्यक्ति सर्व सुख तत्काल चाहता है। रंच मांत्र की पीड़ा कष्ट या निराशा उसकी मानसिकता को नष्ट कर देती है। इसलिए वह भाग्य को बदलने का साहस करता है, भाग्य परिवर्तन में रत्नों का योगदान अवश्य रहा है। आप हर सौ आदमी में अस्सी आदमियों को रत्न की अंगूठी पहने देखते हैं वे इन्हें सहज ही नहीं पहने रहते, बल्कि उनमें उनका भाग्य और भविष्य छुपा हुआ होता है।
किस प्रकार बनते हैं रत्न
ऋग्वेद के अनुसार रत्नों की उत्पŸिा में अग्नि सहायक है। भूमि के गर्भ में जब विभिन्न रासायनिक तत्व आपस में मिलते हैं, तो भूमि की अग्नि से पिघलकर रत्न बनते हैं। इस रासायनिक प्रक्रिया में तत्व आपस में एक जुट होकर विशिष्ट प्रकार के चमकदार, आभायुक्त बन जाते हैं तथा इनको कई गुणों का प्रभाव भी समायोजित हो जाता है। खनिज रत्नों में कार्बन, मैंग्नीज, सोडियम, तांबा, लोहा, फासफोरस, बेरियम, गंधक, जस्ता, कैल्सियम जैसे तत्वों का संयोग होता है। इनके कारण ही रत्नों में रंग रूप, कठोरता व आभा का अंतर होता है। अपने इन्हीं गुणों के कारण यह मनुष्यों को आकर्षित करते हैं।
रत्न प्राप्ति के स्थान
ज्यादातर रत्न समुद्री इलाकों व पर्वतीय क्षेत्रों में पाए जाते हैं। अफ्रीका महाद्वीप के कांगों, घाना व ब्राजील, बर्मा, भारत, श्री लंका, अमेरिका, आस्टेªलिया तथा रूस आदि में पाए जाते हैं।
रत्नों के विभिन्न उपयोग
हिंदू संस्कृति से संबंधित धर्म ग्रंथों प्राचीन शास्त्रों में रत्नांे की भस्म का उपयोग रोगोपचार के लिए बताया गया है। रोग से संबंधित रत्न के तेल की मालिश व जल ग्रहण करने से रोग शांति होती है। सूर्य से संबंधित माणिक्य रत्न को धारण करने से यश, मान, कीर्ति में वृद्धि होती है व पेट संबंधी विकार ठीक होते हैं।
व्यक्ति यदि पन्ना पहनते हैं तो पारिवारिक परेशानियों से राहत व राज्य, व्यापार, नौकरी, शासकीय कार्यों में लाभ पा सकते हैं। इसी प्रकार विद्यार्थी वर्ग यदि पन्ना पहनें तेा बुद्धि तीक्ष्ण बनती है व स्मरण शक्ति बढ़ती है। पन्ना नेत्र रोगों में भी लाभकरी होता है। पंच रत्नों में माणिक्य, मोती, पन्ना, हीरा व नीलम होते हैं।