लग्नस्थ ग्रहों कों दर्शाती हाथ की रेखाएं
लग्नस्थ ग्रहों कों दर्शाती हाथ की रेखाएं

लग्नस्थ ग्रहों कों दर्शाती हाथ की रेखाएं  

व्यूस : 10175 | जून 2009
लग्नस्थ ग्रहों को दर्शाती हाथ की रेखाएं भारती आनंद सूर्यः जिस व्यक्ति के लग्न में सूर्य हो, उसका शरीर लंबा, ऊंचा, सुंदर व सुगठित होता है। उसकी हड्डियां तथा जोड़ मजबूत होते हैं। उसकी आंखंे दिव्य, आकर्षक और रोबदार होती हैं। उसका माथा ऊंचा, प्रशस्त, आगे से उभरा और पीछे की ओर दबा होता है। सिर के बाल मुलायम और हल्के भूरे होते हैं। भौंहों का रंग भी हल्का होता है परंतु में वे दिखने में सुंदर होती हैं। सूर्य रेखा लंबी हो व शुक्र पर्वत तक जाती हो, सूर्य पर्वत बुध की ओर झुका हो अथवा बुध पर्वत पर सूर्य का कोई चिह्न हो तो व्यक्ति के लग्न में सूर्य होता है। सूर्य के लग्न में होने पर जातक को गुस्सा बहुत आता है। उसमें सर्दी-गर्मी बर्दाश्त करने की क्षमता कम होती है। संयम की कमी के कारण वह उच्च रक्तचाप से ग्रस्त होता है। लग्नस्थ सूर्य के दोषों को दूर करने के लिए सूर्य को नित्य जल का अघ्र्य देना व सूर्य मंत्र का जप करना चाहिए। साथ ही अन्न व पीले वस्त्र दान करने चाहिए। चंद्रः लग्न में चंद्र हो तो जातक का रंग गोरा, आंखें सुंदर और दांत श्वेत तथा पंक्तिबंध होते हैं। उसका चेहरा आकर्षक होता है। वह किसी को भी प्रभावित करने में सक्षम होता है। उसे विदेश से लाभ होता है। किसी रेखा का चंद्र क्षेत्र से सूर्य की उंगली की तरफ जाना चंद्र के लग्न में होने का सूचक है। चंद्र लग्नेश हो तो जातक भावुक होता है और उसमें उतावलापन होता है। वह जल्दबाजी में कोई ऐसा काम कर बैठता है जिससे उसे तनाव, निम्न रक्तचाप, संबंधी जनों से संबंध विच्छेद व हानि का भय बना रहता है। चंद्र के दोषों को दूर करने के लिए मोती, दूध आदि श्वेत वस्तुओं का दान और चंद्र मंत्र का जप करना चाहिए। मंगलः मंगल लग्न में हो तो जातक का चेहरा गोल व लालिमा लिये होता है। शक्तिशाली व बुलंद हौसले वाला होता है। वह बुढ़ापे में भी सक्रिय एवं उत्साह से भरा होता है। मंगल लग्नस्थ हो तो चेहरे पर मुहांसे या कभी-कभी पक्के दाग भी निकल आते हैं। जातक अत्यधिक क्रोध् ाी होता है और उसके अंदर तानाशाही की प्रवृत्ति होती है जिससे वह कई बार वित्तीय व सामाजिक लाभ से वंचित हो जाता है। लग्नस्थ मंगल के दोषों से मुक्ति के लिए नित्य हनुमान चालीसा का पाठ करना और हनुमान जी को चोला चढ़ाना चाहिए। बुधः जिसके लग्न में बुध हो वह ज्ञान और प्रतिभा का धनी होता है। उसका चेहरा गोल होता है और चेहरे पर मुस्कान हमेशा खिली रहती है। उसके बाल घने, काले और मुलायम होते हैं। भौंहें काली और आकर्षक तथा आंखें काली, सुंदर व मुस्कान भरी होती हैं। यदि कोई रेखा बुध पर्वत से सूर्य पर्वत पर जाती हो तो लग्न में बुध आदित्य योग होने का आभास दिलाती है। बुध ग्रह उभार लिए हो और बुध पर्वत पर 1 या 3 रेखाएं सीधी व स्पष्ट हों तो लग्नस्थ बुध अति उत्तम होता है। किंतु बुध लग्न में हो तो व्यक्ति बातूनी होता है। वह छोटी-छोटी बातों पर झूठ भी बोलता है जिससे समाज में उसकी प्रतिष्ठा और विश्वसनीयता कम हो जाती है। फलतः उसकी सफलता के मार्ग में बाधा उत्पन्न होती है। वह महत्वपूर्ण कार्यों के प्रति भी लापरवाही बरतता है जिससे उसे नुकसान उठाना पड़ता है। लग्न स्थित बुध के दोषों से बचाव के लिए बुध के मंत्र का जप और प्रत्येक बुधवार को पालक व हरी सब्जी का दान करना चाहिए। गुरुः जिस व्यक्ति के लग्न में गुरु हो उसमें एक शिक्षक के सभी गुण होते हैं। उसके दांत सुंदर और कान सामान्य से बडे़ होते हैं। उसका शरीर सुडौल और गठीला होता है और उसके चेहरे पर गंभीरता होती है। वह प्रभावशाली होता है। उसकी आवाज रोबीली होती है तथा उसमें नेतृत्व गुण भरा होता है। यदि भाग्य रेखा मणिबंध से निकल कर गुरु पर्वत तक जाती हो एवं गुरु पर्वत पर गुरु वलय बनता हो या गुरु पर्वत से सीधी रेखाएं गुरु की अंगुली से होकर निकलती हों तो लग्न में गुरु की स्थिति शुभ होती है। किंतु गुरु के लग्नस्थ होने की स्थिति में व्यक्ति जिद्दी, अत्यधिक सिद्धांतवादी व परंपराप्रिय होता है। इस प्रकार ज्ञानवान होते हुए भी वह मित्रों व संबंधियों का न तो पूरी तरह भला कर पाता है, न ही उनसे लाभ ले पाता है। शुक्रः जिसके लग्न में शुक्र हो वह कामदेव के समान सुंदर व आकर्षक शरीर वाला होता है। उसके बाल सुंदर व घने होते हैं। वह हर कार्य व्यवस्थित ढंग से करता है। कला में उसकी गहरी अभिरुचि होती है। शुक्र ग्रह से कोई रेखा बुध पर्वत तक जाती हो या शुक्र के स्थान पर सूर्य का निशान हो तो यह स्थिति शुक्र के लग्नस्थ होने की सूचक हैं। शुक्र पर्वत उभार लिए हो तथा वहां पर कटी-फटी रेखाएं न हों तो यह स्थिति भी शुक्र के लग्न में होने का संकेत है। दोष लग्न में शुक्र हो तो व्यक्ति घमंडी और जिद्दी होता है। उसमें अत्यधिक आत्मविश्वास होता है और वह सुपिरियाॅरिटी काॅम्पलेक्स से ग्रस्त रहता है। फलतः वह दूसरों से किसी प्रकार का पूरा लाभ नही उठा पाता और जीवन में आने वाले लाभप्रद अवसरों को खो बैठता है। शनिः शनि यदि लग्नस्थ हो तो जातक सामान्य से अधिक लंबा होता है। उसका शरीर मांसल नहीं होता, परंतु नसें हृष्ट-पुष्ट व उभरी हुई होती हैं। उसके बाल लंबे, काले, घने व मोटे तथा दांत सफेद होते हैं। उसका मुख आकर्षक और वाणी ओजपूर्ण होती है। वह न्यायप्रिय और सभी का हितैषी तथा झूठ व अनैतिकता का घोर विरोधी होता है। शनि पर्वत उभरा हुआ हो, उसके नीचे 3 या 4 रेखाएं हों, उस पर सूर्य से निकलकर वलय बनता हो और भाग्य रेखा शनि से निकलकर मणिबंध तक जाती हो तो लग्नस्थ शनि सुदृढ़ होता है। दोषः जिसके लग्न में शनि हो, वह स्पष्टवादी होता है, किंतु उसकी स्पष्टवादिता उसे कभी-कभी बहुत महंगी पड़ती है। वह उच्च रक्तचाप, तनाव, अनिद्रा आदि से ग्रस्त होता है। राहु व केतु: राहु व केतु छाया ग्रह हैं। लग्नस्थ होने पर राहु शनि जैसा और केतु मंगल जैसा प्रभाव दे़ता है। इस प्रकार हस्तरेखाओं व ज्योतिष के संयुक्त विश्लेषण से किसी के भविष्य का सटीक फलकथन किया जा सकता है, पर इसके लिए दोनों ही विधाओं का विस्तृत व गंभीर ज्ञान आवश्यक है।



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