माणिक्य सूर्य रत्न माणिक्य सूर्य के शुभ फल प्राप्ति हेतु धारण किया जाता है। माणिक्य का अधिक मूल्यवान रंग वह होता है, जो कबूतर के रक्त के समान हो। बर्मा का माणिक्य अपना विशिष्ट स्थान रखता है। विभिन्न स्थानों से प्राप्त माणिक्य के रंगों में भी अंतर होता है। बर्मा से प्राप्त माणिक्य का रंग स्याम के माणिक्य से कम गहरा होता है। श्री लंका से प्राप्त माणिक्य के रंगों में कुछ पीलापन होता है। सबसे उत्तम जाति के माणिक्य उत्तरी बर्मा के मोगोल नामक स्थान से प्राप्त होते है। स्याम में माणिक्य बैंकाॅक के निकट चांटबन नामक स्थान में पाये जाते हैं। यहां ये रेतीली मिट्टी में प्राप्त होते हैं। बर्मा के माणिक्य की खदानें सबसे पुरानी मानी जाती हैं। संसार के सबसे उत्तम और बड़े माणिक्य यहीं से प्राप्त होते हैं। बर्मा में माणिक्य और नीलम दोनों पाये जाते हैं। बर्मा के माणिक्य की कीमत अधिक होती है। पाश्चात्य देशों में भी प्राचीन काल से माणिक्य बहुत उपयोगी रत्न माना जाता है। ऐसा विश्वास था कि माणिक्य विष को दूर कर देता है, प्लेग से रक्षा करता है; दुख से मुक्ति प्रदान करता है, मन में बुरे विचारों को आने से रोकता है तथा धारण करने वाले पर विपत्ति आने वाली हो, तो उसका रंग बदल जाता है। माणिक्य पहन कर सूर्य उपासना करने से सूर्य की पूजा का फल दुगना हो जाता है। सूर्य प्रभावित रोगों में सिर पीड़ा, ज्वर, नेत्र विकार, पित्त विकार, मूच्र्छा, चक्कर आना, दाह (जलन) हृदय रोग, अतिसार, अग्नि शस्त्र एवं विष जन्य विकार, पशु एवं शत्रुभय, दस्यु पीड़ा, राजा, धर्म, देवता, ब्राह्मण, सर्प, शिव आदि की अप्रतिष्ठा से चित्त विकार एवं इनसे भय आदि होते हैं; मानहानि, पिता और पुत्र में विचार नहीं मिलते। रोग और रत्न: रत्नों का प्रभाव इस कारण अधिक होता है कि उनमें से निकलने वाला रंग घनीभूत, अवस्था में होता है। इसलिए रत्नों अथवा मणियों का स्वास्थ्य पर गहरा प्रभाव पड़ता है। रंग चिकित्सा का आधार भी यही सिद्धांत है। हृदय और रत्न: सूर्य व्यय का प्रतिनिधि है। रत्नों में वह माणिक्य का प्रतिनिधि है। इसलिए व्यक्ति को सूर्य को बल देने के लिए माणिक्य धारण करना बताते हैं। हृदय के सभी प्रकार के कष्टों, अथवा रोगों में सोने की अंगूठी में माणिक्य पहनना लाभदायक माना गया है। माणिक्य की पिष्टी और भस्म दोनों औषधि के रूप में उपयोग में आते हैं। माणिक्य रक्तवर्धक, वायुनाशक और उदर रोगों में लाभकारी है। माणिक्य के भस्म के सेवन से आयु में वृद्धि होती है। इसमें वात, पि़त्त, कफ को शांत करने की शक्ति है। यह क्षय रोग, दर्द, उदर शूल, चक्षु रोग, कोष्ठबद्धता आदि दूर करता है। इसका भस्म शरीर में उत्पन्न उष्णता और जलन को दूर करता है। भाव प्रकाश एवं रस रत्न समुच्चय के अनुसार माणिक्य कषाय और मधुर रस प्रधान द्रव्य है। यह शीतलतादायक है और नेत्र ज्योति को बढ़ाने वाला है तथा अग्नि, दीपक, कफ, वायु तथा पित्त का शमन करता है।