सुपरमून और जापान में सुनामी अरुण बंसल, फ्यूचर पॉइंट मार्च 2011 को जापान में सबसे बड़ा भूकंप आया जिसने जापानमें भारी तबाही मचा दी। भूकंप केसाथ ही सुनामी ने तबाही को औरभयंकर रूप दे दिया। वैसे तो जापानमें लगभग सौ ज्वालामुखी सक्रियअवस्था में है लेकिन यह भूकंप समुद्रके नीचे पैसिफिक रिंग ऑफ फायर(Pacific Ring of fire) क्षेत्र मेंआया था। इसका केंद्र टोक्यो से 350किलोमीटर दूर एवं सिदेंई से 130किलोमीटर दूर समुद्र तल में 24.5किलोमीटर पर था। भूकंप की तीव्रता8.9 थी। भूकंप की तीव्रता बहुत अधिकव समुद्र की गहराई कम होने के कारणलहरें 12 से लेकर 30 फीट तक ऊंचीउठीं। जिन्होंने सिदेंई शहर में कहरमचा दिया।क्या वैज्ञानिकों के पास ऐसा कोईतरीका उपलब्ध नहीं है
जिससे भूकंपया सुनामी के बारे में पूर्वानुमान लगायाजा सके? ज्योतिष में अनुमान करने केकुछ योग अवश्य उपलब्ध है। लेकिनइनसे हम काल का (कुछ दिनों या मास का) ही आकलन कर सकते हैं।कहां होगा, इसका कोई ठोस योगनहीं है।हाल ही में चर्चित है कि चंद्रमा 19 मार्च2011 को 20 वर्षों बाद पृथ्वी केअत्यधिक निकट आ रहा है। चंद्रमा कीइस स्थिति को अर्थात कहते हैं। क्या यह कोई भूकंपका मुखय कारण तो नहीं:-जिस प्रकार से पृथ्वी सूर्य के चारों ओरअंडाकार वृत्त में चक्कर लगाती है उसीप्रकार चंद्रमा भी पृथ्वी के चक्करअंडाकार वृत्त में ही लगाता है। वहप्रति माह पृथ्वी के पास आ जाता हैऔर फिर दूर भी चला जाता है।
लेकिनयही पास आने का काम यदि पूर्णिमाया अमावस्या के समय होता है तो उसेसुपरमून कहते हैं। इस समय वह औरबड़ा दिखाई देता है। खगोल शास्त्र केअनुसार जब भी सूर्य, चंद्र और पृथ्वीएक रेखा में आ जाते है (जैसे पूर्णिमाया अमावस्या को) और चंद्रमा अपनीभू-समीपक ; Perigee) के 90 प्रतिशतके अंदर आ जाता है तो उसे सुपरमून कहते हैं। यह क्रिया लगभग 18 वर्षपश्चात पुनः होती है एवं लगभगदिसंबर-जनवरी माह में ही होती हैक्योंकि इस समय सूर्य भी पृथ्वी केनजदीक होता है। सूर्य और पृथ्वी केगुरुत्वाकर्षण चंद्रमा को पृथ्वी की ओरखींच लेते हैं और सुपरमून की स्थितिबन जाती है। पिछले व अगले 50 वर्षों में सुपरमूनकब कब हुआ उसकी तालिका नीचेदी गई है। इस वर्ष सुपरमून 19 मार्च 2011, 23:40मिनट भारतीय समय पर होगा। इसदिन चंद्रमा पृथ्वी से केवल 356577 कि.मी. (221567 मील) दूर होगा जबकिऔसतन यह 384400 कि.मी. (238856 मील) दूर होता है।
यह चंद्रमा कीपिछले 20 वर्षों में सबसे कम दूरी होगी।जैसा ज्ञात है पिछली सुनामी जिसनेइंडोनेशिया व भारत में तबाही की थी,26 दिसंबर 2004 को आई थी वह 10जनवरी 2005 को सुपरमून से केवल 15 दिन पहले पूर्णिमा के दिन आईथी। इस बार भी जापान में सुनामीसुपरमून से केवल 9 दिन पहले हीआई है। अन्य सुपरमून के आसपासभी बड़े भूकंपों को देखा जा सकता हैलेकिन जान-माल की हानि इस बातपर निर्भर करती है कि भूकंप का केंद्रकहां है।भूकंप ग्रहों के गुरुत्वाकर्षण के बढ़जाने के कारण ही आते हैं। सुपरमूनके कारण चंद्रमा व सूर्य दोनों का पृथ्वीपर गुरुत्वाकर्षण बढ़ जाता है।
मानाजाता है कि भूकंप पृथ्वी की प्लेटखिसक जाने के कारण आते हैं। अधिक गुरुत्वाकर्षण पृथ्वी की प्लेट कोउठाने में लिफ्ट की तरह काम करताहै। प्लेट के उठने पर या उसका दूसरीप्लेट पर दबाव कम होने पर यह खिसकजाती है। 6 मार्च 2011 को सुपरमूनकी स्थिति तो पास में थी ही, साथ मेंमंगल, गुरु, बुध, सूर्य भी एक न्यूनकोण में विराजित थे, जिनके कारणएक ओर गुरुत्वाकर्षण और अथिकबढ़ गया। शनि भी उसी रेखा में विपरीतदिशा में विराजित थे जिसके कारणयह प्रभाव और बढ़ा और कुल मिलाकरजापान में भूकंप और सुनामी का प्रकोपबना दिया। पिछले बड़े भूकंपों का यदि अध्ययन करें तो अधिकांश भूकंप पूर्णिमा,अमावस्या या उनके तीन दिन के अंदरया दोनों पक्षों की षष्ठी को ही आतेहैं। जापान में 11 मार्च 2011 को भूकंपभी शुक्ल पक्ष की षष्ठी को ही आया।ज्योतिषानुसार चंद्रमा के स्थिर राशियोंवृष, सिंह, वृश्चिक तथा कुंभ में सेगोचर का भी भूकंप से संबंध पायागया है।
भूकंप के अधिकेंद्र की स्थितिकी जानकारी ग्रहण काल के ग्रह एवंभाव स्पष्ट द्वारा प्राप्त की जा सकती है- ऐसा संहिता ग्रंथों में बताया गया है। पृथ्वी पर सर्वाधिक भयंकर भूकंपों केएक तुलनात्मक अध्ययन के अनुसारयह पाया गया कि 90 प्रतिशत सेअधिक भूकंपों में सूर्य, बुध, शुक्र, चंद्रएवं मंगल एक दिशा में स्थित थे, याचंद्रमा सूर्य से विपरीत दिशा में स्थितहोकर कृष्ण पक्ष में विद्यमान था। साथ ही काल-सर्प योग भी पूर्ण या आंशिकरूप से आकाश मंडल में विद्यमान था।11 मार्च 2011 को शुक्ल पक्ष की षष्ठीथी और सूर्य, मंगल, बुध व गुरु 30अंश के अंदर विद्यमान थे।
आंशिककालसर्प योग था-शनि को छोड़करसभी ग्रह राहु-केतु के एक ओर थे।चंद्रमा वृष राशि में था। साथ में सुपरमूनकी स्थिति थी। शनि अन्य ग्रहों सेविपरीत दिशा में था। सभी ग्रहों की स्थिति पर विचार करेंतो पृथ्वी पर भूकंप की स्थिति अभीअप्रैल व मई के तृतीय सप्ताह में बनीरहेगी। लेकिन ठीक समय व स्थान काज्ञान अभी ज्योतिष की सीमा से बाहरहै। इस विद्या पर अनुसंधान कर भविष्यमें अवश्य ही इससे अधिक शुद्धफलादेश किया जा सकता है व ज्योतिषको जन सामान्य के लिए उपयोगीबनाया जा सकता है।