मुहूर्त ज्ञान
मुहूर्त ज्ञान

मुहूर्त ज्ञान  

डॉ. अरुण बंसल
व्यूस : 15009 | जून 2011

मुहूर्त ज्ञान वैसे तो प्रत्येक पल अगले पल का सूचक है लेकिन व्यवहारिकता की दृष्टि से देखा जाय तो दैनिक कार्यों के लिए जैसे कार्यालय जाना या घर आना इत्यादि के लिए मुहूर्त गणना नहीं करनी चाहिए लेकिन जो कार्य हम कभी-कभी करते हैं और जिनका जीवन पर विशेष प्रभाव पड़ता है उनका मुहूर्त का ज्ञान करने से कार्य में सफलता प्राप्त होती है? और जीवन सुखमय बनता है। वस्तुतः मुहूर्त का अर्थ दो घटी अर्थात 48 मिनट होता है। लेकिन मुहूर्त का अर्थ है वह क्षण जब ग्रहों की स्थिति हमारे किसी कार्य की सफलता सुनिश्चित करती है। मुहूर्त निकालने में सर्वप्रथम हम उस कार्य के लिए सफल समय की गणना करते हैं। तदुपरांत व्यक्ति-विशेष के लिए उस समय की शुभता का अवलोकन करते हैं।

मुहूर्त में मुखयतः सूर्य एवं चंद्रमा ही भूमिका निभाते हैं। तिथि, वार, नक्षत्र, करण, योग द्वारा पंचांग शुद्धि करके लग्न शुद्धि द्वारा काल-निर्धारण करते हैं। कहते हैं, किसी व्यक्ति का भाग्य, आयु व संपत्ति का निर्धारण उसके जन्म समय पर ही हो जाता है। बालक का जन्म भी उसके जीवन का मुहूर्त काल ही है जो कि उसके जन्म के उतार-चढ़ाव को पूर्ण रूप से दर्शाता है। इसी प्रकार किसी भी विशेष क्रिया का मुहूर्त उस क्रिया के भविष्य का ज्ञान कराता है, जैसे शादी किस समय होगी। मुहूर्त वैवाहिक जीवन का पूर्व ज्ञान कराता है। इसी तरह गृह प्रवेश का मुहूर्त काल आने वाले समय में उस घर में सुख शांति का आभास कराता है।

यही सिद्धांत मुहूर्त की आवश्यकता का मूल है क्योंकि किसी कार्य के शुभाशुभ का ज्ञान मुहूर्त द्वारा होता है अतः सही मुहूर्त का चयन करके हम कार्य-विशेष को अपने अनुकूल बनाने का प्रयास करते हैं। ज्योतिष के मुखयतः तीन भाग हैं -

1. सिद्धांत

2. संहिता

3. होरा।

होरा ज्योतिष में जातक की कुंडली के बारे में विवेचन किया जाता है। सिंद्धांत में ग्रह गोचर गणना, काल गणना व सौर-चंद्र मासों का प्रतिपादन किया जाता है। संहिता ज्योतिष में मेलापक, मुहूर्त गणना, ग्रहों के उदयास्त का विचार और ग्रह विवेचन आदि का समावेश होता है। इस प्रकार मुहूर्त संहिता ज्योतिष का एक भाग है। मुहूर्त गणना के लिए नीलकण्ठ के अनुज, रामदेवज्ञ की कृति मुहूर्त चिंतामणि प्रमुख ग्रंथ है और सर्वप्रथम नीलकण्ठ के पुत्र श्रीगोविंद ने मुहूर्त चिंतामणि पर पीयूषधारा नामक सुप्रसिद्ध व्याखया लिखी।

मुहूर्त का निर्णय निम्न प्रकार से किया जाता है-

1. जातक से अभीष्ट कार्य के बारे में तथा संभावित अवधि के बारे में पूछें कि किस महीना, वार आदि में कार्य करना चाहते हैं।

2. उस कार्य के लिए कौन से माह शुद्ध हैं, उनका चयन करें।

3. यदि विवाह आदि का मुहूर्त निकालना है तो सूर्य बल के लिए भी माह का चयन किया जा सकता है।

4. ग्रह बल, शुक्र अथवा गुरु अस्त व होलाष्टक तथा पितृ पक्ष आदि का निर्णय करके मास की शुद्धि कर लेनी चाहिए।

5. नक्षत्र, तिथि, वार, योग व करण देख कर पंचांग शुद्धि करनी चाहिए और इस प्रकार शुद्ध दिनों की गणना करनी चाहिए।

6. चंद्रमा की गणना करके चंद्र बल निर्धारित कर लें अर्थात् चंद्रमा यदि जातक के जन्म कालीन चंद्रमा से 4, 8, 12 भाव में हो तो उन तिथियों को छोड़ देना चाहिए। इस प्रकार हमें शुद्ध मुहूर्त की तिथियां प्राप्त हो जायेंगी।

7. अब ये तिथियां जातक को बताकर इन तिथियों में से कार्य के लिए किन्हीं दो, तीन तिथियों का चयन कर लेना चाहिए।

8. इन शुद्ध तिथियों में लग्न शुद्धि करके शुद्ध मुहूर्त काल गणना करनी चाहिए। यदि जातक के पास कार्य के लिए महीनों का समय नहीं है तो केवल पंचांग शुद्धि करके लग्न शुद्धि कर लेनी चाहिए।

यदि इतना भी समय नहीं है तो केवल लग्न शुद्धि करके और हो सके तो साथ में शुभ होरा या चौघड़िया के आधार पर मुहूर्त निर्धारित करने का विधान है। मुहूर्त के बारे में एक और मान्यता है कि कार्यों को करने में जब मन में उत्साह हो तो वह कार्य सिद्ध होता है। दूसरा लग्न का प्रभाव ग्रहों से अधिक देखा गया है। अतः यदि लग्न शुद्धि हो तो वह मुहूर्त अन्य शुभ तिथि से अधिक बलवान माना जाता है। अतः कोई भी कार्य करने के लिए यदि कोई शुभ तिथि नहीं मिल पा रही हो तो केवल लग्न शुद्धि करके किसी भी मुहूर्त की गणना की जा सकती है। मुहूर्त में अभिजित मुहूर्त का भी विशेष महत्व माना गया है। अभिजित मुहूर्त या तो मध्य रात्रि में या मध्य दिवस में 24 मिनट पूर्व से लेकर 24 मिनट बाद तक रहता है। कहते हैं कि अभिजित मुहूर्त में किये गये कार्य अवश्य सफल होते हैं। अतः अभिजित मुहूर्त को भी समयाभाव में उपयोग में लाया जा सकता है। ज्योतिषाचार्यों के लिए मुहूर्त की गणना उन्हें एकमत होने का स्थान प्रदान करती है। फलादेश में अकसर मतभेद रहते हैं व उपायों में उससे भी ज्यादा मतभेद होते हैं क्योंकि अक्सर उपाय ग्रहों से निर्देशित वस्तुओं के आधार पर कराये जाते हैं।

अतः कोई किसी एक वस्तु को धारण करने का निर्देश देता है तो कोई उनके विसर्जन के लिए, कोई उनके मंत्रों के उच्चारण की बात करता है तो कोई उन वस्तुओं के दान की बात करता है। अतः सर्वदा से विभिन्न ज्योतिषियों के मत अलग-अलग ही प्राप्त होते हैं लेकिन मुहूर्त गणना का आधार एक होने के कारण एक ही मुहूर्त सभी विद्वानों द्वारा बताया जाता है जो कि जनता का ज्योतिष में विश्वास प्रकट करता है। मुहूर्त एक ऐसा विषय है जिस पर ऋषियों ने तो बहुत कुछ लिखा है लेकिन उस गणना का क्या आधार है, इस बारे में चर्चा नहीं मिलती। अतः मुहूर्त वैज्ञानिक न होकर केवल हमारी आस्था रूप में रह गया है।

जैसे हम शादी के मुहूर्त की गणना करते हैं और कोई शुभ तारीख निकालते हैं तो हमें नहीं पता होता कि यदि हम उस काल में शादी करें तो क्या लाभ होगा और नहीं करें तो क्या हानि होगी। लेकिन अनेकानेक ज्योतिषियों ने मुहूर्त की शुभता का अहसास किया है व बिना मुहूर्त के कार्य करने पर निष्फलता देखी है। अतः मुहूर्त का उपयोग करके जीवन में उपयोग कर जीवन को अधिक सुखमय बनाने का प्रयास हमें अवश्य करना चाहिए।



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