रत्न धारण करने की विधि
 रत्न धारण करने की विधि

रत्न धारण करने की विधि  

व्यूस : 108922 | जून 2009
रत्न धारण करने की विधि वेद प्रकाश शर्मा रत्नों में प्रकाश रश्मियों के परावर्तन की क्षमता होती है। इसलिए प्रकाश किरणों के संपर्क में आते ही वे झिलमिलाने लगते हैं। कुछ रत्नों में स्वर्ण आभा होती है और वे रात्रि के अंधेरे में प्रकाशवान होते रहते हैं। भारतीय ज्योतिष में सर्वप्रथम इनका उपयोग संबंधित ग्रह को बलवान बनाने के लिए किया जाता है। जातक की जन्मकुंडली में, या गोचर में, महादशा, अंतर्दशा, प्रत्यंतर दशा में जो ग्रह अनिष्ट कर रहा हो, उसके रत्न को दान करना प्राचीन महर्षियों ने लिखा है। साथ ही जो ग्रह निर्बल हो, उसे बलवान करने के लिए रत्नों को संबंधित ग्रह के मंत्रों से जागृत कर पहनना बताया गया है। बिना जन्मकुंडली के अध्ययन के रत्न पहनने का परामर्श देना, या रत्न पहनाना लाभ के स्थान पर हानिकारक सिद्ध हो जाता है। यदि जन्मकुंडली के अध्ययन के पश्चात रत्न धारण किया जाए, तो पूर्ण लाभ प्राप्त किया जा सकता है और अशुभता से भी बचा जा सकता है, जैसे मोती रत्न को यदि मेष लग्न का जातक धारण करे, तो उसे लाभ प्राप्त होगा। कारण मेष लग्न में चतुर्थ भाव का स्वामी चंद्र होता है। चतुर्थेश चंद्र लग्नेश मंगल का मित्र है। चतुर्थ भाव शुभ का भाव है, जिसके परिणामस्वरूप वह मानसिक शांति, विद्या सुख, गृह सुख, मातृ सुख आदि में लाभकारी होगा। यदि मेष लग्न का जातक मोती के साथ मूंगा धारण करे, तो लाभ में वृद्धि होगी। रत्न को धारण करने की विधि के बारे में प्राचीन भारतीय ज्योतिष आचार्यों ने बताया है कि रत्न धारण करने से पूर्व, उस रत्न को रत्न के स्वामी के वार में, उसी की होरा में, रत्न के स्वामी के मंत्रों से जागृत करा कर, धारण करना चाहिए। रत्न धारण करते समय चंद्रमा भी उत्तम होना आवश्यक है। यदि जो रत्न धारण किया जाए, वह शुभ स्थान का स्वामी हो, तो शरीर से स्पर्श करता हुआ पहनना बताया गया है। रत्न को धारण करने से पूर्व परीक्षा के लिए उसी रंग के सूती कपडे में बांध कर दाहिने हाथ में बांध कर फल देखें। परीक्षा के लिए रत्न के स्वामी के वार के दिन ही हाथ में बांधें और अगले, यानी आठ दिन बाद, उसी वार के पश्चात, नवें दिन उसे हाथ से खोल लें, तो रत्न द्वारा गत नौ दिनों का शुभ-अशुभ का निर्णय हो जाएगा। प्राचीन महर्षियों ने रत्न को किसी विशेष अंगुली में धारण करने के बाबत नहीं बताया है; मात्र दाहिने अंग, या दाहिने हाथ एवं अनामिका अंगुली की ओर इंगित किया है। यह कहीं भी नहीं लिखा है और न ही कोई सिद्धांत मिलता है कि तर्जनी उंगली में बृहस्पति रत्न पुखराज को धारण किया जाए, या नीलम रत्न को मध्यमा उंगली में धारण किया जाए। वैज्ञानिक एवं धार्मिक दृष्टि से अनामिका उंगली से ही संपूर्ण पूजन-पाठ, अनुष्ठान, सूतक, मृतक, आदि संपूर्ण कार्य करना लिखा गया है और इसी अनामिका उंगली में दाहिने हाथ में रत्न धारण करना प्राचीन ग्रंथों में बताया गया है। रत्नों को धारण करने से पूर्व यह भी भली भांति देख लें कि रत्न दोषपूर्ण नहीं हो, अन्यथा लाभ के स्थान पर वह हानि का कारण माना गया है। यदि किसी रत्न, जैसे मोती में आड़ी रेखाएं हों, या क्रास या जाल हो, तो सौभाग्यनाशक, पुखराज में हों, तो बंधुबाधव नाशक, पन्ना में हों, तो लक्ष्मीनाशक, पुखराज में हों, तो संतान के लिए अनिष्टकारक, हीरे में हों, तो मानसिक शांतिनाशक, नीलम में हों, तो रोगवर्धक और धन हानिकारक हैं। यदि गोमेद में हों, तो ये शरीर में रक्त संबंधी बीमारी पैदा करती हैं, लहसुनिया में हों, तो शत्रुवर्धक, माणिक। हो, तो गृहस्थ सुख का नाश, मूंगे में हों, तो सुख संपत्ति की नष्टकारक मानी जाती है। इसी प्रकार मोती में धब्बे, दाग हों, तो मानसिक शांति में बाधाकारक, पुखराज में हों, तो धन-संपत्तिनाशक, पन्ना में हों, तो स्त्री के लिए बीमारीकारक, मूंगे में हों, तो पहनने वाले जातक के लिए बीमारीकारक, माणिक में हों, तो स्वयं जातक को (पहनने वाले को) बीमार करते हैं। हीरे में हों, तो मृत्युकारक, नीलम में हों, तो हर क्षेत्र में बिन बुलाई परेशानियां, गोमेद में हों, तो संपत्ति और पशु धन का नाशक, लहसुनिया में हों, तो शत्रुवर्धक माने गये हैं। जब एक से अधिक रत्न धारण करें, तो रत्न के शत्रु का भी ध्यान रखा जाना चाहिए, जैसे हीरे के शत्रु रत्न माणिक और मोती हैं। मूंगे का शत्रु रत्न पन्ना है। नीलम के शत्रु रत्न माणिक, मोती, मूंगा हैं। माणिक के शत्रु रत्न हीरा एवं नीलम हैं। अतः इस बात को मद्देनजर रखते हुए रत्न को रत्न के धातु में ही पहनना चाहिए। रत्न को पंच धातु, सोना, चांदी, तांबा, लोहा, कांसा की समान मात्रा की अंगूठी में भी धारण किया जा सकता है। ज्योतिष में प्रत्येक भाव से आठवां भाव उसका मारक माना गया है। इसे मद्देनजर रखते हुए ही रत्न धारण करना चाहिएं। रत्न की आयु और साथ में वर्जित रत्न ग्रह रत्न रत्न की आयु साथ में वर्जित रत्न सूर्य माणिक्य 4 साल हीरा, नीलम, गोमेद चंद्र मोती 21/4 साल गोमेद, लहसुनिया मंगल मूंगा 3 साल हीरा, नीलम, गोमेद बुध पन्ना 4 साल मोती बृहस्पति पुखराज 4 साल हीरा, नीलम शुक्र हीरा 7 साल माणिक्य, मूंगा, पुखराज शनि नीलम 5 साल माणिक्य, मूंगा, पुखराज राहु गोमेद 3 साल माणिक्य, मोती, मूंगा केतु लहसुनिया 3 साल मोती



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