आज के आधुनिक एवं मशीनी युग में व्यक्ति को न तो खाने-पीने की वस्तुओं की सुध है और न ही व्यायाम का कोई नियम। परिणामस्वरूप पेप्टिक अल्सर रोग का प्रसार हो रहा है। पेप्टिक अल्सर अर्थात पेट दर्द और अफारा।
पेप्टिक अल्सर क्या है
पेप्टिक अल्सर में आमाशय, ड्यूडिनम या फिर ग्रासनली की झिल्ली में घाव हो जाता है।
इस बीमारी से विश्व भर में अनुमानतः 15 करोड़ लोग ग्रसित हंै और उनके इलाज पर अरबों रुपये प्रतिवर्ष खर्च हो रहे हंै।
कारण: पिछले 100 वर्षों से इस रोग का कारण अम्ल का अधिक बनना माना जाता रहा है। इस कारण से इस बात पर अधिक ध्यान रखा जाता था कि अम्ल का उत्पादन किस प्रकार से कम किया जाए।
परंतु अब नई खोजों से यह पता लगा है कि आमाशय में ए क परजीवी कीटाणु हेलिकोबेक्टर पायलोरी Helicobacter Pylori के अम्लीय वातावरण में पनपने से यह रोग होता है।
इस रोग का दूसरा कारण जोड़ दर्द, कमर दर्द एवं सिर दर्द इत्यादि के निवारण हेतु, नियमित इस्तेमाल की जाने वाली दवाएं हैं जैसे कि एस्पिरिन, ब्रूफेन एवं अन्य समकक्ष दवाएं।
इस रोग के अन्य कारण धूम्रपान और प्रदूषण हैं।
होलिकोबेक्टर पायलोरी जीवाणु का संक्रमण आम बात है। लगभग 100 करोड़ लोग इससे संक्रमित हैं। यह संक्रमण कई वर्षों तक बिना लक्षणों के बना रहता है। इस संक्रमण से केवल 15 प्रतिशत लोगों में पेप्टिक अल्सर रोग होता है।
यह जीवाणु स्प्रिंग के आकार का होता है। यह किस प्रकार रोग को जन्म देता है अभी तक ज्ञात नहीं हो सका है।
जोड़ो के दर्द, कमर दर्द आदि के निवारण हेतु खायी जाने वाली दवाइयां, शरीर में पाये जाने वाले प्रोस्टाग्लेडिंन ;च्तवेजंहसंदकपदद्ध का प्रतिरोध करती हैं जिससे अल्सर रोग हो जाता है।
बीड़ी, सिगरेट के धूम्रपान से न केवल अल्सर होता है अपितु इससे अन्य जटिल रोग भी उत्पन्न होते हैं। जैसे अल्सर से रक्तस्राव, Bleeding from ulcer आमाशय में रुकावट होना Obstruction या आमाशय में छेद Perforation of Ulcer हो सकते हैं।
लक्षण: इस रोग के कारण ला¬ेगों में विभिन्न प्रकार के लक्षण होते हैं।
- कुछ को सीने में जलन होती है।
- जल्दी-जल्दी भूख लगती है।
- भोजन करने के 1-3 घंटों में ही या फिर मध्यरात्रि में दर्द होता है।
- डाइजीन या ऐसी ही अम्ल कम करने वाली गोलियों या फिर पीने की दवाओं से आराम हो जाता है।
- कुछ लोगों के लक्षण दवाओं के सेवन से भी नहीं जाते हैं।
निदान: यं तो ऊपर बताए गये लक्षण ही रोग का संकेत देते हैं परंतु रंगीन एक्सरे और अगर जरूरत पड़े तो ऐन्डोस्कोपी द्वारा अल्सर को देखा जा सकता है।
एन्डोस्कोपी द्वारा जां चक े लिए टुकड़ ालेना आसान रहता है और उसकी जांच से एच पायलोरी संक्रमण का पता लगाने में आसानी होती है। ऐन्डोस्कोपी में एक लचीली नली मुंह के रास्ते ग्रास नली में डालकर आमाशय और ग्रहणी को देखा जाता है। आमाशय के अल्सर की जांच इसलिए भी की जाती है कि कहीं कैन्सर न बन गया हो।
कुछ लोगों को अल्सर से रक्तस्राव हाने से काली टट्टी ;ठसंबा ब्वसवनतमक ैजववसेद्ध आने लगती है। कुछ रोगी कमजोरी महसूस करते हैं। कुछ को खून की उल्टी ;भ्मउमजमउमेपेद्ध और किसी को अधिक देर खड़े रहने से चक्कर आ जाता है।
खतरे की घंटी
जिन लोगों में ऊपर बताये गये लक्षणों के कारण, किसी दिन अचानक बहुत अधिक दर्द के साथ पेट पर अफारा आ जाए और पेट सख्त हो जाए तो यह समझना चाहिए कि अल्सर फूट ;न्सबमत च्मतवितंजपवदद्ध गया है और आमाशय का अम्ल पूरे पेट में फैल गया है।
कुछ लोगों में आंत का बंद ;व्इेजतनब.जपवदद्ध भी लग सकता है परंतु यह रोग कम ही होता है।
उपचार: सबसे पहले अगर दर्द निवारक दवाएं खा रहे हैं, उन्हें बंद करना चाहिए।
जो लोग बीड़ी, सिगरेट या सिगार आदि पीते हैं, उसे बंद करना आवश्यक है।
शराब पीने वाले और अंडा, मांस-मछली खाने वाले लोग इन्हें लेना बंद कर दें तो इस रोग के स्थायी उपचार में अधिक सहायता मिलती है।
जो लोग छोटी-छोटी बातों से अधिक उत्तेजित हो जाते हैं और परेशानी में रहते हैं, उन्हें अपनी इन आदतों के हानिकारक परिणामों को समझना चाहिए और उनसे छूटने के उपाय करने चाहिए।
दवाएं: एन्टेसिड अर्थात अम्लनिरोधक दवाएं लक्षणों की तीव्रता को मध्यम करने में अति कारगर हैं।
इनके अलावा दूसरे प्रकार की दवाएं जिन्हें एच-2 ब्लाॅकर्स के समूह के नाम से जाना जाता है, अल्सर के इलाज में प्रयोग में लायी जाती हंै।
इन दवाओं में रेनिटिडिन ;त्ंदपजप.कपदमद्धए सिमेटिडन ;ब्पउमजपकपदमद्ध आदि प्रमुख हैं। इन दवाओं के सेवन से कुछ दुष्प्रभाव हो सकते हैं जैसे चक्कर आना, सिरदर्द, सुस्त हो जाना आदि।
इन दवाओं के सेवन के साथ शराब का सेवन करने से रक्त में शराब की मात्रा बढ़ जाती है।
दूसरी कुछ दवाएं हैं जिन्हें पी. पी. आई ;च्तवजवद च्नउच प्दीपइपजवतेद्ध समूह के नाम से जाना जाता है। ये ऊपर बताई गई दवाओं से अधिक कारगर सिद्ध हुई हैं। इन दवाओं को लंबे समय तक इस्तेमाल में लाया जा सकता है। इनके दुष्प्रभाव भी कम हैं।
केवल पी. पी. आई दवाओं से ही रोग का निवारण नहीे हो जाता। पूर्ण इलाज के लिए एक एन्टीबायटिक और एन्टीअमिबिक का एक कोर्स पी. पी.आई के साथ देने से ही हेलिकोबेक्टर संक्रमण को मिटाया जा सकता है।
इनके अलावा सुक्रेल्फेट ;ैनबतंसंिजमद्ध नामक दवा द्वारा भी रोग के घाव को भरने में सहायता मिलती है।
जिन रोगियों को उपर बतायी गई दवाओं से आराम न हो तो वे काम.राज बूटी 2 ग्राम प्रति दिन 40 से 50 दिन तक खाने से स्थायी आराम पा सकते हैं।