पीपल हिन्दू धर्म का पूज्य वृ़क्ष माना जाता है। जैसे देवताओं में अनेक गुण होते हैं वैसे ही पीपल का वृक्ष भी गुणों की खान है इसलिए पीपल वृक्ष की पूजा वैसे ही होती है जैसे किसी देवता की। पीपल के पत्तों, शाखाओं, छाल एवं जड़ में तीव्र गति से कार्य करने की शक्ति होती है। विद्वानों ने पीपल के देवत्व गुणों की पहचान कर इसका पूरा लाभ उठाया है और समाज को पीपल के गुणों से स्वयं के स्वस्थ रहने का मार्ग बताया है।
पीपल के गुणों का वर्णन हिन्दू धर्म-ग्रन्थों, आयुर्वेद ग्रन्थों और वनस्पति विज्ञान ग्रन्थों में स्पष्ट लिखा है। वनस्पतियों में एक पीपल का वृक्ष ही ऐसा वृक्ष है जो दिन और रात दोनों समय अर्थात् 24 घण्टे प्राण-वायु (आॅक्सीजन) प्रदान करता है जबकि अन्य सभी पेड़-पौधे दिन में आॅक्सीजन तथा रात्रि में कार्बन डाई आॅक्साइड छोड़ते हैं। इसी कारण इस देव वृक्ष की सुरक्षा के प्रबन्ध किये गये और इसे पूज्य बना दिया गया ताकि इसे कोई क्षति न पहंुचाए। हिन्दू धर्म के लोग इसे कभी पूज्य एवं गुणों की खान नहीं काटते और उखाड़ते। एक पीपल का वृक्ष अपने आस-पास के दो-तीन कि.मी. क्षेत्र को प्राण-वायु देने में सक्षम होता है। वह हजारों घन फुट शुद्ध वायु का प्रसारण करता रहता है। जो लोग इस तथ्य से परिचित हैं वह पीपल के वृक्ष को देवता मानते हैं और आदर सम्मान एवं पूजा करते हैं।
भगवान श्री कृष्ण ने पीपल वृक्ष की महिमा करते गीता में कहा है- ‘‘सब वृक्षों में उत्तम और दिव्य गुणों से सम्पन्न पीपल मैं स्वयं हंू।’’
इसका सीधा सा अर्थ है कि जितना सम्मान लोग भगवान श्री कृष्ण को देते हैं उतना ही सम्मान उन्हें पीपल को देना चाहिए। इसी भाव तथा विचार को ध्यान में रखकर विद्यालयों, मन्दिरों, पार्कों आदि में पीपल वृक्ष लगाते हैं।
वेदों में भी पीपल के गुणों का वर्णन अनेक स्थानों पर किया गया है जहां यह वृक्ष होता है। वहां प्राण-वायु हमेशा रहती है। पीपल की छांव प्राण-वायु प्रदान करती है इसलिए इसके नीचे बैठते ही नींद के सुखद झोंके आने लगते हैं। यह वृक्ष जितना साहूकार को सुखदायी है उतना ही गरीब को भी सुख देता है।
अर्थात् पीपल राजा-रंक दोनों को ही एक दृष्टि से देख प्राण-वायु बराबर देता है।
पीपल का वृक्ष अधिकतर दीवारों के कोणों, नीव के आस-पास, कब्जों व दरारों में उग आता है इसका कारण यह है कि इसका बीज ऐसे ही धरती में नहीं उग सकता। पीपल के पेड़ के नीचे पीपल बीज बिखरे रहते हैं जो कबूतरों को बहुत प्रिय हैं। कबूतर इन बीजों को बड़े चाव से खाता है। बीज कबूतर के पेट में अंकुरित हो जाता है और कबूतर जहां पर अपनी बीट करता है वहीं पर पीपल उग जाता है क्योंकि कबूतर अक्सर दीवारों के कोनों तथा दीवारों पर बीट करता है। इसलिए यह अधिकतर कोनों, नींवों, दरारों में ही उगते हैं। यहां से इन्हें उखाड़कर भी लगा दो तो उग जाता है।
कई बार तो ऐसा भी देखने में आता है कि किसी दूसरे पेड़ पर पीपल का पेड़ उग आता है। उसका कारण भी यही है कि कबूतर दूसरे पेड़ पर बीट कर आया तो वहां भी पीपल उग आया।
पीपल वृक्ष की विशेषताएं
1. यह विषैली वायु को शुद्ध करता है तथा प्राण-वायु का संचार करता है।
2. दमा और टी.बी. के रोगियों के लिए पीपल अमृत समान है। पीपल के पत्तों की चाय पीने से रोगों में आराम होता है। पीपल की छाल को सुखाकर चूर्ण बनाकर शहद के साथ लेने से भी लाभ होता है। जड़ को पानी में उबालकर स्नान करना चाहिए।
3. पीपल की छांव में बैठने से थकावट दूर होती है क्योंकि पीपल के पत्तों से होकर नीचे आने वाली किरणों में तैलीय गुण आ जाते हैं।
4. पीपल का वृक्ष दिन-रात प्रकाश देता है। दिन हो या रात पीपल के पेड़ के नीचे सघन अंधकार कभी दिखाई नहीं देता। पत्तियों के बीच से दिन में सूर्य का और रात में चन्द्रमा का प्रकाश छन-छन कर आता रहता है।
5. पीपल के नीचे बैठने से शीतल, मंद-सुगंधित वायु के चलने पर कुछ पत्ते तालियां बजाते हैं तो कुछ मीठी-मीठी ध्वनि निकालते हैं जो कानों में प्रवेश करके व्यक्ति को हल्का नशा देते हैं। इसी कारण व्यक्ति आनंदित होकर सो जाता है।
6. पीपल के पत्ते, कोपलें, फूल-फल, डाली, छाल एवं जड़ सभी अमृत-रस की वर्षा प्रदान करते हैं। इसी प्रकार पीपल की हर एक चीज व्यक्ति को बुद्धि-बल और स्वास्थ्य प्रदान करती है, यही अमृत-रस है।
7. पीपल रोग नाशक, विषहर एवं दीर्घायु प्रदान करने वाला है। अतः भगवान शिव को यह वृक्ष बहुत पसंद है।
8. पीपल में भगवान शिव जैसे गुण पाये जाते हैं जो विष पीकर लोगों को अमृत प्रदान करने वाले हैं। पीपल और शिव का संगम हमारे देश में हजारों वर्ष पूर्व से चला आ रहा है।
आयुर्वेदिक गुण
ऋषि चरक ने अपने ग्रंथ में लिखा है कि ‘‘यदि व्यक्ति में नपुंसकता का दोष है और वह अपनी पत्नी से सन्तान उत्पन्न करने में असमर्थ है तो उसे पीपल की जटा को उबालकर उसका क्वाथ पीना चाहिए। पीपल की जड़ तथा जटा में पुरुषत्व बढ़ाने के गुण विद्यमान हैं।
सभी प्रकार की दवाओं का निर्माण जड़ी-बूटियों, फलों, पत्तों, छालों एवं रसों से होता है। उनके बनाने में देर लगती है। उस पर निर्मित दवा प्रयोग करने के बाद भी परहेज करना पड़ता है किन्तु पीपल वृक्ष ‘आशुतोष’ है। आशु का अर्थ है सन्तुष्टि और तोष का अर्थ है शीघ्र प्रदान करना। अर्थात् शीघ्र संतुष्टि प्रदान करना। पीपल का वृक्ष बिना किसी लाग-लपेट के शीघ्र ही पूर्ण लाभ पहुंचाता है।
स्त्रियों-पुरुषों दोनों को पीपल के पत्तों की छाल का सेवन करना चाहिए। ये दोनों चीजें पुत्र प्रदान करने वाली है। सूखी कोख को हरी करने वाली है।
चर्म विकार जैसे कुष्ठ, फोड़े-फुंसी, दाद खाज और खुजली को नष्ट करने वाला है। पीपल की छाल घिसकर चर्म रोगों पर लगाने से त्वचा को लाभ होता है। कुष्ठ रोगों में पीपल के पत्तों को पीसकर कुष्ठ स्थान पर लगाया जाता है। पत्तों का जल सेवन किया जाता है। आयुर्वेद ग्रन्थों में ऐसा कहा गया है कि पीपल के वृक्ष के नीचे दो तीन घंटे प्रतिदिन नियमित रूप से रुक कर आसन लगाकर बैठने से हर प्रकार के त्वचा रोगों में लाभ होता है।
रोगों में पीपल का उपचार पेट दर्द
पीपल की छाल का चूर्ण, अजवायन का चूर्ण, हींेग एवं खाना सोडा सबकी उचित मात्रा लेकर फांकें और ऊपर से पानी पी लें। पीपल के पत्तों का रस, मांगरे के पत्तों का रस, काला नमक सबको मिलाकर सेवन करें।
बवासीर
पीपल के पत्तों का रस 10 ग्राम, अमरबेल का रस 50 ग्राम, 8-10 काली मिर्चोंं का चूर्ण मिला घोटकर दिन भर में तीन बार पी लें। यह दवा वादी और खूनी दोनों बवासीरों मे लाभदायक है।
कब्ज
पीपल के सूखे पत्तों का चूर्ण, शहद में मिलाकर सेवन करने से कब्ज खुल जाता है।
पीपल के फल और अमलतास के फूल दोनों का समान मात्रा में सूखा, थोड़ी मिश्री मिलाकर चूर्ण बना प्रतिदिन एक चम्मच पानी के साथ लें।
खांसी
एक चम्मच पिसी हल्दी तथा एक चम्मच पीपल की सूखी पिसी छाल का चूर्ण मिलाकर शहद के साथ सेवन करें।
पीपल के फलों का चूर्ण, फुलाया हुआ सुहागा में शहद मिलाकर चाटें। दमा पीपल की छाल में शहद मिलाकर सुबह-शाम सेवन करें।
चक्कर आना
पीपल के फलों का चूर्ण 6 ग्राम दूध के साथ सोते समय सेवन करें।
जीव-जन्तु का काटना (बिच्छू) ततैया, मधुमक्कखी, मकड़ी आदि)
पीपल की छाल को पानी में घिसकर डंक लगने या काटे जाने वाले स्थान पर लगाएं।
नीम की छाल, पीपल की छाल दोनों को अलग-अलग पानी में घिसकर मिला लें और काटे जाने वाली जगह पर लगाएं लाभ होगा।
इसके अलावा यह अपच, अजीर्ण, खाज-खुजली, फोड़ा, फुंसी, कील-मुहांसे, चक्कर आना, सिर दर्द, कमर दर्द आदि रोगों में भी लाभदायक है।