आग्नेय महापुराणोक्त ग्रह शांति यज्ञ विधि
आग्नेय महापुराणोक्त ग्रह शांति यज्ञ विधि

आग्नेय महापुराणोक्त ग्रह शांति यज्ञ विधि  

अशोक शर्मा
व्यूस : 16070 | सितम्बर 2010

संकलित उपाय आग्नेय महापुराण के एक सौ चौसठवें अध्याय से लिये गये हैं। श्लोक संखया एक से चौदह में ग्रह शांति के विधान हवन, मंत्र, समिधाएं, साकल्य आदि का स्पष्ट वर्णन किया गया है। ग्रह को समर्पित भोग तथा दान का भी विधान बताया गया है।

तीर्थराज पुष्करजी द्वारा भगवान परशुराम को बताये गये उपाय इस प्रकार हैं। लक्ष्मी, शांति, पुष्टि, वृद्धि तथा आयु की कामना करने वाले वीर पुरुष को ग्रहों की पूजा करनी चाहिये। ग्रह स्थापना क्रम से करके सूर्य, चंद्र, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि, राहु एवं केतु की प्रतिमाएं भी इसी क्रमानुसार पृथक पृथक धातु से बनवानी चाहिएं। सूर्य की तांबे से, चंद्रमा की स्फटिक या चांदी से, मंगल की लाल चंदन से, बुध की रजत से, बृहस्पति की स्वर्ण से, शुक्र की रजत से, शनि की लोहे से तथा राहु केतु की सीसे से बनाएं। इस पूजा से शुभत्व की प्राप्ति होती है। ग्रहों के रंगों के अनुसार ही उनकी पूजा सामग्री होनी चाहिए।

इस प्रकार ग्रहों के वेदानुसार मंत्र (यजुर्ववेद से लिये गये ) और लकड़ियां जिससे ग्रह शांति के यज्ञ के लिए अग्नि जलाई जाती है उनके नाम दिये गये हैं जो क्रमशः आक, पलाश, खैर, अपामार्ग, पीपल, गूलर, शमी, दूर्बा और कुशा है। इन लकड़ियों से अग्नि जलाकर प्रत्येक ग्रह की शांति के लिए शहद, घी, दही या खीर की आहूति देने का विधान है।

विभिन्न ग्रहों के लिए पृथक-पृथक भोग सामग्री दर्शायी गई हैं। सूर्य के लिए गुड़ मिलाया हुआ भात, चंद्र-खीर, मंगल- लाप्सि (गुड़ का बना मिठा दलिया), बुध के लिए साठी के चावल की खीर, गुरु के लिए दही चावल, शुक्र-घी, भात, शनि तिल मिश्रित भात, राहु के लिए उड़द मिश्रित भात तथा केतु के लिए सप्तधान्य की खिचड़ी। इन भोज्य पदार्थों से ये भोग लगायें तथा ब्राह्मण को भोजन भी अवश्य खिलायें। इसके पश्चात ग्रहों की दक्षिणा भी बतायी गई है तथा किस ग्रह की पूजा करनी चाहिए यह बताया गया है।

जिस व्यक्ति की राशि से अष्टम राशि में जो ग्रह स्थित है उसकी पूजा, यज्ञ, शांति अवश्य करानी चाहिए। जन्मकुंडली में अष्टम भाव में स्थित ग्रह की एवं अष्टम भाव में स्थित राशि के स्वामी ग्रह की पूजा कराने से शुभत्व की प्राप्ति होती है। ब्रह्माजी ने इन ग्रहों को वर दिया है कि जो तुम्हारी पूजा, यज्ञादि करता है उनके मनोरथ की पूर्ति सम्मानपूर्वक करनी चाहिए। अतः शास्त्रोक्त विधि से पूजन, हवन आदि करने से ग्रहों की अनुकूलता अवश्य प्राप्त होती है।

इस प्रकार पुराणोक्त विधि के अनुसार तथा यजुर्वेद के मंत्रों से ग्रहों के उपाय किये जाने से शुभ फल की प्राप्ति अवश्य होती है।

इसके अतिरिक्त नारद पुराण में ग्रहों तथा नक्षत्रों के वृक्ष, वनस्पतियों के बारे में भी वर्णन है। नारद पुराण के अनुसार विधिवत उपाय करने से भी ग्रहों की अनुकूलताएं प्राप्त की जा सकती हैं। जन्म पत्रिका या जन्म राशि के अनुसार शुभ-अशुभ ग्रहों का गहनता से विश्लेषण करके ही उपाय करायें। अशुभ ग्रह की शांति एवं शुभता प्रदान करने वाले ग्रह की वृद्धि की जानी चाहिए, दोनों के उपाय समान नहीं पृथक-पृथक होते हैं। तीसरे, छटे, आठवें तथा बारहवें भाव में स्थित ग्रह की प्रकृति के अनुसार यह निर्णय लिया जाना चाहिए कि इसकी शांति की जाए या पुष्टि। ग्रहों की शांति करानी हो या पुष्टि, विधिवत, पुराणोक्त, वेदोक्त तंत्रोक्त पद्धति से करानी चाहिए।



Ask a Question?

Some problems are too personal to share via a written consultation! No matter what kind of predicament it is that you face, the Talk to an Astrologer service at Future Point aims to get you out of all your misery at once.

SHARE YOUR PROBLEM, GET SOLUTIONS

  • Health

  • Family

  • Marriage

  • Career

  • Finance

  • Business


.