रत्न चयन व् धारण विधि -विधान
रत्न चयन व् धारण विधि -विधान

रत्न चयन व् धारण विधि -विधान  

भगवान सहाय श्रीवास्तव
व्यूस : 110070 | मई 2012

रत्न चयन और धारण की प्रक्रिया लंबी और जटिल अवश्य है लेकिन एक बार आप इस प्रक्रिया को जान लें और समझ लें तो अवश्य ही अपने द्वारा चयन किये गये रत्न का पूरा लाभ उठा सकते हैं।

सही रत्न का चुनाव करना एक कठिन कार्य है, क्योंकि रत्न जहां लाभ करते हैं, वहीं हानि भी पहुंचा सकते हैं।

कारक ग्रहों के अनुसार विश्लेषण करें- लग्न, चतुर्थ, पंचम, नवम्, दशम, द्वितीय ये शुभ भाव है। यदि इनसे सम्बन्धित ग्रह जन्मकुण्डली में स्वग्रही अथवा मित्र-राशि या उच्च राशिगत अपने भाव अथवा राशि से प्रथम, द्वितीय, चतुर्थ, पंचम, सप्तम, नवम् अथवा दशम् हो तो संबंधित राशि का रत्न निःसंकोच धारण कर लाभान्वित हो सकते हैं। जैसे- मेष व वृश्चिक लग्न के लिए मूंगा शुभ है। माणिक्य व मोती भी इनको शुभ फल देते हैं। जबकि वृषभ व तुला लग्न के लिए हीरा रत्न शुभ है। इनको पन्ना व नीलम भी शुभ प्रभाव देते हैं। इसी तरह से मिथुन व कन्या राशि के लिए पन्ना, नीलम व हीरा फलदायी है। कर्क लग्न के लिए मोती कारक रत्न है। सिंह लग्न के लिए माणिक्य के साथ पुखराज व मूंगा विशेष प्रभावी है। धनु व मीन लग्न के लिए पुखराज शुभ है। मकर व कुंभ के लिए नीलम और पन्ना श्रेष्ठ है।

आप अपने भाग्यशाली रत्न का चुनाव वर्तमान महादशा तथा अंतर्दशा के अनुसार कर सकते हंै। यदि दशा स्वामी बलवान, शुभ अथवा अपनी उच्चराशि में या स्वराशि में हो, तो दशा स्वामी का रत्न शुभ तिथि समय में धारण कर सकते हैं।


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रत्न धारण करने से संबंधित ग्रह को शक्ति मिलती है तथा वह शुभ प्रभाव आपके शरीर पर डालता है।

इसी तरह अपने मूलांक, भाग्यांक तथा नामांक के स्वामी का रत्न धारण किया जा सकता है। अंक 1 और 4 वालों को माणिक्य तथा मूलांक 2 और 7 वालों को मोती धारण करना चाहिए।

मूलांक 9 वालों को मूंगा, मूलांक 5 के जातकों को पन्ना तथा 3 अंक वालों के लिए पुखराज शुभ माना जाता है। अंक 6 के जातको को हीरा तथा अंक 8 के जातकों के लिए नीलम रत्न धारण करना शुभ होता है।

रत्न-धारण-दिशा-ज्ञान:- रत्न शास्त्र के अनुसार सभी रत्नों को धारण करने में अन्य बातों के अलावा दिशा का ज्ञान भी होना जरूरी होता है। जैसे अगर सूर्य के लिए माणिक्य धारण कर रहे हैं, तो धारक का मुख पूर्व दिशा में, मोती धारण करते समय उत्तर-पश्चिम की ओर तथा मूंगा पहनना हो तो धारण करने वाले का मुख दक्षिण दिशा की ओर पन्ना धारण करते समय उत्तर दिशा में मुख करना चाहिए। गुरू को अनुकूल बनाने के लिए पुखराज धारण करने के लिए उत्तर-पूर्व दिशा उत्तम मानी गयी है।

इसी प्रकार हीरे के लिए उपासक का मुख दक्षिण-पूर्व दिशा में तथा नीलम धारण करते समय मुख पश्चिम दिशा की ओर होना चाहिए। राहु और केतु के लिए गोमेद तथा लहसुनिया धारण करने वाले का मुख हमेशा दक्षिण-पश्चिम की ओर होना चाहिए।

कुछ विशेष उप-रत्नः- ऐसे रत्न है लाजवर्त पितौनिया, जिरकन, ओनेक्स और गारनेट। ये सस्ते और सुलभ रत्न है।

मुख्य रूप से शनि की शांति के लिए अथवा शनिग्रह के लिए नीलम के विकल्प के रूप में पहना जाने वाला लाजवर्त मकर अथवा कुम्भ लग्न राशि के लोगों के लिए लाभदायक होता है। जिस जातक की कुंडली में शनि स्वग्रही या मित्र राशि अथवा उच्चराशि में हो तो वे लाजवर्त धारण कर सकते हैं।

ईसाइयों में यानी ब्लड स्टोन पितौनिया की विशेष मान्यता है।

यूनानियों और रोमनों के अनुसार ब्लड स्टोन धारण करने से मान सम्मान के साथ दृढ़ता बढ़ती है और मर्यादा प्राप्त होती है। खिलाड़ियों को विजेता बनने के लिए इसे गले में धारण करना चाहिए। पशुपालन अथवा कृषिकार्य के लिए भी शुभ है। यह बुद्धि, हिम्मत व साहस प्रदान करता है। परन्तु स्त्रियों के लिए उपयुक्त नहीं है।

आपकी कुंडली में अगर शनि अच्छे भाव में बैठा हो तो ओनेक्स और दाना-ए-फिरंग पहनने से श्रवण सम्बन्धी समस्याएं दूर होती हैं तथा आत्म-नियंत्रण व एकाग्रता जैसे गुणों में बढ़ोत्तरी होती है।


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कुंडली में यूरेनस शुभ स्थान पर हो तो जिरकान और गारनेट पहनना उचित रहेगा। जिरकान अनिद्रा के उपचार में प्रयुक्त होने के साथ ही आध्यात्मिक अन्तर्दृष्टि को बढ़ाता है जबकि गारनेट रक्त विकारों को दूर करता है। नेपच्यून शुभ होने पर एमेथिस्ट और एक्वामेरीन पहनने की सलाह दी गई है।

असफलताओं, पराजय व निराशा की स्थिति में आप अपने जन्म लग्नानुसार त्रिरत्न जड़ित लाकेट धारण कर सकते हैं।

सभी क्षेत्रों में प्रगति के लिए चांदी या सोने में प्राण-प्रतिष्ठित नव रत्नों की माला (असली) धारण व सकते हैं। इससे कष्टों का निवारण होगा तथा सुख - सौभाग्य मिलेगा।

धन-प्राप्ति हेतु बीसायंत्रयुक्त चांदी से निर्मित लाकेट में मोती तथा मूंगा विधिपूर्वक जड़वा कर गले में धारण करें।

सामाजिक क्षेत्र में मनोवांछित सफलता-प्राप्ति हेतु दायें हाथ की कनिष्ठा उंगली में 4 कैरेट वजन का षट्कोणीय पन्ना धारण करें।

कला, अभिनय एवं माडलिंग के क्षेत्र में सफलता सुनिश्चित करने के लिए दाएं हाथ की अनामिका उंगली में विधि विधान से धारण करें।

दाये हाथ की मध्यमा उंगली में सवा तीन कैरेट वजन का गोमेद रत्न 6 कैरेट का पीला पुखराज सोने की अंगूठी में जड़वाकर दाएं हाथ की तर्जनी में धारण करने से राजनीतिक क्षेत्र में सफलता मिलती है।

मुकदमें तथा वाद-विवाद आदि में विजय प्राप्त करने के लिए 8 कैरेट वजन का लाल मूंगा त्रिकोण साइज में सोने और तांबे की मिश्रित अंगूठी में जड़वाकर दाएं हाथ की अनामिका उंगली में धारण करें।

नौकरी अथवा प्रमोशन प्राप्त करने व उच्चाधिकारियों का व्यवहार अनुकूल बनाने के लिए दाएं हाथ की अनामिका उंगली में 4 कैरेट वजन का माणिक्य सोने की अंगूठी में धारण करें।

घर-गृहस्थी में जीवन सुखमय न हो तो पति को दायें हाथ की अनामिका उंगली में 10 सेंट वजन का हीरा सोने की अंगूठी में तथा पत्नी को बाएं हाथ की अनामिका उंगली में 5 कैरेट वजन का दूधिया मोती चांदी की अंगूठी में धारण करना चाहिए।

यदि इन्हें खरीदने में असमर्थ हों तो पति-पत्नी दोनों अपने दाएं हाथ की तर्जनी उंगली में 7-8 कैरेट वजन का ओपल शुक्रवार को चांदी की अंगूठी में सायंकाल विधिपूर्वक धारण करें । निःसंतान दम्पत्ति हों तो पति दाएं हाथ की तर्जनी उंगली में 5 रत्ती वजन का पीला पुखराज सोने की अंगूठी में तथा पत्नी बाएं हाथ की तर्जनी उंगली में 8 रत्ती का सुनहला रत्न चांदी की अंगूठी में धारण करें। इससे संतान-इच्छा की पूर्ति होती है।


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यदि आप काफी समय से अस्वस्थ एवं रोगग्रस्त हैं तो दाएं हाथ की अनामिका उंगली में 5 कैरेट वजन का मोती तथा बाएं हाथ की अनामिका उंगली में 7 कैरेट वजन का मून स्टोन चांदी की अंगूठी में धारण करें। यदि संभव हो तो प्राण-प्रतिष्ठित स्फटिक और मूंगा मिश्रित रूद्राक्ष की माला धारण करेगें तो स्वस्थ व प्रसन्न रहेंगे।

रत्नधारण विधि-विधानः- रत्न धारण करने का भी नियम है। आमतौर पर कहा जाता है कि रत्नों को मित्र ग्रह के अनुसार ही धारण करना चाहिए, तभी उनका परिणाम शत-प्रतिशत मिलता है। रत्नों को लग्नेश, पंचमेश और नवमेश के अनुसार धारण करना चाहिए।

यह ध्यान देने वाली बात है कि रत्न हमेशा डेड होता है। उसे चार्ज किया जाता है। आप जितने विधि विधान से इसे चार्ज करेंगे, उतना ही सक्रियता से अनुकूल फल देगा। साथ ही यह भी गौर करें कि जिस वार ग्रह का रत्न है, उसे उसी वार की होरा या चैघड़िया में धारण करना चाहिए। वैसे रत्नों को धारण करने के लिए शुक्ल पक्ष को उचित माना गया है। रत्न धारण करने के 24 घण्टे पहले उसे शुद्ध दूध, दही और गंगा जल में डालकर रख देना चाहिए।

इसके बाद गंगा जल से स्नान कराकर उसे एक माला के जप से चार्ज करके पहनना चाहिए। रत्न के लिए जप करने के दौरान यह ध्यान दें कि मंत्र प्रायः नव ग्रहों के अनुकूल व निर्धारित हों, तभी वह रत्न सिद्ध होता है।



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